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सीएम रहते हुए दो-दो सीटों से चुनाव हारने वाले चरणजीत चन्नी की पूरी कहानी

पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बने थे चरणजीत सिंह चन्नी.

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नेपथ्य में रहे चरणजीत सिंह चन्नी तेज़ी से उभरे ज़रूर, लेकिन फिर दो-दो सीटों से चुनाव हार गए. (फ़ोटो: PTI)
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10 मार्च 2022 (Updated: 10 मार्च 2022, 16:29 IST)
Updated: 10 मार्च 2022 16:29 IST
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मुख्यमंत्री का नाम जाहिर करने में सूत्रों को मात देने की असली कला भारतीय जनता पार्टी के पास रही है. इस गेम में कांग्रेस की प्रभावशाली एंट्री सितंबर 2021 में हुई. शायद पहली बार कांग्रेस ने एक ऐसे चेहरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया, जिसका नाम कयासों वाली लिस्ट में भी नहीं था. चरणजीत सिंह चन्नी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता थे. लेकिन लंबे समय तक नेपथ्य में रहे. उन्हें पंजाब में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रही तकरार का फायदा मिला था. फूट हद से अधिक बढ़ चुकी थी. आलाकमान ने समझाने की कोशिश की. कैप्टन ने बेमन से इस्तीफ़ा दिया. बाद में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई. बीजेपी के साथ गए. और, अपनी सीट भी नहीं बचा पाए.खैर, कैप्टन के विद्रोह से कांग्रेस की नाव डगमगा रही थी. कहा गया कि कुर्सी पर भले ही चन्नी बैठे हों, कमान सिद्धू के हाथ में रहेगी. एक आशंका ये भी जताई गई कि चन्नी पार्टी को बिखरने से बचा नहीं पाएंगे. उन्हें कमज़ोर मुख्यमंत्री के तौर पर आंका गया.हालांकि, कुछ समय में ही चन्नी ने सभी पूर्वानुमानों को लगभग ध्वस्त कर दिया. उनके भाषण, उनकी वाकपटुता, विपक्षी नेताओं पर उनके तीखे हमले, चन्नी ऊपर उठते गए.इसलिए, जब कांग्रेस लीडरशिप पर सीएम कैंडिडेट घोषित करने का प्रेशर बढ़ा, उनके पास कोई और रास्ता नहीं था. इस फ़ैसले से सिद्धू और उनका खेमा खासा नाराज़ हुआ. ये नाराज़गी बाहर तो नहीं दिखी, लेकिन अंदरखाने में मुख़ालफ़त की आग सुलगती रही.10 मार्च को इसका नतीजा सामने आ चुका है. पांच सालों से सरकार चला रही कांग्रेस एक-चौथाई सीटों पर सिमट चुकी है. चन्नी और सिद्धू दोनों अपनी-अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे. कांग्रेस की इस हार के कारणों पर चर्चा अलग से करेंगे.

आज हम पूर्व हो चुके मुख्यमंत्री और वर्तमान में कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी की कहानी सुनाते हैं.

पंजाब में दलितों की आबादी 30 प्रतिशत से ज़्यादा है. लेकिन प्रदेश को पहला दलित मुख्यमंत्री मिलने में आज़ादी के 74 बरस लग गए. वो भी तब, जब सत्ताधारी पार्टी किसी तरह अपना कार्यकाल बचाने की लड़ाई लड़ रही थी. कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के सहारे किसी तरह कार्यकाल तो पूरा कर लिया, लेकिन वो इसे वापसी करने में सफ़ल नहीं हो पाई.चन्नी का जन्म 1 मार्च, 1963 को हुआ था. पंजाब के भजौली गांव में. उनके पिता ने कुछ समय तक मलेशिया में नौकरी की थी. इस वजह से वो बाहर की दुनिया का मकड़जाल समझते थे. उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश की. परिवार में पढ़ाई-लिखाई का माहौल था. बड़े भाई ओवरसियर की नौकरी करते थे. चन्नी बताते हैं कि पढ़ाई की ललक उन्हें विरासत में मिली.उन्होंने बीए की डिग्री ली. फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी और पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से एमबीए किया. पंजाब कांग्रेस दल का नेता रहते हुए उन्होंने पीजी की दूसरी डिग्री भी ली. फिलहाल वो पंजाब यूनिवर्सिटी से इंडियन नेशनल कांग्रेस पर पीएचडी कर रहे हैं.चन्नी के पॉलिटिकल करियर की शुरुआत कॉलेज के दिनों से ही हो चुकी थी. मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्टूडेंट यूनियन का चुनाव जीता था. 1992 में वो काउंसिलर के पद पर चुने गए. 2003 में खरड़ म्युनिसिपल काउंसिल के अध्यक्ष बने.फिर 2007 का साल आया. पंजाब में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. चन्नी ने कांग्रेस के निशान पर चमकौर साहिब से टिकट मांगा. कांग्रेस ने मना कर दिया. चन्नी ने ताल ठोक दी. निर्दलीय लड़े और आसानी से जीत भी गए. कुछ समय के लिए शिरोमणि अकाली दल गठबंधन के साथ रहे. 2010 में कैप्टन अमरिंदर सिंह चन्नी को कांग्रेस में ले आए. ससम्मान सदस्यता दिलाई. 2012 के चुनाव में दोबारा जीते. इस बार दलीय थे. कांग्रेस के टिकट पर आए थे. कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई. पार्टी की सरकार बनी 2017 में. कैप्टन मुख्यमंत्री बने. कैबिनेट मिनिस्टर का पोर्टफ़ोलियो चन्नी के पास आया. वो शांतिपूर्ण तरीके से अपना काम करते रहे.2017 के साल में पंजाब में कांग्रेस के साथ दो बड़ी घटना घटी थी. एक तो प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. दूसरी, बीजेपी से बगावत करने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में आ चुके थे. कांग्रेस में उनकी एंट्री पंजाब से नहीं, सीधे दिल्ली दरबार से हुई. जानकार बताते हैं कि कांग्रेस में उनको प्रियंका गांधी और प्रशांत किशोर लाए थे.सिद्धू ने चुनाव भी जीता. पार्टी में नए होने के बावजूद उन्हें शपथग्रहण के लिए तीसरे नंबर पर बुलाया गया. उन्हें स्थानीय निकाय मंत्रालय दिया गया. लेकिन दो साल बाद ही मंत्रालय बदल दिया गया. कैप्टन ने सिद्धू को ‘नॉन-परफ़ॉर्मर’ बता दिया. और, स्थानीय निकाय के बदले बिजली मंत्रालय दे दिया. हालांकि, कैप्टन की बात सिद्धू को चुभ चुकी थी. उन्होंने कहा,
मुझे कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता. मैं अपने जीवन के 40 सालों तक परफ़ॉर्मर रहा हूं.
इसके बाद उन्होंने मंत्रीपद से इस्तीफ़ा दे दिया. नया मंत्रालय कभी जॉइन नहीं किया. लेकिन वो पार्टी में बने रहे और कैप्टन के ख़िलाफ़ बयानबाजी करते रहे. 2021 आते-आते रिश्तों में खटास बढ़ चुकी थी. सिद्धू को पार्टी के भीतर से सपोर्ट मिल रहा था. उन्हें पंजाब सरकार के चार मंत्रियों का भी साथ था. इनमें से एक चरणजीत सिंह चन्नी भी थे. हालांकि, चन्नी दोनों धड़ों के साथ चलने की कोशिश करते रहे. लेकिन जब बात एक को चुनने की आई, उन्होंने कैप्टन से कट्टी कर ली.और, तब कैप्टन ने एक पुराना गड़ा मुर्दा उखाड़ दिया. 2018 में जब चन्नी कैप्टन की कैबिनेट में मंत्री थे, तब एक महिला आइएएस अधिकारी को आपत्तिजनक मेसेज भेजा था. बवाल हुआ तो चन्नी ने कहा कि उन्होंने जान-बूझकर वो मेसेज नहीं भेजा और अधिकारी से माफ़ी भी मांग ली थी. जब चन्नी ने विद्रोह किया तो कैप्टन ने पुरानी फ़ाइल खुलवाने की कोशिश की. हालांकि, इस कोशिश का कोई असर नहीं हुआ.बाद में कैप्टन को इस्तीफ़ा देना पड़ा. सीएम की कुर्सी खाली हुई. सिद्धू रुमाल रख चुके थे. मगर आलाकमान ने कहा, अभी रुकिए. आपकी बारी बाद में आएगी. उन्होंने सिद्धू की बजाय चन्नी को सीएम बना दिया.चन्नी ने पूर्वाग्रहों को ठिकाने लगाकर अपनी अलग पहचान कायम की. ऐसी पहचान कि कांग्रेस को उन्हें सीएम कैंडिडेट बनाने पर मजबूर होना पड़ा. चन्नी पीएम की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर हुए विवाद के केंद्र में भी रहे. हालांकि, उन्होंने सरकार को पाक-साफ़ दिखाने की भरपूर कोशिश की.इस विधानसभा चुनाव में चन्नी ने नारा दिया था - घर-घर चल्ली गल, चन्नी करदा मसले हल. यानी, घर-घर में ये बात चल रही है कि चन्नी सबकी समस्या सुलझाता है.घर-घर की समस्या सुलझाने का दावा करने वाले चरणजीत सिंह चन्नी अपने घर का मसला नहीं सुलझा सके. कांग्रेस की आपसी खींचतान ने पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया है. चन्नी दो सीटों से लड़ रहे थे. दोनों से हार चुके हैं. अब इतना तो तय है कि उनकी आगे की राह बहुत आसान नहीं होने वाली है.

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