'नीतीश की छाती तोड़ूंगा' कहने वाले अरुण कुमार JDU में आ रहे, ललन सिंह ने खेल कर दिया
Bihar Assembly Election करीब आते ही नेताओं के दल-बदल का सिलसिला शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में जहानाबाद के पूर्व सांसद Arun Kumar की JDU में घर वापसी की खबर सामने आई है.
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पूर्व सांसद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पुराने सहयोगी अरुण कुमार की आज यानी 11 अक्टूबर को जदयू में वापसी हो रही है. पिछले महीने ही वे जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल होने वाले थे. लेकिन ऐन वक्त पर उनके ही एक पुराने साथी ललन सिंह ने उनकी एंट्री पर वीटो लगा दिया था. अब वहीं ललन सिंह उन्हें जदयू वापस लेकर आ रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक, शनिवार दोपहर करीब तीन बजे जहानाबाद से पूर्व सांसद अरुण कुमार, जदयू में शामिल होंगे. इससे पहले, 4 सितंबर को जदयू में उनकी वापसी होनी थी. लेकिन अगले ही दिन अरुण कुमार की एंट्री पर ब्रेक लग गया. अरुण कुमार ने लल्लनटॉप से बातचीत में बताया कि बिहार बंद के चलते मिलन समारोह रद्द कर दिया गया है.
अरुण कुमार की जॉइनिंग टलने की कहानी इतनी सीधी नहीं थी, जितनी वो बता रहे थे. जदयू से जुड़े एक बड़े नेता के बताया कि नीतीश कुमार के खासमखास और अरुण बाबू के स्वजातीय नेता ने ही उनकी वापसी पर वीटो कर दिया था. नाम है राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह. वजह ईगो का टकराव और जाति के नेतृत्व की लड़ाई बताई गई. ललन सिंह और अरुण कुमार की ये अदावत भी नई नहीं है. नीतीश कुमार के साथ बनते बिगड़ते उनके रिश्ते में ललन सिंह अहम फैक्टर रहे हैं.
जदयू नेता से पुरानी अदावतअरुण कुमार समता पार्टी के दिनों से नीतीश कुमार के साथी रहे हैं. वो उन चुनिंदा नेताओं में से थे जो जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार दोनों के गुडबुक में थे. साल 1999 से 2004 तक जदयू के टिकट पर जहानाबाद से सांसद रहे. साल 2009 में जॉर्ज फर्नांडिस जब नीतीश कुमार से अलग हुए. उसके बाद से अरुण कुमार और नीतीश के बीच भी दूरी आने लगी. और इस दूरी को खाई बनाने में भूमिका रही नीतीश कुमार के एक और पुराने साथी ललन सिंह की.
वजह बनी भूमिहार नेतृत्व की महत्वकांक्षा और ईगो का टकराव. वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं,
अरुण कुमार पढ़े लिखे और तेजतर्रार नेता हैं. मगध क्षेत्र के भूमिहारों में उनकी अच्छी पकड़ भी है. ये बात ललन सिंह को असहज कर रही थी. अब जदयू में ललन सिंह के न चाहते हुए किसी के लिए राजनीति कर पाना न आज आसान है, न तब आसान था. दूसरी तरफ अरुण कुमार ललन सिंह के राजनीतिक तौर तरीकों से भी सहमत नहीं थे. परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उनको जदयू से अपने रास्ते अलग करने पड़े.

इसके बाद अरुण कुमार उपेंद्र कुशवाहा के साथ गए. और साल 2014 में उनकी पार्टी RLSP से सांसद बने. फिर आया साल 2015. तब नीतीश कुमार राजद के सहयोग से सरकार चला रहे थे. उसी साल पुटुस उर्फ पवन कुमार यादव हत्याकांड हुआ. पुटुस मोकामा के लहरिया पोखर गांव का था.
18 जून, 2015 को एक लड़की से बदसलूकी के विवाद में उसकी हत्या कर दी गई. आरोप मोकामा विधायक अनंत सिंह पर लगे. उनकी गिरफ्तारी हुई. अफवाह चली एनकाउंटर हो सकता है. इस घटना की भूमिहारों की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई. अरुण कुमार भी इस जाति से आते हैं. उन्होंने नीतीश कुमार को धमकी दे डाली. अगर ऐसा हुआ तो वो पटककर नीतीश कुमार की छाती तोड़ देंगे.
विवादित बयान का मामला कोर्ट तक पहुंचा. और अरुण कुमार को 3 साल की सजा हुई. हालांकि बाद में कोर्ट से बरी हो गए. इसके बाद से अरुण कुमार और नीतीश कुमार की तल्खियां बढ़ गईं. बाद में उपेंद्र कुशवाहा से अलग होकर अरुण कुमार चिराग पासवान के साथ गए. तब चिराग एनडीए गठबंधन से अलग ताल ठोंक रहे थे. उस दौरान अरुण कुमार ने आरोप लगाया कि जदयू अध्यक्ष ललन सिंह नीतीश कुमार को खाने या दवा में कुछ मिलाकर दे रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री को मेमोरी लॉस हो रहा है.
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चिराग पासवान और अरुण कुमार का साथ भी ज्यादा वक्त नहीं चल पाया. लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज अरुण कुमार ने अपने रास्ते अलग कर लिए. इसके बाद से अरुण कुमार राजनीतिक वनवास में हैं. इस दौरान उन्होंने एक बार फिर से एनडीए से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की. अपने बयानों पर सफाई दी. साथ ही कुछ महीनों से चुप्पी भी साध रखी है.
पिछले छह महीने से जदयू के साथ आने की कोशिशअरुण कुमार पिछले छह महीने से जदयू में वापसी की कोशिश में जुटे हैं. और वो लगातार जदयू के नेताओं के संपर्क में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीतीश कुमार के एक करीबी मंत्री और अरुण कुमार की मीटिंग भी हो चुकी है. ये मीटिंग अरुण कुमार के भाई और टेकारी से हम पार्टी (सेकुलर) के विधायक अनिल कुमार के घर पर हुई थी. इससे पहले जून महीने में भी उनकी जॉइनिंग की तैयारी थी. लेकिन आखिरी वक्त में चीजें रुक गईं. अब ललन सिंह ही उन्हें जदयू वापस लेकर आ रहे हैं.
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