फिजूल खर्च रोकने के लिए मोदी सरकार का बड़ा कदम, सरकारी कर्मचारियों को सबसे सस्ती फ्लाइट बुक कराने का निर्देश
वित्त मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों से कहा है कि जिन कर्मचारियों को जिस क्लास में ट्रैवल की सुविधा मिली है वह उसी क्लास (श्रेणी) में सबसे सस्ते किराये वाली फ्लाइट की बुकिंग करें. सरकारी आदेश में कहा गया है कि कर्मचारियों को अपने ऑफिस टूर्स और एलटीसी के तहत परिवार के साथ छुट्टियां बिताने जाने से कम से कम तीन हफ्ते पहले टिकट बुक करना चाहिए.

वित्त मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों से कहा है कि जिन कर्मचारियों को जिस क्लास में ट्रैवल की सुविधा मिली है वह उसी क्लास (श्रेणी) में सबसे सस्ते किराये वाली फ्लाइट की बुकिंग करें. सरकारी आदेश में कहा गया है कि कर्मचारियों को अपने ऑफिस टूर्स और एलटीसी के तहत परिवार के साथ छुट्टियां बिताने जाने से कम से कम तीन हफ्ते पहले टिकट बुक करना चाहिए. व्यय विभाग की ओर से आफिस मेमोरेंडम में कहा गया है कि कर्मचारियों को यात्रा के प्रत्येक चरण के लिए केवल एक ही टिकट बुक करना चाहिए. साथ ही कहा है कि टूर की सरकारी मंजूरी मिलने की प्रक्रिया जारी रहने के दौरान भी फ्लाइट्स की बुकिंग की जा सकती है. आपको बता दें कि सरकारी कर्मचारी फिलहाल सिर्फ तीन अधिकृत ट्रैवल एजेंटों से ही हवाई टिकट खरीद सकते हैं. इनमें पहला बामन लारी एंड कंपनी, दूसरा अशोक ट्रैवल एंड टूर्स और तीसरा आईआरसीटीसी (IRCTC) का नाम शामिल है.
कम से कम तीन हफ्ते पहले टिकट बुक करने का निर्देशसरकारी खर्चे पर प्लेन के टिकट की बुकिंग से संबंधित नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक कर्मचारियों को यात्रा के 72 घंटे से भी कम समय में बुकिंग करने और यात्रा करने के 24 घंटे से भी कम समय में टिकट रद करने पर कर्मचारी को लिखित में सफाई देनी होगी. निर्देशों के मुताबिक किसी भी एक यात्रा के लिए सभी कर्मचारियों के टिकट एक ही यात्रा एजेंट के जरिये बुक करने चाहिए और इन बुकिंग एजेंट को किसी तरह का शुल्क अदा नहीं किया जाना चाहिए. इसमें कहा गया, 'कर्मचारियों को यात्रा से कम से कम 21 दिन पहले टिकट बुक करने चाहिए और सबसे कम किराये वाली फ्लाइट्स को चुनना चाहिए, जिससे कि सरकारी खजाने पर कम से कम भार पड़े.
सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाअब यह समझने की कोशिश करते हैं कि सरकार के इन गाइडलाइंस को जारी करने के पीछे की असल वजह क्या हैं. वित्त मंत्रालय की तरफ से हाल ही में जारी मंथली आर्थिक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैश्विक और घरेलू मोर्चे पर कई तरह कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती फिस्कल डेफिसिट कम रखना है. आमदनी में कमी और कोरोना महामारी के चलते देश का राजकोषीय घाटा अच्छा खासा बढ़ गया है. दरअसल कोरोना संकट के दौरान भारत को हेल्थ और वेलफेयर स्कीमों में काफी पैसा खर्च करना पड़ा है. इसी के चलते सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा है. इस वजह से कुल बजट डिफीसिट बढ़ने का जोखिम बढ़ा है. साथ ही पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाये जाने से भी सरकार की आमदनी घटी है. डालर के मुकाबले रुपये की कमजोरी ने भी इसमें आग में घी डालने का काम कर रही है क्योंकि भारत को फूड आइटम्स, क्रूड ऑयल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
लक्ष्य के मुकाबले चालू खाता घाटा बढ़ारिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में लगी 'आग की लपटें' भारत में आम आदमी को झुलसा रही हैं. रिटेल महंगाई आसमान छू रही है. आयातित सामान मुख्य रूप से कच्चे तेल और खाने के तेल की वैश्विक कीमतों में वृद्धि हुई है. इसके अलावा इस साल पड़ी भीषण गर्मी के चलते भी देश में खाने पीने की चीजों के दाम बढ़े हैं. हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आगे महंगाई पर कुछ अंकुश लगने के आसार है क्योंकि दुनियाभर की अर्थव्यस्थाओं की जीडीपी ग्रोथ सुस्त पड़ने से कच्चे तेल की मांग में कमी का अनुमान है . इसके अलावा कच्चे तेल का उत्पादन और निर्यात करने वाले देशों के समूह ओपेक ने भी क्रूड की सप्लाई बढ़ाने का फैसला लिया है. आपको बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP के मुकाबले चालू खाता घाटा 6.7 फीसदी हो गया था जबकि चालू वित्त वर्ष में यह 6.4 फीसदी के लक्ष्य से करीब आधा फीसदी ज्यादा हो सकता है. मोदी सरकार के इस आदेश के पीछे सरकार की क्या कवायद है और क्या हमारी अर्थव्यस्था भी श्रीलंका के रास्ते पर तो नहीं चल पड़ी है.
Fiscal deficit पर कितना असर डालेगा मोदी सरकार का नया बजट