कोरोना इंसानों के अंदर कैसे पहुंचा? इसकी कई व्याख्याएं हैं. सबसे प्रचलित थिअरी कहती है कि वुहान के सीफूड मार्केट से इसकी शुरुआत हुई. शायद चमगादड़ों से किसी और जानवर में होते हुए ये वायरस इंसानों तक पहुंचा. मगर इस थिअरी को लेकर अभी एकराय नहीं है. ज़्यादा मालूमात के लिए रिसर्च चल रही है. रिसर्च करने वालों में चीन भी शामिल है. मगर क्या चीन के पास मौजूद जानकारी से दुनिया को कोई फ़ायदा मिलेगा? क्या चीन अपनी रिसर्च के नतीजे ईमानदारी से बाकी दुनिया के आगे रखेगा? इस ख़ब में इसी पर विस्तार से बात करेंगे.
कोरोना रिसर्च पर नया नियम आया है
चीन में एक बड़ा शहर है- शंघाई. यहां फूदान नाम की एक यूनिवर्सिटी है. इस यूनिवर्सिटी का एक कॉलेज है- इन्फॉर्मेशन साइंस ऐंड इंजिनियरिंग. 10 अप्रैल को इसने अपनी वेबसाइट पर एक नोटिस छापा. इस नोटिस का संबंध था चीन की ‘अकैडमी ऑफ साइंस’ द्वारा 25 मार्च को जारी किए गए दिशानिर्देशों से. ‘अकैडमी ऑफ साइंस’ चीन का एक सरकारी संस्थान है. इसका काम है वैज्ञानिक रिसर्च करना. ‘अकैडमी ऑफ साइंस’ जवाबदेह है चीन की स्टेट काउंसिल के प्रति. जिसके मुखिया होते हैं चीन के राष्ट्रपति. इसे चीन की मुख्य प्राशासनिक शक्ति समझ लीजिए.
चीन के जो भी विश्वविद्यालय कोरोना की वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, उन सबके लिए ‘अकैडमी ऑफ साइंस’ ने ये नोटिस निकाला था. इसमें फोकस किया गया ‘पब्लिकेशन’ शब्द पर. पब्लिकेशन, माने रिसर्च के नतीजों को सार्वजनिक करना. नोटिस के अंदर लिखा था कि कोरोना वायरस की रिसर्च में सरकार द्वारा जारी कुछ ख़ास दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.

क्या कहते हैं ये निर्देश?
पहला निर्देश कहता है कि वायरस की ट्रेसिंग, यानी उसकी उत्पत्ति से जुड़े रिसर्च पेपर बहुत सख़्ती से मैनेज किए जाएंगे. पहले कॉलेज की अकादमिक कमिटी उसकी समीक्षा करेगी. फिर इसे शिक्षा मंत्रालय के विज्ञान और तकनीक विभाग के पास भेजा जाएगा. वहां दोबारा समीक्षा होने के बाद इसे स्टेट काउंसिल के पास भेजा जाएगा. वहां से ओके का ठप्पा लगने के बाद ही वो रिसर्च पेपर प्रकाशन के लिए भेजा जा सकेगा. मतलब ये है कि सरकार जब तक मुहर नहीं लगाती, रिसर्च पेपर पब्लिश नहीं हो सकेगा.
फूदान यूनिवर्सिटी ने कुछ समय बाद ये नोटिस अपनी वेबसाइट से हटा दिया. वुहान स्थित ‘चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंस’ ने भी ऐसा ही एक नोटिस अपनी वेबसाइट पर डाला था. उसे भी बाद में डिलीट कर दिया. मगर वेब आर्काइव्ज़ में ये अब भी नज़र आ रहा है.
पहले भी क्या कोरोना रिसर्च पर ऐसी ही स्थिति थी?
अब सवाल है कि क्या ये सख़्ती, ये लंबी-चौड़ी प्रक्रिया पहले भी थी? इस मामले पर सबसे पहले ख़बर करने वाले CNN इंटरनैशनल ने हॉन्ग कॉन्ग के एक सांस संबंधी मेडिकल एक्सपर्ट से बात की. उनका नाम है डेविड हुवेई. फरवरी में डेविड ने चीन के कुछ शोधकर्ताओं के साथ मिलकर कोरोना मरीज़ों पर एक रिसर्च की थी. ये शोध एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल पत्रिका में भी छपा. डेविड का कहना है कि तब इस तरह के नियम-कायदे नहीं थे.
साफ है कि कोरोना से जुड़ी रिसर्च पर लगाई गई ये अतिरिक्त सख़्ती हालिया है. चीन नहीं चाहता कि कोई भी ऐसी कड़ी, जो इस वायरस को चीन के समाज या सरकार की ग़लतियों से जोड़ती हो, दुनिया के सामने आए.

एक पुराने पैटर्न पर है चीन की ये नई सख़्ती!
कोरोना पर चीन की सरकार को घर और बाहर, दोनों तरफ से आलोचना मिल रही थी. इस वायरस को ‘चाइनीज़’ और ‘वुहान’ वायरस भी कहा-लिखा जा रहा था. सवाल उठ रहे थे कि चीन ने वन्यजीवों की फार्मिंग और उनकी खरीद-बिक्री पर रोक क्यों नहीं लगाई.
ऐसे तमाम सवालों से बचने के लिए चीन ने कोरोना से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की. वो अपनी अलग थिअरी उछालने लगा. इसकी शुरुआत हुई चीन की सोशल मीडिया से. एक तरफ यहां चीन की सरकार के लिए पॉजिटिव ख़बरें बढ़ गईं. वहीं दूसरी तरफ ये भी चल निकला कि संक्रमण कहीं और से चीन पहुंचा. लिखा जाने लगा कि अमेरिकी सेना ने इस संक्रमण को वुहान पहुंचाया. सोशल मीडिया पर उठी इन अफवाहों को चीन की सरकारी मीडिया ने लपक लिया. 22 फरवरी को सरकारी अख़बार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने दावा कर दिया कि शायद अमेरिकी सेना का एक साइकलिस्ट अपने साथ ये संक्रमण वुहान लाया था. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा-
चीन के लोग और विशेषज्ञ अमेरिका से अपील कर रहे हैं कि वो वुहान आए अपने एथलीट्स की स्वास्थ्य जानकारियां सार्वजनिक करे. ये खिलाड़ी अक्टूबर 2019 में वुहान में आयोजित मिलिटरी वर्ल्ड गेम्स में हिस्सा लेने आए थे.
This article is very much important to each and every one of us. Please read and retweet it. COVID-19: Further Evidence that the Virus Originated in the US. https://t.co/LPanIo40MR
— Lijian Zhao 赵立坚 (@zlj517) March 13, 2020
सब कॉर्डिनेटेड है
सरकार की भूमिका सरकारी मीडिया से पहले ही आ गई थी. जब चीन के विदेश विभाग प्रवक्ता ने कोरोना का रिश्ता अमेरिका से जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने अमेरिका में फ्लू से मरे लोगों को कोरोना के साथ जोड़ दिया. इसी कड़ी में अब चीन की सरकार अपने यहां कोरोना ट्रेसिंग से जुड़ी रिसर्च पर सेंसरशिप लगा रही है. वो नहीं चाहती कि चीन से ऐसी कोई रिसर्च बाहर आए, जो चीन की सरकार के स्टैंड से अलग जाती हो. इसी मिज़ाज का बयान चीन के एक रिसर्चर ने CNN को दिया. नाम जाहिर न करने की शर्त पर इस रिसर्चर ने बताया-
मेरा मानना है कि चीन की सरकार कोरोना की शुरुआत से जुड़े नरेटिव को कंट्रोल करना चाहती है. चीन ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि ये संक्रमण उसके यहां से शुरू नहीं हुआ. मुझे नहीं लगता कि सरकार इस बीमारी से जुड़ी किसी तथ्यात्मक रिसर्च को बर्दाश्त करेगी.
गणित की एक थिअरी कहती है कि दो समानांतर रेखाएं अनंत में जाकर मिलेंगी कहीं. किसी ने अनंत देखा नहीं, तो रेखाओं को मिलते हुए कैसे देखेगा. कोरोना की जिम्मेदारी किसी और पर मढ़ने की चीन की ये कोशिशें उसी समानांतर रेखाओं की तरह हैं. इन्हें पैलरल स्थापित कर दिया गया है. इसीलिए चीन की ऐसी कोई रिसर्च, जो कि सरकार के बताए घटनाक्रम से अलग जाती हो, बाहर ही नहीं आने दी जाएगी.
चीन ने मांस के लिए खाये जा सकने वाले जानवरों की लिस्ट निकाली है
वैसे इन सबके बीच एक और ख़बर है. चीन के कृषि एवं ग्रामीण मामलों के मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट लिस्ट जारी की है.इसमें उन जानवरों की सूची है, जिन्हें चीन में मांस के लिए पाला जा सकेगा. नोटिस में लिखा है कि वन्यजीवों की खरीद-फरोख़्त रोकने और लोगों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र ये फैसला किया जा रहा है. इस लिस्ट में मुर्गा, सुअर, गाय, याक, भैंस, स्थानीय घोड़े, गधे, ऊंट, खरगोश, भेड़, हिरण और शुतुरमुर्ग जैसे जीव शामिल हैं. इसमें पेंगोलिन और चमगादड़ नहीं हैं. न ही कुत्तों को लिस्ट में रखा गया है. कुत्तों के लिए लिखा गया है कि मानव सभ्यता के विकास के क्रम में कुत्ते इंसानों के घरेलू साथी बन गए. आमतौर पर दुनिया में कुत्तों को खाने का मांस नहीं समझा जाता. इसीलिए इन्हें बाहर रखा जा रहा है.

लंबे समय से वन्यजीव व्यापार पर रोक लगाने की मांग हो रही थी
नोटिस में लिखा है कि इस लिस्ट को तैयार करने में कई जानकारों की राय ली गई है. अगर आगे लिस्ट में किसी तरह के अजस्टमेंट की ज़रूरत समझी गई, तो संबंधित मंत्रालय इसकी जानकारी स्टेट काउंसिल को देगा. अभी ये लिस्ट अस्थायी है. लोगों से 8 मई तक इसपर फीडबैक मांगा गया है. इसके बाद जाकर चीजें फाइनल होंगी. मगर इस ड्राफ्ट से इतनी उम्मीद तो बंधी है कि शायद इस बार चीन सही जगह पर सख़्ती दिखाएगा. वन्यजीवों और विलुप्त हो रहे जीवों के अधिकारों के लिए लड़ रहे लोग शायद इस ख़बर से कुछ राहत महसूस करें. वो लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे.
चीन द्वारा जारी की गई इस लिस्ट की टाइमिंग अहम है. ये फैसला कोरोना के बाद लिया गया है. इसका मतलब है कि वुहान सीफूड मार्केट में वन्यजीवों के ज़रिये वायरस फैलने वाली बात चीन भले सामने से न मान रहा हो. मगर वो घरेलू स्तर पर इस थिअरी को गंभीरता से ले रहा है. इस पूरे मामले में चीन की तरफ से इकलौती राहत यही मिली है अभी.
वुहान का लॉकडाउन तो खुला, मगर चीन छुपा रहा है सच्चाई?