हमारे यहां किसी का छोटा-मोटा झगड़ा हो जाता है तो कहते हैं मैटर फंस गया. लेकिन असली मैटर तो ब्लैक होल के अंदर फंसा हुआ है. ईवेंट हॉराइज़न के उस पार जो भी पदार्थ गया, लौटकर नहीं आया. लेकिन इस पार से एक और फोटो आ गई है.
12 मई 2022. मिल्की वे गैलेक्सी के बीच मौजूद ब्लैक होल की पहली इमेज सामने आई. ये ब्लैक होल की दूसरी फ़ोटो है. आपको याद होगा, अप्रैल 2019 में ब्लैक होल की पहली फ़ोटो सामने आई थी. वो M87 गैलेक्सी का ब्लैक होल था. ये हमारे अपने मिल्की-वे गैलेक्सी के ब्लैक होल की फ़ोटो है.
वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. वो गैलेक्सी परायी थी. ये गैलेक्सी अपनी है. पहली नज़र में देखने पर ये डोनट जैसा लगता है. डोनट जैसा लगता होगा इंग्लिश मीडियम वालों को. अपन को तो ये सांभर वड़ा जैसा दिख रहा है.
ऐसा लगता है कि 2019 वाली फ़ोटो को घुमाकर थोड़ा सा ब्लर कर दिया गया है. लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी ब्लर सी फ़ोटो खींच के क्या ही मिल गया. इससे अच्छी तो पहले वाले ब्लैक होल की फोटो थी. इसमें इतनी बड़ी बात क्या है?
आइंस्टाइन की हिचकिचाहट
इस ब्लैकहोल का नाम है Saggittarius A*. ये मिल्की वे गैलेक्सी के एकदम बीचोंबीच मौजूद है. पृथ्वी से दूरी है 27,000 लाइट ईयर. लाइट ईयर दूरी मापने की यूनिट है. प्रकाश एक सेकंड में करीब 3 लाख किलोमीटर दूरी तय करता है. सोचिए एक साल में कितनी दूरी तय करेगा? फिर सोचिए 27,000 साल में कितनी दूरी तय करेगा? इतनी ही दूरी पर है ये ब्लैक होल.
इन ब्लैक होल्स की फोटो आइंस्टाइन को सही साबित करती हैं. एल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1916 में जनरल रिलेटिविटी थ्योरी दी थी. इस थ्योरी ने ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण को देखने का हमारा नज़रिया हमेशा के लिए बदल दिया.
हमारे इर्द-गिर्द स्पेस और टाइम का एक जाल बुना हुआ है. इसे स्पेस-टाइम कर्वेचर कहते हैं. आइंस्टाइन की थ्योरी ने समझाया कि कैसे हर चीज़ इस स्पेस-टाइम कर्वेचर को मोड़ देती हैं. भारी चीज़ें स्पेस-टाइम को ज़्यादा बेंड करती हैं. ग्रैविटी इसी का नतीजा है.
आइंस्टाइन ने तो थ्योरी देकर आराम पा लिया. लेकिन कुछ खुरापाती वैज्ञानिक इस थ्योरी से खेलने लग गए. उन्होंने इसी थ्योरी के आधार पर ब्रह्माण्ड में ब्लैक होल के अस्तित्व का दावा किया. लेकिन आइंस्टाइन ने अपने हाथ खींच लिए. उनके यकीन नहीं हुआ कि यूनिवर्स में कोई इतनी अजीब चीज़ भी हो सकती है.
इन वैज्ञानिकों का प्रपोज़ल था कि कोई चीज़ इतनी भारी हो सकती है कि वो आसपास मौजूद हर चीज़ को अपने अंदर निगलने लगे. ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल इतना ज़्यादा होता है कि वो किसी चीज़ को अपने से बाहर नहीं आने देता. ब्लैक होल से प्रकाश भी बाहर नहीं आ सकता. प्रकाश की गैरमौजूदगी ही अंधेरा है. इसलिए इसे ब्लैक होल कहते हैं.
ब्लैक होल में चीज़ों की एक ही दिशा संभव है. वो सिर्फ ब्लैक होल के भीतर जा सकती हैं. उससे बाहर आने का कोई रास्ता नहीं है. ये सारी चीज़ें जाकर एक बिंदू में समा जाती हैं. इस बिंदू को सिंगुलैरिटी कहते हैं. और ब्लैक होल की वो सीमा जिसके भीतर जाने पर प्रकाश या कोई भी चीज़ वापस नहीं आती, उसे ईवेंट हॉराइजॉन कहते हैं. इसे ‘पॉइंट ऑफ नो रिटर्न’ भी कहा जाता है.
पृथ्वी पर टेलिस्कोप का व्यूह
ब्लैक होल की इसी सीमा से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने 2009 में एक अनोखा टेलिस्कोप बनाया. इस टेलिस्कोप का नाम रखा गया ईवेंट हॉराइज़न टेलिस्कोप (EHT). और इसी टेलिस्कोप ने हमें ब्लैक होल के दर्शन करवाए. अब तक जो दो ब्लैक होल की फोटो हमारे सामने आई हैं – 2019 वाला M87 का ब्लैक होल और 2022 वाला मिल्की वे गैलेक्सी का सैगिटेरियस ए* – इन दोनों को ईवेंट हॉराइज़न टेलिस्कोप की मदद से हासिल किया गया है.
EHT कोई साधारण टेलिस्कोप नहीं है. ये पृथ्वी पर रखे कई टेलिस्कोप्स का एक एरे (Array) है. एक टेलिस्कोप से ऑब्ज़र्वेशन लेने की जगह कई पृथ्वी के अलग-अलग जगहों पर मौजूद कई टेलिस्कोप मिलकर एकसाथ देखते हैं. मतलब हमने पृथ्वी को ही एक बड़े टेलिस्कोप में तब्दील कर दिया है.
सैगिटेरियस ए* की ये इमेज लेने वाले ईवेंट हॉराइज़न टेलिस्कोप प्रोजेक्ट में 300 से अधिक वैज्ञानिक और 80 से अधिक संस्थान शामिल हैं. इसे दुनियाभर में फैले आठ रेडियो टेलिस्कोप ऑब्जर्वेटरीज की मदद से कैप्चर किया गया है. यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना की वैज्ञानिक फरयाल ओज़ेल ने ये इमेज पेश करते हुए कहा – The first direct image of the gentle giant in the center of our galaxy.
तुम तो बड़े हैवी ड्राइवर निकले
सैगिटेरियस A* का द्रव्यमान (Mass) करीब 40 लाख सूर्य जितना है. इसी खोज के लिए साल 2020 का फिज़िक्स नोबेल प्राइज़ दिया गया था. नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिकों के नाम हैं – आंद्रिया गेज़ और रेनार्ड गेंजेल. इनके साथ रॉजर पेनरोज़ ने भी इसी नोबेल प्राइज़ का एक हिस्सा शेयर किया था. लेकिन रॉजर पेनरोज़ का काम दूसरा था. उन्होंने ब्लैकहोल से जुड़े मैथेमैटिकल टूल्स तैयार किए थे.
आंद्रिया गेज़ और रेंनार्ड गेंज़ेल ने पता लगाया था कि हमारे मिल्की वे गैलेक्सी का ब्लैकहोल कितना भारी है. इनके मुताबिक़ सैगिटेरियस ए* हमारे सूर्य से 40 लाख गुना भारी है. कॉन्टैक्स्ट के लिए आपको बता दें कि सूर्य हमारी पृथ्वी से 3 लाख 33 हजार गुना ज़्यादा भारी है. उस सूर्य से भी 40 लाख गुना ज़्यादा भारी है ब्लैकहोल सैगिटेरियस ए*. ये तो हैवी ड्राइवर है.
अब तो हमारे पास इस ब्लैक होल के विज़ुअल सबूत हैं. लेकिन इससे पहले इसकी मौजूदगी का अंदाज़ा लगाना भी एक बड़ी बात थी. और उसका मास कैल्क्यूलेट करना और भी बड़ी बात. वैज्ञानिकों को इस ब्लैक होल के बारे में पहली भनक तब लगी थी, जब उन्होंने इसके आसपास के तारों को ऑब्ज़र्व किया. उन्हें देखने पर लगता है कि जैसे कोई भारी गुरुत्वाकर्षण उन्हें नाच नचा रहा हो.
उन छोटे-छोटे सबूतों से हमने इसके दीदार तक का सफर तय किया है. आज हर कोई अपनी स्क्रीन पर इस ब्लैक होल की फोटो देख सकता है.
दिखाई दिए यूं…
अब हम एक अहम सवाल की तरफ आते हैं. जब ब्लैक होल से रोशनी ही नहीं आती, तो उसकी फोटो लेना कैसे मुमकिन है?
ये तो फैक्ट है कि ब्लैक होल से किसी भी प्रकार की कोई रोशनी निकलकर नहीं आती. ये फोटो ब्लैक होल के इर्द-गिर्द जो भी कुछ है, उसे कैप्चर करने की एक कोशिश है. ब्लैक होल तो निरा करिया होता है, लेकिन इसके आसपास आतिशबाजी होती रहती है.
ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण से ब्रह्माण्ड की धूल, गैस और टूटे-फूटे तारे इत्यादि इसके भीतर घुसे चले जाते हैं. लेकिन इसकी बॉउंड्री (ईवेंट हॉराइज़न) के बाहर प्लाज़्मा का एक बवंडर घूमता रहता है. ये बहुत भंयकर चुंबकीय क्षेत्र के कारण ऐसे चक्कर काटता है. भयानक गर्म होने के इन आसपास के कणों का तापमान लाखों-करोड़ों डिग्री सेल्सियस में पहुंच जाता है. इसलिए ये रोशन रहता है. और आतिशबाजी की तरह दिखाई देता है.
दिखाई देता है से ये अंदाज़ा मत लगा लीजिएगा कि हमें अपनी आंखों से ऐसा ही दिखेगा. हमारी आंखें रोशनी के एक बहुत छोटे से हिस्से को देख पाती हैं. दरअसल, रोशनी बहुत सारी फ्रीक्वेंसी की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स हैं. विद्युतचुंबकीय तरंगें. हमारी आंखों को इनमें से गिनी-चुनी फ्रीक्वेंसी की तरंगें दिखती हैं. जिसे हम विज़िबल रेंज ऑफ इलेक्ट्रोमैग्नेक स्पेक्ट्रम कहते हैं. इसे विज़िबल लाइट भी कहा जाता है.
ब्लैक होल के साथ समस्या ये है कि ये हमसे हज़ारों लाइट ईयर दूर मौजूद है. वहां से जो विज़िबल लाइट निकलती है, वो हम तक पहुंच ही नहीं पाती. पृथ्वी और ब्लैक होल के बीच इतने सारे धूल और गैस के बादल हैं कि विज़िबल लाइट उनके पार नहीं पहुंच पाती है.
ईवेंट हॉराइज़न या अन्य ऐसे दूसरे टेलिस्कोप ब्लैक होल से निकली रेडियो तरंगों को कैद करते हैं. रेडियो वेव्स को ये रास्ता तय करने में विज़िबल वेव्स के मुकाबले कम मुश्किलें आती हैं. इन्हें कैद करने के बाद इन रेडियो वेव्स के डेटा को इस तरह कन्वर्ट किया जाता है, कि हम उनसे कोई सेंस निकाल सकें. इसलिए ब्लैक होल के जो रंग हमें इन इमेजेस में नज़र आते हैं, वो सांकेतिक हैं.
बड़े मियां, छोटे मियां
इन रेडियो वेव्स से मिले डेटा को इमेज में तब्दील करना बहुत चुनौती भरा काम होता है. सैगिटेरियस ए* की जो इमेज 2022 में रिलीज़ हुई है, उसका डेटा 2017 में इकट्ठा कर लिया गया था. इन पांच सालों तक कई पावरफुल सुपरकंप्यूटर इस डेटा को प्रोसेस कर रहे थे. और अंत में जाकर एक औसत इमेज निकलकर आई.
M87* का डेटा भी 2017 में ही लिया गया था. लेकिन इसकी फोटो खींचना सैगिटेरियस ए* के मुकाबले आसान था. ये बात सुनने में अजीब लग सकती है, क्योंकि M87 तो हमारी पृथ्वी से 55,000 लाइट ईयर दूर मौजूद दूसरी गैलेक्सी है. जबकि सैगिटेरियस अपनी ही गैलेक्सी में हमसे महज़ 27,000 लाइट ईयर की दूरी पर है. इस विडंबना को समझने के लिए हमें दोनों ब्लैक होल्स की तुलना करनी होगी.
पहला ब्लैक होल यानी M87* आकार में बहुतई बड़ा है. हमारा पूरा सौरमंडल भी इसके सामने छोटा पड़ जाता है. ये इतना बड़ा है कि अगर कोई चीज़ प्रकाश की गति से इसकी परिक्रमा करे, तो उसे कई दिन लग जाएंगे. इस बड़पन्न ने M87* को एक धीर-गंभीर और शांत मुद्रा में बनाए रखा है.
हमारी गैलेक्सी का ब्लैक होल सैगिटेरियस इसके मुकाबले बहुत छोटा है. ये M87* से हज़ार गुना से भी ज़्यादा छोटा है. नतीजतन प्रकाश की गति से इसकी परिक्रमा करने में कुछ मिनटों का ही वक्त लगता है. इसलिए ये बालक छोटा होने के साथ-साथ चंचल भी है.
ब्लैक होल के इर्द-गिर्द जिस उज्ज्वलित मटेरियल का प्रकाश हमारे टेलिस्कोप ने कैद किया है, वो लगभग प्रकाश की गति से ही घूमता है. पृथ्वी के टेलिस्कोप से ऑब्ज़र्वेशन लेने में कई घंटों का एक्सपोज़र लगता है. इस दौरान M87* तो लगभग एक जैसा रहता है. लेकिन अपना सैगिटेरियस इस ऑब्ज़र्वेशन पीरियड में भी बदलता रहता है.
अगर आपने किसी चंचल बालक की फोटो लेने की कोशिश की है, तो आप EHT के वैज्ञानिकों से सहानुभूति रख पाएंगे. आपको ये भी समझ आएगा कि फोटो ब्लर क्यों आ रही है. और तो और इसके छोटे आकार के कारण से आसमान में बहुत कम जगह घेरता है. कल्पना कीजिए जैसे चांद पर कोई टेनिस बॉल रखी हो.
इस चंचलता और छोटे आकार के अलावा पृथ्वी का भाप से भरा वातावरण भी ऑब्ज़र्वेशन के लिए दिक्कतें पैदा करता है. और फिर इस 27,000 लाइट ईयर के फासले में न जाने कितने धूल और गैस के गुबार हैं. जब हमें ये सारी बातें पता चलती हैं, तो हम इन वैज्ञानिकों के काम को थोड़ा और अप्रीशिएट करने लगते हैं. बजाए ये कहने के कि क्या यार ब्लर फोटो ही तो निकाल कर लाए हो.
How is Sgr A* different from M87*, the black hole we first saw in 2019? They differ in size – and this impacted how each black hole was imaged. Learn how the @ehtelescope captures images of these objects that are constantly on the move. #OurBlackHole pic.twitter.com/unOZL5yYAo
— Center for Astrophysics | Harvard & Smithsonian (@CenterForAstro) May 12, 2022
है कहां का इरादा?
इन ब्लैक होल्स की झलकियां आइंस्टान की थ्योरी को और अधिक वज़न देती हैं. इनकी मौजूदगी को तो आइंस्टाइन ने खारिज कर दिया था. लेकिन अब हमें पता है कि हमारे ब्रह्माण्ड में ब्लैक होल्क भरे पड़े हैं.
ऐसा माना जाता है कि लगभग हर बड़ी गैलेक्सी के केंद्र में एक ब्लैकहोल है. वैज्ञानिक अब तक इस बात को नहीं समझा सके हैं कि ये इतने विशाल कैसे हो गए. अभी तो बस शुरूआत हुई है. हमें ब्लैक होल्स के बारे में बहुत कुछ समझना बाकी है.
वैज्ञानिकों के लिए अगली चुनौती ये है कि वो कैसे ब्लैक होल्स की बेहतर और शार्प इमेज निकाल पाते हैं. फोटो खींचने के बाद अगला कदम संभवत: ये होगा कि इन फोटोज़ से एक छोटी सी मूवी बनाई जाई. ताकि हम ब्लैक होल को एक्शन में देख सकें. और इनके बारे में अपनी समझ को और दुरुस्त कर सकें.
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