साल 1971. इंडो-पाक जंग. पूर्वी पाकिस्तान का सिलहट शहर. जहां इंडियन आर्मी की 4/5 गोरखा राइफल्स के फौजी मौजूद थे. इन जवानों को ढाका की ओर बढ़ना था, लेकिन ढाका फतह होने की बात पता चलते ही मेजर जनरल इयान कारडोज़ो ने वहीं रहकर युद्ध के बंदियों को छुड़ाने का फैसला लिया. वो ये ऑपरेशन बीएसएफ़ के कुछ जवानों के साथ मिलकर कर रहे थे. कारडोज़ो आगे बढ़ रहे थे. इस बात से बेफिक्र कि माइनफील्ड से होते हुए जा रहे हैं. तभी एक भीषण धमाका हुआ और कारडोज़ो दूर जा गिरे. उनका पैर माइन पर पड़ गया था, जिस वजह से उसके चिथड़े उड़ गए थे.

उन्हें ऐसी हालत में देख साथी सैनिक दौड़े. बटालियन हेडक्वार्टर ले जाया गया. इयान कारडोज़ो को छोड़ सब हैरान-परेशान थे. उन्होंने डॉक्टर से मॉर्फीन मांगी, ताकि दर्द कम हो सके. दुश्मन के हमलों में मॉर्फीन का सारा स्टॉक तबाह हो चुका था. ऐसा ही हाल एक और पेन किलर पेथिडीन का भी था. कारडोज़ो अपने साथी की तरफ मुड़े,
“मेरी खुखरी कहां है?”
“ये लीजिए सर.” साथी ने हाथ में खुखरी थमा दी. कारडोज़ो ने दूसरा ऑर्डर दिया,
“काटो इसे.”
साथी सन्न रह गया. पैर काटने से साफ मना कर दिया. कारडोज़ो ने ज्यादा रिक्वेस्ट नहीं की. उसी वक्त खुखरी से अपना पैर अलग कर डाला और साथी को कटा हुआ पैर थमाते हुए कहा,
“जाओ इसे कहीं दफन कर आओ.”
ऊपर आपने जो पढ़ा, वो किसी फिल्म का सीन नहीं बल्कि हकीकत थी. हां, ये बात अलग है कि ये सीन जल्द आपको एक फिल्म में दिखने वाला है.
15 अक्टूबर, 2021 को अक्षय कुमार ने ट्वीट किया,
कई बार आपकी ऐसी इंस्पिरेशनल कहानियों से मुलाकात होती है, जिन्हें आपको बनाना ही होता है. लिजेंड्री वॉर हीरो मेजर जनरल इयान कारडोज़ो की ज़िंदगी पर बनी ‘गोरखा’ भी ऐसी ही फिल्म है. ऐसे आइकॉन का रोल निभाकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं.
Sometimes you come across stories so inspiring that you just want to make them. #Gorkha – on the life of legendary war hero, Major General Ian Cardozo is one such film. Honoured to essay the role of an icon and present this special film.
Directed By – @sanjaypchauhan pic.twitter.com/4emlmiVPPJ
— Akshay Kumar (@akshaykumar) October 15, 2021
अक्षय की फिल्म ‘गोरखा’ जल्द ही फ्लोर पर जाने वाली है. फिल्म में मेजर जनरल इयान कारडोज़ो की कहानी कैसे दिखाई जाएगी, वो जानने में अभी समय है. आज बताते हैं फिल्मी स्टोरी से परे उनकी रियल लाइफ स्टोरी.
# वर्ल्ड वॉर की किताबें पढ़ फौजी बनना था
एक गोरखा के अलावा अगर कोई भी ये कहता है कि उसे डर नहीं लगता, तो वो झूठा है.
– फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ
07 अगस्त, 1937 को मुंबई के एक परिवार में इयान कारडोज़ो का जन्म हुआ. बचपन से उन्हें वर्ल्ड वॉर की कहानियां पढ़ने और सुनने का शौक था, यहीं से उनकी कंडिशनिंग शुरू हो चुकी थी. रही सही कसर सुनिथ रॉड्रिगेज़ ने पूरी कर दी. सुनिथ उनकी स्कूल में सीनियर थे, जिनका सिलेक्शन आर्मी में हो गया था. द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में इयान कारडोज़ो बताते हैं कि वो आर्मी का हिस्सा बनना चाहते थे, लेकिन वहां किसी डेस्क से नहीं बंधना चाहते थे. वॉर स्टोरीज़ पढ़ने के शौकीन इयान के हाथ उन दिनों एक किताब लगी, Bugles and a Tiger. जिसे लिखा था जॉन मास्टर्स ने, जिन्होंने अपने आर्मी के दिनों में फ़ोर्थ गोरखा राइफल्स में सर्व किया था. किताब में जॉन के अनुभव पढ़कर इयान ने एक बात पुख्ता कर ली, कि उन्हें एक गोरखा अफसर ही बनना है.

मुंबई के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नैशनल डिफेंस अकैडमी जॉइन कर ली. इसके बाद की पढ़ाई और ट्रेनिंग इंडियन मिलिट्री अकैडमी से हुई. ग्रैजुएशन पूरा हो जाने के बाद वो 5 गोरखा राइफल्स में कमिशन हुए और 1965 की इंडो-पाक जंग लड़ी. लेकिन उनकी लाइफ का सबसे चैलेंजिंग टर्न आया उसके छह साल बाद.
# इंडियन आर्मी का पहला हेलिबॉर्न ऑपरेशन
03 दिसम्बर, 1971. पाकिस्तान ने 11 इंडियन एयर स्टेशन्स पर एरियल स्ट्राइक कर दी. इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध की आधिकारिक घोषणा कर दी. मेजर कारडोज़ो की बटालियन ऑलरेडी वॉर फ्रंट पर थी. वो उस दौरान स्टाफ कॉलेज से एक कोर्स कर रहे थे. तभी खबर पहुंची कि उनकी बटालियन के सेकंड इन कमांड वीरगति को प्राप्त हो गए. किसी को उन्हें रिप्लेस करने के लिए जाना होगा. आर्मी ने स्टाफ कॉलेज में रिप्लेसमेंट खोजी और मेजर कारडोज़ो को सिलेक्ट किया. उन्होंने दिल्ली जाकर अपनी फैमिली को ड्रॉप करने की परमिशन मांगी.
फैमिली को ड्रॉप करते ही खुद को त्रिपुरा जाने वाली पहली ट्रेन में पाया. इमरजेंसी इतनी थी कि फ्लाइट से पहुंचा जाए, लेकिन फिर दुश्मन के लिए ईज़ी टारगेट बनने का रिस्क भी था. इसलिए कारडोज़ो ने अपना सफर ट्रेन से जारी रखा. रीडिफ़ के Claude Arpi को दिए एक इंटरव्यू में इयान कारडोज़ो बताते हैं कि वो अपनी डेस्टिनेशन पर सुबह करीब 3 बजे पहुंच गए. वहां चार हेलिकॉप्टर रेडी थे, चार और ज़ख्मी जवानों को लेकर लौट रहे थे. इंडियन आर्मी के इतिहास में ये पहला मौका था जब वो एक हेलिबॉर्न ऑपरेशन एग्जीक्यूट करने जा रहे थे. हेलिबॉर्न ऑपरेशन में फोर्स और उनके इक्विप्मेंट हेलिकॉप्टर की मदद से युद्धक्षेत्र में एंटर करते हैं, और ग्राउंड फोर्स कमांडर से ऑर्डर लेते हैं.
सुबह 09 बजे बटालियन को ऑर्डर दिया गया कि अपने प्लान बना लीजिए, दोपहर 2:30 बजे आप लोगों को निकलना है. कारडोज़ो बताते हैं कि स्टाफ कॉलेज में ऐसा प्लान बनाने के लिए दो से तीन दिन की ज़रूरत पड़ती थी, ताकि आर्मी और एयर फोर्स ऑफिसर्स एक साथ बैठकर प्लान बना सकें. इंडियन आर्मी चाहती थी कि ढाका फतेह कर लिया जाए. जिसके लिए लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने ऑर्डर दिया कि फिफ्थ गोरखा को गाजीपुर भेजा जाए. क्यों? क्योंकि इससे पहले दो बटालियन गाजीपुर भेजी गई, और दोनों फेल हो गई थी. लेकिन 4/5 गोरखा इसके लिए तैयार नहीं थी.

इसकी वजह थी 21 नवंबर, 1971 को लड़ी बैटल ऑफ एटग्राम. जहां 4/5 गोरखा के पास बस अपनी खुखरी और ग्रिनेड थे. जिनकी मदद से उन्होंने 32 सिर काट डाले, पाकिस्तानी आर्मी के बंकर्स को ध्वस्त कर डाला और अपने मिशन में कामयाब रहे. लेकिन इस दौरान सेकंड इन कमांड और कई जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इसलिए कमांडिंग ऑफिसर का मानना था कि 4/5 गोरखा को ब्रेक दिया जाना चाहिए. सगत सिंह इसके लिए राज़ी नहीं हुए.
4/5 गोरखा को सिलहट जिले के गाजीपुर से होते हुए सिलहट शहर तक पहुंचना था. जहां उनकी बटालियन को सामने वाली आर्मी की बटालियन को कैप्चर करना था, वो भी बिना किसी आर्टिलरी फायर की मदद के. नॉर्मली, आर्टिलरी फायर से दुश्मन पर दबाव बनाया जाता है ताकि अपनी आर्मी को अटैक करने का मौका मिल जाए. दूसरी बात, एक बटालियन (करीब 900 जवान) को कैप्चर करने के लिए कम से कम एक ब्रिगेड को भेजा जाता है (करीब 3,000 जवान). लेकिन यहां बटालियन के सामने बटालियन थी.
# बीबीसी की एक चूक और पाकिस्तान आर्मी ने सरेंडर कर दिया
4/5 गोरखा को बताया गया था कि पाकिस्तान आर्मी की 202 ब्रिगेड सिलहट छोड़ ढाका के लिए निकल चुकी है, और वहां बस 200-300 रज़ाकार थे. उधर, 4/5 गोरखा के पास उस वक्त 480 जवान थे. हेलिकॉप्टर लैंड हुआ, और उनके जवान इयान कारडोज़ो को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए, कंधे पर उठा लिया और कहने लगे, “कारतूस साहब आ गए, अब हम तैयार हैं.” कारडोज़ो की बटालियन के जवानों की ज़ुबान पर उनका नाम मुश्किल से बैठता था, इसलिए उन्हें कारतूस साहब बुलाते थे.
दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई. गोरखा समझकर आए थे कि 202 ब्रिगेड जा चुकी है, लेकिन ऐसा नहीं था. ब्रिगेड वहीं मौजूद थी और उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर रही थी. ऐसे हालात में भी गोरखा लड़ते रहे, और 1000 मीटर बाय 1500 मीटर का एरिया अपने अंडर ले लिया. ब्रिगेड से तो वो किसी तरह लड़ रहे थे, लेकिन जवानों को उनके पैरों पर खड़ा रखने के लिए खाना नहीं था. सिर्फ गोलियां, ग्रेनेड, मुट्ठीभर शक्करपारे, एक पानी की बोतल और ज़मीन पर बिछाकर सोने के लिए बरसाती थी.

कारडोज़ो बताते हैं कि बीबीसी, पाकिस्तान रेडियो और आकाशवाणी उस जंग को कवर कर रहे थे. पाकिस्तान रेडियो पर किसी को भरोसा नहीं था. आकाशवाणी दो दिन की देरी से न्यूज पहुंचाता था. अब बचा बीबीसी, जो ऑन द स्पॉट न्यूज डिलीवर करता था. इंडियन आर्मी भी बीबीसी को सुनती थी. उस दिन के ब्रॉडकास्ट में उन्होंने सुना,
एक गोरखा ब्रिगेड सिलहट पहुंच चुकी है.
ये सुनकर कारडोज़ो ने अपने कमांडिंग ऑफिसर से कहा कि हम भी बीबीसी को सुन रहे हैं, उधर पाकिस्तानी भी बीबीसी को सुन रहे हैं. उन्हें नहीं पता कि हमारे पास कोई ब्रिगेड नहीं, इसलिए ब्रिगेड की तरह ही पेश आते हैं. यहां बड़ा रिस्क था. अगर पाकिस्तानी आर्मी को भनक लग गई तो मुश्किल हो सकती थी. दिन के वक्त गोरखा जवानों को एयर फोर्स की मदद मिल जाती थी, लेकिन रात को वो पूरी तरह खुद पर निर्भर थे.
गोलियां भी कम होती जा रही थीं. ऐसे में फिर से बटालियन की तरह लड़ने का फैसला लिया. एक रात दोनों आर्मियों के जवान भिड़ पड़े. गोरखा ‘आयो गुरखाली’ बोलकर हाथ में खुखरी लिए टूट पड़े. मारकाट मची, दर्द भरी चीखें हवा में गूंजी, जिसके बाद लंबा सन्नाटा पसर गया. पाकिस्तानी जवान अपने ज़ख्मी साथियों को उठाकर ले गए और इंडियन आर्मी वाले अपने ज़ख्मी साथियों को. अगली सुबह फिर लड़ाई छिड़ी, लेकिन ज्यादा देर के लिए नहीं, क्योंकि तब सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ ने पाकिस्तान को अल्टिमेटम दे दिया, “सरेंडर कर दो वरना तुम्हें साफ कर देंगे.”
15 दिसम्बर की सुबह 1500 सफेद झंडे इंडियन आर्मी की ओर चले आ रहे थे. पाकिस्तानी ब्रिगेड ने सरेंडर कर दिया था. ब्रिगेड ने एक बटालियन के सामने सरेंडर किया था, वो भी एक नहीं बल्कि दो ब्रिगेडों ने. इंडियन आर्मी को सरेंडर के वक्त पता चला कि वो अब तक एक नहीं, बल्कि दो ब्रिगेडों से लड़ रहे थे, 202 और 313 इंफेंट्री ब्रिगेड.
# “बेवकूफ की मौत मर जाऊंगा, लेकिन पाकिस्तानी खून नहीं लूंगा”
जब इयान कारडोज़ो ने अपनी खुखरी से पैर अलग कर दिया, उसके बाद उनके कमांडिंग ऑफिसर यानी CO उनके पास आए. कहा कि तुम खुशकिस्मत हो, क्योंकि हमने एक पाकिस्तानी सर्जन को पकड़ा है. वो तुम्हारा ऑपरेशन कर देगा. कारडोज़ो ने साफ मना कर दिया, कि मुझे इंडिया ले चलो, पाकिस्तानी सर्जन से ऑपरेशन नहीं करवाऊंगा. CO बिगड़े, कहा बेवकूफी मत करो. जिस पर इयान का जवाब था कि एक बेवकूफ की मौत मर जाऊंगा, लेकिन पाकिस्तानी खून नहीं लूंगा. किसी तरह बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया गया, और पाकिस्तानी सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर को ऑपरेट करने दिया. कारडोज़ो बताते हैं कि मेजर बशीर ने अच्छा काम किया और वो हमेशा के लिए उनके शुक्रगुज़ार रहेंगे.

कारडोज़ो जानते थे कि इंडियन आर्मी फिज़िकल फिटनेस को कितना महत्व देती है. इसलिए वो अपने आर्टीफिशियल लकड़ी के पैर को अपनी कमजोरी नहीं बनने दे सकते थे. लगातार रनिंग और एक्सरसाइज़ करते. फिर भी उनके एक ऑफिसर ने उन्हें फिज़िकल टेस्ट में पास नहीं किया. कहा कि पिछले साल भी एक फिज़िकली अनफिट ऑफिसर ने टेस्ट देने की कोशिश की और बीच में ही अपनी जान गंवा बैठा. कारडोज़ो ज़िद पर अड़े रहे. कहा कि गलती करूं तो अरेस्ट कर लेना, लेकिन टेस्ट देने से मत रोको. टेस्ट हुआ और कारडोज़ो ने सात फिट जवानों को खुद से पीछे छोड़ दिया.
उन्हें आगे चलकर बटालियन और फिर ब्रिगेड की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. ऐसा अचीव करने वाले कारडोज़ो पहले वॉर डिसेबल्ड ऑफिसर थे. उनके बाद तीन और वॉर डिसेबल्ड ऑफिसर आर्मी कमांडर बने.

अक्षय कुमार के लिए मेजर जनरल इयान कारडोज़ो की हीरोइक जर्नी को परदे पर दिखाना काफी चैलेंजिंग होगा. फिल्म को को-राइट और डायरेक्ट करेंगे संजय पूरन सिंह चौहान. जिनकी पिछली फिल्में ‘लाहौर’ और ‘बहत्तर हूरें’ नैशनल अवॉर्ड जीत चुकी हैं. इसके अलावा संजय कबीर खान की ’83’ में भी को-राइटर थे. आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा की जोड़ी ने ‘गोरखा’ को प्रड्यूस करने का ज़िम्मा उठाया है. अक्षय ने जब फिल्म से फर्स्ट लुक रिलीज किया, उसके बाद एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर ने उसमें एक गलती निकाली थी. ऑफिसर ने कहा कि अक्षय ने खुखरी की जगह तलवार पकड़ी हुई थी. अक्षय ने गलती मानी, और आश्वासन दिया कि शूटिंग के वक्त हर एक बारीक डिटेल का ध्यान रखा जाएगा. ‘गोरखा’ की रिलीज डेट को लेकर अभी कोई अनाउंसमेंट नहीं हुआ है, लेकिन ये फिल्म जल्दी ही फ्लोर पर जा सकती है.
वीडियो: जानिए वो रियल स्टोरी जिस पर राजामौली ने RRR बनाई