ये क़िस्सा है एक 31 साल की महिला का, जिसके चरित्र का सबसे ख़ूबसूरत पहलू था उसका बाग़ीपन. महिलाओं को पुरुषों से कमतर मानने वाली हर संस्था से उसकी बग़ावत थी. वो बस इतना चाहती कि औरतों को बराबरी का दर्जा मिले. उन्हें भी गाड़ी चलाने, किसी पुरुष को साथ लिए बिना बाहर जाने, घरेलू हिंसा के खिलाफ़ न्याय पाने जैसे अधिकार मिलें.
इस मुखरता का असर ये हुआ कि वो अपनी ही सरकार द्वारा अगवा कर ली गई. बिना दोष तीन साल जेल में रखा गया. और अब आतंकवाद के झूठे आरोप लगाकर उसे करीब छह साल जेल की सज़ा सुनाई गई है. मगर इस सज़ा में भी एक चालाकी बरती गई है. ऐसी धूर्तता, जिसके सहारे क्राउन प्रिंस MBS अमेरिकी सत्ता की गुड बुक्स में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं. मगर क्या ये इतना आसान होगा? वो भी तब, जब MBS के सबसे करीबी हिटमैन की देखरेख में उस महिला को टॉर्चर किया गया हो? उसका शारीरिक शोषण किया गया हो? धमकी दी गई हो कि तुम्हें जान से मार दूंगा, मगर उससे पहले तुम्हारा रेप करूंगा. ये MBS का वही हिटमैन है, जिसने कभी सऊदी पत्रकार जमाल ख़शोगी की हत्या करवाई थी. ये क्या मामला है, विस्तार से बताते हैं आपको.

ख़बर से पहले 45 बरस पुराना एक क़िस्सा जान लीजिए
ये वाकया है सऊदी से करीब साढ़े छह हज़ार किलोमीटर दूर बसे आइसलैंड का. तारीख़ थी- 24 अक्टूबर, 1975. इस रोज़ सुबह-सवेरे आइसलैंड की महिलाएं एकाएक गायब हो गईं. घर, बाज़ार, दफ़्तर. ये सारी जगहें महिलाओं से खाली थीं. न उन्होंने खाना पकाया. न सफ़ाई की. न अपने दुधमुंहे बच्चों को दूध पिलाया. न ही दफ़्तर गईं. कहां गईं थीं ये महिलाएं? वो अपने सारे काम, सारी जिम्मेदारियां पीछे छोड़कर एक दिन की हड़ताल पर चली गई थीं. ताकि उनके हमवतन पुरुषों को उनकी अहमियत समझ आए. वो महिलाओं के श्रम, उनके योगदान की अहमियत समझें. उन्हें भी समान काम का समान वेतन दिया जाए. समान मौके मिलें.

औरतों की इस हड़ताल ने उस रोज़ आइसलैंड को जैसे पैरालाइज़ कर दिया. बैंक, कारखाने, दुकानें, स्कूल, नर्सरीज़ बंद करने पड़े. पुरुषों को काम से छुट्टी लेकर घर बैठना पड़ा, ताकि वो बच्चे की देखभाल कर सकें. जिन्हें छुट्टी नहीं मिली, वो बच्चों को साथ लेकर ऑफ़िस गए. लेकिन वहां भी काम नहीं कर सके. टॉफ़ी और कलरिंग पेंसिल थामे बच्चे को मनाने के लिए दिनभर उसके पीछे भागते रहे. शाम तक निढाल हो चुके आइसलैंडिक पुरुषों ने इस दिन को नाम दिया- दी लॉन्ग फ्राइडे. वहीं आइसलैंडिक महिलाओं का कहना था कि उन्होंने इतनी ऊर्जा, इतना जीवन, इतना संकल्प पहले कभी महसूस नहीं किया.
क्या असर हुआ इस ऐतिहासिक हड़ताल का?
इसने आइसलैंड को लैंगिक बराबरी वाले देशों की पहली पांत में ला खड़ा किया. हड़ताल के पांच बरस बाद हुए चुनाव में आइसलैंड को मिली अपनी पहली महिला राष्ट्रपति- विगडिस फिनबोगडॉटिर. महिलाओं की उस मुहिम का असर आज भी बना हुआ है. वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम हर साल एक ग्लोबल जेंडर गैप इन्डेक्स जारी करता है. इसमें लैंगिक समानता के आधार पर सभी देशों को रैंकिंग दी जाती है. इस लिस्ट में सबसे ऊपर है आइसलैंड. और सबसे वर्स्ट 10 मुल्कों में है सऊदी.

इसी सऊदी की रहने वाली हैं हमारी आज की प्रोटेगनिस्ट, लुजैन अल-हथलौल. क्या है लुजैन का परिचय? वो उन महिलाओं में हैं, जिन्हें यकीन है कि स्त्री और पुरुष, दोनों अपनी हस्ती और कुव्वत में बराबर हैं. इसीलिए उनका सामाजिक और राजनैतिक दर्जा भी एक बराबर होना चाहिए. मगर सऊदी तो उन देशों में है, जो महिलाओं को पवित्र मानने का पाखंड करते हैं. और इसी पाखंड के सहारे उनपर सौ पाबंदियां लगाना जस्टिफ़ाई करते हैं. लुजैन सोशल मीडिया पर महिला अधिकारों का मुद्दा उठाने लगीं. इसी ऐक्टिविज़म के चलते 2013 में दुनिया का पहली बार लुजैन से परिचय हुआ.
क्या किया लुजैन ने?
कीक नाम का एक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है. ये युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है. यहां सऊदी की हमख़याल युवा महिलाएं आपस में कनेक्ट होने लगीं. इन्होंने तय किया कि सऊदी में महिलाओं के गाड़ी ड्राइव करने पर लगी पाबंदी के खिलाफ़ सत्याग्रह किया जाए. इसी के तहत 23 अक्टूबर, 2013 को 24 बरस की लुजैन अपने पिता की कार ड्राइव करके एयरपोर्ट से घर पहुंचीं. उन्होंने ड्राइविंग करते हुए अपनी तस्वीर खींची और इसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया. सऊदी की और कई महिलाओं ने भी इस मुहिम में हिस्सा लिया. इस मूवमेंट ने अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियां बटोरीं. लुजैन को भी पहचान मिली. उनकी गिनती सऊदी की सबसे मुखर महिला ऐक्टिविस्ट्स में होने लगी. लुजैन के इस ऐक्टिविज़म की तीन प्रमुख मांगें थीं-
1. महिलाओं को ड्राइविंग की इज़ाज़त मिले.
2. सऊदी में लागू ‘मेल गार्डियन सिस्टम’ ख़त्म हो.
3. घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को जस्टिस और सपोर्ट मिले.

मेल गार्डियन सिस्टम क्या है?
इसके तहत, सऊदी की महिलाओं का एक आधिकारिक अभिभावक तय होता था. इसको कहते थे, वली. ये पिता, भाई, पति, चाचा, बेटा कोई भी हो सकता था. ये वली ही उस महिला के जीवन के सारे फैसले लेते थे. पैदा होने से लेकर मरने तक, महिला की ज़िंदगी कंट्रोल करते थे. दो-टूक कहें, तो सऊदी का ये सिस्टम महिलाओं को जीवनभर नाबालिग समझता था. मानता था कि अपना सही-ग़लत तय करने की उनमें क्षमता नहीं.
लौटते हैं लुजैन के प्रसंग पर
उनके साहस का नतीजा ये हुआ कि 2014 में उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. वो 73 दिनों तक अरेस्ट रखी गईं. रिहा होने के बाद भी उन्होंने ऐक्टिविज़म जारी रखा. फिर 2015 में सऊदी में एक बड़ा डिवेलपमेंट हुआ. यहां पावर कॉरिडोर में एंट्री हुई MBS, यानी मुहम्मद बिन सलमान की. MBS एक रिफ़ॉर्मर की छवि बनाना चाहते थे. ताकि वेस्ट में उनकी स्वीकार्यता बढ़े. MBS जानते थे कि अगर तरक्की पसंद शासक की छवि बनानी है, तो महिलाओं की मुहिम को थोड़ा-बहुत अकोमोडेट करना होगा. ऐसे में सितंबर 2017 में सऊदी ने ऐलान किया. कहा कि जून 2018 से महिलाओं की ड्राइविंग पर लगा बैन ख़त्म हो जाएगा.

ये लुजैन जैसी महिला ऐक्टिविस्ट्स की बहुत बड़ी जीत थी. मगर MBS ये लाइमलाइट शेयर नहीं करना चाहते थे. उनके फ़ैसले को महिलाओं के मूवमेंट की कामयाबी समझा जाना सऊदी में पॉलिटिकल ऐक्टिविज़म को बढ़ावा देता. इस रास्ते पर डेमोक्रैटिक आवाज़ों को भी शह मिलने की आशंका थी. MBS ये नहीं चाहते थे. इसीलिए जैसे ही ड्राइविंग बैन ख़त्म करने का ऐलान हुआ, उसी रोज़ सऊदी ने लुजैन से भी संपर्क किया.
अलहमदुलिल्लाह
इस वक़्त लुजैन अबू धाबी में थीं. वो यहां की सोरबोने यूनिवर्सिटी से MA कर रही थीं. लुजैन से कहा गया कि वो ड्राइविंग वाले फैसले पर कोई टिप्पणी न करें. मगर लुजैन ये निर्देश कैसे मानतीं? इतने दिनों से वो जो संघर्ष कर रही थीं, उसका नतीजा आया था. वो ख़ुशी जताए बिना कैसे रहतीं? सो उन्होंने किया एक ट्वीट. इसमें बस एक शब्द लिखा था- अलहमदुलिल्लाह. माने, ऊपरवाले का शुक्रिया.
الحمدلله.
— لجين هذلول الهذلول (@LoujainHathloul) September 26, 2017
सऊदी राजशाही को इस ट्वीट में अपनी अवहेलना नज़र आई. आरोप है कि मार्च 2018 में सऊदी के ही निर्देश पर अबु धाबी पुलिस ने लुजैन को पकड़कर सऊदी के सुपुर्द कर दिया. सऊदी की एक सीक्रेट जेल में बंद करके लुजैन को ख़ूब टॉर्चर किया गया. कुछ रोज़ बाद लुजैन को रिहाई मिली. इस ताकीद के साथ कि वो देश छोड़कर नहीं जा सकेंगी. फिर मई 2018 में उन्हें दोबारा अरेस्ट कर लिया गया. बिना वॉरंट, बिना आरोप बताए उन्हें जेल में पटक दिया गया.
हिरासत में लुजैन पर ख़ूब ज़्यादतियां हुईं. मार-पीट, बिजली के झटके, शारीरिक शोषण, सब हुआ उनके साथ. सिक्यॉरिटी एजेंट्स जब चाहते, जहां चाहते, लुजैन को छूते. उन्हें जबरन चूमते. आरोप है कि जेल अथॉरिटीज़ ने लुजैन को धमकाया. कहा कि पहले उनका रेप करेंगे और फिर जान से मार डालेंगे. करीब 10 महीने तक लुजैन की गिरफ़्तारी कहीं दर्ज भी नहीं की गई. वो अंधेरी कोठरी में बंद रखी गईं. सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती उनतक. वो इतनी कमज़ोर हो गईं कि अपने बूते खड़ी नहीं हो पातीं. चौबीसों घंटे कांपती रहतीं. मार्च 2019 में आकर उन्हें पहली बार अदालत में पेश किया गया.

लुजैन पर तय हुए कुछ प्रमुख आरोप हम आपको ब्रीफ में जानिए.
1. सऊदी राजशाही के विरुद्ध साज़िश. लोगों को किंगडम के खिलाफ़ भड़काना.
2. उन महिला अधिकारों के नाम पर हंगामा करना, जो शरिया पहले ही औरतों को दे चुका है.
3. दुश्मन देशों का अजेंडा चलाना. उनके लिए जासूसी करना.
लुजैन पर लगाए गए ज़्यादातर आरोप तो ऐसे थे कि क्या कहें. कुछ सैंपल्स देखिए-
1. अंतरराष्ट्रीय संगठनों से संपर्क करना.
2. विदेशी फंडिंग लेकर सम्मेलनों में जाना और वहां सऊदी महिलाओं की स्थिति पर विमर्श करना.
3. एक सऊदी मानवाधिकार संगठन को रेकमेंडेशन देना
4. क़तर के एक नागरिक से वॉट्सऐप पर संपर्क करके उसके साथ महिला अधिकारों पर डिस्कशन करना.
5. UN में एक नौकरी के लिए अप्लाई करते हुए रेज़्यूमे में अपनी गिरफ़्तारी का ज़िक्र करना
6. घर पर विदेशी दूतावास के लोगों के साथ मीटिंग करना और उनसे अपनी गिरफ़्तारी के अनुभव साझा करना.
7. एक ब्रिटिश पत्रकार की बनाई डॉक्यूमेंट्री में जेल के अपने अनुभव बताना
8. महिलाओं के लिए बराबरी मांगते हुए सोशल मीडिया पर मुहिम चलाना
9. गिरफ़्तारी के वक़्त दी गई उस शपथ को तोड़ना कि वो सऊदी की नीतियों के मुताबिक चलेंगी.
आपने ये इल्ज़ाम पढ़े?
सोचिए, अपने एक नागरिक की टारगेटिंग के लिए उसपर ऐसे बेसिर-पैर इल्ज़ाम लगाने वाली सत्ता कितनी बदतमीज़ और असहाय होगी. आप पूछ सकते हैं कि हम ये विवरण आज क्यों दे रहे हैं आपको? इसलिए कि लुजैन पर चल रहे ट्रायल का अब फैसला आया है. 28 दिसंबर को सऊदी की एक टेररिज़म कोर्ट ने लुजैन को आतंकवाद का दोषी पाया. कहा कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा थीं. लुजैन को पांच साल, आठ महीने की सज़ा सुनाई गई. मगर उन्हें इतने लंबे समय तक जेल में नहीं रहना पड़ेगा. वो दो महीने में रिहा हो जाएंगी. क्यों? क्योंकि कोर्ट ने उनकी सज़ा का कुछ हिस्सा सस्पेंड कर दिया. साथ ही, लुजैन ने अब तक जेल में जो समय बिताया, उसे भी इसी सज़ा में अजस्ट कर दिया गया.

क्यों किया सऊदी ने ऐसा?
ख़बरों के मुताबिक, ये हुआ MBS के कहने पर. नहीं, इसके लिए उन्हें रहमदिल समझने की ग़लती मत करिए. उन्होंने लुजैन की सज़ा माफ़ करवाकर अपना उल्लू सीधा किया है. MBS की नज़र है, अमेरिका पर. ट्रंप के कार्यकाल में उन्हें बड़ी सहूलियत थी. जमाल ख़शोगी मर्डर केस में उनपर सीधा इल्ज़ाम था. मगर तब भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
मगर अब वहां जो बाइडन राष्ट्रपति बनने वाले हैं. बाइडन कह चुके हैं कि वो सऊदी में ऐक्टिविस्ट्स, आलोचकों और पत्रकारों के साथ हो रहे सलूक को ध्यान में रखेंगे. सऊदी की इस अराजकता के मद्देनज़र उसके साथ रिश्तों पर पुनर्विचार करेंगे. MBS पहले ही बाइडन से सशंकित हैं. बाइडन ईरान के साथ पीस डील रिवाइव करना चाहते हैं. इसमें सऊदी का नुकसान है.

MBS को आशंका है कि अगर वो बाइडन की गुड बुक्स से पूरी तरह बाहर हो गए, तो और नुकसान हो सकता है. जानकारों की राय है कि यही सोचकर लुजैन का केस प्रभावित किया गया है. एक तरफ लुजैन पर आतंकवाद का लेबल लगाकर MBS ने सऊदी ऐक्टिविस्ट्स को वॉर्निंग भी दे दी. साथ ही, उनकी सज़ा में टर्म्स ऐंड कंडीशन्स लगाकर वाहवाही लूटने की भी कोशिश की.
मगर क्या इतने से ही MBS के ग़ुनाह माफ़ हो जाएंगे?
शायद नहीं. क्योंकि लुजैन के केस में सीधे MBS की भूमिका पर सवाल है. लुजैन को बस अवैध तरीके से जेल में नहीं रखा गया. उन्हें टॉर्चर भी किया गया. उनका सेक्शुअल हरैसमेंट भी हुआ. लुजैन के परिवार का आरोप है कि ये सब सऊद अल-क़हतानी की देखरेख में हुआ. कौन है ये क़हतानी? ये है MBS का राइट हैंड. कई लोग इसे MBS का हिटमैन भी कहते हैं. माना जाता है कि देश से लेकर विदेश तक, जिससे भी MBS को ख़तरा होता है, क़हतानी उसे ठिकाने लगाने का इंतज़ाम करता है.

इसी क़हतानी पर जमाल ख़शोगी मर्डर को सुपरवाइज़ करने का भी आरोप है. इल्ज़ाम है कि उसी ने ख़शोगी को मारने के लिए 15 लोगों की एक टीम इस्तांबुल भेजी थी. CIA, MI6 हर किसी ने अपनी जांच में ख़शोगी मर्डर में क़हतानी की संलिप्तता की बात कही. नवंबर 2018 में अमेरिकी ट्रेज़री डिपार्टमेंट ने क़हतानी पर सेंक्शन भी लगाया. इसका आधार बताते हुए विभाग ने लिखा-
मिस्टर ख़शोगी की हत्या के लिए तैयार किए गए ऑपरेशन की प्लानिंग और उसपर अमल करने में निभाई गई भूमिका के चलते ये सेंक्शन लगाया जा रहा है.
ख़शोगी केस की ही तरह एकबार फिर सवाल उठ रहा है. क़हतानी ने अपनी मर्ज़ी से लुजैन को हरैस किया हो, ये तो मुमकिन नहीं लगता. वैसे भी लुजैन के साथ जो हुआ, सऊदी राजशाही की मर्ज़ी से हुआ. MBS सज़ा कम करके भी अपना ग़ुनाह नहीं मिटा सकेंगे.

पता है, 2013 में जिस रोज़ लुजैन ने ड्राइविंग वाला बैन तोड़ा था, उस दिन वो बहुत ख़ुश थीं. ये ख़ुशी बस गाड़ी ड्राइव करने की नहीं थी. वो समाज की दकियानूसी, उसकी थोपी वर्जनाओं से बग़ावत करने की ख़ुशी थी. पुरुषों को जो अधिकार स्वाभाविक मिल जाते हैं, उनके लिए महिलाओं को दशकों तक संघर्ष करना पड़ता है. उन्हें तो वोट देने के अधिकार के लिए भी लड़ना पड़ा. बच्चों की आइडेंटिटी में मां का नाम दर्ज करवाना, समान काम का समान वेतन, ड्राइविंग का हक़, क्या ये अधिकार बिना मांगे नहीं मिलने चाहिए थे?
लुजैन भले दो महीने में छूट जाएं, मगर उनके साथ अभी न्याय नहीं हुआ. अभी उनके साथ हुई बदसलूकी का हिसाब बाकी है. लुजैन की बहन लीना ने सही कहा है कि ऐक्टिविज़म के बदले सज़ा देकर MBS और सऊदी ने अपनी हिपोक्रेसी साबित की है. वो कतई माफ़ी के लायक नहीं.
विडियो- झांग ज़ान के वुहान वाले वीडियोज में ऐसा क्या था कि चीन ने 4 साल की सज़ा सुना दी?