क्रिकेट के मैदान पर गाली-गुफ्तार के मौके तो अनगिनत आए हैं. स्लेजिंग का एक लंबा इतिहास रहा है. लेकिन ऐसा होना दुर्लभ ही है कि स्लेजिंग हिंसा में बदल गई हो. मारपीट का माहौल बन गया हो. कुछेक घटनाएं हुई हैं, जिनमें से एक आपको बता रहे हैं.
कब की घटना है?
साल था 1991. 29 जनवरी का दिन. भारत के डोमेस्टिक टूर्नामेंट दलीप ट्रॉफी का फाइनल चल रहा था. जमशेदपुर में. नॉर्थ जोन और वेस्ट जोन के बीच. इस फाइनल के आख़िरी दिन जो हुआ उसने क्रिकेट बिरादरी को शर्मसार कर दिया. एक गेंदबाज़ ने स्टंप उखाड़कर बैट्समैन पर हमला बोल दिया. नॉन स्ट्राइकर बीच-बचाव के लिए आए तो उनको भी मारा. उस गेंदबाज़ का नाम था राशिद पटेल. जो बैट्समैन उनके निशाने पर थे वो थे रमण लांबा. नॉन-स्ट्राइकर एंड से आकर पिटने वाले खिलाड़ी थे अजय जडेजा.

क्या हुआ था उस दिन?
मैच का आखिरी दिन था. और कमाल की बात ये कि मैच में कोई करंट नहीं बचा था. ड्रा होना तय था. नॉर्थ जोन ने पहले बैटिंग करते हुए 729 रन बनाए. जवाब में ईस्ट जोन 561 तक पहुंचा. इन सब में चार दिन बीत गए. आखिरी दिन नॉर्थ जोन फिर से बैटिंग कर रही थी. अभी सिर्फ 9.5 ओवर ही हुए थे कि बवाल हो गया.
किस वजह से पंगा शुरू हुआ?
राशिद पटेल बॉलिंग कर रहे थे. स्ट्राइक पर रमण लांबा थे. पटेल बार-बार क्रीज़ पर ऐसी जगह जा रहे थे जिसे डेंजर एरिया कहते हैं. रमण लांबा ने उन्हें चेताया. बहस गाली-गलौच में बदल गई. और देखते ही देखते राशिद पटेल आपा खो बैठे.
उन्होंने एक स्टंप उखाड़ा और रमण लांबा पर हमला बोल दिया. हमला इतनी रफ़्तार से हुआ था कि रमण लांबा को कुछ सूझा ही नहीं. वो बस अपने बैट से वार बचाने की कोशिश करते रहे. लांबा को बचाने अजय जडेजा भागकर पहुंचे. लांबा ने उनकी ओट में छुपने की कोशिश की. नतीजतन स्टंप की मार जडेजा पर भी पड़ गई. पटेल तलवार की तरह स्टंप हवा में चला रहे थे. ताबड़तोड़ कई वार दोनों बल्लेबाजों को झेलने पड़े.
इतना ही काफी नहीं था कि जनता ने भी मारपीट में हिस्सा लेने का फैसला किया. उन्होंने पत्थरबाज़ी शुरु कर दी. एक पत्थर विनोद कांबली को लगा और वो ज़ख़्मी हो गए. पूरे मैदान पर अफरातफरी मच गई. मैच कैंसिल करना पड़ा.

क्या सज़ा हुई?
इतनी बड़ी घटना के बावजूद राशिद पटेल सस्ते छूट गए. उन्हें सिर्फ 13 महीने के लिए बैन किया गया. जबकि ये घटना इतनी गंभीर थी कि उन पर आजीवन प्रतिबंध लगने की संभावना जताई जा रही थी. साथ ही रमण लांबा को भी 10 महीने का बैन झेलना पड़ा. जिस कमिटी ने ये सज़ा तजवीज़ की थी उनमें माधवराव सिंधिया, मंसूर अली खान पटौदी और राजसिंह डूंगरपुर थे.
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