28 अगस्त 2021. यूपी से बीजेपी के सांसद वरुण गांधी ने हरियाणा का एक वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया. इसमें एक अधिकारी पुलिसवालों को आदेश देता नजर आ रहा है कि जो इधर आए उसका सिर फूटा होना चाहिए. आप भी ये वायरल वीडियो देखिए.
I hope this video is edited and the DM did not say this… Otherwise, this is unacceptable in democratic India to do to our own citizens. pic.twitter.com/rWRFSD2FRH
— Varun Gandhi (@varungandhi80) August 28, 2021
इस वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सवाल उठे. मिसाल के तौर पर अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ ऐसा आदेश कैसे कोई अधिकारी दे सकता है? कुछ लोगों ने लॉजिक दिया कि कानून-व्यवस्था संभालने के लिए सख्ती तो दिखानी पड़ती है. तो कुछ ने कहा कि क्या भीड़ को सिर्फ सिर फोड़ कर ही काबू में लाया जा सकता है? ये भी पूछा गया कि पुलिस और प्रशासन के पास कोई सिस्टम होता है या अधिकारी जब चाहें किसी का भी सिर फोड़ने का आदेश दे सकते हैं? आइए इन सवालों को लेकर कुछ चर्चा करते हैं.
विरोध के लिए जमा होने का कोई नियम-कायदा होता है?
भारत के संविधान में दिए गए मूल अधिकारों में विरोध करने का अधिकार भी शामिल है. ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दिया गया है. हालांकि इन पर कुछ बाध्यताएं भी हैं. मतलब संविधान आपको विरोध करने का अधिकार तो देता है, लेकिन उसकी भी सीमाएं हैं. विरोध अगर हिंसक या अपमानजनक हो तो उस पर रोक लगाई जा सकती है. किसी भी संगठित प्रदर्शन के लिए पुलिस की अनुमति लेने का प्रावधान होता है. ऐसा न करने पर पुलिस को एक्शन लेने का अधिकार मिला हुआ है. बात साफ है – विरोध की इजाजत है, लेकिन अव्यवस्था पैदा करने की नहीं.
प्रदर्शन पर कब एक्शन ले सकती है पुलिस?
पुलिस का एक्शन शुरू होने से पहले किसी भी सभा का ‘अवैध’ होना जरूरी है. कानून की भाषा में कहें तो किसी भी Unlawful Assembly को हटाने का अधिकार पुलिस को है. अनलॉफुल असेंबली की परिभाषा इंडियन पीनल कोड (IPC) के सेक्शन 141 में बताई गई है. इसके अनुसार, अनलॉफुल असेंबली काम मतलब है,
“पांच या अधिक व्यक्तियों की एक सभा जिसका सामान्य उद्देश्य आपराधिक बल के इस्तेमाल से केंद्र या राज्य सरकार को डराना, किसी भी कानून या कानूनी प्रक्रिया को लागू करने का विरोध करना, आपराधिक हरकत करना, किसी संपत्ति पर कब्जा प्राप्त करना या किसी व्यक्ति को इससे वंचित करना, किसी व्यक्ति को आपराधिक बल से कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर करना जो करना उसकी कानूनी बाध्यता नहीं है.”
अगर ये तय हो जाता है कि कोई भी सभा अनलॉफुल असेंबली की कटैगिरी में आती है तो उस पर एक्शन लेने का पुलिस का अधिकार CrPC यानी कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर में दिया गया है. ये अधिकार पुलिस को सीआरपीसी की धारा 129 और 130 के तहत मिला हुआ है. लेकिन ये अधिकार भी ऐसे नहीं हैं कि पुलिस जिस तरह से चाहे भीड़ पर बल प्रयोग करे.

पुलिस क्या एक्शन ले सकती है?
नियमों के तहत, पुलिस को भीड़ से निपटने का अधिकार उसे लठियाने का नहीं, बल्कि हालात देख कर एक्शन लेने का निर्देश है. इस अधिकार पर कोर्ट ने भी कई फैसले दिए हैं. ऐसा ही एक महत्वपूर्ण फैसला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने करम सिंह बनाम हरदयाल सिंह मामले में साल 1979 में दिया था. इसमें कोर्ट ने 3 शर्तें तय की थीं जिन्हें पूरा करने के बाद ही कोई मजिस्ट्रेट भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग का अधिकार दे सकता है. ये तीन शर्तें हैं,
#अवैध रूप से जमा हुई 5 या उससे अधिक लोगों की भीड़ का उद्देश्य हिंसा करना या शांति भंग करने का हो.
#एक एक्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट को जमा हुई भीड़ को तितर-बितर होने का आदेश देना चाहिए.
#इस आदेश के बावजूद लोग अपनी जगह से न हट रहे हों.
इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में अनीता ठाकुर बनाम स्टेट ऑफ जम्मू कश्मीर के मामले में भी एक महत्वपूर्ण टिप्पणी दी थी. कोर्ट ने कहा था,
“जहां लोग शांतिपूर्ण तरह से विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हों, वहां पुलिस का इस्तेमाल पूरी तरह से गैरजरूरी है. हालांकि जब भीड़ या सभा हिंसक हो जाए तब बल प्रयोग न्यायोचित हो सकता है. लेकिन बल प्रयोग के दौरान पुलिस भी बेकाबू हो जाती है. वो क्रूरता की सभी सीमाएं लांघ जाती है और तब भी बल प्रयोग जारी रखती है जब भीड़ काबू आ चुकी हो. ये मानवाधिकारों और मानवीय गरिमा का हनन है. यही कारण है कि मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार महसूस करते हैं कि पुलिस अक्सर अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती है और कानून के शासन के लिए खुद खतरा बन गई है.”

तो फिर पुलिस करे क्या?
वक्त-वक्त पर कई संगठन भीड़ के नियंत्रण को लेकर बल प्रयोग पर सिफारिशें और निर्देश देते रहे हैं. इस मुद्दे पर भारत यूनाइटेड नेशंस के 1990 के उस संकल्प से भी बंधा है जिसमें नागरिकों पर पुलिस या दूसरी फोर्स को नरमी से पेश आने की बात कही गई है. इसके अलावा भारत के ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट (BPRD) ने भी वक्त-वक्त पर अपनी सिफारिशें दी हैं. साल 2016 में BPRD ने क्राउड कंट्रोल को लेकर महत्वपूर्ण बातें कहीं. इनमें शामिल हैं.
# सबसे पहले भीड़ को कंट्रोल करने का साइकोलॉजिकल तरीका अपनाया जाए. मिसाल के तौर पर उन्हें चेतावनी देने और डराने की कोशिश की जाए. इन तरीकों में भीड़ से हल्की-फुल्की बातचीत और उनके नेता के साथ बैठ कर बात करने की सलाह दी गई है. रिपोर्ट में कई किस्सों के जरिए बताया गया है कि कैसे पुलिस अधिकारी की एक छोटी सी बातचीत मामले को संभाल सकती है. BPRD ने एक किस्से का भी जिक्र किया. बताया,
यूपी के एक डिस्ट्रिक्ट हेड क्वॉर्टर पर जब घंटों बिजली गुल रही तो लोग पावर स्टेशन पर आग लगाने पहुंच गए. सैकड़ों की भीड़ पावर सब स्टेशन पर पहुंच गई. मौके पर जिले के एसपी भी पहुंचे. भीड़ लगातार हिंसक होती जा रही थी. लोगों ने एसपी को रास्ते से हट जाने को कहा. एसपी ने विनम्रता से उनकी बात सुनी और कहा कि जब तक लाइट नहीं आती वो भी सबके साथ यहीं इंतजार करेंगे. थोड़ी देर में भीड़ में मौजूद लोगों से उनकी चल रही फुटबॉल सीरीज़ पर बात होने लगी. माहौल काफी हल्का हो गया. कुछ देर में भीड़ तितर-बितर हो गई.
# इस तरह के कई तरीके इस रिपोर्ट में बताए गए हैं. BPRD ने कहा कि ये सारे तरीके फेल होने के बाद ही सीमित मात्रा में बल प्रयोग किया जाए.
# भीड़ को बताया जाए कि अगर वो आगे बढ़ी तो उस पर बल का प्रयोग किया जाएगा. मतलब पहले वार्निंग दी जाए.
# उसके बाद आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया जाए. इससे भी बात न बने तो लाठी चार्ज किया जा सकता है.
# लाठी चार्ज करते वक्त उतनी ही ताकत का इस्तेमाल किया जाए जितनी भीड़ के लिए जरूरी है. मतलब अगर 20 लोगों की भीड़ है तो 100 लोग लाठी लेकर न टूट पढ़ें.
# लाठी चार्ज भी असीमित ताकत से न किया जाए. मतलब ये नहीं कि अगर भीड़ डर कर भागे तो उन्हें दौड़ा कर बेसुध होने तक पीटा जाए.
# लाठी चार्ज करते वक्त ध्यान रखा जाए कि सिर पर चोट न लगे. कैनचार्ज से हुई मौत की तुलना में पुलिस फायरिंग में हुई मौत की व्याख्या करना आसान है.
बता दें कि BPRD एक सरकारी रिसर्च संगठन है, जो पुलिसिंग से जुड़े मसलों पर रिसर्च करता है और गृह मंत्रालय को रिपोर्ट देता है. क्राउड कंट्रोल की इस हैंडबुक में भीड़ को काबू करने के लिए विस्तृत रणनीति कई उदाहरण देकर समझाई गई है.
इसके अलावा, हमने एक्सपर्ट राय जानने की भी कोशिश की. यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह लल्लनटॉप से बातचीत में कहते हैं,
“पुलिस को लाठी के लिए बनाई गई ड्रिल का सही तरह से पालन करना चाहिए. हमें लाठी के जरिए भीड़ को तितर-बितर करने के लिए एक खास फॉर्मेशन में आगे बढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है. इससे पुलिसवालों को बिना किसी खतरे के भीड़ को पीछे धकेलने में मदद मिलती है. लाठियों को प्रदर्शनकारियों को पीटने के लिए नहीं रखा गया है.”
वहीं, एक मौजूदा आईपीएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“ये बात सही है कि एक पुलिस अधिकारी को हर तरह की ट्रेनिंग और प्रोसीजर को समझाया जाता है. लेकिन ऐन वक्त पर मौके की नज़ाकत देखते हुए ही फैसला लेना होता है. हालांकि आम जनता के ऊपर घातक प्रहार को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता.”
फिलहाल हरियाणा के जिस मजिस्ट्रेट का सिर फोड़ने वाली बात का वीडियो वायरल हुआ है, उन्हें हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने राहत दे दी है. सीएम ने कहा है कि अधिकारी की मंशा सही थी, बस उनके शब्दों का चयन गलत हो गया. हालांकि जानकारों का मानना है कि अंग्रेज सिस्टम के हिसाब से काम करने वाली पुलिस में मूलभूत सुधार के बाद ही इस तरह की घटनाओं से राहत की उम्मीद लगाई जा सकती है.
वीडियो – करनाल में CM खट्टर का विरोध करने पहुंचे किसानों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं, वीडियो वायरल