ED ने मध्य प्रदेश के एक मामले को लेकर राज्य और राज्य के बाहर कई जगहों पर हाल ही में छापेमारी की. मामला ई-टेंडर धांधली का है. इसमें कथित तौर पर 3000 करोड़ रुपये के करीब की मनी लॉन्ड्रिंग की गई है.
क्या है ई-टेंडर धांधली का पूरा मामला
आगे बढ़ने से पहले ये बता दें कि सारी चीज़ें ‘कथित’ तौर पर हैं. क्यूंकि आरोप अभी सिद्ध नहीं हुए हैं.
ये मामला पकड़ में आया कमलनाथ के कार्यकाल में. और मामला था शिवराज चौहान के पिछले कार्यकाल का. आपको पता ही होगा कि शिवराज चौहान से पहले कुछ दिनों के लिए कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. लेकिन उनसे पहले भी शिवराज चौहान ही मुख्यमंत्री थे.
तो मामला ये था कि जनवरी से मार्च, 2018 के बीच राज्य की ई-टेंडर वेबसाइट (पोर्टल) को हेक करके टेंडर्स में हेरे फेर की गई और सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल कर लिए गए थे.

दिसंबर, 2018 में कमलनाथ की सरकार आई. इसके बाद ये मामला पकड़ में आया और फिर मध्य प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने केस दर्ज किया. EOW की इस FIR से क्यू लेकर बाद में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने ‘प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट’ के अंतर्गत मामला अपने संज्ञान में ले लिया.
EOW ने सात कंपनियों के निदेशकों और अन्य अधिकारियों के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी), IT एक्ट और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए थे. साथ ही पांच राज्यों के सरकारी आधिकारियों और कुछ राजनेताओं के नाम भी EOW की FIR में थे.
दी हिंदू की एक खबर के अनुसार, रैकेट में शामिल सात निर्माण कंपनियां थीं-
# GVPR लिमिटेड
# मैसर्स मैक्स मेंटानिया
# ह्यूम पाइप लिमिटेड
# JMC लिमिटेड
# सोरठिया वेलजी लिमिटेड
# मैसर्स माधव मिश्रा प्रोजेक्ट्स
# राम कुमार नरवानी लिमिटेड

बाद में, उन सभी नौ निविदाओं को रद्द कर दिया गया था जिनमें हेरफेर की गई थी. 3,000 करोड़ मूल्य के प्रोजेक्ट की ये निविदाएं मध्य प्रदेश राज्य के निम्न डिपार्टमेंट्स की थीं-
# जल निगम
# लोक निर्माण विभाग
# एम.पी. सड़क विकास निगम
# जल संसाधन विकास
तो इसी पूरे केस के चलते ED पिछले एक हफ़्ते में भोपाल, बेंगलुरु और हैदराबाद सहित कई शहरों के एक दर्जन से अधिक जगहों की छानबीन कर चुकी है. इन जगहों में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव का ऑफ़िस और घर भी शामिल है.
# ई-टेंडरिंग क्या होते हैं?
कई साल हुए, कई सारी चीज़ों के साथ-साथ टेंडर की पूरी प्रक्रिया भी ऑनलाइन हो गई.
सरकारी मामलों में तो 2012 से सब कुछ ऑनलाइन होने लगा. इससे टाइम बचा. काग़ज़-कलम-दवात जैसे कई रिसोर्सेज़ बचे.

ऑनलाइन टेंडरिंग प्रोसेस ने इस पूरी प्रक्रिया को और भी पारदर्शी बना डाला है. मतलब इस एक इनसीडेंट या ऐसे कुछेक इनसीडेंट को छोड़कर, जिसे करने के लिए भी एक दो लोग नहीं पूरा रैकट की ज़रूरी हो गया. ई-टेंडरिंग के चलते ग़लतियां भी कम हुई हैं. ई-टेंडरिंग के लिए बना केंद्र का पोर्टल CPP (सेंट्रल पब्लिक प्रोक्यूरमेंट पोर्टल)-
https://eprocure.gov.in/eprocure/app
प्रोक्यूरमेंट मतलब हासिल करना. क्या हासिल करना? टेंडर हासिल करना. तो केंद्र सरकार के सारे ठेकों के टेंडर्स यहां पर ‘अंडर वन अम्ब्रेला’ मिल जाएंगे.
ऐसे ही कुछ राज्य स्तरीय पोर्टल्स भी हैं. जैसे उत्तर प्रदेश के लिए ये वाला-
https://etender.up.nic.in/nicgep/app
और अंत में मध्य प्रदेश वाला ये रहेगा-
https://mptenders.gov.in/nicgep/app
वीडियो देखें: पशु क्रूरता कानून का वो बदलाव, जिस पर सुप्रीम कोर्ट कसके गुस्साया-