प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 दिसंबर, मंगलवार को 351 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का उद्घाटन किया. ट्रेन को हरी झंडी दिखाई. ये रेल लाइन है उत्तर प्रदेश के खुर्जा से लेकर भाऊपुर तक. न्यू खुर्जा-न्यू भाऊपुर सेक्शन. और ये सेक्शन है डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) का. ये कॉरिडोर देश का नया रेल प्रोजेक्ट है, जिसके आने के बाद रेल नेटवर्क को बड़ा बूस्ट मिलने की उम्मीद है. आज बात इसी के बारे में.
PM Narendra Modi dedicates New Khurja-New Bhaupur section of Eastern Dedicated Freight Corridor (EDFC) to the nation, through video conferencing. pic.twitter.com/EvbyzChpIH
— ANI (@ANI) December 29, 2020
क्या है DFC?
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर करीब 2843 किमी लंबी रेल लाइन है. इस पर सिर्फ और सिर्फ मालगाड़ी चलेंगी. ये कॉरिडोर दो टुकड़ों में बनाया जा रहा है.
पहला स्ट्रेच – 1,839 किमी का. पंजाब के सोनेवाल से लेकर पश्चिम बंगाल के दनकुनी तक. इस स्ट्रेच का नाम रखा गया है ईस्टर्न DFC.
दूसरा स्ट्रेच – 1,500 किमी का. यूपी के दादरी से लेकर मुंबई तक. इस स्ट्रेच का नाम रखा गया है वेस्टर्न DFC.
पीएम मोदी ने अभी जिस खुर्जा-भाऊपुर सेक्शन का उद्घाटन किया है, वो ईस्टर्न DFC का हिस्सा है. पूरे कॉरिडोर को एक साथ तो बनाकर चालू करना संभव नहीं है. इसलिए इसके एक-एक सेक्शन को बनाते जा रहे हैं और चालू करते जा रहे हैं. 2006 से इस कॉरिडोर को बनाए जाने का काम चल रहा है. दावा है कि ये आज़ाद भारत में बनने वाला सबसे बड़ा रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब 5,750 करोड़ रुपए है. इस रकम का एक बड़ा हिस्सा वर्ल्ड बैंक से लोन लिया गया है. और बाकी का जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी की तरफ से फंडेड है.
क्यों अहम है DFC?
सबसे बड़ी बात- उम्मीद है कि DFC के पूरी तरह बनकर ऑपरेशनल हो जाने से देश की करीब 70 फीसदी मालगाड़ियां इस पर शिफ्ट हो जाएंगी. यानी जो बाकी रेल ट्रैक हैं, वो यात्री गाड़ियों के लिए खाली हो जाएंगे. इससे रेलवे की व्यस्त रूट की बहुत बड़ी समस्या हल होगी. मालगाड़ी की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए DFC की पटरियां, रेलवे की मौजूदा पटरियों से ज़्यादा भारी बोझा ढोने में सक्षम बनाई गई हैं. पटरियों और रूट्स को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि मालगाड़ियों की रफ्तार करीब 30-40 किमी प्रतिघंटा बढ़ सके. इससे गंतव्य तक सामान जल्दी पहुंच सकेगा. सड़कों पर ट्रकों की भीड़ भी घटेगी.
अभी दिसंबर की शुरुआत में ही भाऊपुर-खुर्जा सेक्शन पर एक मालगाड़ी ट्रायल रन के दौरान 100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ी थी. भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था.
इस प्रोजेक्ट पर ज़्यादा नज़रें इसलिए भी टिकी हैं, क्योंकि इसे बिल्कुल ज़ीरो से शुरू किया गया है. इंडियन रेलवे के किसी भी मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल DFC को तैयार करने में नहीं किया जा रहा है. सब कुछ नया है. इसी वजह से इसके हर स्टेशन को ‘न्यू’ नाम दिया गया है. न्यू खुर्जा, न्यू भाऊपुर, न्यू हाथरस वगैरह.
150% ज़्यादा लोड कानपुर-दिल्ली रूट पर
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के आने से भारतीय रेलवे सिस्टम को कितना फायदा होगा, ये आने वाले कुछ समय में पता चलेगा. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह के एक अलग रेल कॉरिडोर की ज़रूरत थी. इसकी वजह है मौजूदा पटरियों पर बेतहाशा लोड.
उदाहरण के लिए – कानपुर-दिल्ली रूट की पटरियों पर जितनी ट्रेन चलाए जाने की गुंजाइश है, उससे करीब 150 फीसदी ज़्यादा ट्रेनें आमतौर पर यहां चलती हैं. कोरोना काल से पहले इस रूट पर करीब 50 पैसेंजर ट्रेनें और 60 मालगाड़ियां शेड्यूल रहती थीं. अब DFC के आने से इस रूट की मालगाड़ियों को अलग पटरियों पर शिफ्ट किया जा सकेगा, और मौजूदा रूट सिर्फ पैसेंजर गाड़ियों के काम आएगा. इससे रेलवे की लेट-लतीफी की समस्या हल हो सकती है.
कॉरिडोर में स्टेशन भी इस लिहाज से तय किए गए हैं कि जिन शहरों से ज़्यादा माल बाहर जाता है, उसके पास एक स्टेशन रहे. यूपी के उदाहरण से समझिए. कानपुर देहात, औरेया, इटावा, अलीगढ़, हाथरस, बुलंदशहर के पास स्टेशन दिए गए हैं. क्योंकि इन जगहों से तमाम फसलें और उद्योग धंधों का सामान देश की बाकी जगहों पर जाता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने अभी एक सेक्शन का उद्घाटन किया है. लेकिन क्या पूरा कॉरिडोर ऑपरेशनल हो चुका है? जवाब है- कार्य प्रगति पर है. ईस्टर्न DFC की बात करें तो इसके अधिकतर रास्तों के 2021 में तैयार हो जाने की उम्मीद जताई जा रही है. कुछ रूट्स है, जिनका काम 2022 तक जा सकता है. वेस्टर्न DFC का काम ईस्टर्न की तुलना में अभी पीछे है. इसके लगभग हर सेक्शन के 2022 में ही खुलने की उम्मीद है.
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