आजकल ठंड का मौसम है. लोग कंबलों में घुसे रहते हैं. बाहर निकलते हैं, तो ओढ़-ढांक के निकलते हैं. कुछ को ये मौसम पसंद है. कुछ दुआ करते हैं कि बस ये जल्दी गुज़र जाए. वैसे ये हर मौसम की अच्छी बात है कि वो गुज़र जाता है. लेकिन हमेशा ऐसा हो ये ज़रूरी नहीं है.
कभी-कभी बहुत भयंकर वाली ठंडी आती है. हर जगह बर्फ बिखरी पड़ी होती है. और ये ठंड गुज़रने में हज़ारों साल लगा देती है. बात हो रही है हिम युग की. अंग्रेज़ी में कहते हैं – ‘आइस एज‘.

आइस एज की कोई क्लियर परिभाषा नहीं है.
जियोलॉजिस्ट्स (पृथ्वी की पढ़ाई करने वाले) लोग एक बहुत लंबे टाइम को आइस एज बोलते हैं. उनके मुताबिक लेटेस्ट वाली आइस एज 45 लाख साल पहले शुरू हुई है और अभी भी चल ही रही है. इस आइस एज के दौरान पृथ्वी पर बर्फ आती है, और जाती है. ऐसा कई बार होता है.
आम आदमी की समझ ये है कि जब पृथ्वी पर बहुत सारी बर्फ होती है उस टाइम को आइस एज कहते हैं. जिस बर्फीले समय को हम लोग आइस एज कहते हैं, उसे जियोलॉजिस्ट्स ‘ग्लेशियल पीरियड’ कहते हैं. अपन भी आम आदमी हैं इसलिए हम बर्फ वाले दौर को आइस एज कहेंगे.

अंटार्कटिका और आर्कटिक पृथ्वी के दो बहुत ठंडे इलाके हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये हिस्से पृथ्वी के घ्रुवों पर हैं. ध्रुव मतलब एकदम टॉप और एकदम बॉटम. इधर सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है. यहां बड़े-बड़े ग्लेशियर हैं और बर्फ की चादरें हैं.
आज से 20,000 साल पहले पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों से ढंका हुआ था. ये बर्फ की चादरें 3-4 किलोमीटर मोटी हुआ करती थीं. इसके कारण पूरी पृथ्वी एक ठंडा गोला बन गई थी. फिर ये बर्फ पिघली और करीब 11,000 साल पहले ये मंज़र खत्म हुआ.
अपना सवाल ये है कि पृथ्वी पर आइस एज क्यों आती है?
देखिए, एक सीधी सी बात है. पृथ्वी पर गर्मी सूरज से आती है. अगर पृथ्वी के किसी इलाके पर ठंड पड़ रही है, इसका मतलब है कि वहां सूरज की कम रोशनी पहुंच रही है. जब पूरी पृथ्वी पर बर्फानी माहौल है, इसका मतलब ये है कि पूरी पृथ्वी पर सूरज की रोशनी कम हुई होगी. लेकिन ये रोशनी कैसे कम हुई?

इस कैसे का जवाब दिया है सर्बिया के वैज्ञानिक मिलुटिन मिलांकोविच ने. 1910 के दशक में. और इस फिनॉमिना को कहते हैं मिलांकोविच साइकिल्स.
मिलांकोविच साइकिल
मिलांकोविच ने बताया कि पृथ्वी की कुछ हरकतें हैं, जिनके कारण यहां का क्लाइमेट बदलता है –
1. पृथ्वी का अंडे जैसा चक्कर और उसका बदलना (1,00,000 साल)
हमें ये बताया जाता है कि पृथ्वी सूरज के आसपास एक गोल चक्कर में घूमती है. लेकिन पृथ्वी का ये चक्कर गोल न होकर अंडे जैसा होता है. और ये अंडा हमेशा एक जैसा नहीं होता. ये बदलता है. और ये बदलाव होने में करीब 1 लाख साल लगते हैं. ऐसा होने से पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी बदलती है. और इसके साथ बदलती है सूरज से पृथ्वी तक आने वाली गर्मी.

आप पूछेंगे ये पृथ्वी का गोल-चक्कर क्यों बदलता है? ये बदलता है ब्रहस्पति और शनि के गुरुत्वाकर्षण के कारण.
2. पृथ्वी की धुरी के झुकाव का बदलना (40,000 साल)
आपने लट्टू घूमते देखा है? लट्टू अपनी कील के बल पर घूमता है. वही कील है उस लट्टू की धुरी.
ऐसे ही पृथ्वी की एक धुरी होती है. अब हमें पता है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 डिग्री झुकी हुई है, इसी वजह से अलग-अलग मौसम होते हैं. होता क्या है कि धुरी के झुके होने से आधे हिस्से को ज़्यादा धूप मिलती है और बाकी आधे को कम धूप.

ये धुरी का 23.5 डिग्री का कोण फिक्स नहीं है. ये हमारे दौर में 23.5 डिग्री है लेकिन करीब 40,000 साल के अंतराल में ये कोण 22.1 से 24.5 डिग्री के बीच में बदलता है. इसके बदलने से सूरज से पृथ्वी तक आने वाली गर्मी भी बदलती है.
3. पृथ्वी की धुरी का खुद घूमना(26,000 साल)
वापस लट्टू पे लौटते हैं. शुरुआत में इसकी धुरी सीधी होती है. लेकिन जब लट्टू धीमा होने लगता है तो उसकी धुरी को चक्कर आने लगते हैं और वो खुद गोल-गोल घूमने लगती है. इस हरकत को ‘प्रिसीज़न‘ बोलते हैं.
पृथ्वी की धुरी के साथ भी प्रिसीज़न होता है. लेकिन ये प्रिसीज़न बहुत धीमा है. इसमें पृथ्वी को 26,000 साल का वक्त लगता है. और इस प्रिसीज़न के साथ ही पृथ्वी तक पहुंचने वाली गर्मी में भी फर्क आता है.

ये हरकतें चलती रहती हैं. इन्हीं हरकतों के बीच में एक ऐसा टाइम आता है जब पृथ्वी पर बहुत कम गर्मी पहुंच पाती है. धीरे-धीरे पृथ्वी पर ज्यादा बर्फ जमने लगती है. और कम बर्फ पिघलती है.
बर्फ से जमती है और बर्फ
जब खाली ज़मीन होती है या पानी होता है तो वो सूरज से आने वाली गर्मी को सोख लेता है. लेकिन जब बर्फ जम जाती है तो वो आइने जैसा काम करती है. सूरज की रोशनी को सोखने की बजाए वापस भेज देती है. इससे पृथ्वी का तापमान और कम होता है. सूरज से आने वाली गर्मी और कम होती है. और पृथ्वी एक ठंडे चक्र में फंस जाती है.
कम गर्मी -> बर्फ की चादर -> सूरज की किरणें वापस भेजना -> कम गर्मी -> और ढेर सारी बर्फ

कार्बन डाईऑक्साइड और गर्मी
पृथ्वी का तापमान बनाए रखने में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैस का बहुत बड़ा रोल होता है. ये गैस गर्मी को बाहर जाने से रोकती है और पृथ्वी को गर्म बनाए रखती है. इसी चीज़ को ग्रीन-हाउस इफेक्ट बोलते हैं. आइस एज के लिए ज़रूरी है कि वातावरण में ग्रीन-हाउस गैस कम हों.

तो ये सारी चीज़ें हैं, जिनसे पृथ्वी पर गर्मी कम होती है और भयंकर बर्फ आ जाती है.
लेकिन हमें कैसे पता कि आइस एज जैसी कोई चीज़ भी हुई थी?
एक सवाल ये भी है कि हमें इस बर्फीले दौर के बारे में कैसे पता चला. हमें आइस एज का पता कई बातों से चलता है.
1. बर्फ की बड़ी-बड़ी परतें अपने वज़न के कारण इधर-उधर भागती थीं. इनका वज़न इतना होता था कि ये चट्टानों को खिसका देती थीं. कैनेडा की ज़मीन पर बहुत सारी बर्फ थी. इस बर्फ ने कैनेडा के भूभाग को तराशा है.
2. जब बर्फ की परतें जमती हैं, तो अपने साथ उस समय की हवा के बुलबुले दबा लेती हैं. इन परतों की पढ़ाई करके उस समय के क्लाइमेट का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. कई जगहों पर ऐसे पुराने ग्लेशियर हैं, जिनकी पढ़ाई करके ये बातें पता चलती हैं.

3. अलग-अलग माहौल में अलग-अलग जानवर ज़िंदा रह पाते हैं. जानवर तो मर जाते हैं लेकिन उनके फॉसिल (अवशेष) रह जाते हैं. किस दौर में किस नस्ल के जानवर ज़िंदा थे, इस बात से भी पहले के माहौल का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
अगली आइस एज कब आएगी?
आइस एज साइकिल्स में आती-जाती है. मतलब बर्फ जमने का एक लंबा दौर चलता है, फिर बर्फ पिघलने का दौर चलता है. और ऐसा बार-बार होता है. पिछली आइस एज करीब 11,000 साल पहले जा चुकी है. लगभग इसी समय इंसान ने खेती करना शुरू किया. खेती से इंसान फैला और धरती पर कब्ज़ा करने लगा.
करीब 200 साल पहले औद्योगिक क्रांति हो गई. और औद्योगिक क्रांति से जो कार्बन डाइऑक्साइड बढ़नी चालू हुई है, वो रुक नहीं रही. पृथ्वी पहले से और गर्म होती जा रही है. बर्फ जमने की बजाए पिघल रही है. और समुद्र का स्तर बढ़ता जा रहा है. आइस एज को शुरू होने के लिए ठंडा तापमान चाहिए होता है.

एक टीवी सीरीज़ है – गेम ऑफ थ्रोन्स. उसमें सब कहते फिरते हैं – ‘विंटर इज़ कमिंग’. मतलब ठंडी आने वाली है. उसमें एक लंबी ठंड का ज़िक्र है जो सदियों तक ठहरेगी. असल दुनिया में जो विंटर आने वाली थी, वो शायद अब नहीं आएगी. ये अच्छी बात है या बुरी बात, पता नहीं.
वीडियो – साइंसकारी: क्या आप जानते हैं कि पक्षी V का आकार बनाकर क्यों उड़ते हैं?