अलपन बंदोपाध्याय. केंद्र सरकार और ममता बनर्जी के बीच रस्साकशी में फंसे बंगाल के पूर्व प्रमुख सचिव. वर्तमान में ममता बनर्जी के प्रमुख सलाहकार. अब एक नई मुसीबत में फ़ंस गए हैं. केंद्र सरकार ने उनके ख़िलाफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 की धारा 51 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है. अलपन साइक्लोन “यास” पर पीएम नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली बैठक में 15 मिनट लेट आए थे. पूरी बैठक का हिस्सा भी नहीं थे. इसके बाद उन्हें 31 मई को दिल्ली तलब किया गया, जो कि इनकी सर्विस का आख़िरी दिन था. लेकिन राज्य से अनुमति ना मिलने के कारण वे नहीं पहुंच पाए. इस मसले पर भी सरकार इन्हें लपेट सकती है.
लेकिन जिसे राजनीतिक गलियारों में ममता का केंद्र पर “चेक मेट” करार दिया गया था उस फ़ैसले ने दरअसल अलपन को मुश्किल में डाल दिया है. शॉर्ट में समझ लीजिए, इन्हें जब दिल्ली तलब किया गया तो ममता सरकार ने इन्हें जाने की इजाज़त नहीं दी. सोमवार यानी कि मई 31 को इन्हें सेवानिवृत कर दिया और साथ-साथ अपना प्रमुख सलाहकार भी घोषित कर दिया. केंद्र ने इन्हें दोबारा 1 जून को दिल्ली बुलाया, पर तब तक ये रिटायर हो चुके थे. इनसे जुड़ा पूरा मामला आप यहां पढ़ सकते हैं.
तो मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अलपन अब दो मामलों में फ़ंस गए है. दोनों मसलों के क़ानूनी दांव-पेंच समझते हैं.

दिल्ली ना रिपोर्ट करने का मामला
अलपन बंदोपाध्याय के सेवानिवृत्त होने के ठीक पहले केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) ने 28 मई को प्रधानमंत्री के साथ बैठक में लेट आने पर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था. विभाग उनसे फिर एक बार इस मसले पर जवाब मांग सकता है, क्योंकि वो दिल्ली हाज़िर नहीं हुए थे. इसके जवाब के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी. इसके बाद चार्जशीत हो सकती है और अगर अलपन दोषी पाए जाते हैं तो उनपर IAS अधिकारियों पर लागू ऑल इंडिया सर्विस (Discipline and Appeal) नियम, 1969 के तहत सजा हो सकती है. सर्विस कर रहे अधिकारियों के लिए नियम अलग हैं, अलपन सेवानिवृत हैं तो उनपर अलग कार्रवाई हो सकती है. उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी और CGHS यानी कि मेडिकल सुविधा रोकी जा सकती है.

इसी से कुछ मिलता जुलता मामला CBI के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा का भी था. 2019 में जब आलोक वर्मा को CBI निदेशक पद से हटाकर फायर ब्रिगेड का महानिदेशक बनाया गया तो आलोक वर्मा ने फायर ब्रिगेड के महानिदेशक का पदभार ग्रहण नहीं किया. वर्मा ने तर्क दिया था कि उनकी सेवानिवृत्ति का समय पार हो गया था, इस कारण वो किसी तरह का पद नहीं संभालेंगे. इसके बाद केंद्र सरकार ने आलोक वर्मा की पेंशन और ग्रेच्युटी के साथ साथ उनकी CGHS फैसिलिटी पर भी रोक लगाई थी.
डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005
इस मामले में होम मिनिस्ट्री ने अलपन को सोमवार यानी कि 31 मई को कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब देने को कहा है. अगर सरकार को जवाब नहीं मिलता है या मिलने पर वाजिब नहीं लगता, तो उस कंडिशन में सरकार अलपन पर FIR भी दर्ज़ कर सकती है. डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 के सेक्शन 51 के तहत अगर कोई अधिकारी किसी ख़ास वजह के बग़ैर दिशा निर्देश का उल्लंघन करता है तो उसके ख़िलाफ़ क़ार्रवाई हो सकती है.
धारा 51 के तहत किसी अधिकारी को अगर दोषी पाया जाता है तो उसे एक साल की जेल या जुर्माने का प्रावधान है. जेल की इस अवधि को ज़्यादा से ज़्यादा दो साल तक बढ़ाया जा सकता है. ये उस हालात में होता है जब दोषी निर्देशों का पालन करने से इनकार करता है, तब सजा दो साल तक बढ़ाई जा सकती है. इसके अलावा अगर अधिकारी के काम से किसी की जान को नुक़सान पहुंचा हो या ऐसा कोई ख़तरा पैदा हुआ हो, ऐसे केस में भी भी दो साल की सज़ा हो सकती है.
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