‛एक्सीडेंट हो गया रब्बा-रब्बा, परमानेंट हो गया रब्बा-रब्बा’
आनंद बख्शी ने यह गीत लिखकर एक्सीडेंटली हुए प्रेम का बखान किया है. माने एक सुखद आश्चर्य टाइप घटना. दवाइयों और कुछ इलाजी उपकरणों की खोज में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब वे एक्सीडेंटली से परमानेंटली हो गईं. इन्हें नाम दिया गया ‛एक्सीडेंटल मेडिकल डिस्कवरीज़’
तो स्क्रॉल करिए और जानिए ऐसी दवाइयों के बारे में जिनकी खोज तुक्के में हुई.
एनेस्थीसिया (Anesthesia) – बेहोश और सुन्न करने की दवा
एनेस्थीसिया (Anesthesia) की खोज का किस्सा जानने से पहले ये जान लें कि इसकी खोज से पहले सजर्री बिना सुन्न या बेहोश किए ही की जाती थी. दर्द को कम करने लिए तमाम तिकड़म आजमाइश होती थी, जिसमें कोका पत्तियों को चबाकर सर्जरी वाली जगहों पर थूका जाता था. मरीज के सिर पर लकड़ी मारकर उसे बेहोश किया जाता था.
आलम यह था सर्जरी के दौरान कई मरीजों की मौत दर्द के कारण ही हो जाती थी. एनेस्थीसिया की खोज में कई वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने भूमिका निभाई, इस जादुई चिकित्सा तकनीक की आकस्मिक खोज में क्रॉफोर्ड लॉन्ग, विलियम टीजी मोर्टन, चार्ल्स जैक्सन और हॉरेस वेल्स जैसे कई नाम जुड़े हुए हैं. इन लोगों ने महसूस किया कि कुछ मामलों में ईथर और नाइट्रस ऑक्साइड (हंसने वाली गैस) दर्द को रोकते हैं. इन गैसों को लोग पार्टियों में मनोरंजन के लिए सूंघा करते थे.
1844 में होरेस वेल्स एक पार्टी में गए, उन्होंने एक व्यक्ति को गैस के प्रभाव में हंसते हुए अपने पैर को घायल करते देखा, उस आदमी के पैर से बहुत खून बह रहा था, उसने वेल्स को बताया कि उसे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा. इत्तेफाकन हुए इस ऑब्जर्वेशन के बाद वेल्स ने इन रसायनों को एनेस्थीसिया के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया. इस प्रयोग के बाद इतनी सारी संभावनाएं खुल गईं कि इसने सर्जरी की जटिल प्रक्रियाओं को सरल बना दिया. एनेस्थीसिया आज WHO के एसेंशियल मेडिसिन के रूप में दर्ज है.
वायग्रा (Viagra)- इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की दवा
अमेरिका में 23 साल पहले वायग्रा (Viagra) का जन्म हुआ था. 1990 के दशक की शुरुआत में फाइजर के शोधकर्ता दिल की बीमारी ‛एंजाइना’ के इलाज के लिए एक नई दवा ‘सिल्डेनाफिल’ पर एक्सपेरिमेंट कर रहे थे. इस दवा से छाती के दर्द को कम करने में कोई खास मदद तो नहीं मिली, लेकिन इससे पुरुषों को अजीबोगरीब साइड इफेक्ट का सामना जरूर करना पड़ा. दवा खाने बाद कई पुरुषों ने पेनाइल इरेक्शन की शिकायत की, शोधकर्ताओं ने इस साइड इफेक्ट का विधिवत अध्ययन किया और रीपैकेजिंग के बाद बना दिया ‛वायग्रा’. वायग्रा को अब करोड़ों रुपए में बेचा जा रहा है. इतना ही नहीं अब ये प्रोडक्ट अपनी निर्माता कंपनी फाइजर के लिए कमाई का बढ़िया जरिया बना हुआ है. आपको बता दें कि इस खोज से पहले इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कोई व्यवस्थित उपचार नहीं था.
पेनिसिलिन (Penicillin)- दुनिया की पहली एंटीबायोटिक
Penicillin एक एंटीबायोटिक यानी बैक्टीरिया को मारने वाली दवा है. दवाओं में सबसे क्रांतिकारी खोज एंटीबायोटिक्स को माना जाता है. इसे खोजने वाले एलेक्जेंडर फ्लेमिंग खोज तो कुछ और रहे थे, पर उन्होंने तुक्के में खोज दी जीवनरक्षक दवा – पेनिसिलिन. पेनिसिलिन की खोज का खेल मोल्ड (फंगस) के साथ शुरू हुआ, जो फ्लेमिंग की एक्सपेरिमेंटल प्लेट पर विकसित हुआ था. दरअसल, फ्लेमिंग फोड़े और गले में खराश करने वाले Staphylococcal बैक्टीरिया पर शोध कर रहे थे. घर की खिड़की खुली होने के कारण फ्लेमिंग ने देखा कि उनकी एक्सपेरिमेंटल प्लेट दूषित हो गयी है और उस पर फंगस जम गया है. गौर करने पर उन्होंने पाया कि फंगस से एक प्रकार का जूस निकल रहा है, जो आसपास के बैक्टीरिया को मार रहा है. इसके बाद उन्होंने इस पर विधिवत एक्सपेरिमेंट शुरू किया और बाद में फंगस जूस को ‛पेनिसिलिन’ का नाम दिया.
इस खोज के बाद फ्लेमिंग ने कहा भी था,
“जब मैं 28 सितंबर, 1928 की सुबह उठा तो निश्चित रूप से मैंने दुनिया की पहली एंटीबायोटिक की खोज करके दवाओं में क्रांति लाने की योजना नहीं बनाई थी.”
इंसुलिन (Insulin)- शुगर कंट्रोल करने वाली दवा
इंसुलिन की खोज में एक कुत्ते के यूरिन ने सार्थक भूमिका निभाई. इस खोज से पहले लोगों को यह नहीं मालूम था कि शरीर मे शुगर लेवल को नैचुरली नियंत्रित करने वाला हॉरमोन ‛इंसुलिन’ पेनक्रियाज में बनता है. 1889 में, जर्मन डॉक्टर जोसेफ वॉन मेरिंग और ऑस्कर मिंकोव्स्की ने पाचन क्रिया में पेनक्रियाज की भूमिका के बारे में जानने के लिए एक कुत्ते की सर्जरी की और उसके पेनक्रियाज को अलग कर दिया. पेनक्रियाज हटा देने के कई दिनों बाद डॉक्टरों ने पाया कि कुत्ते के यूरिन पर मक्खियों और चींटियों का झुंड लगा हुआ है. यूरिन पर मक्खियों और चींटियों के आकर्षण का पता लगाने के लिए उन्होंने कुत्ते का यूरिन टेस्ट किया, जिससे पता चला कि कुत्ते के यूरिन में शुगर की मात्रा सामान्य से ज्यादा है. पेनक्रियाज और शुगर लेवल का लिंक स्थापित हो जाने के बाद इस शोध के आधार पर 1921 में कनाडा के डॉक्टर फ्रेडरिक जी बैंटिंग और टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन जेआर ने क्लिनिकल इंसुलिन मेडिसिन को तैयार किया.
कुनैन (Quinine) – एंटीमलेरियल दवा
साल 1700 के आसपास बुखार से पीड़ित एक आदमी साउथ अमेरिका एंडीज के ऊंचे जंगलों में भटक रहा था. जब उसे जोर की प्यास लगी तो उसने एक छोटे और कड़वे स्वाद वाले पोखरे के पानी से अपना पेट भर लिया. प्यास बुझने के साथ-साथ उसका बुखार भी उतर गया. इसका कारण थे, पोखरे के पास में लगे सिनकोना के पेड़. सिनकोना की छाल बुखार में राहत पहुंचाती है, ये बात वहां के लोकल लोग जानते थे, पर बाहरी दुनिया में इसकी जानकारी किसी को नही थी.
जब इस आदमी का बुखार चमत्कारिक ढंग से कम हुआ, तो उसने इस औषधीय पेड़ की खबर वापस आकर अपने कबीले में दी. इसके बाद सिनकोना के पेड़ों पर शोध शुरू हुआ. और सिनकोना की छाल से पाउडर (कुनैन) बनाकर इसका प्रयोग दवा के रूप में शुरू हुआ, जो शराब में मिलाकर पिलाया जाता था. हालांकि, इस किस्से पर अकादमिक जगत सहमत नहीं होता, वह कुनैन की खोज का श्रेय फ्रांसीसी शोधकर्ता पियरे जोसफ पेलेटियर और जोसेफ बिएनाइम को देता है.
(ये लेख हमारे साथी अतुल ने लिखा है)
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