मधुर मनोहर, अतीव सुंदर, ये सर्वविद्या की राजधानी
ये पंक्ति बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के कुलगीत से है. बनारस को गर्व है बनारस होने का. काशी होने का. इस यूनिवर्सिटी को गर्व है काशी का हिस्सा होने पर. होना भी चाहिए. सैकड़ों वर्षों पुरानी संस्कृति जो संभाल रखी है. ये बात अलग है कि सर्वविद्या की ये राजधानी अब भी सैकड़ों वर्षों पीछे ही चल रही है. आधुनिक नहीं हो पाई है.
और आधुनिक हो भी कैसे पाएगी. क्योंकि काशी के रक्षक, यानी यहां के वाइस चांसलर गिरीश त्रिपाठी, यहां की लड़कियों के ससुर बनकर बैठे हैं.
उत्तर प्रदेश चुनाव के समय बनारस के कि गई रिपोर्टिंग में लल्लनटॉप ने आपको बताया था कि किस तरह यहां हॉस्टल में लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है. महिला महाविद्यालय के 5 हॉस्टल रात 8 बजे बंद हो जाते हैं. यानी लड़कियां कैंपस प्रेमिसेस से 8 बजे के बाहर नहीं निकल सकती हैं. और हां, रात 10 बजे इंडिविजुअल हॉस्टल भी बंद हो जाते हैं. यानी 10 बजे तक लड़कियां कम से कम दूसरी लड़कियों से मिल सकती हैं. मगर 10 बजे के बाद वो भी मुमकिन नहीं है.
हमने ये भी बताया था कि न तो लड़कियों को वाईफाई मिलता है, न ही उन्हें मेस में नॉनवेज दिया जाता है. अब लड़कियों के हॉस्टल में नॉनवेज क्यों नहीं बनता, इसे समझना नामुमकिन है.
महिला महाविद्यालय की लड़कियां लगातार इन नियमों का विरोध कर रही हैं. बीते दिनों इनकी अपने वाइस चांसलर से एक मीटिंग हुई. इस मीटिंग की ऑडियो रिकॉर्डिंग हमें कुछ छात्राओं से मिली है. इसमें वीसी की बातें सुनकर पहले तो हंसी आती है, फिर गुस्सा आता है, फिर लगता है अपना सिस्टम ही तोड़ दो.
जब एक लड़की इनसे पूछती है कि हमारी और लड़कों की टाइमिंग में फर्क क्यों है, वीसी साहब कहते हैं:
‘हमारी संस्कृति 100 साल पुरानी है. हमारा फ़र्ज़ है उसकी रक्षा करना. तुम लड़कियां अगर यहां की संस्कृति पर गर्व नहीं करोगी तो किस पर करोगी? अगर यहां रहना है तो यहां के नियमों को मानना ही होगा.’
जब इनसे लड़कियों ने लाइब्रेरी को कम से कम 8 बजे तक खोलने को कहा, इनका जवाब था: लाइब्रेरी में पढ़कर क्या करोगी? तुम BA की लड़कियां हो. मुझे मालूम है BA की लड़कियों को लाइब्रेरी की कितनी ज़रुरत है! बता दें कि यहां लाइब्रेरी शाम 5 बजे बंद हो जाती है. लड़कियों की क्लास भी शाम 5 बजे तक चलती है. अगर कोई लड़की चाहे कि 5 बजे के बाद कम से कम 3 घंटे ही सही, लाइब्रेरी में तल्लीनता से बिता ले, वो नहीं बिता सकती. और हां, जब एक लड़की ने बोला कि लाइब्रेरी में सेल्फ स्टडी करना चाहते हैं, तो वीसी साहब ने पूछा, सेल्फ स्टडी करनी थी तो यूनिवर्सिटी क्यों आई? शायद वीसी साहब के मुताबिक लाइब्रेरी में भी लड़कियां बिगड़ती हैं. क्यों वीसी साहब, ‘वैसी’ टाइप की बुक्स रखवाते हैं क्या?
इसके साथ ये भी बता दें कि दिल्ली के अधिकतर हॉस्टल की तरह यहां लड़कियों को एप्लीकेशन देने के बाद भी रात को देर तक बाहर रहने की छूट नहीं है. फिर चाहे वो कॉलेज का फंक्शन या रिश्तेदार की शादी ही क्यों न हो. युवा लड़कियां खुद भी दोस्तों के साथ कभी बर्थडे मनाने, चाट खाने, या सिर्फ गंगा को निहारने शाम को घूमने निकल सकती हैं, वीसी साहब की समझ से ये बाहर है.
हर हॉस्टल की लड़की का एक लोकल गार्डियन होता है. मामा, चाचा, बुआ, मौसी, कोई भी. लेकिन ये लड़कियां वहां भी नहीं जा सकतीं. वहां जाने के लिए भी इन्हें ‘होम लीव’ लेनी पड़ती है. यानी अगर लड़की को हॉस्टल से बाहर निकलना है तो घर जाए, वर्ना बैठी रहे अंदर. घूम-फिर कर, खुली हवा में सांस लेकर, आज़ादी का स्वाद लेकर क्या करना है उसे? वैसे भी ग्रेजुएशन के बाद ब्याहकर भी तो उसे कैद ही रहना है न?

और हां, अगर लड़की के मां-बाप उससे बनारस में मिलने आएं, तो वो उनसे मिलने के लिए भी रात 8 के बाद बाहर नहीं रह सकती. शायद वीसी साहब को लगता है लड़कियों को अपने मां-बाप से भी खतरा है. असल में लड़कियों को वीसी साहब को छोड़कर सबसे खतरा है.
एक लड़की ने ये कहा, कि कम से कम कोचिंग जाने के लिए तो हमें रात को थोड़ी देरी से आने की छूट हो. तो वीसी साहब ने कहा, ‘कोचिंग करना है तो बाहर लॉन में रह लो न.’
और ट्रम्प कार्ड तो वीसी ने तब डाला, जब उन्होंने कहा:
‘मेरे लिए तो बेटी वो है, जिससे अगर पूछा जाए कि तुम्हारे लिए तुम्हारा करियर पहले आता है या तुम्हारे भाई का. तो वो कहे, मेरे भाई का.’
जी करता है खड़े होकर ताली बजाऊं, स्लो मोशन में.
हमारी टीम जब चुनाव की रिपोर्टिंग करते हुए BHU पहुंची थी, हमने देखा था यहां के पुरुष छात्रों को कितना गर्व है खुद पर. ये वो यूनिवर्सिटी है जहां छात्र जब खुद का परिचय देते हैं, तो नाम के साथ सीने को 4 इंच और बढ़ाते हुए उसमें ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय’ जोड़ते हैं. गले में लिपटे शाल को ठीक करते हैं. बालों में हाथ मारते हैं. सत्य और निष्ठा की बात करते हैं. मर्यादा और गरिमा की बात करते हैं.
वीडियो जिसमें लड़कियों ने बताया, पेट दर्द जांचने के नाम पर गुप्तांग चेक किए गए.
लेकिन ये सारे मूल्य शायद पुरुषों के लिए हैं. क्योंकि उनके पास आज़ादी जैसे बेसिक्स पहले से हैं. उन्हें खाने, पीने, बोलने से कोई नहीं रोकता. उनके मां-बाप से ऐसे एफिडेविट पर दस्तखत नहीं कराया जाता जिसमें लिखा हो कि उनको धरना प्रदर्शन करने की छूट नहीं है.
शिक्षा एक अच्छी चीज है. शिक्षित करना एक बड़ा काम है. तमाम युवाओं के दिमागों को ढालना, उन्हें पॉलिटिक्स सिखाना, जीने का मकसद देना, ये एक यूनिवर्सिटी का काम होता है. वीसी साहब, जिस संस्कृति की आप बात कर रहे हैं न, उसी का हवाला देकर बता रही हूं. लोग सालों से काशी पढ़ने आते रहे हैं. क्योंकि काशी में माहौल है. लोग काशी में इसलिए पढ़ने नहीं आते थे कि वो एक ही कमरे में बंद पड़े रहे. लोग घूमने फिरने, मिट्टी से ज्ञान अर्जित करने आते थे. ये लड़कियां, जिन्हें आप कैद कर रहे हैं, यहां से जीवन का क्या ज्ञान लेकर बाहर निकलेंगी? किताब के चंद अक्षर?
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