‘पीली छतरी वाली लड़की’ के लेखक उदय प्रकाश का नाम हम सभी जानते हैं. साहित्य और समाज को लेकर की गई उनकी एक छोटी सी टिप भी सोशल साइट्स से लेकर प्रिंट मीडिया और TV तक में एक ‘आवश्यक’ की तरह ली जाती है. हाल में ही वर्ल्ड कप में आए उतार चढ़ाव से ये खुद को लिखने से रोक नहीं पाए. वर्ल्ड कप के गिरगिट की तरह रंग बदलते रूप को फेसबुक पर शेयर किया है. आइए पढ़ें :-
अगर भू-भौगोलिक राजनीतिक दृष्टि से देखें, तो ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच का यह सेमीफाइनल ही असल में वर्ल्ड कप का फ़ाइनल था.
उसी तरह जैसा भारत और पाकिस्तान के बीच का कोई भी मैच हुआ करता है. चाहे लीग मैच ही क्यों न हो. एजबेस्टन का पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था, पुराने ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच का मुक़ाबला देखने के लिए. क्रिकेट की मुख्यधारा का इतिहास ही यूरोप में इन दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच के समर से बना है. उसी तरह जैसे हमारे उपमहाद्वीप में भारत और पाकिस्तान के बीच, पहले हॉकी और बाद में क्रिकेट का मुक़ाबला. मैच बिल्कुल एकतरफ़ा था. बोरिंग. कहीं कोई मुक़ाबला ही नहीं.
मेरा भी मन उचटा हुआ था. बचपन से रेडियो कमेंट्री फिर स्कूल और कॉलेज के शुरुआती दिनों में इस खेल में खिलाड़ी की तरह शामिल होना. बहुत पुरानी स्मृतियां हैं, यह जानते हुए भी कि जिस ब्रिटिश साम्राज्य ने हमारे देश को अपना उपनिवेश बनाया, उसी ने यह खेल भी दिया. सच कहें तो उसी अंगरेजी राज ने हमें कॉलेज, अख़बार, पत्रकार और हिंदी खड़ी बोली दी, जो आज भी पहले जैसे ही ‘कोलोनियल’ हैं और खड़ी बोली तो ख़ैर, आज ‘राज भाषा’ है.
क्या मनोरंजक विरोधाभास है, जिस लीग मैच में भारत के जीतने के लिए पाकिस्तान में प्रार्थनाएं की जा रहीं थीं, सेमीफाइनल में न्यूज़ीलैंड से भारत के हारने पर कश्मीर में जश्न मनाया गया. क्या निष्कर्ष निकालेंगे? क्या सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद, वैश्विक पूंजी और उससे जन्म लेने वाली मेटा- नेशनलिज्म (महा-राष्ट्रवाद) और सार्वभौमिक नस्लवाद (हमारे यहां वर्णवाद या जातिवाद) का कोई रिश्ता बनता है? टीवी के चैनल देखिये, विखंडित करिये, विश्लेषित करिये, बहुत कुछ साफ होता जायेगा.
भाजपा के बरेली से विधायक की उच्च सवर्ण बेटी ने एक दलित युवा से जिस मंदिर में विवाह किया, उसके महंत का नाम एक कूट है.
महंत का नाम है – परसुराम सिंह.
जैसे कोई नाम हो – नाथूराम गांधी.
यह ‘आर्टिकल 15’ के दौर की घटना है.
पता नहीं क्यों, कल से मुक्तिबोध की एक पंक्ति बार-बार गूँज रही है -‘ब्रह्म राक्षस गांधी जी की चप्पल पहने घूम रहे हैं.’ कमलेश्वर जी ने एक उपन्यास लिखा था- ‘कितने पाकिस्तान’, जिस पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया. अब अगर कोई लिखे- ‘कितने कश्मीर’, … तो ?
लता मंगेशकर जी का ट्वीट दिलचस्प है और बहुत संकेतक – ‘धोनी, तुम रिटायर मत होना’.
अब लॉर्ड्स में मुक़ाबला वैसा ही है, जैसा कोई भी फ़ौरी समकालीन मुक़ाबला मुमकिन हो सकता है. ब्रिटिश साम्राज्य, जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था और जिसे पहली बार दक्षिण एशिया के इसी हमारे उपमहाद्वीप के बूढ़े, निहत्थे, महान गुजराती बनिये ने डुबाया, उसी ब्रिटिश राज के पुराने ‘कालापानी’ में ऑस्ट्रेलिया भेजे गये उन्हीं की संतानों ने उसी पुराने पुरखों को सेमीफाइनल में हराया.
Namaskar M S Dhoni ji.Aaj kal main sun rahi hun ke Aap retire hona chahte hain.Kripaya aap aisa mat sochiye.Desh ko aap ke khel ki zaroorat hai aur ye meri bhi request hai ki Retirement ka vichar bhi aap mann mein mat laayiye.@msdhoni
बरेली के विधायक के साथ भी यही हुआ. परसुराम सिंह बहुत अजीब सा, रहस्यभरा व्यक्तिवाचक संज्ञा (encrypted proper noun) है. अब नाथूराम गांधी भविष्य में होंगे या परसुराम सिंह? हमारे समय की महान लोकगायिका लता मंगेशकर, जिनके पूर्वजों का इतिहास मौजूदा शासकों के सबसे सहजात और प्रामाणिक जीवन-स्रोत का प्रतीक है, उन्हीं का यह ट्वीट, गुलज़ार के गीत के ज़रिये- ‘धोनी तुम रिटायर मत होना’ एक गैब या ट्रांस या इलहाम में आयी कोई भविष्यवाणी है क्या?
जनसांख्यिकी की पूरी बायो-जेनेटिक केमिस्ट्री बदल रही है. एंजेला सैनी की अत्यंत चर्चित किताब, ‘सुपीरियर’ पढ़ना शुरू किया है. परसों ही ई-बुक हासिल हुई है. बहुत कुछ समझ में आता है, जैसे- अगर नस्लवाद को समझना हो तो एंथ्रोपोलोजी या बायोजेनेटिक्स की किताबें नहीं, पॉवर पॉलिटिक्स को पढ़ना-समझना चाहिए. (नस्ल की जगह ‘जाति’ पढ़ लीजिए.)
ध्यान रखें, हमारे समय का जो ‘नायक’ इतने विशाल बहुमत के साथ केंद्रीय सत्ता पर आता है, उस पर उस विशाल ‘बहुमत’ का उतना ही बड़ा दबाव भी होता है. यह कोई नहीं जानता. यहां तक कि वह ख़ुद भी. सदा एक कालजयी उत्तरपर्व प्रतीक्षा करता रहता है. क्या होगा मीडिया और बाक़ी तीनों स्तंभों का, समय जल्द बतायेगा. जनता ही जनार्दन होती है. दिखने लगे और साफ…तो सब कुछ ज़रा साफ हो. लॉर्ड्स का मैच अब क्रिकेट के विशेषज्ञ और बेटिंग-फिक्सिंग करने वाले सटोरिये देखेंगे. इसमें कमाई करने वाले वे भी हो सकते हैं, जो हमारे देश के बैंकों को लूट कर फ़रार हैं.
टैक्स देते रहिए. जय जय बोलते रहिए.
वीडियो देखें: वर्ल्ड कप 2019: सरफराज अहमद ने अपनी कप्तानी, कोच से खटपट और इंडिया-इंग्लैंड मैच पर अपनी बात रखी है
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