ऋषि कपूर को गुज़रे कुछ घंटे बीत चुके हैं. वो पिछले काफी समय से एक खास किस्म के कैंसर से लड़ रहे थे. 29 अप्रैल की रात उनकी तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई. मुंबई के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाए गए. 30 अप्रैल की सुबह वो मौत के साथ वो अपनी जंग हार गए. ऋषि कपूर शोमैन राज कपूर के बेटे थे. लेकिन वो टिपिकल स्टारकिड नहीं थे. उन्हें पूरे तामझाम के साथ स्टार बनाने के लिए लॉन्च नहीं किया गया था. राज कपूर अपना कर्ज उतारने के लिए ऋषि को फिल्मों में लेकर आए. फिल्म थी 1973 में आई ‘बॉबी’.

फिल्म ‘बॉबी’ से एक बड़ा मज़ेदार वाकया जुड़ा हुआ है. 1973 में ऋषि कपूर बतौर हीरो फिल्मों में आए. यहां से लाइफ एक सर्कल शुरू हुआ, जो 26 साल बाद फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ पर जाकर पूरा हो गया. अब किस्सा सुनिए. 1970 में राज कपूर ने एक फिल्म बनाई ‘मेरा नाम जोकर’. ये उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था. फिल्म बनकर रिलीज़ हुई और राज कपूर हालत खराब हो गई. क्योंकि ये उनके करियर की सबसे महंगी और बड़ी फिल्म थी. फिल्म नहीं चली. सिर पर बहुत सारा कर्ज हो गया. इसे चुकाने के लिए राज साहब ने 1971 में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर को लेकर ‘कल आज और कल’ नाम की फिल्म बनाई. इस फिल्म को कहानी से ज़्यादा ‘आप यहां आए किस लिए’ गाने के लिए याद किया जाता है. ये फिल्म नंबर्स के मामले में ठीक-ठाक सी रही. लेकिन अपने लोन्स क्लीयर करने के लिए राज कपूर को एक कमाऊ फिल्म की ज़रूरत थी.

राज कपूर, राजेश खन्ना के साथ एक फिल्म करना चाहते थे. कट टु ऋषि कपूर एक्टिंग ट्रेनिंग. ऋषि कपूर अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उन्होंने अपने शुरुआती करियर में सिर्फ वही किया, जो राज कपूर उनसे कहने के लिए करते थे. वही उनकी एक्टिंग ट्रेनिंग थी. राज साहब के दिमाग में कैरेक्टर्स की इमेज फिट होती थी. और वो किसी भी तरह से वो चीज़ अपने एक्टर्स से करवा लेते थे. इनसिक्योरिटी की बात से ख्याल आया, ऋषि अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि वो एक सीन शूट कर रहे थे. कैमरे के पीछे थे राज कपूर. कुछ बढ़िया निकलकर आ नहीं पा रहा था. इतने में राज साहब ऋषि के पास आए और कहा-‘चिंटु, मुझे युसूफ चाहिए’. युसूफ से उनका मतलब दिलीप कुमार था. वो चाहते थे कि ऋषि कैमरे की तरफ ठीक उसी तरह से देखें, जैसे दिलीप कुमार देखा करते थे.

खैर, हम लोग राज कपूर और राजेश खन्ना के साथ फिल्म करने की बात रहे थे. ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘कल आज कल’ के बाद राज साहब के पास इतना बजट नहीं था, जिसमें वो राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार को अफॉर्ड कर सकें. ऐसे में उन्होंने अपने बेटे ऋषि को फिल्मों में लीड हीरो के तौर पर लॉन्च करने का प्लान बनाया. हीरो के बाद हीरोइन की तलाश शुरू हुई. दो नाम फाइनल हुए. डिंपल कपाडिया और नीतू सिंह. किरदार की डिमांड के मुताबिक डिंपल फिल्म में कास्ट कर ली गईं. हीरोइन के नाम पर फिल्म को ‘बॉबी’ बुलाया गया. फिल्म रिलीज़ हुई और धुआंधार ब्लॉकबस्टर साबित हुई. ये शायद भारतीय सिनेमा इतिहास की पहली टीन रोमैंस वाली फिल्म थी. उससे पहले फिल्मी प्यार मर्द और औरत के बीच होता था. इंडियन ऑडियंस को पहली बार पता चला कि एक लड़का और लड़की में भी प्रेम हो सकता है. ‘बॉबी’ उस साल की सबसे बड़ी फिल्म बन गई. ऋषि और डिंपल स्टार बन गए. लेकिन इस फिल्म के बाद डिंपल एक्टिंग से दूर हो गईं. क्योंकि ‘बॉबी’ की रिलीज़ से 6 महीने पहले उनकी और राजेश खन्ना की शादी हो चुकी थी. तब डिंपल कुछ 16 की रही होंगी और काका 30-32 के आसपास.

इस फिल्म से राज कपूर ने अपनी सारे बकाए चुका दिए. अब ऋषि कपूर अपने पांव पर खड़े हो चुके थे. लेकिन अपने करियर में ऋषि लगातार लड़खड़ाते रहे. अगले 20-25 सालों में 90 से ज़्यादा फिल्मों में हीरो का रोल करने के बाद ऋषि कपूर अब फिल्ममेकिंग के दूसरे पहलुओं की ओर बढ़ रहे थे. उन्होंने 1999 में अपने करियर की पहली और आखिरी फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ डायरेक्ट की. इस फिल्म में उनके हीरो थे उम्र के हाथों अपना चार्म और सुपरस्टारडम सरेंडर कर चुके राजेश खन्ना. जो एक्चुअली ऋषि कपूर की पहली फिल्म से होना था, ऋषि कपूर ने अपनी पहली फिल्म में वही किया. ठीक यहीं आकर ‘बॉबी’ से शुरू हुआ जीवन का एक घेरा पूरा हो गया.

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