किस्सा अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का. तमाम क्रांतिकारियों में आज़ाद किसी मिथकीय नायक की तरह लगते हैं. बेजोड़ साहसी, अचूक निशानेबाज़, भेस बदलने में माहिर. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर इन चीफ़. एक बार का ज़िक्र है. क्रांतिकारी आगरा के पास जंगलों में बम बनाना सीख रहे थे. जब ऊब जाते थे तो शहर के बाज़ार घूम आते थे. ऐसे ही किसी बाज़ार से राजगुरु एक मॉडल का पोस्टर ले आये थे जिसमें मॉडल ने बिकिनी पहनी हुई थी.
राजगुरु ने लाकर इसे कमरे में बिस्तर के पास लगा दिया. सब लोग आपस मे इसे लेकर हंसी मज़ाक करने लगे. अचानक आज़ाद वहां आ गए. पोस्टर देख कर बहुत गुस्सा हुए. पोस्टर को फाड़ कर उसके धुर्रे बिखेर दिए. मगर यही आज़ाद थे कि जोश में होश नहीं खोते थे. उनके शिष्य क्रांतिकारी पूर्णचंद सनक लिखते हैं कि एक बार किसी डकैती की योजना बनी. बहुत दिन तक आज़ाद इस योजना में लगे रहे लेकिन ऐन वक़्त पर उन्होंने ये प्लान कैंसल कर दिया क्योंकि इसमें कुछ निर्दोष लोगों के मारे जाने का भी अंदेशा था. आज़ाद ने सनक से कहा कि देशद्रोही के प्राण के अलावा हर जान कीमती है.

आज़ाद हिंदू राज अथवा मुस्लिम राज के पक्ष में भी नही थे. क्योंकि वो एक ऐसी आज़ादी चाहते थे जिसमें हर हिंदुस्तानी खुशहाल हो और बराबरी से शरीक हो. आज़ाद के घरवालों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. एक बार अमर पत्रकार ने उनके घर पर कुछ पैसा भिजवाना चाहा तो आज़ाद ने साफ इंकार कर दिया. उन्होंने विद्यार्थी जी से कहा कि पैसा आप पार्टी फंड में जमा करवा दें .मेरे मां बाप को तो एक वक्त किसी तरह रोटी मिल ही जाती है, बहुत से मां बाप को वो भी नहीं मिलती. मैं अपने मा बाप के लिए दूसरों के मा बाप को नहीं भूल सकता. ये थे आज़ाद. हर मोह माया से पूरी तरह आज़ाद.

हिमांशु बाजपेयी. क़िस्सागोई का अगर कहीं जिस्म हो, तो हिमांशु उसकी शक्ल होंगे. बेसबब भटकन की सुतवां नाक, कहन का चौड़ा माथा, चौक यूनिवर्सिटी के पके-पक्के कान और कहानियों से इश्क़ की दो डोरदार आंखें.‘क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा’ नाम की मशहूर क़िताब के लेखक हैं. और अब The Lallantop के लिए एक ख़ास सीरीज़ लेकर आए हैं. नाम है ‘क़िस्सागोई With Himanshu Bajpai’. इसमें दुनिया जहान के वो क़िस्से होंगे जो सबके हिस्से नहीं आए. हिमांशु की इस ख़ास सीरीज़ का ये था क़िस्सा नंबर इकत्तीस.
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