लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है. इस एक साल में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से क्या-क्या बड़े फैसले किए गए? कितने वादे पूरे हुए और कितने अधूरे रह गए? यहां हम बात करेंगे मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के पिछले एक साल के कामकाज की.
बड़े फैसले
1. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति
नई शिक्षा नीति यानी एनईपी में 2035 तक देश की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह बदलने का खाका है. इसमें स्कूलों में शुरुआती शैक्षिक कार्यक्रमों को मजबूत करने, टीचर्स ट्रेनिंग पर ध्यान देने, स्कूली पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक कोर्स जोड़ने, उच्च शिक्षा में रिसर्च के लिए धन जुटाने को बढ़ावा देने और उच्च शिक्षा में गुणात्मक बदलावों के लिए शीर्ष संस्थाओं का पुनर्गठन कर नए निकाय बनाने का प्रस्ताव है. नई शिक्षा नीति मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. इसे शिक्षा को सहज, सरल और सस्ती बनाने के उद्देश्य के साथ लाने की बात कही जा रही है.
After 33 years and comprehensive discussions with all stake holders , new education policy is coming which will ensure the creation of #NewIndia.#NEP aims to put India on the map through quality education & entrepreneurship. pic.twitter.com/xKXyLtLElD
— Ministry of HRD (@HRDMinistry) February 18, 2020
28 मई, 2020 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने बताया कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार हो गया है. संसद की मंजूरी के बाद इसे लागू किया जाएगा. 1 मई, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी समीक्षा की थी. अक्टूबर, 2015 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने नई शिक्षा नीति बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी. इसके लिए पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी. हालांकि लगभग पांच साल का समय बीतने के बावजूद अब तक अब तक नई शिक्षा नीति को लागू नहीं किया जा सका है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में इस नीति को 100 दिनों की प्राथमिकता में रखा गया था. इसके लिए व्यापक तौर पर सुझाव भी मंगाए गए थे.
#100DaysofMHRD
The Higher Education Commission of India Bill to replace the UGC and AICTE with a single regulator prepared after consultation with states. Ready to take to the Cabinet in October 2019.#MODIfied100 #100Dayshttps://t.co/BwnEg9fVbR pic.twitter.com/9ZaAUBDL8k— Ministry of HRD (@HRDMinistry) September 22, 2019
2. भारतीय उच्च शिक्षा आयोग
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से 100 दिन के एजेंडे में शामिल किया गया था. इस आयोग के दायरे में हर तरह के उच्च शिक्षा को लाने की योजना है. अभी उच्च शिक्षा अलग-अलग निकायों द्वारा संचालित होती है. जैसे- यूजीसी के अंतर्गत सभी विश्वविद्यालय आते हैं और AICTE के अंतर्गत इंजीनियरिंग कॉलेज. भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) के गठन के बाद यूजीसी और AICTE जैसे संस्थान खत्म हो जाएंगे. HECI के गठन का सुझाव 2014 में बनाई गई चार सदस्यीय हरि गौतम समिति ने दिया था.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने जुलाई, 2019 में संसद में बताया था कि एचईसीआई अकादमिक मानदंड को बनाये रखने, गुणवत्ता को बेहतर बनाने, अच्छा प्रदर्शन करने वाली संस्थाओं को बढ़ावा देने में मदद करेगा. हालांकि भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन अब तक नहीं हो सका है.
3. केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी बिल
केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी बिल 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया. 12 दिसंबर को लोकसभा ने इसे पास कर दिया. इसके बाद 2 मार्च, 2020 को इसे राज्यसभा में पेश किया गया. 16 मार्च को इसे राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई. इस बिल को देश के तीन डीम्ड विश्वविद्यालयों को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में बदलने के लिए लाया गया है. ये संस्थान हैं-
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली
लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली
राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति
These three institutions will play a significant role in the conservation, promotion and development of Sanskrit with enthusiasm, energy and determination.#EducationForAll#CentralSanskritUniversitiesBill
— Ministry of HRD (@HRDMinistry) March 17, 2020
संस्कृत भाषा का प्रसार करने और उन्नत बनाने के लिए सरकार केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय बिल लाई है. प्रस्तावित यूनिवर्सिटी में मानविकी, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान के एकीकृत पाठ्यक्रम के लिये विशेष प्रावधान किए जाएंगे. संस्कृत भाषा तथा उससे जुड़े विषयों के विकास और संरक्षण के लिये लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा.
Institutes of Eminence aim to bring Indian HEIs in the top 500 world’s ranking in the next 10 years.
Watch this video to know more about the initiative and our achievements in the past 1 year. #1YearOfModi2 #Shikshahttps://t.co/NoybywrTf2 pic.twitter.com/jrDMWG442U— Dr Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) June 7, 2020
बड़ी नाकामी
अपने ही एक्शन प्लान को पूरा नहीं कर सकी सरकार
30 मई, 2019. ये वो दिन था, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की लगातार दूसरी बार सरकार बनी. लेकिन इससे करीब सप्ताह भर पहले ही एजुकेशन सेक्टर के लिए 100 दिन का एक्शन प्लान प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से अप्रूव कर दिया गया था. ये एक्शन प्लान मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तैयार किया था. इसमें जिन चीजों को प्राथमिकता दी गई थी, उनमें नई शिक्षा नीति, नेशनल रिसर्च फंड एक्ट, भारतीय उच्च शिक्षा आयोग, यूनिवर्सिटी में खाली पड़ी पांच लाख फैकल्टी की सीट को भरना शामिल था. लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल में भी 100 दिन के एक्शन प्लान में शामिल चीजों को लागू नहीं किया जा सका है. यानी मानव संसाधन विकास मंत्रालय अपने ही एक्शन प्लान को लागू करने में नाकाम रहा है. ऊपर हमने जिन बड़े फैसलों की बात की है, वे अभी भी लटके हुए हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
(1)
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं कि सरकार का एक साल का कार्यकाल देखने पर हमें यही पता चलता है कि शिक्षा इस सरकार की प्राथमिकता में नहीं है. उन्होंने कहा,
ये अफसोस की बात है कि पिछले पूरे साल केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर उच्च शिक्षा प्रबंधन तक सबकुछ कामचलाऊ तरीके से ही चलता रहा है. पिछले 70 साल में कभी इतने केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के खिलाफ न तो जांच बैठी, न ही उनको हटाने की मजबूरी आई. लेकिन ऐसा लगता है कि इस समय अन्य मंत्रालय तो काम कर रहे हैं, लेकिन शिक्षा मंत्रालय इनके एजेंडे से बाहर है.
प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में दो कमेटियां बनाईं, लेकिन बात एक की भी नहीं मानी. उन्होंने कहा,
इस सरकार ने पहले पांच वर्ष में महत्वपूर्ण पहल करते हुए एक के बाद एक दो राष्ट्रीय शिक्षा नीति सुधार आयोग बनाए थे. दोनों रिपोर्टों से ये निष्कर्ष निकलता है कि हमारी समूची शिक्षा व्यवस्था दुनिया की अन्य गतिशील देशों की शिक्षा व्यवस्था की तुलना में बेहद खतरनाक मोड़ पर खड़ी है. आशा थी कि इन दोनों कमेटियों के सुझावों को मिलाकर के कुछ बुनियादी बदलाव किया जाएगा. लेकिन अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ.
प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं कि सरकार एक तरफ शिक्षकों की भर्ती करने में नाकाम रही है, दूसरी तरफ विश्वविद्यालयों को दिया जाने वाला पैसा घटा दिया. इसकी वजह से फीस में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. उन्होंने कहा,
जिस तरह से आप अगर सेना के जवानों के खाली जगहों को नहीं भरते हैं, तो देश पर विदेशी षड्यंत्रों से खतरा हो जाता है. इसका समाधान सैनिकों की संख्या को बढ़ाकर किया जा सकता है. लेकिन अगर आपने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पदों को खाली रखा और छात्रों को कागजी डिग्री दी, तो आप देश की बौद्धिक सुरक्षा में सेंध की इजाजत दे रहे हैं. अगर जगहें खाली रहती हैं, तो प्रतिभा का पलायन होता है, पढ़ाई का अवमूल्यन होता है, शोध और शिक्षा में गतिरोध आता है.
(2)
तिलकामांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर में गांधी विचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार शिक्षा नीति में ‘लर्निंग बाई डूइंग’ यानी करते हुए सीखने को शामिल करने पर जोर देते हुए कहते हैं,
हमने लर्निंग बाई डूइंग पर कोई ध्यान नहीं दिया है. इससे ये हुआ है कि विश्वविद्यालय बेरोजगार पैदा करने के कारखाने बनकर रह गए हैं. शिक्षा के उद्देश्य के अंतर्गत दुनियाभर के शिक्षाविद् तीन चीजें चाहते हैं-
एक हाथ यानी कि शरीर मजबूत हो.
दूसरा मस्तिष्क उन्नत हो.
तीसरा हृदय उदार हो.
इन तीनों चीजों को हमने अपनी शिक्षा नीति में शामिल नहीं किया. हमारी शिक्षा पद्धति में, शिक्षकों में, विश्वविद्यालयों में बहुत सारी कमियां हैं. हम इन कमियों को दूर कर कुछ चीजें सकारात्मक कर सकते थे. लेकिन सरकार इसे लेकर बहुत गंभीर दिखाई नहीं देती है.
मोदी 2.0 के एक साल में विदेश मंत्रालय का कामकाज कैसा रहा ?