सियासत में कई बार नई छवियां गढ़ी जाती हैं. कई बार पहले से स्थापित छवियों को हाइजैक कर लिया जाता है. लोग आज तक इस पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि कबीर भक्ति के आदमी थे या बग़ावत के.
बीते अक्टूबर में दिल्ली के कनॉट प्लेस के खादी शोरूम के कर्मचारी उत्साह से मोदी जैकेट बेच रहे थे. उनसे पूछा कि ये मोदी जैकेट है तो नेहरू जैकेट कौन सी होती है? जवाब मिला, ‘यही है सर. पहले इसे ही नेहरू जैकेट कहते थे.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुर्तों के ऊपर अलग-अलग रंग की सुंदर हाफ जैकेट पहनते हैं. इसी जैकेट को हिंदी पट्टी में ‘सदरी’ कहते हैं. नई उमर के अंग्रेज़ीदां लड़के इसे थोड़ा मॉडिफाई करवा लेते हैं और फिर ‘खादी का वेस्ट कोट’ कहते हैं.
मोदी युग में पुरानी चीज़ों पर मोदी चस्पा हो रहे हैं. जैसे उनके आने के बाद ही देश को याद दिलाया गया कि इसी देश में कोई सरदार पटेल थे, जिन्हें कभी ‘लौह पुरुष’ कहा जाता था.
इसलिए अगर खादी उद्योग के नए साला कैलेंडर पर महात्मा गांधी की जगह नरेंद्र मोदी चरखा कातते दिख रहे हैं तो ये इतना चौंकाने वाला नहीं है. ये एक डायरी कैलेंडर है, जिस पर हर साल महात्मा गांधी की चरखा कातते हुए तस्वीर होती थी. इस बार चरखा तो है, पर गांधी की जगह प्रधानमंत्री बैठे हैं.
ये बात दीगर है कि इसे लेकर विरोधी पार्टियां, खास तौर से कांग्रेस जो गांधी पर अपना पहला हक समझती है, तुरंत हरकत में आई हैं. ट्विटर पर #चरखा_चोर_मोदी ट्रेंड करने लगा है. ट्रेंड कराने वाले इसे बापू का अपमान बता रहे हैं.
खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज कमिशन (KVIC) बरसों से खादी के कपड़े बेचता है. वह अभी तक प्रचार के लिए महात्मा गांधी की तस्वीरों का ही इस्तेमाल करता था. लेकिन हाल के दिनों में उम्दा क्वालिटी के कुर्ता-पायजामा और सदरी ने प्रधानमंत्री को स्वदेशी और खादी का नया ब्रांड बना दिया है.
इस बात को जाने कितनी अहमियत मिलेगी कि KVIC के विले पार्ले वाले हेडक्वार्टर में कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर इसके खिलाफ मौन विरोध जताया. KVIC चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसमें हैरान होने वाली बात नहीं है और इस तरह के बदलाव पहले भी हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘पूरा खादी उद्योग गांधीजी के दर्शन, मूल्यों और आदर्शों पर आधारित है, तो उनकी अनदेखी करने का सवाल ही नहीं.’
सक्सेना के पास इसके लिए दलील भी है. वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री लंबे समय से खादी पहन रहे हैं और उन्होंने इसे आम लोगों और यहां तक कि विदेशियों में भी पॉपुलर बनाया है. इसलिए वो खादी के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं और उनका कौशल विकास और ‘मेक इन इंडिया’ का विजन खादी के विजन से मिलता है. उन्होंने कहा, ‘और वे यूथ आइकन भी हैं.’
लेकिन कुछ कर्मचारी नाराज़ हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक सीनियर खादी उद्योग अधिकारी ने कहा, ‘हम इससे दुखी हैं कि महात्मा गांधी के आदर्श को इस सरकार ने इतना हलका कर दिया है. पिछले साल कैलेंडर में प्रधानमंत्री की फोटो लगाकर ऐसी पहली कोशिश की गई थी.’
इस बात की पर्याप्त संभावना है कि इसे KVIC के शीर्ष अधिकारियों की चापलूसी की तरह देखा जाए. अभी यह साफ नहीं है कि इसके लिए ‘ऊपर से’ आदेश आए या नीचे से प्रस्ताव भेजकर मंजूरी ली गई. लेकिन प्रधानमंत्री और उनके करीबी सलाहकार इस पर प्रसन्न ही होंगे.
ये नरेंद्र मोदी के उसी प्रयास को विस्तार देता है, जिसके तहत वह अपनी छवि बदलने में लगे हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी जु़बान पर महात्मा गांधी जितना बेधड़क चले आते हैं, पहले नहीं आते थे. बल्कि विदेश में दिए कई भाषणों में उन्होंने गांधी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है.
प्रधानमंत्री से ये छिपा तो नहीं होगा कि बहुत सारे भाजपा समर्थक गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को बड़ा देशभक्त मानते हैं और उनकी जयंती मनाते हैं. प्रधानमंत्री समझते हैं कि बंपर बहुमत के बावजूद कुछ तबकों में उनके लिए स्वीकृति का संकट है. इसलिए वो गांधी की ओर खिसकना चाहते हैं. फिर गांधी की प्रशंसा करते रहने से वह दक्षिणपंथी हिंसा की जवाबदेही से भी मुक्त हो जाते हैं, जिसने बीते ढाई साल में उनके लिए ‘फंसाने वाली’ स्थिति पैदा की है. वह लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन रखने वाला प्रधानमंत्री दिखना चाहते हैं, जो विपक्षियों पर तीखा अटैक करता है, लेकिन आजादी के लड़ाकों का विचार-निरपेक्ष होकर सम्मान करता है.
जबकि यह किसी से छिपा नहीं है कि संघ परिवार के गांधी से तीखे मतभेद रहे हैं. उनके मुखपत्र ने कई बार गांधी की कड़ी आलोचना की है, धर्मनिरपेक्षता के लिए उन्हें ‘मुस्लिमपरस्त’ बताया है और विभाजन का जिम्मेदार भी माना है. संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ ‘गुरुजी’ ने उस वक्त महात्मा गांधी पर किस शब्दावली में क्या कुछ कहा था, वह सब किताबों और गूगल पर उपलब्ध है.
गांधी की हत्या के बाद भी संघ गांधी के विचार को खारिज करने की कोशिशें करता रहा. लेकिन प्रधानमंत्री संभवत: समझने लगे हैं कि गांधी भारत में इतने गहरे धंसे हैं कि उनकी छवि खंडित करने की रणनीति काम नहीं करेगी. लिहाजा वह गांधी को गले लगा रहे हैं. वो ज़माना दूसरा था, जब पाकिस्तानी तानाशाह परवेज मुशर्रफ को अहमदाबाद से ललकारते हुए वह उन्हें ‘मियां मुशर्रफ’ कहकर संबोधित करते थे.
वो एक कुशल राजनेता हैं. उनकी कैबिनेट में वे दो महिलाएं हैं, जो किसी ज़माने में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी हैं. वे जानते हैं कि उन्हें अब कहां अपने ईगो को बक्से में बंद करना है.
इसके लिए बड़ा भरोसा चाहिए. अपने उन समर्थकों पर यकीन चाहिए जो गांधी को विलेन मानते हैं और उनकी हत्या को ‘गांधी वध’ कहते हैं. एक अंडर करंट है, जिस पर प्रधानमंत्री का यकीन है कि वह उनके गांधी की ओर बढ़ने के बावजूद बना रहेगा.
एक राजनीतिक विरोधाभास. जो कहा नहीं गया, पर समझ लिया गया.
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