गुजरात का अहमदाबाद शहर. यहां मंगलवार 16 नवंबर को सार्वजनिक सड़कों के किनारे नॉनवेज की बिक्री पर बैन लगा दिया गया. अहमदाबाद नगर निगम ने यह आदेश जारी किया है. गुजरात में इससे पहले वडोदरा, राजकोट और भावनगर में भी मांस की बिक्री पर बैन की मांग उठ चुकी है. हाल के महीनों में देश के कई अलग-अलग हिस्सों से भी इस तरह की खबरें आई हैं. इनमें से कई जगहों पर मांस बेचने पर बैन भी लग चुका है.
यूपी के चार बड़े शहरों में मांस बेचने को लेकर बने नए नियम
इस साल अप्रैल में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धार्मिक स्थलों के आसपास मांस बेचने पर बैन लगा दिया था. तब सीएम ने निर्देश दिए थे कि काशी विश्वनाथ मंदिर के एक किलोमीटर के दायरे में शराब और मांस की बिक्री नहीं होनी चाहिए.
इसके बाद सीएम योगी ने इस साल जन्माष्टमी के मौक़े पर मथुरा के 7 तीर्थ स्थानों पर मांस और शराब बेचने पर बैन लगा दिया. इन इलाक़ों में वृन्दावन, गोवर्धन, नंदगांव, बरसाना, गोकुल, महाबंद और बलदेव शामिल हैं. मुख्यमंत्री ने यह ऐलान भी किया था कि जो लोग मांस और शराब बेचने के काम में लगे हुए हैं, उन्हें दूध बेचने जैसे कामों में लगाया जा सकता है.
यूपी के प्रयागराज में भी मथुरा जैसा नियम बनाया गया है. यहां भी धार्मिक स्थलों के आसपास मांस नहीं बेचा जा सकता. इलाहाबाद से प्रयागराज किए गए इस शहर में सैकड़ों की तादात में धार्मिक स्थल मौजूद हैं. भगवान राम की नगरी अयोध्या में भी धार्मिक स्थलों के आसपास शराब और मांस बेचना प्रतिबंधित है. इसके अलावा यूपी के ही देवबंद, देवा शरीफ़, चित्रकूट में भी मांस बेचने को लेकर इसी तरह के नियम बने हुए हैं.
सरकारी आदेशों पर अदालतों की तीखी प्रतिक्रिया
इस साल मार्च में उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार के कसाईखानों को जारी किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र रद्द कर दिए थे. सरकार का इरादा हरिद्वार को कसाईखाना मुक्त शहर बनाने का था. इसी के विरोध में नैनीताल हाईकोर्ट में कुछ याचिकाएं दायर की गई थीं.
Tv9 भारत में छपी ख़बर के अनुसार इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी थी. अदालत ने कहा था,
“लोग क्या खाएंगे इस बात को तय करना कब से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने लगा? हरिद्वार में जिस तरह के प्रतिबंध की बात कही गई है, उससे तो यही सवाल खड़ा होता है कि क्या नागरिक की पसंद अब राज्य तय करेगा? किसी भी सभ्यता की महानता का पैमाना यही होता है कि वह कैसे अल्पसंख्यक आबादी के साथ बर्ताव करती है.”
इसी तरह मांस बेचने के लाइसेंस को रीन्यू न करने पर एक याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट नेकहा था कि भोजन को चुनने का अधिकार, मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है. चाहे वो मांस ही क्यों ना हो.
क्या नॉनवेज की दुकानों से प्रदूषण होता है?
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़ अहमदाबाद नगर निगम का कहना है कि नॉनवेज की इन दुकानों से जो धुआं निकलता है, वो सेहत के लिए नुक़सानदेह होता है.
नगर निगम का यह तर्क समझने के लिए हमनें बात की डॉक्टर दीपक शुक्ला से, डॉ शुक्ल ने कहा,
“धुंआ किसी भी प्रकार का हो वो हानिकारक ही होता है, चाहे वो हवन से निकला हुआ हो या किसी भी प्रकार का खाना बनाने पर, लेकिन सिर्फ नॉनवेज की दुकानों से निकला धुआं ही हानिकारक होता है, ऐसा नहीं है.”
क्या जबरदस्ती शाकाहार थोपा जा रहा है?
भारत में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गयाथा कि देश की करीब 70 फीसदी आबादी मांसाहारी है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जिस देश की इतनी बड़ी आबादी मांसाहारी हो, वहां मांस बेचने पर प्रतिबंध लगाना क्या लोगों पर शाकाहार थोपने जैसा कदम नहीं है?
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