घटना नम्बर 1
23 दिसंबर 2020. लखनऊ के कैसरबाग़ इलाक़े का गांधी भवन सभागार. सभागार में पत्रकारों की भीड़ जमा है. मंच पर तीन कुर्सियां रखी हुई हैं. एक कुर्सी पर बैठे हैं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया. दूसरी कुर्सी पर आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद संजय सिंह और तीसरी कुर्सी ख़ाली है. कुर्सी के पीछे एक कटआउट लगा है, और कुर्सी पर कटआउट वाले व्यक्ति का नाम चस्पा है. सिद्धार्थ नाथ सिंह. भाजपा नेता और यूपी सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर.

मनीष सिसोदिया सिद्धार्थ नाथ सिंह से दिल्ली और यूपी के स्कूलों की हालत पर डिबेट करने आए थे. बैठक में सिद्धार्थ नाथ सिंह नहीं थे तो मनीष सिसोदिया समेत पूरी आम आदमी पार्टी को कहने का मौक़ा मिल गया कि योगी सरकार बहस या संवाद नहीं करना चाह रही है. सरकार के लिए तमाम संज्ञाओं का इस्तेमाल हुआ.
घटना नम्बर 2
लखनऊ में मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के राजनीतिक स्टंट के बाद नम्बर आया आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली कैबिनेट के पूर्व मंत्री सोमनाथ भारती का. अपने पहले विधायक कार्यकाल में घरेलू हिंसा के केस में जेल जा चुके और विदेशी लोगों पर हमला करने का आरोप फ़ेस कर चुके सोमनाथ भारती का कायाकल्प हो गया. वो गोल चेहरे वाले सोमनाथ भारती नहीं दिख रहे थे. सफ़ेद दाढ़ी और सफ़ेद बाल के साथ सोमनाथ भारती यूपी में उतर आए. यहां पर यूपी के स्कूल और यूपी के अस्पताल देखने के लिए प्रदेश का दौरा करने लगे. और आख़िर में सोमनाथ भारती 11 जनवरी को गिरफ़्तार कर लिए गए. उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
#WATCH | Ink spattered on Somnath Bharti, Aam Aadmi Party MLA from Delhi’s Malviya Nagar, in Raebareli
(NOTE: Strong language) pic.twitter.com/zAr9eXAEGQ— ANI UP (@ANINewsUP) January 11, 2021
क्या किया था सोमनाथ भारती ने ऐसा?
गिरफ़्तारी के एक दिन पहले यानी 10 जनवरी को सोमनाथ भारती के खिलाफ़ एक FIR दर्ज हुई. सोमनाथ भारती ने यूपी के अस्पतालों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यूपी के सरकारी अस्पतालों में बच्चे होते तो हैं, लेकिन ये बच्चे कुत्ते के पिल्लों की तरह पैदा होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर बताती है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता शोभनाथ साहू ने अमेठी के जगदीशपुर थाने में IPC की धारा 505 (सरकारी अधिकारी के काम में बाधा पहुंचाना या भड़काऊ बयान से जनता में डर की स्थिति पैदा करना) और 153-A (विभिन्न वर्गों में दुश्मनी या नफरत पैदा करना. वैमनस्य पैदा करना) के तहत मुक़दमा दर्ज करा दिया.
इस समय सोमनाथ भारती रायबरेली के गेस्ट हाउस में रुके हुए थे. अमेठी पुलिस ने रायबरेली पुलिस से आग्रह किया कि सुबह अमेठी पुलिस के पहुंचने तक सोमनाथ भारती को गेस्ट हाउस में ही रहने दिया जाए. एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, 11 जनवरी को दिन में रायबरेली कोतवाली के SHO अतुल कुमार सिंह की अगुआई में पुलिसकर्मियों का एक दल सोमनाथ भारती से मिलने गेस्ट हाउस पहुंचा. यूपी पुलिस ने सोमनाथ भारती को नोटिस थमाने की कोशिश की. पुलिस का दावा है कि सोमनाथ भारती ने नोटिस स्वीकार करने से इनकार कर दिया. हालांकि बाद में सोमनाथ ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है. उन्होंने इसे यूपी पुलिस का झूठ क़रार दिया है.
It’s a blatant lie given by yogi police that I refused notice of 41A. Court should direct tracing phone locations of IO Mahender Singh n myself. I will leave politics if I am found lying. It’s height of injustice. I urge one n all to speak. I urge supreme court to intervene.
— Adv. Somnath Bharti (@attorneybharti) January 11, 2021
उसी वक़्त सोमनाथ भारती का विरोध करने कुछ दक्षिणपंथी संगठनों के लोग भी पहुंच गए. पुलिस और सोमनाथ भारती के बीच बहस होने लगी. इसी बीच एक व्यक्ति ने सोमनाथ भारती पर स्याही फेंक दी. सोमनाथ भारती पर भी पुलिस के साथ अभद्रता करने का आरोप है. ये भी आरोप है कि उन्होंने योगी आदित्यनाथ के लिए कह दिया कि योगी की मौत निश्चित है, उसको अरेस्ट करिए. इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी सामने आया है. इस घटना के बाद रायबरेली में ही सोमनाथ भारती पर एक और FIR की गयी, जिसमें सरकारी अधिकारी को ड्यूटी न करने देने और अपशब्द कहने संबंधित धाराएं भी जोड़ी गयीं.
#WATCH | Ink spattered on Somnath Bharti, Aam Aadmi Party MLA from Delhi’s Malviya Nagar, in Raebareli
(NOTE: Strong language) pic.twitter.com/zAr9eXAEGQ— ANI UP (@ANINewsUP) January 11, 2021
सबसे बड़ा सवाल
सवाल ये उठता है कि आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती और मनीष सिसोदिया इस तरह की छापामार राजनीति क्यों कर रहे हैं? जवाब है, यूपी में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव. आम आदमी पार्टी ने घोषणा कर दी है कि वो यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ेगी. और इस घोषणा के ठीक बाद AAP और बीजेपी में ये सियासी संघर्ष देखने को मिल रहा है.
When CM said we’ll contest 2022 UP elections, several ministers of UP Govt challenged us for a debate on Delhi schools’ model vs UP schools’ model. I accept the challenge. I’ll come to Lucknow on Dec 22. Tell me who will be up for debate: Manish Sisodia, Delhi Dy CM & AAP leader pic.twitter.com/HXXUMVCYHV
— ANI (@ANI) December 16, 2020
अब ये भी सवाल उठाया जा सकता है कि राजनीति का ये छापामार तरीक़ा ही क्यों? प्रदेश की राजनीति पर पकड़ रखने वाले कहते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर अब तक आम आदमी पार्टी ने इसी रणनीति पर काम किया है. इस बारे में हमने सबसे पहले एके लारी से बातचीत की. लारी लम्बे समय से बनारस में पत्रकारिता करते रहे हैं. वो कहते हैं,
“आप 2014 का लोकसभा चुनाव याद करिए. अरविंद केजरीवाल उस समय नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे. पूरी आम आदमी पार्टी भरभराकर बनारस चली आयी थी. तमाम सेलिब्रिटी चले आए थे. कोई भी कहीं भी अपने तरीक़े से प्रचार कर रहा था. ये इनका दरअसल पुराना मॉडल है.”
एके लारी के मुताबिक़, पुराना मॉडल यानी कुछ ऐसा करना कि लोगों का ध्यान उसकी तरफ जाए. वो कहते हैं कि आम आदमी पार्टी उन्हीं मुद्दों के आसपास शोर मचाती है, जहां उनकी पकड़ अच्छी है. लारी कहते हैं,
“अब उनके पास दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी पर काम करने का रिकॉर्ड है. ये ऐसे मुद्दे हैं, जो हर किसी को प्रभावित करते हैं. और इन्हीं मुद्दों को लेकर वो यूपी में छापामार तरीक़े की राजनीति कर रहे हैं. और यूपी में ही नहीं, ऐसा कमोबेश हर जगह देखने को मिला है. बेसिकली वो चाहते हैं कि बीजेपी उनकी टर्फ़ पर खेले. उनके अपने मुद्दों पर राजनीति हो. तभी वो ध्यान खींच पायेंगे.”
एके लारी की सुनें तो आम आदमी पार्टी का हाल ‘साहब बोला तो बहुत लेकिन कहा क्या’ वाला हो जाता है. माने? माने ये कि आम आदमी पार्टी का कैम्पेन तो बहुत शोर शराबे से भरा हुआ होता है, लेकिन उसमें वोट खींच पाने की क्षमता बहुत कम है, ऐसा एके लारी कहते हैं. मामले को थोड़ा क़रीब से जानने के लिए हमने लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला से बात की. उनका कहना था कि आम आदमी पार्टी की इस तरह की छापामार राजनीति से आख़िर में बीजेपी को ही फ़ायदा पहुंचता है. कहते हैं,
“आप पहले समझिए कि आम आदमी पार्टी का मुख्य प्रतिद्वंदी कौन है? वो बीजेपी है. और उन्हें लगता है इस तरीक़े की आक्रामक क़िस्म की राजनीति करके वो बीजेपी का विकल्प बन जायेंगे. और इस आक्रामक राजनीति से वो अगर कुछ पर्सेंट वोट पा गए, तो वे ये कहने लगेंगे कि हम यूपी या फ़लां राज्य की राजनीति में घुस गए.”
लेकिन गेम बड़ा है. और शायद बीजेपी भी आम आदमी पार्टी को इतना फ़ुटेज देना चाहती है. बृजेश शुक्ला कहते हैं,
“दिल्ली एक छोटा सा राज्य है. वहां जो संकट थे, आम आदमी पार्टी ने उन पर काम किया. लेकिन जब आप यूपी में आते हैं तो बहुत सारे फ़ैक्टर चस्पा हो जाते हैं. गांव हैं, पंचायत हैं, शिक्षकों के संघ वग़ैरह हैं. जातियों और धर्मों का अपना अलग समीकरण है. ये सब इतना आक्रामक और व्यापक रूप से दिल्ली में मौजूद नहीं है. ऐसे में आम आदमी पार्टी जिन मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरी है, वो समूचे यूपी के मुद्दे नहीं हैं.”
AAP की इस राजनीति में बीजेपी अपना फायदा देख रही है, ऐसा बताते हुए बृजेश शुक्ला कहते हैं,
“यूपी में बीजेपी के सामने आम आदमी पार्टी कोई समस्या नहीं है. उनके मुख्य प्रतिद्वंदी अखिलेश यादव और मायावती हैं. लेकिन अखिलेश या माया के बयान पर बीजेपी का कोई मंत्री या प्रवक्ता इतना आक्रामक होकर क्यों नहीं बोलता, जितना आक्रामक वो मनीष सिसोदिया या सोमनाथ भारती के खिलाफ़ बोलता है. क्योंकि बीजेपी चाहती है कि आम आदमी पार्टी गेम में आ जाए. लोग नाम सुनें. और इससे बीजेपी का जो विरोधी वोट है, उसे बांटने के लिए एक और मोर्चा तैयार हो जाएगा. और वोट का बंटवारा 10 से 50 सीटों पर भी हो गया, तो बीजेपी वो सीटें आसानी से निकाल ले जाएगी.”
कई राजनीतिक जानकार ये भी कहते हैं कि आम आदमी पार्टी की ये आक्रामक और छापामार राजनीतिक गतिविधियां एक ख़ास वर्ग को ही सम्बोधित करती हैं. अव्वल तो ये महानगर को सम्बोधित करते मुद्दे हैं. इस सम्बोधन को सुनने वालों में गांव नहीं हैं और बहुत सारे वंचित वर्ग शामिल नहीं हैं. साथ ही धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई में आम आदमी पार्टी की चुप्पी भी जानकारों को चिंता में डालती है. वही चुप्पी, जो दिल्ली में CAA और NRC के दौरान हुए आंदोलन और बाद के दंगों के दौरान देखी गयी थी.
आम आदमी पार्टी का क्या कहना है?
इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी का पक्ष जानने के लिए हमने राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह से बात की. संजय सिंह ने कहा,
“ये बात सही है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी चाहती है कि उनकी ही टर्फ़ और उनके ही मुद्दों पर बातचीत हो. इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. बीजेपी लम्बे समय से हिंदू बनाम मुसलमान की पॉलिटिक्स करती रही है. और हम जनता के मुद्दे जैसे बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे लेकर आ रहे हैं. ये ऐसे मुद्दे हैं, जो सबको प्रभावित करते हैं.”
संजय सिंह ने ये भी कहा कि आगे समय तो बहुत है, लेकिन ये कोई पहला मौक़ा नहीं है कि आम आदमी पार्टी इस तरह की सक्रियता दिखा रही है. उन्होंने कहा,
“अभी ही नहीं. पिछले 9-10 महीनों से हम लगातार यूपी के मुद्दों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. पत्रकारों की हत्या हो, हाथरस कांड हो, उसके बाद मुरादनगर में श्मशान घाट के शेड का गिरना हो, हमने लोगों की आवाज़ उठायी है. जब उन्होंने चैलेंज किया था कि यूपी के स्कूल देखने आइए, तो मैं और मनीष सिसोदिया जी गए थे. ख़ुद से तो गए नहीं थे. फिर उन्होंने बैठक में आने से इनकार भी कर दिया… और यूपी दिल्ली से काफ़ी अलग है. अभी समय भी तो क़रीब एक साल है. अभी बहुत सारी बातें होंगी.”
ये बात तो साफ़ है कि आम आदमी पार्टी के पास अपनी छापामार राजनीति और आक्रामकता है, लेकिन वो उन्हीं मुद्दों पर है, जिन पर वो दिल्ली में एकाधिक बार चुनाव जीत सके हैं. अभी उत्तर प्रदेश के चुनाव में लगभग एक साल का वक़्त है. ऐसे में बाक़ी बचे हुए मुद्दों पर आम आदमी पार्टी कितना संजीदा रवैया अपनाती है, ये भी देखने की बात होगी.
वीडियो : लखनऊ पहुंचे दिल्ली के डिप्टी CM से पत्रकार ने सवाल पूछे, सिसोदिया बोले- ‘ये तो भक्त हैं’