दार्शनिक, साधु-संत, सूफी गुरु और तमाम मानवतावादी कहते नहीं थकते कि प्रेम का कोई धर्म नहीं होता. मुहब्बत मज़हब के दायरे से परे है. लेकिन क्या सचमुच? अभी ये दुनिया इतनी सहिष्णु नहीं हुई है बॉस. कुछ लोग तो यकीनन नहीं हुए हैं. और ये प्रॉब्लम सिर्फ देसी नहीं है. बाहरी मुल्कों में भी विधर्मी से प्रेम को समस्या के रूप में ही देखा जाता है. मात्रा में कमीबेशी होगी बस.
आइए पहले इन दो घटनाओं के बारे में जानते हैं. एक भारत की है, एक बाहर की.
#1 मुज़फ्फरनगर में नसीम को मार डाला गया
मुज़फ्फरनगर का भोकरहेडी गांव. नसीम और पिंकी एक-दूसरे के पड़ोस में रहते थे. प्यार हो गया. ज़ाहिर सी बात है दोनों के ही परिवारों का हाज़मा ख़राब हो गया. मारपीट, पाबंदियां वगैरह-वगैरह सब हुआ. 2015 में पिंकी घर छोड़ कर भाग गई. विशाखापत्तनम जा पहुंची. वहां नसीम काम करता था. दोनों ने शादी कर ली. उम्मीद थी कि शादी के बाद मामला शांत हो जाएगा. नहीं हुआ. ऊपरी तौर पर चाहे जो दिखाया गया हो, अंदर तो अपमान की आग में झुलस रहा था लड़की का परिवार.
2016 में दोनों को एक औलाद भी हुई. उन्होंने सोचा होगा कि अब तो पक्का ही सही हो जाएगा सब. लेकिन धर्म का अपमान ऐसे थोड़े ही माफ़ हो जाता है! इस बार ईद पर दोनों, अपने बेटे के साथ गांव आए. ईद मनाकर लौट जाना था उन्हें. लेकिन सोचा कुछ ही दिनों बाद बेटे का जन्मदिन है. उसे मनाकर ही चलेंगे. बस यहीं गलती हो गई.
सोमवार की दोपहर अपने बेटे के जन्मदिन का केक लेकर लौटते नसीम को मार डाला गया. पहले उसे लाठियों से पीटा गया. और बाद में गोलियां मारी गईं. एक गोली उसके सिर में लगी, जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. 1 साल का बच्चा बिन बाप का हो गया.

पिंकी ने जब अपने भाई को फोन कर अपने बेटे के यतीम होने की दुहाई दी, तो उस ‘खानदान की इज्ज़त के रखवाले’ का कहना था,
“मैं तुझे और तेरे बच्चे को भी मार दूंगा.”
पिंकी के पिता और भाई समेत चार लोगों पर FIR दर्ज हो गई है. धर्म बचा लिया गया है. मुहब्बत मर गई है.
अब थोड़ा बाहर निकलते हैं.
#2 बेटी को मुस्लिम से प्यार था, मार दिया
इजरायल चलते हैं. वही इजरायल जिसे पिछले कुछ दिनों से भारत में बहुत भाव दिया जा रहा है. भारत के साथ उसकी समानताएं खोजी जा रही हैं. बहरहाल एक चीज़ में तो समानता मिल गई है. वहां भी ऑनर किलिंग पाई जाती है. खालिस भारतीय चीज़! अब हम गर्व से इंडिया-इजरायल भाई-भाई का नारा लगा सकते हैं.
इजरायल के रमले शहर में हेनरिटे कर्रा नाम की एक किशोरी रहती थी. महज़ 17 साल की उम्र. एक अरब-इज़रायली परिवार में पली-बढ़ी हेनरिटे को साफ़ निर्देश थे कि वो मुस्लिम लड़कों से दोस्ती ना करें. लेकिन उसने की. ना सिर्फ दोस्ती की, बल्कि प्यार भी कर लिया. सज़ा पा गई.
उसके पिता समी कर्रा ने चाकुओं से गोद कर हेनरिटे की हत्या कर दी. उसका बॉयफ्रेंड एक मुस्लिम युवक था. वो उसके साथ रहने की ज़िद पकड़े हुए थी. पहले भी इस वजह से घर में उसे मारा-पीटा जा चुका था. जब हेनरिटे ने अपने एक रिश्तेदार से इस्लाम में कन्वर्ट होने की अपनी इच्छा बताई, तो जैसे अपना डेथ वॉरंट साइन कर लिया. रिश्तेदार ने उसके पिता को बताया. पिता ने चाकू उठाया और बेटी की गर्दन पर कई वार कर दिए. हेनरिटे की तत्काल मौत हो गई.

परधर्मियों से औलाद का रिश्ता जुड़ने से ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ता है, ये समझना मुश्किल है. वो कौन सा खौफ़ होता है जिसके जेरेसाया जन्म देने वाले लोग ही हैवानों में तब्दील हो जाते हैं? कितनी ही मिसालें मौजूद हैं, जिनमें दो अलग-अलग धर्मों के लोगों ने शादी की और ख़ुशी-ख़ुशी ज़िंदगी बसर की. इसके बावजूद ये समस्या सुलझने का नाम नहीं ले रही. अपनी ही औलादों को मार डालने का हौसला कहां से आता है लोगों में? मज़हब की बंदिश या परिवार की इज्ज़त ऐसी कौन सी अनमोल शय है, जिसपर हर्फ़ नहीं आना चाहिए? इंसानी ज़िंदगी से बढ़कर और कौन सी चीज़ हो सकती है?
नसीम मर गया. पिंकी की ज़िंदगी कटी पतंग हो गई. उनके बेटे के भविष्य को शुरुआती दौर में ही ग्रहण लग गया.
हेनरिटे तो अभी बालिग़ भी नहीं हुई थी. अभी कितना कुछ देखना था उसने.
दुनिया के दो कोनों में हुई इन घटनाओं को मिथ्या गर्व और धर्म की अफीम ने एक जैसा बना दिया. एक मुस्लिम लड़का मर गया, एक क्रिश्चियन लड़की मर गई, एक हिंदू लड़की की ज़िंदगी तबाह हो गई. इस ‘ऑनर’ की किलिंग नहीं हो सकती किसी तरह?
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