6 अप्रैल, 2014. मीरपुर, बांग्लादेश. पुणे में था. सुबह जयपुर के लिए फ्लाइट छूट गयी थी इस बात का गम था लेकिन इस बात की खुशी थी कि वर्ल्ड कप फाइनल मिस नहीं होगा. इंटरनेशनल क्रिकेट में ये 400वां टी-20 मैच था. इंडिया वर्सेज़ श्री लंका. उस वक़्त ऐसा चलन था कि हर दूसरे महीने इंडिया और श्री लंका एक दूसरे के खिलाफ़ मैच खेल रहे होते थे. पर ये कोई दूसरा मैच नहीं था. वर्ल्ड कप का फाइनल था. इंडिया ने दुनिया को वर्ल्ड कप जीतना सिखाया था. 2007 में. आस लगाये बैठे थे कि फिर से हम ही जीतेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

वो प्लेयर जिसपर हमें सबसे ज्यादा भरोसा था, चल नहीं पाया. कभी उसने एक ही ओवर में 6 छक्के मारे थे. हर गेंद पे छक्का. 12 गेंदों में 50 रन. तब भी एक रिकॉर्ड था और आज भी है. बस वो दिन ही ख़राब था. 21 गेंदों में घिसटते हुए 11 रन. एक भी चौका नहीं और छक्के की तो बात ही नहीं करते हैं. आउट होने के बाद वापस जाते हुए लग रहा था कि युवराज रो देगा. 130 रन का बेहद मामूली टोटल. श्री लंका ने 18 ओवर में एक गेंद कम रहते रन बना लिए. हमने 78 रन पे 4 विकेट ढेर कर दिए थे लेकिन संगरकारा ने ऐंकर डाल दिया. 35 पे 52. उस दिन से आज तक अगले वर्ल्ड कप का इंतज़ार है.

वर्ल्ड कप आ गया है. इस बार अपने ही देश में होगा. टीम का एक-एक प्लेयर पूरे भौकाल में है. फिर चाहे धवन हो या उनकी मूंछें. रोहित हो या रहाने. कोहली तो फुल फायर है. गेंदबाजी में अश्विन, शमी, जडेजा हैं. बुमराह टीम के तरकश में नया तीर आया है. इस बार फिर से जीत का मसाला पूरा तैयार है. हम भी तैयार हैं.
हम बताते हैं कि क्यूँ है इंडिया वर्ल्ड टी-20 की सबसे बड़ी कंटेंडर.
1. इंडियन पिच:
इंडियन पिच माने स्पिनर का स्वर्ग. स्पिनर अगर रविचंद्रन अश्विन हो तो समझो वैसा ही हाल होगा जैसे उस मछली की आंख का हुआ था जिसमें अर्जुन ने छेद किया था वो भी पानी में परछाई देखकर. अश्विन यानी वो बॉलर जो एक ओवर में छः तरीके की गेंद फेंक दे. फ्लिपर हो चाहे स्लोवर. फ्लाइट हो या फ़्लैट ट्रैजेक्टरी. कैरम बॉल हो या रेगुलर ऑफ स्पिन. अपना अश्विन पूरी तरह से लैस है.

कभी-कभी तो हमको लगता है कि इसको खुद नहीं मालूम रहता कि ये अगली गेंद कौन से टाइप की फेंकेंगा. साउथ अफ्रीका के खिलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में 7 इनिंग्स में 31 विकेट उड़ाये थे. तीसरे टेस्ट की एक इनिंग्स में तो 7 विकेट ले डाले थे. हाल ही में श्री लंका के खिलाफ़ हुआ टी-20 मैच हर किसी को याद है. 4 ओवर में 8 रन और 4 विकेट. श्री लंका का मैच शुरू होने से पहले ही खतम हो गया था. पूरी टीम 82 रन पर ही नमस्ते हो गयी.
अश्विन के बाद मैदान सम्भालते हैं जडेजा. जो भी अश्विन से बच जाता है उसको जडेजा समेट के ले जाते हैं. इनकी क्विकर इतनी तेज़ होती है कि जितनी तेज़ सौरव गांगुली दूर से दौड़ के आने के बाद भी नहीं फेंक पाते थे. सबसे बेहतरीन बात ये कि इनका ओवर इतनी जल्दी खतम हो जता है कि मालूम ही नहीं लगता. इसके पीछे वजह ये है कि जडेजा फ़्लैट ट्रैजेक्टरी की गेंद फेंकते हैं और मारने के लिए ज्यादा रूम नहीं देते. निपटी हुई सीरीज़ में भले ही 3 मैचों में 3 विकेट लिए हों पर इकॉनमी रही है 4.81 की. टी-20 में इसे 24 कैरेट का सोना कहा जाता है.

बल्लेबाजी के लिए भी इंडियन पिच काफी हद तक इंडियन बल्लेबाजों के लिए 20 ही साबित होती है. इंडिया की तरफ से पड़े 4 दोहरे शतक इंडियन पिचों पे ही मारे गए हैं. कम उछाल भरी पिच जो तेज़ स्पीड को भी मारने लायक बना देती हैं. शार्ट पिच गेंदों से डरने वाली बात भी यहाँ काफी हद तक न्यूट्रल हो जाती है.
2. होम सपोर्ट:

इंडिया के ग्रुप मैच नागपुर, धर्मशाला, बैंगलोर और चंडीगढ़ में हैं. वैसे इंडिया के लिए ये भी कहा जाता है कि दुनिया का कोई भी ग्राउंड हो, इन्हें ऐसा सपोर्ट मिलता है जैसे लगता है कि ये अपने घर पे ही खेल रहे हैं. 2007 का टी-20 वर्ल्ड कप सेमी-फाइनल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ था. स्टेडियम में लहर रहे झंडों को देखकर डेविड ‘बम्बल’ लॉयड कमेंटरी के दौरान कह रहे थे कि आज जो भी स्टेडियम के बाहर तिरंगा झंडा बेच रहा होगा, वो मालामाल होकर घर वापस गया होगा. मैच ऑस्ट्रेलिया में हो या इंग्लैंड या फिर ज़िम्बाब्वे में ही क्यूँ न हो. इंडियन सपोर्ट हमेशा रहता आया है.
3. खिलाड़ियों का फॉर्म:
बल्लेबाजी ले लो चाहे गेंदबाजी ले लो, भौकाल चरम पर है. ये वो टाइम चल रहा है जब टी-20 के मैच में 5-6 नंबर के बल्लेबाज को सिर्फ बेंच से ही इनिंग्स देखनी पड़ती है. श्री लंका से हुआ पहला टी-20 मैच बस इस केटेगरी में नहीं आता. वो एक ऐसा ऑड मैच था जो ऊपर से लेकर नीचे तक काला ही था. लेकिन उसकी कसर अगले दो मैचों में पूरी कर दी गयी थी.

आप ओपनर ले लें तो रोहित शर्मा धीमी शुरुआत करते हुए कब पचास से पचहत्तर पहुंच जाते हैं, ये समझते-समझते उनकी सेंचुरी पूरी हो जाती है. धवन का बल्ला भी आज कल मूंछें ऐंठता फिर रहा है. श्री लंका के खिलाफ़ 51 और 46 का स्कोर, और उससे पहले ऑस्ट्रेलिया की तेज़ पिचों पर बनाये तेज़ रन उनकी फॉर्म दिखाते हैं.

रहाने मिडल ऑर्डर के सॉलिड प्लेयर बनते जा रहे हैं. स्लो खेलना हो या मार के खेलना हो, लौंडा तैयार रहता है. कद-काठी में थोड़े 19 होने की वजह से अक्सर सरप्राइज़ एलिमेंट इनके पास रहता है. स्पिनरों पर इनसाइड आउट शॉट्स बहुत कमाल के मारते हैं. इंडियन पिच पर विद द टर्न ज़मीनी शॉट्स खेलने बम्पर बैट्समैन हैं रहाने. विकेट के बीच में दौड़ते ऐसे हैं जैसे स्कूल की बस छूटी जा रही हो. गुरूवार को धोनी ने जो कहा है वो रहाने के लिए एक बड़ा सेटबैक हो सकता है. धोनी ने कहा है कि टीम में इतने शातिर और माहिर लौंडे फिट हो चुके हैं कि कि रहाने के लिए जगह ढूंढनी मुश्किल हो रही है.

इसके अलावा रैना और युवराज का लेफ्ट हैण्ड कॉम्बो पहले ही शेर साबित हो चुका है. हांलांकि युवराज को लेकर अभी भी सबके मन में शक है लेकिन युवराज कब तुरुप का इक्का साबित हो जाये, मालूम नहीं.

गेंदबाजी में इंडियन कंडीशन में स्पिनर्स एक बहुत बड़ा रोल प्ले करेंगे. धर्मशाला और चंडीगढ़ में पड़ने वाली ओस भी एक फैक्टर होगी जिसकी वजह से इंडिया को टॉस जीत कर पहले गेंदबाजी ही करनी होगी. वैसे भी हम टारगेट को चेज़ करने में माहिर हो चुके हैं. अश्विन एकमात्र फिंगर स्पिनर हैं जिन्हें पड़ने वाली ओस से सबसे ज्यादा दिक्कत होगी. इसके अलावा भज्जी, जडेजा, नेगी गेंद फेंकने में कलाई ज़्यादा लगाते हैं. अश्विन और जडेजा अपने चरम पे हैं. पवन नेगी जो देवधर ट्राफी में अच्छा परफॉर्म करके आये हैं, को शायद ज़्यादातर समय बेंच पर ही बिताना पड़े. हांलांकि चेन्नई सुपर किंग्स में धोनी की कप्तानी में खेलने की वजह से धोनी को उन्हें कब, कहाँ और कैसे इस्तेमाल करना है, ये ज़्यादा अच्छे से मालूम होगा.

इंडिया को टॉस जीतकर पहले बैटिंग करने की ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश करनी चाहिए. ऐसे में तीन स्पिनर्स – अश्विन, जडेजा और भज्जी के साथ उतरना बहुत ही फायदेमंद रहेगा. हरभजन के साथ अच्छी बात ये है कि अंधी-चुक्की में वो कई बार काफ़ी धुआंदार बैटिंग कर जाते हैं.
4. विराट कोहली:
पिछले सेक्शन में खिलाडियों के फॉर्म की बात करते वक़्त कोहली का नाम गायब था. मालूम है. क्यूंकि कोहली अब उस जगह आ चुके हैं जहाँ उनकी फॉर्म पर सवाल करना चीटिंग होगी. अब वो फॉर्म के बाहर नहीं होते. फॉर्म उनके अन्दर ही बस चुका है. कोहली खिलाड़ी से फैक्टर बन चुके हैं. वो फैक्टर जो नीली जर्सी पहने टीम इंडिया के साथ चलता है.

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ कुल आठ मैचों में सात मैच ऐसे थे जिसमें कोहली का 50+ स्कोर था. 50 ओवेरों के मैच में कुल 381 रन जिसमें 2 सेंचुरी और टी-20 में 3 इनिंग्स में 199 रन. ऑस्ट्रेलिया से वन-डे सीरीज़ हमने भले ही 4-1 से गंवाई हो लेकिन उसने ये ज़रूर बता दिया था कि हमारे सभी बैट्समेन एकदम रौले में हैं और विराट कोहली एकदम फैंटम बन चुके हैं. स्टैट्स देखें तो कोहली का टी-20 में एवरेज 50.62 का है और स्ट्राइक रेट 136 का. फिलहाल विराट कोहली इस फॉर्म में है कि बल्ले की जगह हॉकी स्टिक भी पकड़ा दी जाये तो गेंद स्वीट-स्पॉट को ही चूमेगी.
इस वर्ल्ड कप में कोहली को उस ज़िम्मेदारी का अहसास हो जायेगा जिसे सचिन ने अपने कन्धों पे लगभग 20 सालों तक ढोया था.
5. कैप्टन कूल:
सबसे अच्छी बात ये है कि इनको माही कहो, धोनी कहो या एम.एस.डी., ये कुछ नहीं कहते. इनकी लेगसी कहती है. लम्बे बालों का एक लड़का जो अपने पहले ही मैच में ज़ीरो पे रन आउट होके चला गया. वो लगभग ढाई साल के बाद एक ऐसी टीम जिसके आधे लड़कों को कोई जनता भी नहीं था, के साथ वर्ल्ड कप घर ले आता है. वर्ल्ड कप जीतना दुनिया को धोनी ने सिखाया है. चाहे आईपीएल में चेन्नई को लीड करना हो या आखिरी गेंद पर इरफ़ाण पठान की गेंद को को धर्मशाला के ग्राउंड के बाहर मारकर मैच जिताना हो, धोनी के लिए सब कुछ उनके किये के अन्दर है. आखिरी ओवर में जीतने को 13 रन चाहिए थे तो धोनी क्लिंट मेकाई को 112 मीटर का छक्का मार कर सब कुछ आसन कर देते हैं.

धोनी की बैटिंग के बारे में काफी कुछ कहा जा रहा है लेकिन इनकी कप्तानी ऐसी है कि जो सामने वाली टीम को धोबी-पछाड़ मार देती है. किस बॉलर को कैसे यूज़ करना है, धोनी की इस समझ पर सालों बाद थीसिस होगी. नोट कल्लो, लिख लो. एक समय था जब नयी गेंद का मतलब था तेज़ गेंदबाज. धोनी ने समझाया कि नयी गेंद से बल्लेबाज को बांधना हो तो स्पिनर से बॉलिंग की शुरुआत करो.
कहते हैं कि जीतना एक आदत होती है. इंटरनेशनल टी-20 मैचों में धोनी ने दुनिया में किसी भी कप्तान से ज्यादा मैच जीते हैं. धोनी ने 57 मैचों में 31 मैच जीते हैं.
इंडिया का पहला मैच है 15 मार्च को. न्यू-ज़ीलैंड से. नागपुर में. फिर 19 को है पाकिस्तान से. वही पाकिस्तान जिसको हमने लगातार 6 बार वर्ल्ड कप में हराया है. इस बार हराने की भी पूरी तय्यारी है.
इंडिया अपने घर में ही वर्ल्ड कप खेल रही है. पिछली बार 2011 में खेली थी. वर्ल्ड कप जीत के ही दम लिया था. वो सचिन का आखिरी वर्ल्ड कप था. ये धोनी का आखिरी वर्ल्ड कप हो सकता है. इस लॉजिक से वर्ल्ड कप जीतना तो बनता है बॉस!