गाड़ियों की सेल में भयानक कमी आ गई है. बीएस 6 नियम आने वाला है, जिसके बाद कारों की कीमत बढ़ सकती है. सरकार इलेक्ट्रॉनिक कारों को प्रमोट कर रही है. बेसिकली इस वक्त न्यूज़ में अगर कुछ छाया है तो वो है ऑटो सेक्टर. ये सब कम था कि नया मोटर व्हीकल एक्ट और आ गया. लोगों के हज़ारों से लेकर लाखों रुपए के चालान हो रहे हैं. कोई गुस्से में अपनी बाइक जला दे रहा है तो कोई अपने बच्चों को घर में बंद कर दे रहा है, ताकि उसके ‘लाल’ को ‘ट्रैफिक पुलिस’ की नज़र न लगे. कोई तो इस ‘नज़र’ से बचने के लिए माथे पर काजल के बजाय कागज़ (गाड़ी के पेपर्स) ही चिपका के चल रहा है. हर जगह बस चर्चा-ए-चालान है.

…इस दर्द भरे माहौल में कोई बाद-ए-सबा चले, तो सुकून मिले. और फ़िलवक्त तो सड़कों में आपका वाहन ही चल जाए. हां इसके लिए हम आपकी छोटी सी हेल्प कर सकते हैं. हम बता सकते हैं उन 4 मोस्ट इम्पॉर्टेंट डॉक्यूमेंट्स के बनने की प्रोसेस जो ड्राइविंग सीट पर बैठने से पहले आपकी गाड़ी के ड्रॉवर में होने ही होने चाहिए. तो सीट बेल्ट पहन लीजिए, और इस प्रोसेस की लॉन्ग ड्राइव में हमारे साथ चल-चलिए.
1 – ड्राइविंग लाइसेंस
# ये क्या है-
जब आप गाड़ी ड्राइव कर रहे हों तो ट्रैफिक पुलिस को ‘ऑफिशियली’ ये बताने के लिए कि आपको ड्राइविंग आती है, आपको अपने पास ड्राइविंग लाइसेंस ज़रूर रखना रहेगा. इसके बिना गाड़ी चलाई तो कटेगा 5 हज़ार का चालान. तो फटाफट जान लीजिए लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया.
# प्रोसेस-
भारत में दो प्रकार के ड्राइविंग लाइसेंस जारी किए जाते हैं. लर्निंग और परमानेंट. लर्निंग केवल छह महीने के लिए वैध होता है. उसके एक्सपायर होने से एक महीने पहले तक आप परमानेंट के लिए अप्लाई नहीं कर सकते.
दोनों ही तरह के ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आप दो तरह से अप्लाई कर सकते हैं-
#ऑनलाइन-
– सारथी वेबसाइट पर जाइए.

– अपने राज्य को चुनिए.
– ‘एप्लाई ऑनलाइन’ के ड्रॉप डाउन मेनू में से ‘नया लर्नर लाइसेंस’ या ‘नया ड्राइविंग लाइसेंस’ वाला विकल्प चुनिए.
– इसके बाद के स्टेप्स आपको खुद वेबसाइट में बता दिए जाते हैं. अगर लर्निंग हुआ तो ये स्टेप्स हैं-
1) अपनी डिटेल्स भरिये
2) डॉक्यूमेंट अपलोड कीजिए- एड्रेस, आईडी प्रूफ
3) फोटो और सिग्नेचर अपलोड कीजिए
4) लर्निंग लाइसेंस के लिए स्लॉट बुक कीजिए
5) फीस का भुगतान कीजिए

अगर परमानेंट हुआ तो ये स्टेप्स हैं-
1) अपनी डिटेल्स भरिए
2) डॉक्यूमेंट अपलोड कीजिए- एड्रेस, आईडी कार्ड
3) फोटो और सिग्नेचर अपलोड कीजिए
4) परमानेंट लाइसेंस के लिए स्लॉट बुक कीजिए
5) फीस का भुगतान कीजिए
अब इस फॉर्म का प्रिंट आउट आपको लेना होगा. इसके बाद आपको एक एसएमएस आएगा. आपको एप्लीकेशन नम्बर मिलेगा, जिससे आप अपनी एप्लीकेशन का स्टेट्स ट्रैक कर सकते हैं.
#ऑफलाइन-
– जैसा कि चौथे स्टेप में लिखा है, तय स्लॉट में आपको अपने करीबी आरटीओ ऑफिस जाना होगा. वहां से फॉर्म 4 लेना होगा. ये फॉर्म राज्य परिवहन की वेबसाइट से भी डाउनलोड किया जा सकता है. लेकिन आपको तो सब कुछ ऑफलाइन करना है न, इसलिए आप नजदीकी आरटीओ पर जाकर भी इसे ले सकते हैं.
– इस फॉर्म को भरना होगा और ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स के साथ इसे जमा करना होगा. कहां करना होगा? इस बार नजदीक के आरटीओ में नहीं, बल्कि उस आरटीओ में जिसके ज्युरिडिक्शन में आपका एड्रेस आता है.
# टेस्ट-
– टेस्ट वाले दिन RTO ऑफिस जाएं और टेस्ट देकर आएं. आपको गाड़ी भी चलानी पड़ सकती है और ‘ऑब्जेक्टिव’ क्वेश्चन पेपर भी सॉल्व करना पड़ सकता है, या दोनों. डिपेंड करता है आप कौन से स्टेट में हैं. और व्हीकल इंस्पेक्टर किस मेंटल स्टेट में.
– प्रैक्टिकल (यानी गाड़ी चलाने वाला टेस्ट) दो भागों में बंटा रहेगा- ग्राउंड टेस्ट, रोड टेस्ट. ये टेस्ट मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के सामने होंगे, और वो ही डिसाइड करेंगे कि आपको लाइसेंस दिया जाए कि नहीं.
– अगर टेस्ट पास कर लिया तो,
# या तो तुरंत ही ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाएगा
# या आपके पते में आ जाएगा
# डॉक्यूमेंट्स-
– एज प्रूफ वाला कोई भी सरकारी डॉक्यूमेंट – जैसे हाई स्कूल का सर्टिफिकेट.
– परमानेंट एड्रेस प्रूफ वाला कोई सरकारी डॉक्यूमेंट – जैसे पासपोर्ट, आधार या वोटर आईडी कार्ड.
– करंट (वर्तमान) एड्रेस प्रूफ वाला कोई सरकारी डॉक्यूमेंट- जैसे बिजली या एलपीजी का बिल
– 6 पासपोर्ट साइज़ फोटो (लर्निंग लाइसेंस के लिए), 1 पासपोर्ट साइज़ फोटो (परमानेंट लाइसेंस के लिए)
– 40 की उम्र पार कर चुके लोगों के लिए एक मेडिकल सर्टिफिकेट की भी ज़रूरत पड़ेगी. इसे फॉर्म 1A कहते हैं.
# खर्च-
– डिपेंडिंग कि आपको किस तरह का लाइसेंस चाहिए, फीस 200 रुपए (लर्नर) से लेकर 1000 रुपए (इंटरनेशनल) तक हो सकती है. हर राज्य के लिए अलग भी हो सकती है. हमने आपको दिल्ली की बताई.
# 2 – इंश्योरेंस
# ये क्या है-
गाड़ियों के दो तरह के इंश्योरेंस होते हैं. फर्स्ट पार्टी और थर्ड पार्टी. फर्स्ट पार्टी मतलब जिसमें नुकसान होने की दशा में आपको भरपाई की जाएगी. जैसे आपकी कार किसी पेड़ से टकरा जाए तो उसे सही करवाने में जो खर्चा हुआ. वहीं यदि आपने थर्ड पार्टी इंश्योरेंस कराया है तो आपकी गाड़ी से ‘जिसको’ या ‘जिसका’ नुकसान होगा उसकी भरपाई, जो सामान्य स्थितियों में आप करते, अब इंश्योरेंस कंपनी करेगी. (ग्रामर के थर्ड पर्सन का ‘वो’)
# ‘जिसको’ नुकसान होगा से मतलब, कोई राह चलता आदमी आपकी गाड़ी से ठुक गया तो उसके इलाज का खर्च आपकी इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी.
# ‘जिसका’ नुकसान होने से मतलब, अगर कोई राह चलता आदमी अपने कंधे में एलसीडी ढो कर ला रहा है और आपकी गाड़ी से टक्कर लगने पर उसे तो कोई चोट नहीं लगी लेकिन उसका एलसीडी टूट गया तो इस दशा में उसके एलसीडी का भुगतान, जो थर्ड पार्टी इंश्योरेंस न होने की दशा में आप कर रहे होते, अब आपके बिहाफ पे आपकी इंश्योरेंस कंपनी करेगी.

मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार भारत के हर वाहन का थर्ड पार्टी इंश्योरेंस होना ज़रूरी है. लेकिन अधिकतर वाहन मालिक फर्स्ट और थर्ड पार्टी इंश्योरेंस का कॉम्बो ही लेते हैं. जिसमें वाहन, वाहन मालिक, उसमें बैठे हुए लोग, वाहन चलाने वाला, कोई तीसरा जो उस वाहन से हताहत हुआ है और उस तीसरे की प्रॉपर्टी जिसका वाहन के टकराने से नुकसान हुआ है, सबका इंश्योरेंस होता है.
आम बोलचाल की भाषा में इसी कॉम्बो को ‘फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस’ या ‘कॉम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस’ कह लिया जाता है. चालान से बचने के लिए सिर्फ थर्ड पार्टी इंश्योरेंस काफी है.
# प्रोसेस-
चूंकि इस इंश्योरेंस मार्केट में तगड़ा कंपटीशन है इसलिए इसे करवाना भी बहुत आसान है. बस किसी भी इंश्योरेंस कंपनी को कॉल करें, रेस्ट विल बी टेकन केयर ऑफ़.
मैंने प्रोसेस जानने के लिए सीधे पॉलिसी बाज़ार कॉल किया और केवल थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के बारे में जानना चाहा, और वो तो तुरंत इंश्योरेंस करने को भी तैयार. उन्हें कन्विंस करना पड़ा कि अभी कार लेना बाकी है मित्र.
# क्या-क्या डॉक्यूमेंट्स चाहिए-
कुछ नहीं. क्यूंकि अगर आप गाड़ी का इंश्योरेंस करवा रहे हैं तो ज़ाहिर है आपके पास गाड़ी होगी ही. बस फोन पर उस गाड़ी की जानकारियां (गाड़ी नंबर, मेन्यूफैक्चरिंग इयर और मॉडल नम्बर) दे दीजिए, डॉक्यूमेंट्स नहीं. इंश्योरेंस आपके पास पहुंच जाएगा. 24-48 घंटों में सॉफ्ट कॉपी और 10 दिन में हार्ड कॉपी. ये मुझे पॉलिसी बाज़ार के एक कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव अविनाश ने बताया.
# खर्च-
गाड़ी पर डिपेंड करता है. 2 व्हीलर की 32 व्हीलर से क्या ही तुलना? और हां गाड़ी जितनी पुरानी होती रहती है उतना ही इंश्योरेंस अमाउंट (प्रीमियम) घटता जाता है.
उदाहरण स्वरूप मेरे एक दोस्त ने मारुती बोलेनो ली उसकी एक्स-शोरूम कीमत 6,73,611 है और उसका एक साल का ‘कॉम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस’ पड़ा 27, 000 का. उसने ये भी बताया कि अगर केवल थर्ड पार्टी करवाता तो लगभग 5,000 का पड़ता.
# 3 – रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट
# ये क्या है-
समझ लीजिए, जो ड्राईवर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस है, वही गाड़ी के लिए आरसी (RC) है. ये एक ऐसा डॉक्यूमेंट है जो बताता है कि आपकी गाड़ी भारत सरकार के पास रजिस्टर्ड है.
एक बार बन जाने के बाद ये 15 साल के लिए वैलिड रहता है और 15 साल समाप्त हुए तो फिर से 5 साल के लिए रिन्यू किया जा सकता है. ये पेट्रोल और सीएनजी वाहनों के लिए है. डीजल के लिए 10 साल और उसके बाद रिन्यू का कोई ऑप्शन नहीं बताते. क्यूंकि उसे इतना चलने के बाद स्क्रैप ही माना जाता है.

वो, जो गाड़ी में नम्बर प्लेट देखते हो न, दरअसल RC उसी का डॉक्यूमेंट है. उसे रजिस्ट्रेशन नंबर कहते हैं, इसे रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और इसी वजह से अस्थायी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, टेम्परेरी नंबर की तरह अधिकतम एक महीने के लिए ही वैध रहता है.
# प्रोसेस-
प्रोसेस समझने से पहले ये समझ लीजिए कि अगर किसी के पास गाड़ी होगी तो आरसी होगा ही होगा. बशर्ते गाड़ी चुराई न हो. और यूं, जहां से आप गाड़ी खरीद रहे हैं, वो डीलर ही आपकी गाड़ी रजिस्टर करवाने की प्रोसेस शुरू कर देंगे. आरटीओ ऑफिस गाड़ी का निरीक्षण करता है. लेकिन, अधिकतर मामलों में ये सब डीलर की टेंशन है, और सारे फॉर्म्स और डॉक्यूमेंट वहीं पर भर और ले-दे दिए जाते हैं. टेम्पररी आरसी तो गाड़ी खरीदने के साथ ही मिल जाती है. 15-20 दिनों में परमानेंट भी.
हां लेकिन जब गाड़ी में एक्स्ट्रा एक्सेसरीज़ लगवाओ तब आरटीओ ऑफिस ज़रूर आपको लेकर जानी होगी गाड़ी. एक्स्ट्रा एक्सेसरीज़ जैसे, सीएनजी फिट करवाना.
कुल मिलाकर आपको आरसी बनवाने की टेंशन नहीं लेनी, बस इसे अपनी गाड़ी में रखने की लेनी है. हां खो जाए तो दिक्कत है. ड्यूप्लिकेट आरसी बनाने के लिए एफाईआर करवाओ, फॉर्म 26 भरो, अगर लोन में गाड़ी खरीदी है, और अभी तक चुकता नहीं हुआ है तो फाइनेंसिंग कंपनी के सिग्नेचर लाओ और ये सब ढेर सारे बाकी डॉक्यूमेंट के साथ आरटीओ ऑफिस में जमा करो.
# डॉक्यूमेंट्स-
# पैन कार्ड
# 4 पासपोर्ट साइज़ फोटो
# डीलर इनवॉइस
# मेन्यूफेक्चरर की इनवॉइस
# गाड़ी का इंश्योरेंस
# एड्रेस प्रूफ
# जो फॉर्म्स चाहिए होते हैं/भरने होते हैं, वो कुछ यूं हैं- फॉर्म 20 (गाड़ी के रजिस्ट्रेशन की एप्लीकेशन), फॉर्म 21 (सेल सर्टिफिकेट, जो डीलर देता है), फॉर्म 22 और फॉर्म 22- A (ये वाहन निर्माता/मेन्यूफेक्चरर उपलब्ध करवाता है), फॉर्म 34 (ये फाइनेंसर उपलब्ध करवाता है).
# खर्च-
वही इंश्योरेंस की तरह आरसी का खर्च भी गाड़ी पर डिपेंड करता है. लेकिन साथ में आप कौन से राज्य में हो इस पर भी. प्लस रोड टैक्स भी एक चीज़ है जो इसके साथ देना पड़ता है, और ये गाड़ी के मूल्य के 4 से 18 प्रतिशत तक हो सकता है.
फॉर एन उदाहरण मेरे उसी बोलेनो वाले दोस्त को दिल्ली में रजिस्ट्रेशन के लिए 60,000 रुपये देने पड़े.
# 4 – पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट
# ये क्या है?
पीयूसी (PUC) आपकी गाड़ी को दिया गया एक सर्टिफिकेट है, जो ‘ऑफिशियली’ ये बताता है कि आपकी गाड़ी एक तय मानक से ज़्यादा पॉल्यूशन नहीं फैला रही.

# प्रोसेस-
ज्यादातर पेट्रोल पंप्स के पास पीयूसी इश्यू करने की अथॉरिटी होती है. लेकिन जैसे डीएल आपको टेस्ट करने के बाद दिया जाता है, वैसे ही पीयूसी आपकी गाड़ी को टेस्ट करने के बाद. कि क्या वाकई में ये उससे ज़्यादा पॉल्यूशन तो नहीं फैला रही जितना सरकार द्वारा तय है. यानी जो भी आउटलेट पीयूसी दे रहा है उसे पहले वाहन की जांच करनी होगी. और जहां वाहन की जांच की जाती है उसे कहते हैं पीयूसी टेस्ट सेंटर.
तो प्रोसेस की बात करें तो आपको बस किसी पेट्रोल पंप में लाइन भर लगानी है. खबरों में चल रहा है कि इन दिनों पीयूसी बनवाने के लिए दस-दस घंटे की लाइन लग रही. तो प्रोसेस लंबी न सही, लाइन बहुत लंबी है.
# डॉक्यूमेंट्स-
कुछ नहीं.
# खर्च-
100 से 200 रुपये.
# नोट-
वैसे तो इस सर्टिफिकेट की उम्र एक साल बताई जाती है. लेकिन ऐसा सिर्फ नई कार के लिए है. उसके बाद हर 6 महीने में एक बार टेस्ट करवाना और पीयूसी लेना ज़रूरी है. साथ ही 2011 और उसके बाद की गाड़ियों का ही एक साल का पीयूसी संभव है, उससे पहले वालों का सिर्फ 3 महीने का. हो सकता है कि बाद में 2011 वाली लिमिट बदल जाए.
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