देश की राजधानी दिल्ली पिछले 28 दिनों से गंधा रही है. वजह ये है कि सफाई कर्मचारी 12 सितंबर से ही हड़ताल पर हैं. और ऐसा नहीं है कि पूरी दिल्ली में ही ये हाल है. ये हाल खास तौर पर पूर्वी दिल्ली में है, जो पूरी दिल्ली का करीब-करीब एक तिहाई है.
क्यों हड़ताल पर हैं पूर्वी दिल्ली के सफाई कर्मचारी?

पूर्वी दिल्ली के सफाई कर्मचारियों की कुछ मांगे हैं. उन मांगों को पूरा न होने की वजह से ये सफाई कर्मचारी हड़ताल पर हैं. इनकी प्रमुख मांगें हैं-
# कर्मचारियों को पिछले तीन महीने का बकाया वेतन दिया जाए.
# सफाई कर्मचारियों का कैशलेस मेडिकल कार्ड बनवाया जाए.
# डेली वेज पर काम करने वाले कर्मचारियों को पक्का किया जाए.
# रिटायर होने के बाद कर्मचारियों को सारे भत्ते दे दिए जाएं.
# सफाई कर्मचारियों की छह हजार नई पोस्ट बनाई जाएं.
अब तक क्या किया है आम आदमी पार्टी ने?

आम आदमी पार्टी का दावा है कि इस साल में आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से पूर्वी डीएमसी को अब तक कुल 772 करोड़ रुपये दिए गए हैं. इससे पहले 2016-17 में आम आदमी पार्टी ने 948 करोड़ रुपये दिए थे. 2014-15 में पूर्वी डीएमसी को 396 करोड़ रुपये दिए गए थे. वहीं 2013-14 में जब शीला दीक्षित की सरकार थी तो 287 करोड़ रुपये दिए गए थे. 2014-15 में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद 396 करोड़ रुपये दिए गए थे. आम आदमी पार्टी के मुताबिक आम आदमी पार्टी की ओर से इस साल हड़ताल के बाद 330 करोड़ रुपये दिए गए हैं. वहीं इससे पहले 440 करोड़ रुपये दिए गए थे. कुल दिए गए 770 करोड़ रुपये में से 590 करोड़ रुपये तो बजट में ही प्रस्तावित थे और 187 करोड़ रुपये पिछले साल के म्यूनिसिपल रिफॉर्म फंड के तहत दिए गए थे. जो 330 करोड़ रुपये फिलहाल दिए गए हैं, वो पैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिए गए थे.
क्या कह रही है बीजेपी?

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारीर ने ट्विटर पर ट्वीट कर कहा है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दिल्ली को केंद्र से 36,776 करोड़ रुपये मिलते थे. अब दिल्ली को केंद्र की ओर से 48,000 करोड़ रुपये मिलते हैं. केजरीवाल को 10,000 करोड़ रुपये एमसीडी को ट्रांसफर करना है.
क्या कह रहे हैं एमसीडी के अधिकारी?

एमसीडी के अधिकारियों के मुताबिक जितने पैसे दिल्ली की राज्य सरकार ने दिए हैं, उससे सिर्फ सितंबर तक की ही सैलरी हो पाएगी. अक्टूबर शुरू हो चुका है. जब अक्टूबर की सैलरी नहीं मिलेगी तो दिक्कतें फिर से शुरू होंगी. एमसीडी के अधिकारियों के मुताबिक एमसीडी के पास हर महीने करीब 167 करोड़ रुपये का खर्च आता है. इसमें कर्मचारियों की तनख्वाह के साथ ही कर्मचारियों की पेंशन, ईपीएफ, जीपीएफ, एनपीएस और स्ट्रीट लाइट्स पर होने वाला खर्च शामिल है.
ट्विटर पर क्यों भिड़े केजरीवाल और मनोज तिवारी?
सफाई कर्मचारियों की हड़ताल के बाद 4 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में केजरीवाल ने लिखा था कि बीजेपी की केंद्र और एमसीडी की सरकारों की वजह से दिल्ली की सफाई व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई है. सफाई कर्मचारियों को अपनी तनख्वाह के लिए हर महीने हड़ताल करनी पड़ती है.
इसके बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी ट्विटर पर सामने आए और कहा कि केजरीवाल को नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी. आम आदमी पार्टी को केंद्र की ओर से भेजे गए पैसे में से 10,000 करोड़ रुपये एमसीडी को ट्रांसफर कर देना चाहिए.
और सच क्या है?

सच ये है कि केंद्र सरकार ने कभी भी दिल्ली को 48,000 करोड़ रुपये नहीं दिए हैं. इंडिया टुडे की टीम ने अपने फैक्ट चेक में पाया है कि 2014-15 में बजट के दौरान दिल्ली सरकार को केंद्र की ओर से 325 करोड़ रुपये दिए गए हैं. 22 मार्च 2018 को दिल्ली सरकार के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया की ओर से पेश किए गए बजट में बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली को 775 करोड़ रुपये दिए गए हैं. इनमें से भी 450 करोड़ रुपये केंद्र की ओर से सहायता के हैं, जबकि 325 करोड़ रुपये केंद्र को मिले टैक्स के शेयर हैं. वहीं दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी ये साफ कर दिया है कि दिल्ली सरकार को 95 फीसदी पैसे खुद से जुटाने पड़ते हैं और सिर्फ 5 फीसदी रकम ही केंद्र की ओर से मिलते हैं.
क्यों आ रही है दिक्कत?
सबसे बड़ी दिक्कत तो दिल्ली राज्य ही है. दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है. यहां पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं, जो आम आदमी पार्टी के हैं. वहीं केंद्र में बीजेपी की सरकार है. इसलिए आम आदमी पार्टी और बीजेपी एक दूसरे पर आरोप लगा रही है. सरकार आम आदमी पार्टी की है, लेकिन एमसीडी पर बीजेपी का कब्जा है. आम आदमी पार्टी का दावा है कि उसने 380 करोड़ रुपये दे दिए हैं, वहीं बीजेपी का दावा है कि उसने 48,000 करोड़ रुपये दिल्ली को दिए हैं. इस तरह से दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़ रही हैं और नतीजा नहीं निकल पा रहा है.
मांगों को पूरा करने में दिक्कत क्या है?

सफाई कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग है कि रोज के वेतन पर काम करने वालों को पक्का रोजगार दिया जाए. एमसीडी कर्मचारियों के मुताबिक 9210 कर्मचारी ऐसे हैं, जिन्हें पक्का किया जाना है. इसके लिए सात हजार पोस्ट क्रिएट की जानी हैं और बाकी पोस्ट रिटायर हो चुके कर्मचारियों से भरी जानी हैं. लेकिन इन मांगों को नहीं माना जा सकता है. इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है, जो रोज के वेतन पर काम करने वालों को पक्का होने से रोकता है. ये फैसला 10 अप्रैल 2006 का है, जिसे उमादेवी फैसले के नाम से जाना जाता है. इस फैसले के तहत 10 अप्रैल 2006 के बाद कोई भी ऐसा कर्मचारी जो डेली वेज या कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहा हो, उसे सीधा परमानेंट नहीं किया जा सकता है. लेकिन सफाई कर्मचारी संगठन अप्रैल 1998 से काम कर रहे डेली वेज कर्मचारियों और कॉन्ट्रैक्ट पर रखे लोगों को परमानेंट करने की मांग कर रहे हैं. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माना जाए तो फिर 15 या 20 ही कर्मचारी ऐसे हैं, जो 10 अप्रैल 2006 से पहले से काम कर रहे हैं. ऐसे में सफाई कर्मचारियों की ये मांगे नहीं मानी जा सकती हैं.