तारीख़- 14 दिसंबर.
ये साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर इंसान के पहुंचने की कहानी है. हमारी धरती गोलाकार है. उसके दो ध्रुव हैं- ऊत्तरी और दक्षिणी. अंग्रेज़ी में उनको नॉर्थ पोल और साउथ पोल कहते हैं. दोनों ध्रुव पृथ्वी के आख़िरी छोर हैं. यानी उससे आगे कुछ भी नहीं. लंबे समय से इंसानों के बीच होड़ चली वहां पहुंचने की. इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने की. लेकिन ये इतना भी आसान नहीं था.
19वीं सदी में नॉर्वे में एक खोजी हुए. रॉल्ड एमंडसन. 1872 में ओस्लो में उनका जन्म हुआ था. उन्होंने धरती के अनछुए और दुर्गम हिस्सों पर सबसे पहले पहुंचने का सपना पाला. जब 25 साल के हुए, तब वो अंटार्कटिका में कदम रखने वाले पहले इंसान बन चुके थे. 1906 में उन्होंने अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाले ‘नॉर्थवेस्ट पासेज’ को भी भेद दिया. यूरोपियन जहाजी 15वीं शताब्दी से यहां पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन कभी कामयाब नहीं हो पाए. कई बार तो ऐसा हुआ कि खोजी दल बर्फीले तूफ़ान में फंसकर रह गए. उनका कभी पता नहीं चल सका.
नॉर्थवेस्ट पासेज के सफ़र ने एमंडसन को काफी भरोसा दिया. उन्होंने अपना नया लक्ष्य बनाया- नॉर्थ पोल की यात्रा. उस वक़्त तक नॉर्थ पोल इंसान की पहुंच से दूर था. एमंडसन ने फंड इकट्ठा किया. अपनी टीम बनाई. उनकी यात्रा बस शुरू ही होने वाली थी कि एक ख़बर ने उनका सपना तोड़ दिया. उन्हें पता चला कि अमेरिकी खोजी रॉबर्ट पियरी और उनकी टीम नॉर्थ पोल पर पहुंचने में सफ़ल हो चुकी है.

ये एक झटके की तरह था. लेकिन एमंडसन ने अपनी तैयारी जारी रखी. जून, 1910 में वो नॉर्थ पोल के लिए निकले. और, बीच में ही अपना प्लान चेंज कर लिया. इसकी जानकारी किसी को नहीं थी कि एमंडसन कहां जा रहे हैं. उनकी टीम को भी नहीं. उन्हें इसका पता तब चला, जब जहाज अंटार्कटिका पहुंचा.
एमंडसन ने साउथ पोल पर पहुंचने का इरादा किया था. साउथ पोल तब तक अछूता बचा हुआ था. हालांकि, उसी वक्त ब्रिटिश खोजी रॉबर्ट स्कॉट भी अपनी टीम के साथ इसी मिशन पर निकले हुए थे. उनके पास बेहतर संसाधन थे. मोटर ट्रैक्टर, मंचूरियन टट्टू और साइबेरियन कुत्ते भी थे. वहीं एमंडसन पूरी तरह से स्लेज़ कुत्तों पर निर्भर थे.
दोनों कई महीनों तक अपने बेस कैंप में बंद रहे. मौसम खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था. कभी-कभी तो टेंपरेचर माइनस 68 डिग्री तक पहुंच जाता था. अक्टूबर, 1911 में मौसम थोड़ा साफ हुआ तो एमंडसन ने सफ़र शुरू किया. दो हफ़्ते बाद रॉबर्ट स्कॉट भी अपने बेस कैंप से आगे बढ़े.
उस दुर्गम इलाके में स्कॉट और एमंडसन के बीच दिलचस्प रेस चल रही थी. कौन अपना झंडा पहले फहराने में कामयाब होता है! जैसे-जैसे वो आगे बढ़े, मौसम और हालात उनकी परीक्षा लेने के लिए तैयार बैठे थे. एमंडसन की टीम स्लेज़ डॉग्स के सहारे आगे बढ़ गई. उनके सामान का भार भी इन कुत्तों ने संभाल लिया था. इससे ये हुआ कि उनके लोगों की एनर्जी बची रही. एमंडसन को मौसम का भी साथ मिला.

हर नए दिन के साथ उनकी धुकधुकी बढ़ती जा रही थी. एमंडसन ने डायरी में लिखा,
मेरी हालत क्रिसमस का इंतज़ार करते बच्चे जैसी है. उसे बिल्कुल नहीं पता होता कि आगे क्या होने वाला है.
ये इंतज़ार 14 दिसंबर, 1911 को खत्म हो गया. रॉल्ड एमंडसन साउथ पोल पर पहुंच चुके थे. पहुंचने के बाद उन्होंने नॉर्वे का झंडा लगाया, सिगार फूंके और तस्वीरें खिंचवाई. रॉल्ड एमंडसन इतिहास रचने में कामयाब हो चुके थे. कुछ दिनों तक साउथ पोल पर कैंप लगाने के बाद एमंडसन वापस मुड़े. अगले साल जनवरी के आख़िर में एमंडसन और उनकी टीम सही-सलामत अपने बेस कैंप पहुंच गई.
रॉबर्ट स्कॉट का क्या हुआ?
उनके मोटर ट्रैक्टर रास्ते में ही टूट गए. कई टट्टू इतने कमज़ोर हो गए कि उनका आगे बढ़ना मुश्किल हो गया. उन्हें गोली मारनी पड़ी. स्कॉट की टीम को सामान अपने कंधों पर लेकर चलना पड़ा. जब 17 जनवरी, 1912 को स्कॉट साउथ पोल पर पहुंचे, वहां उन्हें नॉर्वे का झंडा और एमंडसन के कैंप के निशान मिले.
रॉबर्ट स्कॉट ने अपनी डायरी में दर्ज किया,
ये जगह अजीब है और भयावह भी. अगर हम यहां सबसे पहले नहीं पहुंचे तो इतनी मेहनत का कोई मोल नहीं है.
वो वाकई अजीब जगह थी. जब स्कॉट अपनी टीम के साथ लौटने लगे, मौसम अचानक बदल गया. तापमान नीचे गिरने लगा. ठंड असहनीय होती गई. उनका शरीर भी कमज़ोर हो गया था. टीम मेंबर्स एक-एक कर बीमार पड़ने लगे. और, उनकी मौत होने लगी. इससे उनके लौटने की रफ़्तार धीमी हो रही थी. निराशा हावी होने लगी थी.

फिर भी उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी. जब वो अपने बेस कैंप से महज 20 किलोमीटर दूर थे, भयानक तूफान उठा. ये आखिरी चोट थी. स्कॉट ने आखिरी बार लिखा, ‘ये बहुत ही दयनीय है, पर मुझे नहीं लगता कि मैं अब आगे और कुछ लिख पाऊंगा.’
उसी रोज़ अंतिम बचे तीनों सदस्य अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गए. उनकी लाश 1912 के अंतिम महीनों में जाकर मिली. भले ही रॉबर्ट स्कॉट साउथ पोल पर सबसे पहले पहुंचने में कामयाब नहीं हो पाए, पर ब्रिटेन में उन्हें हीरो का दर्जा दिया गया. उनकी जीवटता और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन गई.
एमंडसन तब तक सुरक्षित अपने घर पहुंच चुके थे. वो कई हिस्सों में लेक्चर टूर पर गए. 1918 में उन्होंने शिपिंग का कारोबार शुरू किया. कारोबार सफ़ल रहा. लेकिन एडवेंचर की आदत नहीं छोड़ी. नॉर्थ पोल अभी तक उनके मन से नहीं उतरा था. कई बार उन्होंने नॉर्थ पोल को उड़कर पार करने की कोशिश की. 1926 में वो इसमें कामयाब भी हुए. 1928 में एक बचाव अभियान के दौरान एमंडसन का प्लेन क्रैश कर गया. इस दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.
नवंबर, 1956 में साउथ पोल पर परमानेंट रिसर्च स्टेशन की स्थापना हुई. इसका नाम रखा गया- ‘एमंडसन-स्कॉट साउथ पोल रिसर्च स्टेशन’.
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