देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) मामलों की रफ्तार बहुत तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने बेहद चिंताजनक जानकारी साझा की है. दरअसल, कोविड महामारी के बढ़ते खतरे के बीच मनसुख मंडाविया ने दो जनवरी को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों के साथ एक समीक्षा बैठक की. इस बैठक में उन्होंने बताया कि बीते साल अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट ने 23 हजार 123 करोड़ रुपये का जो आपातकालीन कोविड रिस्पॉन्स पैकेज (ECRP-2) मंजूर किया था, उसका केवल 17 प्रतिशत हिस्सा ही राज्य सरकारों ने उपयोग किया है. ये पैकेज कोरोना वायरस महामारी के खतरे को देखते हुए बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने के उद्देश्य से मंजूर किया गया था.
स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ेगा दबाव
ओमिक्रॉन वेरिएंट का पता चलने के बाद से यूरोप-अमेरिका में कोरोना वायरस के नए संक्रमितों की संख्या कोविड-19 की पिछली लहरों में दर्ज हुए मामलों से कहीं ज्यादा है. भारत में भी ऐसा होने की आशंका है. रविवार को हुई बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस बारे में अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि जिस तरह दूसरे देशों में पिछली कोरोना लहरों के मुकाबले अब तीन से चार गुना अधिक मामले सामने आ रहे हैं, वैसा ही कुछ भारत में देखने को मिल सकता है.
मनसुख मंडाविया ने चिंता जताई कि ऐसे में देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक दबाव पड़ सकता है. इसलिए राज्यों को स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए, ताकि देश कोविड महामारी के इस नए खतरे से बिना किसी नुसकसान के पार पा सके. बैठक के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया,
“राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आपातकालीन कोविड रिस्पॉन्स पैकेज के तहत स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाने के लिए कहा गया है. खासकर ICU और ऑक्सीजन बेड्स के संबंध में. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से IT टूल्स का भी प्रभावी प्रयोग करने के लिए कहा गया है. ताकि फोन के जरिए मरीजों को जरूरी मेडिकल सलाह मिलती रहे. एंबुलेंस की उपलब्धता और क्वारंटीन फैसिलिटी से लेकर होम आइसोलेशन की मॉनिटरिंग पर भी ध्यान देने के लिए कहा गया है.”
केंद्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में 23 हजार 123 करोड़ रुपये के इस पैकेज को मंजूरी दी थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उसने कोविड की दूसरी लहर के अनुभवों और राज्यों द्वारा साझा की गई जानकारी के आधार पर इस इमरजेंसी कोविड रिस्पॉन्स पैकेज को तैयार किया था.
इस फंड के तहत कोविड से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों को 23 हजार से ज्यादा ICU बनाने की मंजूरी दी गई थी. सात राज्यों को तो अलग-अलग एक हजार बेड बनाने की मंजूरी मिली थी. इनमें उत्तर प्रदेश को 4007, कर्नाटक को 3021, महाराष्ट्र को 2970, पश्चिम बंगाल को 1874, तमिलनाडु को 1583, मध्य प्रदेश को 1138 और आंध्र प्रदेश को 1120 बेड बनाने की मंजूरी मिली थी.

कोरोना वायरस की दूसरी विनाशकारी लहर में ग्रामीण इलाके बुरी तरह से प्रभावित हुए थे. इमरजेंसी पैकेज को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस फंड के तहत ग्रामीण इलाकों में तीन स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाने पर ध्यान दिया गया और 75 हजार 218 बेड्स के निर्माण को मंजूरी दी गई. इन बेड्स का 60 फीसदी हिस्सा तो केवल छह राज्यों को ही दिया गया. ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, असम और झारखंड.
बीती 15 दिसंबर को हुई एक और समीक्षा बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्यों को बताया था कि इमरजेंसी फंड के तहत ऑक्सीजन आपूर्ति पर भी खासा ध्यान दिया गया. उन्होंने बताया कि इस फंड के तहत कुल 1374 अस्पतालों में 958 लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन स्टोरेज टैंक और मेडिकल गैस पाइपलाइन का प्रावधान किया गया है. साथ ही साथ 14 हजार ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर्स का भी प्रावधान किया गया है.
स्वास्थ्य ढांचा मजबूत हो
राज्यों की तरफ से इस इमरजेंसी फंड के 20 फीसदी से भी कम हिस्से के इस्तेमाल होने की जानकारी ऐसे समय पर सामने आई है, जब देश कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर के मुहाने पर खड़ा है. दूसरे देशों में हर रोज नए मरीजों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ रही है. इसके लिए कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को जिम्मेदार बताया जा रहा है. कई अध्ययनों में ये बात साफ हो चुकी है कि नया वेरिएंट, पुराने वेरिएंट्स के मुकाबले 4 से 5 गुना तेजी से फैल रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि भले ही कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ज्यादा लोगों को गंभीर रूप से बीमार ना करे, लेकिन पहले से कहीं अधिक मामले होने की वजह से स्वास्थ्य ढांचे पर बहुत अधिक दबाव पड़ सकता है. इससे दूसरी बीमारियों के इलाज में दिक्कत के साथ-साथ अन्य प्रकार की परेशानियां भी खड़ी हो सकती हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण जब 15 दिसंबर को समीक्षा बैठक में राज्यों को इमरजेंसी फंड के बारे में जानकारी दे रहे थे, उसी वक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से भी एक बयान आया था. इसमें कहा गया,
“हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लोग ओमिक्रॉन को कमजोर बताकर उसे नजरअंदाज कर रहे हैं. अगर ओमिक्रॉन लोगों को गंभीर तरीके से बीमार नहीं भी करता है, तब भी जिस गति से ये फैल रहा है, वो एक बार फिर से हमारे कमजोर स्वास्थ्य ढांचे पर जबरदस्त दबाव डाल सकता है.”
पैकेज के कम इस्तेमाल पर क्या बोले एक्सपर्ट?
तमाम चिंताओं के बावजूद राज्यों द्वारा अभी तक स्वास्थ्य ढांचे को कोविड से लड़ने के लिए मजबूत ना बना पाने के संबंध में हमने बात की महामारी और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया से. उन्होंने हमें बताया,
“अभी तक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत हो जाना चाहिए था. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जो तीन स्तर का स्वास्थ्य ढांचा है, उसे मजबूत बना दिया जाना चाहिए था. इस देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता. बजट नहीं दिया जाता. जब दिया भी जाता है, तो उसका प्रयोग नहीं होता है. अभी सरकार ने जितना बजट दिया, स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए उससे कहीं अधिक बजट की जरूरत है. मेरे मुताबिक, इस बार की लहर उतनी खतरनाक नहीं होगी. ना ही दूसरी लहर की तरह लोगों को अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी. लेकिन इसके बाद भी सरकारों को अपनी तैयारी करके रखनी चाहिए थी. उनके पास अभी भी मौका है कि वो स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाएं.”
बेड्स के साथ दूसरे पहलू भी जरूरी
दूसरी तरफ गुजरात के गांधीनगर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के डायरेक्टर डॉक्टर दिलीप मावलंकर का मानना है कि लगभग सभी सरकारों ने दूसरी लहर से सबक लेते हुए अपने स्तर पर बेड्स और ऑक्सीजन का इंतजाम किया है. हालांकि, उनका ये भी कहना है कि बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है इनकी गुणवत्ता किस तरह की है. उन्होंने हमें बताया,
“केंद्र सरकार के बजट का कितना इस्तेमाल हुआ है या नहीं, वो अलग बात है. लेकिन अलग-अलग राज्य सरकारें बता रही हैं कि कोविड से लड़ने के लिए उनके पास क्या-क्या इंतजाम है. सरकारों का कहना है कि उनके पास पर्याप्त बेड हैं. हालांकि, कोविड से लड़ाई केवल बेड्स बनाने और ऑक्सीजन की आपूर्ति पर ही अकेले निर्भर नहीं है. सरकारों को ये भी बताना चाहिए कि अलग-अलग अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ कितना है. और इस स्टाफ की ट्रेनिंग कितनी है. दूसरी सुविधाएं किस तरह की हैं. दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं.”
डॉक्टर दिलीप मावलंकर का ये भी कहना है कि अभी ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर पर्याप्त डेटा सामने नहीं आया है. ऐसे में उसे अभी से कमजोर बता देना सही नहीं है. उन्होंने याद दिलाया कि डेल्टा के आने पर भी शुरुआत में ऐसा ही लगा था, हालांकि बाद में सच्चाई कुछ और निकली. दिलीप मावलंकर के मुताबिक ऐसे में जरूरी है कि कोविड की नई लहर से निपटने के लिए स्वास्थ्य ढांचे के हरेक पहलू पर ध्यान दिया जाए.

कुछ दूसरे हेल्थ एक्सपर्ट्स ने भी इस बात पर जोर डाला है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के खतरे को देखते हुए स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना कितना जरूरी है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख डॉक्टर जुगल किशोर ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया,
“जिन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है. जिन्हें दूसरी बीमारियां हैं. उन्हें ओमिक्रॉन से खतरा हो सकता है. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ सकती है.”
इसी आधार पर होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख डॉक्टर सुमित रे ने कहा कि ओमिक्रॉन से संक्रमित इस तरह के लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ सकता है, जिससे स्वास्थ्य ढांचे पर निश्चित ही दबाव पड़ेगा. उन्होंने न्यूज एजेंसी PTI को बताया,
“हमें सतर्क रहना होगा. दक्षिण अफ्रीका मे ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से कम लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. दूसरे देशों में भी जिन लोगों को भर्ती कराना पड़ा, वो डेल्टा वेरिएंट की वजह से ही कराना पड़ा. लेकिन अगर फ्रांस की तरह की हर दिन दो लाख मामले सामने आते हैं और ओमिक्रॉन की वजह से इन मामलों के सातवें या आठवें हिस्से को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है, तो भी ये काफी बड़ी संख्या होगी.”
इसी तरह राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर पीयूष जैन ने बताया कि दूसरे देशों से जो डेटा सामने आया है, वो बताता है कि ओमिक्रॉन की वजह से गंभीर संक्रमण नहीं हो रहा है. लेकिन हमारे पास अभी अपने देश का डेटा उपलब्ध नहीं है. ये वेरिएंट अभी भी दूसरी बीमारियों से जूझ रहे और वृद्ध लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए मजबूर कर सकता है. ऐसे लोग अभी भी खतरे से बाहर नहीं हैं.
वीडियो- ओमिक्रॉन: क्या भारत में शुरू हो चुका है कम्युनिटी ट्रांसमिशन?