प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 अक्टूबर को हरियाणा में थे. उन्हें रोहतक में 64 फीट ऊंची एक प्रतिमा का अनावरण करना था. ये प्रतिमा छोटूराम की है, जो पिछले 9 महीने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंतजार कर रही थी. छोटूराम के वारिस चौधरी बीरेंद्र सिंह ने 2016 में ऐलान किया था कि वो छोटूराम की 64 फीट ऊंची प्रतिमा बनवाएंगे और उसका अनावरण पीएम मोदी के हाथों करवाएंगे. अब मूर्ति तैयार हो गई, उसपर पॉलिथीन लपेट दिया गया, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए. अब प्रधानमंत्री नहीं आए, तो अनावरण भी नहीं हुआ और मूर्ति को एक स्कूल में रख दिया गया. हरियाणा की सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी इंडियन नेशनल लोकदल ने छोटूराम के नाम पर खूब राजनीति की. हरियाणा बनने के साथ ही हर चुनाव में छोटूराम का नाम सामने आता रहा, लेकिन इस बार बाजी बीजेपी के हाथ लगी है.
#Haryana: Prime Minister Narendra Modi unveils the statue of Deenbandhu Chhotu Ram at Sampla, Rohtak. pic.twitter.com/4fQssuCgiZ
— ANI (@ANI) October 9, 2018
लेकिन आखिर कौन हैं ये छोटूराम, जो हर चुनाव में चर्चा का विषय बने रहते हैं. जिनकी वजह से बीजेपी और इंडियन नेशनल लोकदल के बीच तलवारें खिंची रहती हैं और जिनकी प्रतिमा का अनावरण करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहतक गए थे.
कौन थे छोटूराम?
अगर आप हरियाणा जाइए और वहां के किसानों से पूछिए. कौन था वो आदमी जो कहता था-
‘ए भोले किसान, मेरी दो बात मान ले- एक बोलना सीख और एक दुश्मन को पहचान ले’
आपको इसका एक ही जवाब मिलेगा छोटूराम. एक किसान नेता, एक सफल वकील, एक सफल पत्रकार, एक स्वतंत्रता सेनानी और एक सफल राजनेता. कम शब्दों में कहा जाए तो ये थे छोटूराम. एक आदमी की अलग-अलग शख्सियतें, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसने किसानों को उनकी पहचान दिलाई, जिसने किसानों की गिरवी ज़मीन को छुड़वाया और जिसने भारत में मोरों को मारने पर रोक लगवाई और पंजाब को उसका सबसे बड़ा बांध भाखड़ा नांगल बांध दिया.
साहूकार ने की पिता की बेइज्जती और नेता बन गया बेटा
रोहतक जिले में एक गांव है जिसका नाम है सांपला. इसी गांव में जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुखीराम के सबसे छोटे बेटे थे रिक्षपाल. घर में सबसे छोटा होने की वजह से घर के लोग इन्हें छोटू बुलाने लगे. और जब स्कूल में पढ़ने की बारी आई, तब भी इनका नाम छोटू ही रहा और इस तरह से रिक्षपाल छोटूराम हो गए. छोटूराम के पिता सुखीराम को विरासत में मिली थी 10 बीघे की बंजर ज़मीन जिसपर खेती नहीं हो पाती थी. परिवार चलाने के लिए सुखीराम को कर्ज लेना पड़ा और इस कर्ज में सुखीराम बुरी तरह से दुखी हो गए. एक दिन उन्हें पैसे की ज़रूरत पड़ी तो वो अपने बेटे छोटूराम के साथ एक साहूकार के पास गए. साहूकार ने पैसे नहीं दिए और उल्टे सुखीराम की बेइज्जती कर दी. इसके बाद सुखीराम को उदास मन से घर लौट आए, लेकिन छोटूराम ने विरोध करने का मन बना लिया और यहीं से शुरू हुआ छोटूराम का क्रांतिकारी सफर. झज्जर में शुरुआती पढ़ाई के बाद छोटूराम दिल्ली के क्रिश्चियन मिशन स्कूल मे आ गए. यहां पर फीस ज्यादा थी और हॉस्टल में दिक्कतें थीं. इसके विरोध में छोटूराम ने हड़ताल शुरू कर दी, जिसके बाद स्कूल के बच्चे और स्टाफ उन्हें जनरल रॉबर्ट के नाम से पुकारने लगे.
पत्रकारिता के बाद वकालत और फिर बने नेता, जिन्हें अंग्रजों ने देश निकाला दे दिया
1905 में दिल्ली के सेंट स्टीफन से ग्रैजुएशन करने के बाद छोटूराम पत्रकार बन गए. बाद में उन्होंने वकालत की भी डिग्री ली और फिर 1912 में छोटूराम ने झज्जर में जाट सभा बनाई. 1915 में छोटूराम ने एक बार फिर से पत्रकारिता शुरू की. इस बार छोटूराम ने खुद का अखबार निकाला जिसका नाम रखा जाट गजट. ये अखबार अब भी निकलता है और इसे हरियाणा का सबसे पुराना अखबार माना जाता है. इस अखबार के जरिए छोटूराम ने अंग्रेजों की मुखालफत शुरू कर दी. इसकी वजह से अंग्रेजी सरकार ने छोटूराम को देश निकाले का फरमान दे दिया. हालांकि पंजाब सरकार ने अंग्रेजी सरकार से फैसला वापस लेने को कहा, क्योंकि अगर छोटूराम को देश निकाला दिया जाता तो पंजाब में आंदोलन हो जाता. बाद में अंग्रेजी सरकार ने फैसला वापस ले लिया.
गांधी से विरोध और छोड़ दी कांग्रेस

1914 में जब पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ, तो अंग्रजों को और सैनिकों की ज़रूरत थी. इसके लिए छोटूराम ने अंग्रेजी सेना में रोहतक के करीब 22,000 लोगों को भर्ती करवाया. छोटूराम 1916 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उन्होंने ही रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया था. लेकिन 1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो छोटूराम गांधी से नाराज हो गए और कांग्रेस से अलग हो गए. धीरे-धीरे करके वो पंजाब प्रांत के नेता बन गए और 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद विकास मंत्री बने. इसकी वजह से उन्हें दीनबंधु कहा जाने लगा. किसानों के लिए हमेशा खड़े रहने वाले, भाई-भतीजावाद से दूर और राव बहादुर के साथ ही सर की उपाधि से सम्मानित छोटूराम को बतौर राजस्व मंत्री जितनी भी तनख्वाह मिलती थी, उसका बड़ा हिस्सा वो रोहतक के स्कूल को दान कर दिया जाता था.
किसानों के लिए बनवाए कई कानून

छोटूराम ने किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए. उनके इन कामों को अब भी किसानों के लिए मील का पत्थर माना जा सकता है.
# कर्जा माफी ऐक्ट 1934 (8 अप्रैल 1935)
इसके तहत अगर कर्ज के पैसे का दोगुना पैसा दिया जा चुका हो तो कर्ज माफ हो जाता था. दुधारू पशुओं की नीलामी पर भी रोक लग गई थी.
# साहूकार पंजीकरण ऐक्ट – 1938 (2 सितंबर 1938)
इसके तहत कोई भी साहूकार बिना रजिस्ट्रेशन के किसी को भी कर्ज नहीं दे सकता था और न ही कोर्ट में केस कर सकता था.
# गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट 1938 (9 सितंबर 1938)
इस कानून के तहत 8 जून 1901 के बाद कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया गया.
# कृषि उत्पाद मंडी ऐक्ट 1938 (5 मई 1939)
छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा. आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई.
# व्यवसाय श्रमिक ऐक्ट 1940 (11 जून 1940)
इस कानून के तहत मज़दूरों को सप्ताह में 61 घंटे और एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता था. इसके अलावा साल में 14 छुट्टियां और 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराए जाने का भी नियम बना था.
मोर का शिकार करते थे अंग्रेज, मारने पर लगवा दिया प्रतिबंध

जब अंग्रेजों का शासन था, तो उस वक्त गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोर का शिकार करते थे. लोगों ने विरोध भी किया, लेकि कर्नल इलियस्टर नहीं माने. लोगों ने इसकी शिकायत छोटूराम से की और फिर छोटूराम ने अपने अखबार में इसके खिलाफ खूब लिखा. इतना लिखा कि कर्नल इलियस्टर ने माफी मांग ली और उसके बाद से ही भारत में मोरों की हत्या पर रोक लग गई.
छोटूराम पर खुश हो गए अंग्रेज और बना दिया भाखड़ा नांगल बांध

अंग्रेज छोटूराम पर खुश थे. वजह ये थी कि पहले विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान छोटूराम के कहने पर हजारों लोग अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे. जब दूसरे विश्वयुद्ध में छोटूराम के कहने पर सैनिक अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए तो अंग्रेजों ने छोटूराम से कहा कि वो हरियाणा के लोगों के लिए सतलुज नदी पर बांध बनवाएंगे. लेकिन इसमें एक अड़चन थी. अड़चन ये थी कि सतलुज के पानी पर बिलासपुर के राजा का अधिकार था. छोटूराम ने राजा से बात की और फिर 1944 में इस परियोजना को मंजूरी मिल गई. लेकिन 1946 में जब तक ये परियोजना शुरू हो पाती, 9 जनवरी 1945 को छोटूराम का देहांत हो गया.