आज आपको बताएंगे एक कसीनो की कहानी. एक आलीशान जुआघर, जो एक बेहद कुख़्यात इंटरनैशनल क्रिमिनल नेटवर्क का हेडक्वॉर्टर है. यहां ड्रग्स के कारोबार से लेकर इंसानों की ख़रीद-फ़रोख़्त और बाघ जैसे संरक्षित जीवों के मांस परोसने तक का काम होता है. इस कसीनो का सरगना इन दिनों एक इंटरनैशनल बंदरगाह बनाने में जुटा है. एक बार ये पोर्ट तैयार हो गया, तो प्रतिबंधित सामानों की तस्करी के लिए उसके पास अपना नेटवर्क होगा. ये ऐसा ही है मानो एक आतंकवादी संगठन के पास अपनी गतिविधियों के लिए ख़ुद का एक बंदरगाह हो.
ये पूरा मामला क्या है?
दक्षिणपूर्व एशिया में एक देश है- लाओस. आधिकारिक नाम- लाओ पीपल्स डेमोक्रैटिक रिपब्लिक. इसके उत्तरपश्चिम में हैं चीन और म्यांमार. पूरब में है वियतनाम. दक्षिणपूर्व में कंबोडिया और पश्चिम में है थाइलैंड. ये एक लैंडलॉक्ड देश है. माने, इसके पास समंदर नहीं है. देश का ज़्यादातर हिस्सा पहाड़ी है. घने जंगल हैं, और है एक नदी. इसका नाम है, मेकॉन्ग.

ये नदी केवल लाओस में नहीं बहती. करीब सवा चार हज़ार किलोमीटर लंबी इस मेकॉन्ग नदी की शुरुआत होती है चीन में. वहां से तिब्बत के रास्ते बहते हुए ये पहुंचती है म्यांमार, लाओस, थाइलैंड, कंबोडिया और वियतनाम. यानी, छह देशों की साझा नदी. अब लाओस के पास अपना कोई सी रूट तो है नहीं. ऐसे में कारोबार और आवाजाही के लिहाज से मेकॉन्ग उसके लिए बहुत अहम है. न केवल आम लोगों के लिए, बल्कि अपराधियों के लिए भी. और मेकॉन्ग पर आधारित इस क्राइम नेटवर्क का सबसे अहम इलाका है- गोल्डन ट्रायंगल.

क्या है ये गोल्डन ट्रायंगल?
ये है एक त्रिकोणीय इलाका. वो जगह, जहां लाओस, थाइलैंड और म्यांमार की सीमाएं मिलती हैं. ठीक उस जगह, जहां मेकॉन्ग और उसकी सहायक नदी रुआक का संगम होता है. इसी इलाके को कहते हैं गोल्डन ट्रायंगल. ये दुनिया के सबसे बड़े ड्रग उत्पादक इलाकों में से एक है. पता है, इस इलाके का नामकरण किसने किया था? अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी CIA ने. ये कहानी जुड़ी है, 1959 से 1975 तक लाओस सिविल वॉर से. इस गृह युद्ध में एक तरफ था कम्युनिस्ट संगठन पाथेट लाओ. इनकी लड़ाई थी लाओ की राजशाही हुकूमत से. पाथेट लाओ को सपोर्ट कर रहा था चीन. वहीं, राजशाही का मददगार था CIA.
CIA ने न केवल सरकारी सेना को ट्रेनिंग और हथियार मुहैया कराया, बल्कि उनकी फंडिंग के लिए एक बैकडोर रास्ता भी तैयार किया. ये रास्ता जुड़ा था, ड्रग्स के कारोबार से. ये जो गोल्डन ट्रायंगल वाला इलाका है, वहां एक कबीला रहता था. नाम था, मियो. ये लोग अफ़ीम उगाने में एक्सपर्ट थे. इसी अफ़ीम से बनती थी हेरोइन, जो इंटरनैशनल ड्रग्स मार्केट में मोटा पैसा दिलाती थी.
CIA के पुराने रेकॉर्ड्स ने खोला कच्चा-चिट्ठा
CIA इस मियो कबीले के सहारे लाओस के जंगलों और पहाड़ों में बड़े स्तर पर अफ़ीम उगवाता. फिर लाओस आर्मी की मदद से अफ़ीम की पैदावार को रिफ़ाइनरीज़ ले जाकर उनसे ड्रग्स तैयार किया जाता था. तैयार ड्रग्स को लाओस एयरफोर्स के विमानों की मदद से वियतनाम और बाकी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंचाया जाता था. इतना ही नहीं, बल्कि CIA की अपनी एयरलाइन ‘एयर अमेरिका’ भी सीक्रेटली इस ड्रग्स को लाओस से बाहर ले जाने में मदद करती थी. ये बातें हवा-हवाई नहीं हैं. ख़ुद CIA के पुराने रेकॉर्ड्स, सार्वजनिक की गईं उसकी पुरानी गोपनीय फाइल्स उसके किए का कच्चा-चिट्ठा खोलती हैं.
ख़ैर, तो ड्रग्स का बिज़नस, इसकी स्मगलिंग करवाकर. लाओस के ऊपर करीब छह लाख बम गिराकर भी CIA कम्युनिस्ट फोर्स को पावर में आने से रोक नहीं सका. 1975 में छह सदी पुरानी लाओस की राजशाही ख़त्म हुई और पाथेट लाओ सत्ता में आ गया. सिविल वॉर का दौर ख़त्म हुआ. CIA भी लाओस से निकल गया. मगर पीछे रह गया उसके द्वारा विकसित किया गया ड्रग्स का कारोबार.
ये दशकों पुरानी कहानी हम आज क्यों सुना रहे हैं आपको?
इसलिए सुना रहे हैं कि लाओस के उसी गोल्डन ट्रायंगल इलाके से एक कुख़्यात ड्रग किंगपिन की ख़बर आई है. इस आदमी का नाम है- झाओ वेई.
68 बरस का झाओ उत्तरी चीन का रहने वाला है. नौ भाई-बहनों में पांचवां नंबर. पांच साल का था जब पिता मर गए. गरीबी में दिन बीते. थोड़ी-बहुत पढ़ाई के बाद स्कूल छूट गया. फिर झाओ ने ख़ुद से ही पारंपरिक चीनी चिकित्सा के फॉर्म्युले सीखे और छोटी-मोटी दवाइयां बताकर परिवार चलाने लगा. ज़िंदगी ऐसे ही चल रही थी कि एक दफ़ा एक दोस्त ने झाओ को अपने लकड़ी के कारोबार में साथ मिलकर काम करने का ऑफ़र दिया. फिर यहां से भी उसकी फील्ड चेंज हुई और वो पहुंच गया जुआ इंडस्ट्री में. उसने मकाओ और म्यांमार के कुछ कसीनोज़ में काम करके गैम्बलिंग के दांव-पेच सीखे. फिर क़िस्मत ऐसी चमकी कि हॉन्ग कॉन्ग जाकर ख़ुद की कंपनी खोल ली. इस कंपनी का नाम रखा- किंग्स रोमन्स ग्रुप.
ये कंपनी रजिस्टर्ड भले हॉन्ग कॉन्ग में हो, मगर ये काम करती है लाओस में. वहां गोल्डन ट्रायंगल इलाके के नज़दीक करीब 100 स्क्वैयर किलोमीटर का एक विशेष आर्थिक ज़ोन है- GTSEZ. पूरा नाम, गोल्डन ट्रायंगल स्पेशल इकॉनमिक ज़ोन. इस जगह पर पहले घना जंगल हुआ करता था. जंगल काटकर 2007 में यहां GTSEZ बनाया गया.

किसने बनाया GTSEZ?
इसे बनाया झाओ ने. इसके लिए उसने लाओस गवर्नमेंट के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट किया और सरकार ने 99 साल के लीज़ पर उसे ये ज़मीन दे दी.
इस GTSEZ का चेयरमैन है झाओ. यहां का पूरा सिस्टम वही चलाता है. सरकार इस विशाल कॉम्प्लेक्स के कामकाज में कोई दखल नहीं देती. क्या करना है, कैसे करना है, ये सारे फैसले झाओ ही लेता है. ये जगह समझ लीजिए कि उसका अपना देश है. इसके 80 पर्सेंट स्टेक का मालिक है वो. बचा हुई 20 पर्सेंट साझेदारी सरकार की है. उसके कई जुआघर और होटेल चलते हैं यहां.
इस GTSEZ के भीतर झाओ के कई कसीनोज़ और होटेल्स हैं. इनमें सबसे बड़ा है, एक बहुमंजिला सुनहरे रंग का कसीनो. इसी किंग्स रोमन्स कसीनो को झाओ के अंतरराष्ट्रीय क्राइम नेटवर्क का मुख्यालय माना जाता है. इल्ज़ाम है कि यहां ड्रग्स के कारोबार से लेकर इंसानों तक की ख़रीद-फ़रोख़्त होती है. इसके अलावा यहां संरक्षित प्रजाति के जानवरों का भी कारोबार होता है. बाघ के मीट, उसकी हड्डी से बनी वाइन के अलावा यहां आपको बाघ की खाल और हाथीदांत भी मिल जाएगा. एनवॉयरनमेंट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 और 2015 में झाओ के कसीनो के पास 26 बाघ पिंजड़े में बंद देखे गए थे. इन सबको बूचड़खाने भेजा जाना था.

झाओ पर किसने लगाए ये इल्ज़ाम?
ये आरोप लगाए हैं अमेरिका ने. अमेरिका के मुताबिक, झाओ इस दुनिया के सबसे बड़े नारकोटिक्स ट्रैफिकर्स में से एक है. US ट्रेज़री डिपार्टमेंट के मुताबिक, झाओ एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी संगठन चलाता है. उसका ये गिरोह ड्रग्स की स्मगलिंग से लेकर बच्चों से वेश्यावृत्ति, उन्हें खरीदना-बेचना और बाघ, हाथी और गैंडे जैसे वन्यजीवों की ट्रैफिकिंग में शामिल है. 2018 में अमेरिकी सरकार ने इन्हीं आरोपों के तहत झाओ और उसकी कंपनी, दोनों पर सेंक्शन्स लगाए थे. अमेरिका ने उसके अपने वित्तीय सिस्टम के भीतर किसी भी तरह से दाखिल होने पर भी बैन लगा दिया था. अमेरिकी बैंकों में रखा उसका पैसा भी फ्रीज़ कर दिया गया था.
अपने ऊपर लगे इन आरोपों से झाओ इनकार करता है. उसका कहना है कि वो कोई ग़ैरक़ानूनी काम नहीं करता. झाओ के मुताबिक, उसका मकसद बस इतना सा है कि GTSEZ एक बड़ा पर्यटन केंद्र बने. विदेशी सैलानी यहां आएं. और उनके सहारे लाओस में पैसा आए. स्थानीय लोगों को रोज़गार मिले. झाओ अपना जो मकसद बताता है, वैसी ही कुछ मंशा लाओस गवर्नमेंट की भी थी. लाओस दुनिया के सबसे गरीब देशों में आता है. गवर्नमेंट को लगा, एक आर्थिक ज़ोन बनाने से शायद देश में इनकम आएगी.

दिक्कत पैसा कमाने की इस मंशा में नहीं है. दिक्कत है, पैसा कमाने के ज़रिये से.
आरोप है कि लाओस गवर्नमेंट झाओ के ग़ैरक़ानूनी कामकाज के बारे में सब जानती है. फिर भी उन्होंने वित्तीय फ़ायदों को तवज्जो देते हुए झाओ को गोल्डन ट्रायंगल के नज़दीक इतना बड़ा इलाका मुहैया कराया. उसे उसके अमानवीय कारोबार के लिए खुली छूट दे दी.
और अब इसी मेकॉन्ग रिवर रूट से जुड़ी एक और परेशान करने वाली ख़बर आई है. लाओस में एक शहर है- बान मोम. यहीं पर मेकॉन्ग नदी में एक पोर्ट बन रहा है. ये जगह GTSEZ के नज़दीक है. ख़बरों के मुताबिक, इस पोर्ट की फंडिंग कर रहा है झाओ. इससे जुड़ी ख़बरें सबसे पहले 3 अक्टूबर को सामने आईं. इस रोज़ लाओस के कुछ स्थानीय अख़बारों ने एक ख़बर चलाई. इसमें बताया गया कि बान मोम पोर्ट का काम चालू होने के मौके पर एक प्रोग्राम हुआ.
इसमें लाओस के डेप्युटी प्राइम मिनिस्टर और बोकेओ प्रांत के गवर्नर भी शामिल थे. इस प्रोग्राम में झाओ वेई भी मौजूद था. ख़बरों में बताया गया कि झाओ ही इस पोर्ट का मुख्य निवेशक है. पहले लाओस सरकार इस पोर्ट निर्माण के लिए विदेशी निवेश हासिल करने की कोशिश कर रही थी. वियतनाम और थाइलैंड के निवेशक आए भी. उन्होंने एक जॉइंट वेंचर भी बनाया. मगर फिर वो अपने हिस्से के शेयर ‘ओसिआनो ट्रेडिंग सोल’ नाम की एक कंपनी को बेचकर चले गए. इस तरह ये ओसिआनो ट्रेडिंग सोल कंपनी बन गई पोर्ट की मुख्य निवेशक.

इस कंपनी से झाओ का क्या रिश्ता है?
देखिए, ओसिआनो ट्रेडिंग सोल कंपनी के प्रेज़िडेंट का नाम है ख़ोनेख़ाम इंथावोंग. ये कंपनी ख़ुद को आठ साल पुराना बताती है. मगर CNN द्वारा की गई हालिया इन्वेस्टिगेशन से पता चला है कि दो साल पहले तक किसी ने इस कंपनी का नाम तक नहीं सुना था. ओसिआनो ट्रेडिंग और उसके प्रेज़िडेंट इंथावोंग की 2019 से पहले कोई फाइनैंशल ऐक्टिविटी हो, इसका भी सबूत नहीं मिलता. हां, लाओस की बिज़नस रजिस्ट्रीज़ की छानबीन करने पर एक रेकॉर्ड ज़रूरत मिलता है. इसके मुताबिक, ओसिआनो ट्रेडिंग की रजिस्ट्री हुई जुलाई 2020 में. जबकि कंपनी के प्रेज़िडेंट ने मीडिया को दिए अपने इंटरव्यूज़ में दावा किया कि उनकी कंपनी 2012 में बनी थी.
अब यहां एक और बड़ी पहेली है. इंवाथोंग ने 2018 में एक कंपनी रजिस्टर करवाई थी. बिल्कुल मिलते-जुलते नाम से. उसका नाम था- ओसिआनो लैंड ऐंड इन्वेस्टमेंट सोल कंपनी. इसकी भी किसी सक्रियता का सबूत नहीं मिलता. यहां तक कि इन दोनों में से किसी कंपनी का कोई फोन नंबर, ईमेल आईडी, वेबसाइट या सोशल मीडिया अकाउंट भी नहीं है. इंटरनेट पर कोई मौजूदगी है ही नहीं इन कंपनियों की. यहां तक कि इनका कोई पता भी उपलब्ध नहीं है.

अब सोचिए. जिस कंपनी ने पोर्ट निर्माण के लिए 367 करोड़ रुपये का निवेश किया, उसका अपना कोई वेब प्रेज़ेंस ही नहीं है. कंप्लीट डब्बा गोल. पूरा मामला संदिग्ध. जानकारों के मुताबिक, ये कंपनी असल में झाओ का कवर है. अपने ऊपर लगे आर्थिक प्रतिबंधों और इल्ज़ामों के कारण वो सीधे अपने नाम से पोर्ट में निवेश नहीं कर रहा है. बल्कि ओसिआनो के बहाने अपना पैसा लगा रहा है. लाओस की सरकार भी इस मामले में सीधा कोई बयान नहीं दे रही है.
अब सवाल है कि अगर झाओ ये पोर्ट बना रहा है, तो उसकी मंशा क्या है?
संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है- UNDOC. पूरा नाम, यूनाइटेड नेशन्स ऑफ़िस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम. इसने पूर्वी एशिया और प्रशांत इलाके में एक ख़ास तरह के ड्रग के कारोबार का स्केल बताया. इस ड्रग का नाम है- मेथामफेटमेन. शॉर्ट में इसको कहते हैं मेथ. करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपए का कारोबार है इसका. और इसमें से ज़्यादातर आता है गोल्डन ट्रायंगल इलाके से. जानकारों का मानना है कि इस पोर्ट के बन जाने पर झाओ को स्मगलिंग में और सहूलियत मिलेगी. वो और आसानी से ड्रग्स के लिए कच्चा माल हासिल कर सकेगा.

झाओ पर वैसे भी सिंथेटिक ड्रग्स बनाने का इल्ज़ाम है. इस तरह के इंडस्ट्री स्तर वाले ड्रग्स मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को रसायनों की अबाध सप्लाई चाहिए होती है. ख़बरों के मुताबिक, झाओ फिलहाल म्यांमार के कुछ चुनिंदा इलाकों के रास्ते केमिकल्स की खेप मंगवाता है. ये इलाके काफी अशांत हैं. वहां के बाग़ी गुटों की म्यांमार आर्मी के साथ ठनी रहती है.
2020 में ही म्यांमार पुलिस ने इन इलाकों में एक बड़ी छापेमारी की थी. इसमें करीब दो करोड़ मेथ टेबलेट्स, 500 किलो क्रिस्टल मेथ और डेढ़ लाख टन से ज़्यादा ड्रग्स बनाने वाला केमिकल पकड़ा था उन्होंने. इस तरह के ऑपरेशन्स झाओ के ड्रग्स एंपायर के लिए मुफ़ीद नहीं हैं. माना जा रहा है कि इसीलिए वो एक सुरक्षित सप्लाई रूट बनाना चाहता है. अगर मेकॉन्ग नदी पर उसने एक पोर्ट बना लिया, तो ट्रैफिकिंग का उसका नेटवर्क ज़्यादा सुरक्षित और ऑर्गनाइज़्ड हो जाएगा.
मेकॉन्ग नदी पर पहले से ही पोर्ट बने हुए हैं. ऐसे में आम वित्तीय गतिविधियों के लिए इतने नज़दीक एक और पोर्ट बनाना व्यावहारिक नहीं लगता. तब तक, जब तक कि इसका मकसद ख़ास ट्रैफिकिंग से न जुड़ा हो. सोचिए, अगर झाओ के ऊपर लग रहे ट्रैफिकिंग से जुड़े इल्ज़ाम सही हैं, तो ये एक पोर्ट कितना भीषण साबित हो सकता है. और सबसे डरावनी बात ये है कि इस पूरे काम में कहीं-न-कहीं लाओस की सरकार भी मददगार है.
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