द्वितीय विश्व युद्ध. 6 वर्षों तक चले इस युद्ध को कई लड़ाइयों का कोलाज भी कहा जा सकता है. द्वितीय विश्व युद्ध को सिर्फ़ लड़ाइयों ने ही अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंचाया. देशों के बीच की संधियों, सामंजस्य, रणनीतियों और सम्मेलनों ने भी इसके अंतिम परिणाम पर बहुत बड़ा असर डाला. ऐसे ही एक सम्मलेन, ‘कैसाब्लांका सम्मेलन’ की बात आज की तारीख़ में, जो 14 जनवरी, 1943 से शुरू हुआ था.
कैसाब्लांका. मोरक्को का सबसे बड़ा शहर. विश्व युद्ध जब अपने पीक पर था तब एलाइड देशों के प्रतिनिधियों ने यहां पर मिलने का प्लान बनाया. सम्मेलन का एक दूसरा नाम अनफ़ा सम्मेलन भी था. क्यूंकि ये कैसाब्लांका के अनफ़ा रिसॉर्ट में आयोजित किया गया था. बैठक में युद्ध के अगले चरणों के योजनाएं और रणनीतियां बनाई गईं. पिछली योजनाओं की और मित्र देशों की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की गई.

अब तक USA के किसी भी राष्ट्रपति ने युद्ध के समय में USA नहीं छोड़ा था. ना ही कोई राष्ट्रपति युद्ध के समय अफ़्रीका गया. बल्कि ऐसे समय में किसी राष्ट्रपति ने हवाई यात्रा भी न की थी. लेकिन कैसाब्लांका कॉन्फ़्रेंस के लिए फ़्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ये तीनों काम ही एक साथ किए.
सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट के अलावा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंसटन चर्चिल और ‘फ़्री फ़्रांस’ के लीडर जनरल चार्ल्स डी गॉल सबसे प्रमुख थे. ‘फ़्री फ़्रांस’, फ़्रांस की निर्वासित-सरकार थी. बाद में चार्ल्स डी गॉल, फ़्रांस के प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति भी बने. इंट्रेस्टिंग बात ये थी कि तब मोरक्को में फ्रेंच प्रोटेक्टोरेट था लेकिन फ़्रांस ख़ुद जर्मन के क़ब्ज़े में था. शायद इसलिए ही कैसाब्लांका को मीटिंग स्थल के रूप में चुना गया था. फ़्रांस की उस वक्त की स्थिति पर राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने कैसाब्लांका सम्मेलन के दौरान कहा था कि फ्रांस को मुक्त कराने के लिए फ्रांसीसी सैनिक, नाविक और एयरमैन मित्र देशों की सेनाओं के साथ लड़ेंगे.

एलाइड नेशन के तीन उद्देश्य
एलाइड वाले ख़ेमे के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक सोवियत संघ के जर्नल सेकेट्री जोसफ़ स्टालिन ने इस कॉन्फ़्रेंस में भाग लेने में अपनी असमर्थता जताई थी. क्यूंकि इस दौरान USSR की रेड आर्मी की बुरी हालत हुई पड़ी थी. वे मॉस्को, स्टेलिनग्राद और लेनिनग्राद की रक्षा करने में लगे थे. लगभग लाखों जर्मन सैनिक और हजारों टैंक रूस के भीतर गहरे तक घुस चुके थे. हालांकि युद्ध USSR के पक्ष में जाना शुरू हो चुका था लेकिन तब तक करोड़ों रूसी मारे जा चुके थे. स्टालिन के न होने से ये सम्मलेन कम और दो राष्ट्र-प्रमुखों की उच्च स्तरीय बैठक बनकर रह गई थी. रूजवेल्ट और चर्चिल के बीच की. और ये बैठक रूजवेल्ट और चर्चिल की युद्ध के दौरान हुई अब तक की चौथी बैठक थी.

रूजवेल्ट ने सम्मेलन के दौरान कहा भी कि उत्तरी अफ्रीका में मित्र देशों की जीत ने चर्चिल के साथ उनकी चौथी बैठक को आवश्यक बना दिया था. राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने इसे ‘एक ऐतिहासिक क्षण’ माना और कहा कि एलाइड नेशन के इस समय तीन उद्देश्य हैं-
#1
1942 के समाप्त होने तक मित्र देशों ने युद्ध में जो लीड ले ली है उसे बनाए रखना और इसका विस्तार करना.
#2
दूसरा, रूस और रूसी आक्रामण को हर संभव सहायता देना.
#3
तीसरा, चीन-जापान युद्ध जो अब अपने छठें वर्ष में पहुंच चुका है उसमें चीन की सहायता करके, जापान को हमेशा-हमेशा के लिए चीन से बेदख़ल करना.

चर्चिल ने खुद को राष्ट्रपति रूजवेल्ट का एक उत्साही लेफ्टिनेंट बताते हुए घोषणा की कि हम दोनों एक साथ साझीदार और मित्र के रूप में काम करते हैं.
दोनों नेता युद्ध की शुरुआत के बाद से हुई इस चौथी बैठक के सफल समापन पर बेहद संतुष्ट थे. रूजवेल्ट और चर्चिल ने एलाइड नेशन ने इस बात पर सहमति जताई कि एक्सिस देशों से ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ करवाया जाएगा. और ये ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ वाली बात ही इस सम्मलेन का सबसे बड़ा टेक-अवे था. इसी चीज़ ने इस मीटिंग को इतना महत्वपूर्ण बनाया कि हम आज 78 सालों बाद भी इसकी बात कर रहे हैं.
बिना शर्त आत्मसमर्पण
रूजवेल्ट आर्काइव के अनुसार हालांकि कैसाब्लांका सम्मेलन के दौरान योजनाओं और रणनीतियों को लेकर सैकड़ों पन्ने भरे गए थे, लेकिन दो शब्द संभवतः सबसे महत्वपूर्ण तरीक़े से उभर कर सामने आए. दो शब्द जिन्होंने राष्ट्रपति रूजवेल्ट की इस प्रतिज्ञा को परिभाषित किया कि ‘अमेरिकी लोग अपने न्यायप्रियता के माध्यम से विजयी होंगे.’ दो शब्द जो दुनिया की सबसे महान सेना के लिए असंभव सा लगने वाला लक्ष्य निर्धारित करेंगे. बिना शर्त आत्मसमर्पण.
कैसाब्लांका की प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान ही रूजवेल्ट ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इटली, जर्मनी और जापान के लिए ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ की बात कही थी. कई लोग है मानते हैं कि रूजवेल्ट के ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ की बात से चर्चिल चौंक गए थे. लेकिन ऐसा नहीं था. चर्चिल ने ख़ुद इन शब्दों का प्रयोग अपने वॉर-केबिनेट को किए गए एक टेलेक्स में किया था और 18 जनवरी को जारी प्रेस विज्ञप्ति में इसके उपयोग को मंजूरी दी थी.

रूजवेल्ट की सफ़ाई
दरअसल इटली को जर्मनी और जापान के साथ जोड़े जाने को लेकर वे चौंक गए थे. क्योंकि चर्चिल चाहते थे कि इटली के साथ संधि के रास्ते खुले रखने चाहिए. रूजवेल्ट ने जिस तरह से ये कहा, इससे भी चर्चिल का चौंकना बनता था. रूजवेल्ट ने कहा-
जर्मन और जापान जैसी युद्ध शक्तियों का पूरी तरह ख़ात्मा. यही भविष्य में विश्व शांति की गारंटी है.
बाद में ये भांपते हुए कि उन्होंने ये क्या कह डाला, अपने शब्दों को सम्भालते हुए कहा-
हालांकि, इसका मतलब जर्मनी, जापान, इटली और वहां के लोगों का विनाश नहीं है.
इस दौरान किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया कि रूजवेल्ट का ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ से क्या आशय है. काफ़ी दिनों बाद 12 फ़रवरी, 1943 को रूजवेल्ट ने एक रेडियो सम्बोधन के ज़रिए साफ़ किया-
बिना शर्त आत्मसमर्पण करने वाले एक्सिस देशों के आम लोगों को किसी प्रकार नुक़सान नहीं होगा. लेकिन हम इन देश के गुनहगारों और बर्बर नेताओं को उनके किए का फल देना चाहते हैं, उन्हें दण्डित करना चाहते हैं.
‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ का समर्थन करने वालों का कहना था कि इससे, प्रथम विश्व युद्ध के बाद वाली स्थिति पैदा नहीं होगी. मतलब प्रथम विश्व युद्ध में हारे जर्मनी ने इसे अपनी हार नहीं माना था. उसके अनुसार यहूदियों, कुछ नाकारा राजनेताओं ने पीठ के पीछे छुरा घोंपा था. इसी सोच के चलते हिटलर का जन्म हुआ और द्वितीय विश्व युद्ध हुआ. तो अगर अबकी ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ होता तो ये हार ‘हार’ ही होती ‘धोखा’ नहीं.
गौरतलब है कि 01 सितंबर, 1939 से शुरू हुआ द्वितीय विश्व आधिकारिक रूप से समाप्त हुआ 02 सितंबर, 1945 को. जापान के ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ करने पर.
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