डॉ. कफील खान. 11 अगस्त, 2017 को नेशनल मीडिया में पहली बार तब चर्चा में आए थे, जब अखबारों के पहले पन्ने पर उनकी एक तस्वीर छपी थी. हाथ में ऑक्सीजन सिलिंडर लिए हुए कफील खान, बच्चों की जान बचाने की कोशिश करते कफील खान. ये सब उस बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में हुआ, जहां 9-10 अगस्त, 2017 को ऑक्सीजन की कमी की वजह से 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी. अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिंडर खत्म होने की वजह से डॉक्टर कफील बाहर के अस्पतालों से ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर आए और फिर वो मीडिया के हीरो हो गए.

लेकिन जब इस मामले की जांच शुरू हुई तो सबसे पहली जिम्मेदारी डॉक्टर कफील खान की ही तय की गई. 22 अगस्त को उन्हें भ्रष्टाचार और लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया और विभागीय जांच शुरू कर दी गई. प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने के बाद 2 सितंबर, 2017 को डॉक्टर कफील खान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. 25 अप्रैल, 2018 को करीब 9 महीने के बाद डॉक्टर कफील को जमानत मिल गई. इसके बाद कफील पहुंचे हाई कोर्ट. मार्च, 2019 में हाई कोर्ट ने सरकार से कहा कि 90 दिन के अंदर डॉक्टर कफील के खिलाफ विभागीय जांच पूरी कर ली जाए. और फिर विभागीय जांच पूरी हो गई. मामले की जांच कर रहे स्टांप एवं निबंधन विभाग के प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार ने 18 अप्रैल को ही शासन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. लेकिन किसी को इस बारे में पता नहीं था. जब प्राइवेट प्रैक्टिस के मामले में पूछताछ करने के लिए डॉक्टर कफील को चौथी बार जांच कमिटी ने बुलाया तो डॉक्टर कफील को रिपोर्ट की जानकारी हुई. इसके बाद उन्होंने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी. अपनी रिपोर्ट में हिमांशु कुमार ने कुछ मामलों में डॉक्टर कफील को निर्दोष करार दिया है, वहीं कुछ और मामलों की आगे की जांच के लिए कहा गया है.
इन मामलों में मिल गई क्लीन चिट
# डॉक्टर कफील इन्सेफेलाइटिस वॉर्ड के नोडल ऑफिसर नहीं थे, इसलिए ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई बच्चों की मौत के मामले में उनकी लापरवाही नहीं थी.
# डॉक्टर कफील न तो ऑक्सीजन सिलिंडर सप्लाई की टेंडरिंग प्रक्रिया में शामिल थे और न ही उसके रखरखाव और पैसे के भुगतान के लिए जिम्मेदार थे.
# 10 अगस्त से 12 अगस्त के बीच करीब 54 घंटों तक बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई की कमी थी.

इन मामलों में चल रही है जांच
# बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रवक्ता और सरकारी डॉक्टर होने के बाद भी डॉ. कफील नियमों और सेवा शर्तों को न मानते हुए मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर रुस्तमपुर में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे.
# जांच अधिकारी के मुताबिक मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के रजिस्ट्रेशन पेपर पर 1 नवंबर, 2014 से 30 अप्रैल, 2015 तक कफील का नाम डॉक्टर के तौर पर दर्ज है, जबकि डॉक्टर कफील 23 मई, 2013 से ही सीनियर रेजिडेंट के तौर पर एनआरएचएम के तहत सरकारी डॉक्टर बन गए थे. 8 अगस्त, 2016 को वो बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रवक्ता और डॉक्टर के रूप में तैनात हुए थे. लेकिन 24 अप्रैल, 2017 को गोरखपुर के सीएमओ को लेटर लिखकर उन्होंने कहा था कि अब मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल से उनका कोई संबंध नहीं है.

#इसके अलावा कफील पर ये भी आरोप हैं कि उन्होंने सस्पेंड होने के बाद भी 22 सितंबर, 2018 को बहराइच के जिला अस्पताल के बाल रोग विभाग में घुसकर मरीजों का इलाज करने की कोशिश की थी, जिससे वहां अफरा-तफरी मच गई.
#कफील पर आरोप हैं कि निलंबन के दौरान उन्हें महानिदेशक चिकित्सा एवं शिक्षा कार्यालय पर रिपोर्ट करनी थी, लेकिन ऐसा न करके उन्होंने राजनीतिक टिप्पणियां कीं.
अब डॉक्टर कफील को लेकर एक बार फिर से सियासत हो रही है. डॉक्टर कफील को जिन आरोपों में सस्पेंड किया गया था और जिनके लिए उन्हें जेल भेजा गया था, उन आरोपों से तो डॉक्टर कफील को सरकार ने ही बरी कर दिया. जब डॉक्टर कफील ने अपने खुद के बेगुनाह साबित होने की बात मीडिया में कही तो सरकार की ओर से फिर से बयान आ गया कि जांच चल रही है. प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे ने कहा कि अब भी डॉक्टर कफील के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है.
गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज हादसे में आरोपी डॉक्टर कफ़ील खान को क्लीन चिट