मई के महीने में पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात की. फिर लद्दाख में सीमा पर चीन से तनाव हो गया. 15 जून को हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए. चीनी सेना को भी नुकसान होने की खबरें हैं. जब से सीमा पर तनाव की खबरें सामने आई हैं, तब से चीन के सामान के बहिष्कार की बात हो रही है. चीनी प्रॉडक्ट नहीं खरीदने की अपील की जा रही है. चीनी कंपनियों के ही बनाए स्मार्टफोन और ऐप से चीनी सामान के बहिष्कार की बात हो रही है.
इस खबर में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि ऐसे समय में जब ‘बॉयकॉट चाइनीज प्रॉडक्ट्स’ के ट्रेंड्स चल रहे हैं, मोबाइल फोन से कैम्पेन लॉन्च किए जा रहे हैं, भारतीय बाजार में चीन के स्मार्टफोन की हिस्सेदारी कितनी है. ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनने वाले कल-पुर्जे कहां से आते हैं. एपल जैसे ब्रांड के फोन की मैन्युफैक्चरिंग कहां होती है? स्मार्टफोन मार्केट में भारतीय कंपनियां कहां खड़ी हैं?
क्या कहते हैं आंकड़े
# रिसर्च फर्म काउंटरपॉइंट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच भारतीय स्मार्टफोन मार्केट में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 70% से भी ज्यादा है. कहने का मतलब है कि 100 में 70 लोगों के पास चीन के स्मार्टफोन हैं. देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में से चार चीन के हैं. सबसे ज्यादा 30% मार्केट शेयर शाओमी का है. दूसरे नंबर पर 17% मार्केट शेयर के साथ वीवो है. टॉप-5 में सिर्फ सैमसंग है, जो कि दक्षिण कोरियाई कंपनी है. सैमसंग का मार्केट शेयर भारत में 16% है. भारत का स्मार्टफोन मार्केट करीब दो लाख करोड़ रुपए का है. इसमें से ज्यादातर शेयर चीनी कंपनियों का है.

# साल 2019 में भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया में दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन बाजार का दर्जा हासिल किया था. काउंटरपॉइंट रिसर्च के मुताबिक, भारत के बाजार में 15.8 करोड़ स्मार्टफोन में से करीब 72 फीसदी या 11.4 करोड़ स्मार्टफोन चीन के बने हैं. साल 2019 में शाओमी ने भारत में सबसे ज्यादा 4.36 करोड़ स्मार्टफोन बेचे, जो कि किसी मोबाइल ब्रांड का एक साल में सबसे ज्यादा बिक्री का रिकॉर्ड है. पिछले साल शाओमी की बिक्री 9.2 फीसदी और बाजार में हिस्सेदारी 28.6 फीसदी बढ़ी है.

साल 2014 के बाद सब बदल गया!
ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारतीय स्मार्टफोन बाजार में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी कितनी है. साल 2014 में चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों ने भारत के बाजार में दस्तक दी थी. कीमत कम होने और ज्यादा फीचर की वजह से लोगों ने इन स्मार्टफोन को हाथों-हाथ लिया. फिर Micromax, Lava, Intex, Karbonn जैसी भारतीय स्मार्टफोन कंपनियों का बाजार खत्म होता चला गया. इनमें से कई कंपनियां बंद होने की कगार पर चली गईं. 2014 से पहले Micromax का भारतीय बाजार में बेहतर मार्केट शेयर था. लेकिन चीन की कंपिनयों के आते ही मार्केट खत्म होने लगा. दूसरी वजह लगातार टेक्नोलॉजी का इंप्रूव होना भी था. अब भी Micromax स्मार्टफोन बेच रही है, लेकिन ना के बराबर उसकी हिस्सेदारी है.
ज्यादातर फोन असेंबल होते हैं
साल 2015 में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम शुरू हुआ. मकसद था देश में ही प्रॉडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग. चीन की स्मार्टफोन कंपनियों ने अपने प्लांट इंडिया में लगाए. लेकिन मैन्चुफैक्चरिंग की जगह असेंबल पर जोर दिया. मतलब, भारत में फोन बनाने की बजाय उसके अलग-अलग पार्ट को अन्य देशों से मंगाकर इंडिया में असेंबल करके फोन तैयार किया.
वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने 41.5 मिलियन यानी 4.15 करोड़ फोन निर्यात किए. वहीं 5.6 मिलियन यानी 56 लाख फोन आयात किए. भारत ने ज्यादा मोबाइल फोन का निर्यात किया. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम इन फोन का पूरी तरह से उत्पादन कर रहे हैं. इंडियन सेलुलर एंड इलेक्टॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक, देश में मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां 2014 में सिर्फ दो थीं, जो 2018 में बढ़कर 268 हो गई हैं. लेकिन यहां ज्यादातर सेलफोन असेंबल होते हैं, न कि मैन्युफैक्चर.
Under the leadership of PM @narendramodi, India has emerged as the 2nd largest mobile phone manufacturer in the world. In the last 5 years, more than 200 Mobile Phone Manufacturing units have been set up. #ThinkElectronicsThinkIndia pic.twitter.com/fGGeCRpj87
— Ravi Shankar Prasad (@rsprasad) June 1, 2020
साल 2017 में सरकार ने एक विनिर्माण कार्यक्रम शुरू किया था. इसके तहत मोबाइल पार्ट्स के लोकल सोर्सिंग को प्रोत्साहित किया जाता है. इसके तहत चार्जर, माइक्रोफोन, फोन कैमरा आदि उत्पादों का आयात करने पर कस्टम ड्यूटी देनी होगी, लेकिन इनके निर्माण के लिए जरूरी पार्ट्स मंगाने पर कस्टम ड्यूटी नहीं देनी होगी. इससे क्या हुआ कि भारत में मोबाइल फोन के पार्ट्स मंगाकर असेंबल करना सस्ता हो गया.

सरकार ने पॉलिसी में बदलाव करके मोबाइल फोन के पार्ट्स के आयात को प्रोत्साहन दिया. इससे मोबाइल कंपोनेंट का आयात बढ़ा. क्योंकि भारत कई कीमती पार्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता है. एक मोबाइल फोन के निर्माण के लिए 300 से ज्यादा कंपोनेंट और सब-कंपोनेंट की जरूरत होती है. अब भी भारत में मैन्युफैक्चरिंग की जगह ज्यादातर स्मार्टफोन असेंबल हो रहे हैं. और इसके अधिकांश कल-पुर्जे चीन और अन्य देशों से आ रहे हैं.
एपल में भी ‘चीनी’
एपल अपने अधिकांश आईफ़ोन का निर्माण दक्षिणी चीन के शेनज़ेन शहर में करता है. सस्ते श्रम और कम लागत की वजह से एपल के ज्यादातर फोन चीन में बनते हैं. हालांकि पिछले कुछ समय में चीन के साथ अमेरिका के रिश्ते और कोरोना का असर इसके कारोबार पर भी पड़ा है. एपल भारत में स्मार्टफोन की मैन्युफैक्चरिंग और असेंबलिंग करता है. हालांकि यह बहुत छोटे पैमाने पर है. कोरोना के बाद से एपल चीन से अपने प्रॉडक्शन प्लांट को भारत में शिफ्ट करने की बात कर रहा है. इसके इंडिया आने की बात जोर-शोर से हो रही है. फिलहाल तो भारतीय बाजार में अधिकांशत: चीन के बने एपल फोन ही बिक रहे हैं.
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