कोरोना वायरस से जंग में एक नई वैक्सीन नोवावैक्स (Novavax) सामने आ चुकी है. नतीजे बहुत उत्साहजनक. ख़बर है कि जल्द ही इसे भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) मैन्युफैक्चर करेगा. बता दें यही कंपनी कोविशील्ड वैक्सीन का निर्माण कर रही है. नोवावैक्स के बारे में एक अच्छी बात यह है कि इसे स्टोर करने और रखरखाव में झंझट बहुत कम है. इसलिए इसे विकासशील देशों के हिसाब से मुफीद वैक्सीन बताया जा रहा है. उस पर सोने पे सुहागा ये कि वैक्सीन के तीसरे फेज़ के ट्रायल के बाद इसकी इफिकेसी यानी कारगर होने की क्षमता भी 90 फीसदी बताई गई है. इस सब जानकारी के बात मन में एक ही बात आती है कि ये मिलेगी कब तक और कितने की? तो आइए जानते हैं नोवावैक्स वैक्सीन के बारे में पूरी जानकारी तफ्सील से.
कहां बनी ये वैक्सीन
नोवावैक्स अमेरिका की एक प्राइवेट बायोटेक्नॉलजी कंपनी है. कंपनी तकरीबन 34 साल पुरानी है. लंबे वक्त से वैक्सीन रिसर्च का काम करती है. पहले भी अमेरिका में कई दूसरे इंफेक्शन के लिए वैक्सीन बनाती रही है. मई 2020 में जब कोरोना के खिलाफ लड़ाई तेज हुई तो इस कंपनी को भी वैक्सीन रिसर्च के लिए भारी फंडिंग उपलब्ध कराई गई. अमेरिका में प्राइवेट प्लेयर और सरकार ने मिलकर एक फंड बनाया. इसका नाम रखा कोलेशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI). इस कंपनी को फंड से 384 मिलियन डॉलर यानी तकरीबन 2800 करोड़ रुपए वैक्सीन रिसर्च के लिए मिले.
इस वैक्सीन को सारी परमीशन मिल गई हैं?
अभी वैक्सीन बनाने में सफलता मिली है. अब कंपनी जुलाई से सितंबर के बीच कई देशों में एक साथ रेग्युलेटरी परमीशन के लिए अप्लाई करेगी. इसमें भारत भी एक देश होगा.
नोवावैक्स कंपनी ने अपनी प्रेस रिलीज़ में कहा है,
“रेग्लुयेटरी अप्रूवल के बाद नोवावैक्स अपनी पूरी क्षमता से वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग का काम करेगी. कंपनी का लक्ष्य साल की तीसरी तिमाही तक हर महीने 10 करोड़ वैक्सीन की डोज़ बनाना है. साल 2021 की चौथी तिमाही के आखिर तक यह लक्ष्य 15 करोड़ डोज़ हर महीने का होगा.”
नोवावैक्स के सीईओ स्टैनले सी एरक ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है,
“हमें उम्मीद है कि हम अमरीका, यूके, यूरोपियन यूनियन के साथ-साथ भारत और कोरिया में परमीशन के लिए फाइल करेंगे. हमारी इच्छा है कि हम यह काम साल की तीसरी तिमाही में पूरा कर लें. क्योंकि हर एजेंसी अपने हिसाब से डेटा को चेक करने में वक्त लेती है. हालांकि कई एजेंसियों ने काम शुरू कर दिया है क्योंकि हम सबमिशन शुरू करने की प्रक्रिया में हैं.”
न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक, यह भी मुमकिन है कि नोवावैक्स को अमेरिका से पहले किसी दूसरे देश से इमरजेंसी अप्रूवल मिले. इसका कारण यह है कि अमेरिका अब इमरजेंसी अप्रूवल की बजाय फुल लाइसेंस देने में ज्यादा रुचि ले रहा है. जिसमें अमूमन ज़्यादा समय लग जाता है. इस बात को कंपनी के सीईओ एरक ने भी माना कि हो सकता है इस वैक्सीन को पहला अप्रूवल कहीं और से मिले.
भारत में इस वैक्सीन की क्या स्थिति है?
भारत में इसे सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया बनाएगी और इसका नाम होगा कोवावैक्स (Covavax). भारत सरकार ने अप्रैल 2021 में ही कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी अप्रूवल के नियम-कायदे काफी नरम कर दिए हैं. अब भारत WHO की इमरजेंसी यूज लाइसेंस की लिस्ट में शामिल किसी भी देश में इमरजेंसी अप्रूवल को मान्यता देता है. लेकिन अब जैसे ही अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन या डब्लूएचओ की लिस्ट में शामिल किसी भी देश में परमीशन मिलती है, वैसे ही यहां भी मामला फास्ट ट्रैक में आ जाएगा. हालांकि यह बात अभी साफ नहीं है कि वह निश्चित तारीख क्या होगी जब कंपनी इसे बनाना भारत में शुरू कर देगी.
इधर भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया कोवावैक्स का ट्रायल खुद भी कर रही है. यह अडवांस स्टेज में पहुंच चुका है. यह ट्रायल 15 सेंटरों पर 1600 लोगों पर किए जा रहे हैं. कंपनी ने बच्चों पर इस वैक्सीन के ट्रायल को लेकर भी रुचि दिखाई है. नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने समाचार एजेंसी एएनआई को मई में बताया था,
“SII बच्चों के ऊपर नोवावैक्स वैक्सीन का ट्रायल करना चाहती है. भारत बायोटेक को अपनी वैक्सीन के लिए ट्रायल करने की परमीशन मिल गई है.”
इसका मतलब भारत में कंपनी अपने काम में तेजी से लगी हुई है और जरूरी परमीशन मिलते ही मैन्युफैक्चरिंग शुरू हो सकेगी. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक साल 2021 के सितंबर से दिसंबर के बीच सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया नोवावैक्स वैक्सीन के 20 करोड़ डोज़, प्रतिमाह 5 करोड़ डोज़ के हिसाब से उपलब्ध करा सकेगी.
यह कितनी असरदार है और इसे स्टोर कैसे करना है?
कंपनी ने जो शुरुआती डाटा पेश किया है उसके हिसाब से ये वैक्सीन 90 फीसदी तक कारगर और सेफ है. इसके साइड इफेक्ट भी वैसे ही हैं जैसे बाकी वैक्सीन के हैं. जैसे सिर दर्द, थकान, शरीर में दर्द आदि. वैक्सीन के हाई रिस्क पॉपुलेशन मिसाल के तौर प 65 साल से ऊपर या किसी बीमारी से ग्रसित लोगों पर भी रिजल्ट अच्छे आए हैं.
अमरिका में अपने क्लिनिकल ट्रायल रिज़ल्ट में नोवावैक्स ने कहा है,
“हमें मॉडरेट और गंभीर बीमारी के मरीजों में 100 फीसदी और संपूर्ण रूप से 90.4 फीसदी इफिकेसी के रिजल्ट मिले हैं. हमने यह स्टडी अमेरिका और मैक्सिको की 119 जगहों पर की है. इस स्टडी में 29,960 लोगों ने हिस्सा लिया है.”
अब बात स्टोरेज की. इसकी शीशी को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जा सकता है. इस लिहाज से इसे कहीं ले जाना और सहेजाना काफी आसान है. इस वजह से ही इसे विकासशील देशों के लिए काफी मुफीद वैक्सीन माना जा रहा है.
NEW DATA RELEASE: Novavax #COVID19 Vaccine Demonstrates 90% Overall Efficacy and 100% Protection Against Moderate and Severe Disease in PREVENT-19 Phase 3 Trial https://t.co/lIOiQXxDtD pic.twitter.com/4ePHxDpziZ
— Novavax (@Novavax) June 14, 2021
वैक्सीन काम कैसे करती है?
यह वैक्सीन कोरोना वायरस में एक जीन को बदल कर बनाई गई है. जीन बदलने के बाद इसे बाक्यूलोवायरस कहा जाता है. यह बाक्यूलोवायरस जब किसी संक्रमित सेल या कोशिका में जाता है तो स्पाइक प्रोटीन पैदा करता है. ये स्पाइक प्रोटीन आपस में मिल कर स्पाइक बनाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे हमें कोरोना वायरस की तस्वीर में कांटे नजर आते हैं. इस तरह का स्पाइक प्रोटीन नैनो पार्टिकल या बहुत सूक्ष्म रूप से जमा हो जाता है. इसको ही वैक्सीन के तौर पर शरीर में इंजेक्ट कर दिया जाएगा. इसके शरीर में जाते ही शरीर को धोखा होता है कि असल वायरस का इंफ़ेक्शन हो गया. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपना काम करना शुरू कर देती है और अलर्ट पोजिशन में आ जाती है. शरीर में एंटीबॉडी बन जाते हैं. अब अगर शरीर में कोरोना वायरस का प्रवेश होता है तो पहले से तैयार एंटीबॉडी उसका काम तमाम कर देते हैं. यह दो डोज़ वाली वैक्सीन है और दो डोज़ का अंतर 21 दिन है.
इसकी कीमत कितनी होगी?
न्यूज 18 वेबसाइट के मुताबिक इसकी कीमत संभवतः 1,114 रुपए प्रति डोज़ हो सकती है. भारत में स्थानीय स्तर पर उत्पादन और उसके बाद के ट्रांस्पोर्ट के बाद इसकी क़ीमतों में बदलाव संभव है.
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