आज की कहानी में रहस्य है और विडंबना भी है. क्योंकि इसमें आतंकवाद के साथ-साथ मानवाधिकार की चर्चा भी है. इस कहानी की शुरुआत दो दशक पहले हो चुकी थी. लेकिन इसका अंत कब होगा, किसी को मालूम नहीं. ऐपिसोड दर ऐपिसोड नई परतें खुलतीं है और सिरा आगे बढ़ जाता है.
हालिया ऐपिसोड अमेरिका में 15 जनवरी को दिखा. एक ब्रिटिश नागरिक टेक्सस में सिनेगॉग में घुसा और अंदर मौजूद चार लोगों को बंधक बना लिया. सिनेगॉग को आसान भाषा में यहूदी मंदिर भी कह सकते हैं. बंधक बनाने के बाद उसने सौदेबाज़ी शुरू की. लंबे समय तक डील होती रही. लेकिन बात नहीं बनी. अंत में पुलिस ने अंदर घुसकर उसे मार गिराया. चारों बंधकों को सुरक्षित निकाल लिया गया.
होने को तो कहानी यहीं पर खत्म हो जानी थी. लेकिन इसमें कई पेच बाकी थे. मसलन, ब्रिटिश व्यक्ति ने सौदेबाज़ी के दौरान एक ऐसी मांग रखी थी, जिस पर इससे पहले तक इस्लामिक स्टेट का एकाधिकार था. मांग क्या थी? आफ़िया सिद्दीक़ी की रिहाई. आफ़िया सिद्दीक़ी पाकिस्तान में पैदा हुई. अमेरिका में पढ़ाई की. वैज्ञानिक बनी. और, फिर एक दिन अचानक गायब हो गई. वो कहां गई? इसके बारे में आज तक किसी को पता नहीं चला है. बस कयास लगाए और दावे किए जाते हैं.
पहली बार गायब होने के पांच बरस बाद वो फिर दिखी. अफ़ग़ानिस्तान के एक सुदूर पुलिस थाने में. कुछ अमेरिकी अधिकारी उससे मिलने आए. फिर वहां तांडव मचा. रहस्यमयी परिस्थितियों में उसने थाने के अंदर गोलियां चलाईं और उसमें ख़ुद ही घायल हो गई.
इसके बाद आफ़िया को उठाकर अमेरिका लाया गया. उसके ऊपर मुकदमा चला. फिर 86 बरस की सज़ा मिली. वो फिलहाल अमेरिका की जेल में बंद है. इस्लामिक स्टेट पहले भी दो मौकों पर उसे छुड़ाने की मांग रख चुका है. लेकिन अमेरिका ने उसकी बात नहीं मानी.
पहली नज़र में ये कहानी बिलकुल सीधी दिखती है. लेकिन ये है नहीं. गायब होने और फिर प्रकट होने के बीच में जो कुछ हुआ, वो हमें कहीं और लेकर जाता है.
आफ़िया सिद्दीक़ी की पहेलीनुमा कहानी क्या है? इस्लामिक स्टेट और अल-क़ायदा से उसके क्या संबंध रहे हैं? और, टेक्सस के यहूदी मंदिर में आख़िर हुआ क्या?
सबसे पहले बैकग्राउंड समझते हैं.
साल 2003. मार्च का महीना. कराची में 31 साल की महिला अपने तीन बच्चों को लेकर एक टैक्सी में बैठती है. उसे एयरपोर्ट जाना था. लेकिन वो महिला ना तो एयरपोर्ट पहुंचती है. और, ना ही वापस घर लौटती है. वो आफ़िया सिद्दीक़ी थी. कराची एयरपोर्ट के बीच से वो गायब हो गई. उसके घरवालों को कुछ पता नहीं था. अमेरिका और पाकिस्तानी अधिकारी उसके बारे में कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं थे. उसके करीबियों ने उसे मरा हुआ मान भी लिया था.
इतने में एक हैरतअंगेज़ घटना घटी.
जुलाई 2008 की बात है. अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़नी में गवर्नर हाउस के बाहर एक महिला अपने बेटे के साथ खड़ी थी. उसके पास एक बैग था. वहां मौजूद सुरक्षा अधिकारियों ने उससे पूछताछ की. जैसा कि दावा किया जाता है महिला स्थानीय बोली नहीं बोल पा रही थी. इससे वहां शक पैदा हुआ.
पुलिस ने उसके बैग की तलाशी ली. तलाशी में एक लीटर सायनाइड, अमेरिका की कई ऐतिहासिक इमारतों के नक़्शे, बम बनाने के नुस्ख़े समेत कई आपत्तिजनक चीज़ें मिली. वो आफ़िया सिद्दीक़ी थी. अफ़ग़ान पुलिस ने उसे हिरासत में रखा.
उस दौर में अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद था. तालिबान से उसकी लड़ाई की रफ़्तार तेज़ हो रही थी. नाटो सेना और विदेशी दूतावासों पर हमले बढ़ रहे थे. उसे जल्दी-से-जल्दी इस स्थिति को बदलना था. इसके लिए वो हर तिकड़म भिड़ाने के लिए तैयार था.
आफ़िया सिद्दीक़ी की ख़बर में दम था. सूचना मिलने के एक दिन बाद दो एफ़बीआई एजेंट और दो अमेरिकी अधिकारी ग़ज़नी रवाना हुए. उनके साथ अफ़ग़ान अनुवादक भी थे. उन्हें आफ़िया से पूछताछ करनी थी. 9/11 हमले के मास्टरमाइंड ख़ालिद शेख़ मोहम्मद ने ग्वांतनामो बे में उसका नाम लिया था. आफ़िया की दूसरी शादी ख़ालिद के एक भतीजे से हुई थी. इस वजह से भी अमेरिका को आफ़िया की बेताबी से तलाश थी.
जब अमेरिकी अधिकारी ग़ज़नी पहुंचे तो उन्हें एक कमरे में ले जाया गया. कमरे के बीचोंबीच पीले रंग का एक पर्दा लगा था. अधिकारियों को ये पता नहीं था कि आफ़िया भी उस कमरे में थी. बेपरवाह होकर उन्होंने अपनी बंदूक नीचे रख दी. इतने में गज़ब हो गया.
पर्दे के पीछे से एक झपट्टा आया. आफ़िया ने बंदूक उठाई और अंधाधुंध फ़ायरिंग करने लगी. इतने में एक अनुवादक ने उसे पीछे धकेला. इस खींचतान में एक गोली आफ़िया के पेट में लगी. उसके अलावा और किसी को कोई चोट नहीं आई. आफ़िया का इलाज करवाया गया. फिर उसे प्राइवेट जेट में बिठाकर अमेरिका ले जाया गया.
ये घटना का सरकारी वर्ज़न है. अमेरिका ये दावा करता है कि उसने 2008 से पहले आफ़िया को कभी अरेस्ट नहीं किया. इसका दूसरा वर्ज़न अफ़ग़ानिस्तान की बगराम जेल में रह चुके क़ैदी सुनाते हैं. बगराम को अफ़ग़ानिस्तान का ग्वांतनामो कहा जाता था. अगस्त 2021 में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद इस जेल को खाली करा दिया गया.
बगराम जेल में रह चुके क़ैदियों ने आफ़िया के बारे में क्या बताया? वे कहते हैं-
उस जेल में एक महिला भी बंद थी. वो रात को ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती थी. उसकी आवाज़ सुनकर हम कांप जाते थे. हमने उसे कभी देखा तो नहीं, लेकिन उसकी पीड़ा ने हमारी नींद उड़ा दी थी.
हालात यहां तक ख़राब हुए कि 2005 में कुछ क़ैदी छह दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठ गए थे.
दूसरा सवाल ग़ज़नी पुलिस स्टेशन में हुई गोलीबारी की घटना पर भी उठता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, आफ़िया से पूछताछ करने गए लोगों को सबसे बेहतरीन ट्रेनिंग मिली हुई थी. उन्हें कभी अपना हथियार नीचे रखने के लिए नहीं कहा जाता. फिर ये चूक कैसे हुई? इसके अलावा, कमरे में इतने लोग मौजूद थे. क्या किसी ने आफ़िया पर गौर नहीं किया?
इस मामले में एक चौथा वर्ज़न भी मिलता है. अफ़ग़ान पुलिस के अधिकारियों ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को कुछ और ही कहानी सुनाई थी. उनका कहना था कि अमेरिकी अधिकारियों ने आफ़िया को सौंपने की मांग की. जब उन्होंने मना किया तो उनके हथियार छीन लिए गए. उन्हें लगा कि आफ़िया सुसाइड बॉम्बर है. उन्होंने उसके ऊपर गोली चला दी. फिर उसे उठाकर अपने साथ ले गए.
सरकारी वर्ज़न से इतर जितने भी सवाल उठे, उनके जवाब कभी नहीं मिले.
अगर मिली भी तो सज़ा. आफ़िया सिद्दीक़ी पर अमेरिका में मुकदमा चला. सितंबर 2010 में न्यू यॉर्क की एक अदालत ने आफ़िया सिद्दीक़ी को अमेरिकी सैनिकों पर हमले और उनकी हत्या का प्रयास करने का दोषी माना. उसे 86 बरस जेल की सज़ा सुनाई गई. तब से आफ़िया जेल में बंद है.
उसी अमेरिका की जेल में, जिस अमेरिका में वो पंख लेकर आई थी. आफ़िया का जन्म 1972 में कराची में हुआ था. मध्यमवर्गीय परिवार होने के बावजूद आफ़िया को पढ़ने के लिए MIT भेजा गया. 1995 में उसने कराची के एक डॉक्टर से शादी कर ली. इसके बाद उसने ब्रैन्डे यूनिवर्सिटी से पीएचडी की. 2001 में उसकी पीएचडी पूरी हो गई.
इसके कुछ दिनों बाद ही 9/11 का हमला हो गया. इस हमले में इस्लामिक आतंकियों का हाथ था. जांच एजेंसियों को खुली छूट मिल चुकी थी. उन्होंने मुस्लिम परिवारों पर निगरानी बढ़ा दी थी. इसी दौरान की गई कुछ खरीदारियों को लेकर FBI का शक बढ़ गया. उन्होंने आफ़िया और उसके पति पर नज़र पैनी कर दी. तब तक पति-पत्नी के रिश्ते में खटास बढ़ चुकी थी. कुछ समय बाद वे दोनों पाकिस्तान लौटे. वहां उनका तलाक हो गया.
तलाक के कुछ ही महीने बाद आफ़िया वापस अमेरिका गई. परिवार के लोग दावा करते हैं कि वो वहां नौकरी की तलाश में गई थी. जबकि जांच एजेंसियां दावा करतीं है कि वो एक आतंकी की मदद से अमेरिका आई थी.
इसी बीच मार्च 2003 में ख़ालिद शेख़ मोहम्मद अरेस्ट हो गया. वो लादेन का करीबी था. उसी ने 9/11 हमले की पूरी साज़िश रची थी. ख़ालिद ने पूछताछ में आफ़िया का नाम लिया. आफ़िया के ख़िलाफ़ वॉरंट जारी किया गया. इसके कुछ ही दिनों बाद आफ़िया गायब हो गई.
2004 में एफ़बीआई ने उसका नाम मोस्ट वॉन्टेड लोगों की लिस्ट में डाल दिया. 2004 में कोर्ट में दिए एक एफ़िडेविट के मुताबिक, एफ़बीआई ने कहा था कि उन्हें आफ़िया सिद्दीक़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. इतना ज़रूर लगता है कि वो पाकिस्तान में हो सकती है.
एफ़बीआई ने उसके ऊपर अल-क़ायदा के लिए हीरे की तस्करी का इल्ज़ाम भी लगाया. इसके आगे की कहानी हम आपको शुरुआत में ही बता चुके हैं. कैसे आफ़िया को गिरफ़्तार किया गया और उसे 86 बरस के लिए जेल भेज दिया गया.
सज़ा के बाद क्या हुआ?
कई कोशिशें हुई. आफ़िया सिद्दीक़ी को रिहा कराने की. इस प्रयास में आम लोगों और पाकिस्तान सरकार से लेकर इस्लामिक स्टेट भी शामिल है. इस्लामिक स्टेट ने दो मौकों पर अमेरिकी नागरिकों के बदले आफ़िया की रिहाई मांगी है. लेकिन वो इसमें सफ़ल नहीं हो पाए. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री युसुफ़ रज़ा गिलानी ने आफ़िया को ‘डॉटर ऑफ़ द नेशन’ कहकर संबोधित किया था. नवाज़ शरीफ़ और वर्तमान में पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान भी आफ़िया को सपोर्ट कर चुके हैं.
इन सबके अलावा, समय-समय पर आफ़िया के समर्थन में रैलियां चलती रहतीं है.
आज हम आफ़िया सिद्दीक़ी की कहानी क्यों सुना रहे हैं?
दरअसल, एक बार फिर से आफ़िया को रिहा कराने की असफ़ल कोशिश की गई. ये कोशिश हिंसक थी. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे आतंकी घटना बताया है.
15 जनवरी को टेक्सस में मलिक फ़ैसल अकरम नामक ब्रिटिश नागरिक ने एक यहूदी मंदिर में घुसकर चार लोगों को बंधक बना लिया था. उसने ख़ुद को बेघर बताकर अंदर एंट्री ली थी. अंदर घुसने के बाद उसने अपना असली रंग दिखा दिया. पुलिस ने जानकारी मिलते ही घटनास्थल को घेर लिया. उन्होंने दस घंटे तक समझौता करने की कोशिश की. इस दौरान अकरम आफ़िया सिद्दीक़ी को छोड़ने की मांग करता रहा. जब बात नहीं बनी तो पुलिस ने मुठभेड़ में उसे मार गिराया.
जहां तक अकरम की बात है, वो ब्रिटेन का नागरिक है. अमेरिका आने के बाद ही उसने हथियार खरीदा था. अमेरिका में उसका कोई आपराधिक रेकॉर्ड नहीं था.
इस मामले में आगे क्या होगा?
अमेरिकी एजेंसियों ने जांच तेज़ कर दी है. इस मामले में अभी तक दो नौजवानों को गिरफ़्तार किया है. उनसे पूछताछ की जा रही है. उनके बारे में इससे अधिक जानकारी बाहर नहीं आई है.
जानकारों का कहना है कि ये मामला कम-से-कम तीन महादेशों को अपनी चपेट में लेगा. नॉर्थ अमेरिका, यूरोप और एशिया. ब्रिटेन ने इस घटना के लिए दुख जताया और कहा कि हम हरसंभव मदद करने के लिए तैयार हैं. ये घटना यहूदियों के पवित्र स्थल में हुआ. इसलिए, इज़रायल भी स्थिति पर नज़र बनाए हुए है.
ब्रिटेन में राजशाही और सरकार की ऐसी फजीहत शायद ही कभी हुई होगी