भारत की पहली कार कंपनी जिसका सफर महज पांच साल का रहा
देश की पहली कार कंपनी की बात करेंगे तो दिमाग में नाम मारुति और टाटा का आएगा. हिंदुस्तान मोटर्स की एंबेसडर और महिंद्रा जीप भी याद आ जाएंगी. मगर ये सब देश की पहली कार कंपनी नहीं हैं. देश की पहली कार कंपनी का सफर पटना में स्टार्ट हुआ था जो महज पांच साल ही चल सका.

हिंदुस्तान की पहली कार कंपनी की बात करें तो दिमाग में पहला नाम हिंदुस्तान मोटर्स और एंबेसडर का नाम याद आएगा. ऐसा माना भी जा सकता है और नहीं भी. मतलब एंबेसडर को भारत की पहली कार कहा जाता है. हालांकि वो भारत में बनने वाली पहली कार नहीं थी. 1949 में हिंदुस्तान मोटर्स ने अपनी पहली कार लॉन्च की. नाम था हिंदुस्तान 10. लेकिन ये मॉरिस 10 नामक कार की कॉपी थी. इसमें 1.5 लीटर कैपेसिटी वाला वाल्व इंजन लगा था, जिसमें 37 हॉर्स पावर की ताकत थी. एंबेसडर और भारत के रिश्ते के बारे में आप यहां क्लिक करके जान लीजिए.
अपन वापस आते हैं भारत की पहली कार कंपनी पर. अगर एंबेसडर पहली कार नहीं थी तो फिर पक्का टाटा या मारुति होगी. नहीं जनाब टाटा कार का सफर तो काफी नया है. टाटा की देसी इंडिका तो 1998 में सड़कों पर आई और मारुति दिसंबर 1983 में. फिर कौन.
Trishul Crafts Automobilesनाम पढ़कर आपको कुछ भी याद नहीं आएगा. लेकिन 1980 के दशक में बिहार के पटना में इस कार कंपनी की स्थापना हुई थी. आज भले कंपनी का कोई नाम लेवा नहीं मगर इसके कुछ असली मॉडल केरल में आज भी सड़कों पर नजर आ जाते हैं. 70-80 के दशक की हिन्दी फिल्मों में आपने जो जीप देखी होगी, त्रिशूल का मॉडल भी कुछ-कुछ वैसा ही था.
जीप नाम पढ़कर आपको लगेगा कि महिंद्रा जीप को भूल गए. नहीं जनाब महिंद्रा जीप भी कोई देसी प्रोडक्ट नहीं था. साल 1947 में महिंद्रा ने Willys से जीप बनाने का लाइसेंस लिया था वो भी CKD यूनिट के तौर पर. Completely Knocked Down यूनिट माने गाड़ी के पूरे पार्ट्स अमेरिका से लाकर इंडिया में फिट किये जाते थे. इसलिए महिंद्रा भी पहली कार कंपनी नहीं हुई.
पहली देसी कार कंपनी तो त्रिशूल को ही माना जाएगा. यह एक बिना दरवाजे वाली जीप थी जिसमें आराम से 4-5 लोग बैठ जाते थे. इस जीप में डीजल इंजन तो तब की इटालियन कंपनी Lombardini का लगा था मगर बाकी मामला देसी था. बारिश, ठंड और गर्मी से बचना हो तो कैनवास से कवर करके इसे कार जैसा भी बनाया जा सकता था. 600 किलो वजन वाली त्रिशूल में 510 CC का इंजन लगा हुआ जो 12 PS की ताकत देता था. आज की गाड़ियों से तुलना करें तो इसका वजन मारुति वैगन आर से 250 किलो कम था. इंजन भी आधा ही समझ लीजिए क्योंकि वैगन आर में 998 CC का इंजन लगा होता है. त्रिशूल दिखने में सिम्पल मगर एक दमदार गाड़ी थी. लेकिन इसकी असल खूबी तो इसका माइलेज था. एक लीटर डीजल में त्रिशूल 28 किलोमीटर चल जाती थी. इतना माइलेज तो आजकल की हाइब्रिड कार भी नहीं देती हैं. गाड़ी 64 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ सकती थी. त्रिशूल के कुल चार मॉडल मार्केट में उतारे गए थे. Taxi, Load Carrier, Country Rider और Family Car.

त्रिशूल जीप युवाओं को खूब पसंद आई क्योंकि वो महिंद्रा जीप का एक किफायती वर्जन तलाश रहे थे. लेकिन अचानक से 1985 में त्रिशूल ने अपना प्रोडक्शन बंद कर दिया. ऐसा क्यों हुआ उसका कोई कारण पता नहीं चला. लेकिन त्रिशूल की गाड़ियों में दम था इसका सबूत केरल में मिल जाएगा. आज भी इसके कई मॉडल वहां सही हालत में चलते मिल जाते हैं.
यही थी भारत की पहली कार कंपनी की कहानी जिसका सफर महज पांच साल चला.
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