The Lallantop

ये कौन हैं, जो गर्ल्स हॉस्टल के सामने मास्टरबेट करते हैं

जब पुरुषों को लगता है कि पेशाब करना ही उनकी मर्दानगी का सबूत है, तो ये काम औरत को भी बेहतर औरत बनाता होगा. नहीं?

Advertisement
post-main-image
नाइजीरिया की एक ब्लॉगर ने ये तस्वीर ली थी. दो पुलिसवाले पेशाब कर रहे हैं. और कुछ दूरी पर बोर्ड था: यहां पेशाब करना मना है. आज्ञा से, पुलिस.
pp ka column कॉलेज के दिनों में मैं और मेरी एक दोस्त अक्सर पैदल घूमने निकल पड़ते थे. मौसम सर्दी का हो तो कॉलेज से कश्मीरी गेट पैदल नाप जाते थे. उस दिन दोपहर का समय था. और रिंग रोड पर पैदल चलने वाला कौन ही मिलता है? हम टहल रहे थे कि झाड़ियों के पीछे से कराहने के आवाज आई. साढ़े सत्रह की उम्र में नहीं पता था कि सड़क पर कराहने के कई मायने हो सकते हैं. लगा कोई मुश्किल में है. झाड़ी से झांका तो एक भाई साहब तबीयत से मास्टरबेट कर रहे थे. और कराह कर कह रहे थे, 'आओ ना, आओ ना'. उनको उस हालत में देख हम दोनों ऐसे भगे कि करीब एक किलोमीटर बाद एक दुकान पर रुके. एक बोतल कोक गले की नीचे उतारा. तब कुछ बेहतर महसूस हुआ. तबसे आज तक हम दोनों उस वाकये पर हंसते हैं. डरकर भागना और कोक की बोतल एक सांस में गटक जाना. ऐसा सीन किसी फिल्म में आए तो शायद हास्यास्पद लगे. लेकिन झाड़ी में झांकने का वो पल सचमुच डरावना था.
हमारे कॉलेज के बाहर एक हरे से रंग की कार में एक बंदा अक्सर खड़ा रहता है. कुछ दिनों बाद लड़कियों ने ध्यान दिया तो मालूम पड़ा कॉलेज से निकलती लड़कियों को देख मास्टरबेट करता था. मुझे लगता था ये रोग हमारे ही कॉलेज में है. क्योंकि हमारा कॉलेज कैंपस से कुछ अलग शांत इलाके में पड़ता था. फिर दूसरी लड़कियों से मालूम पड़ा कि भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी दिन के उजाले में ही लड़के उनके पीजी के बाहर ऐसा करते हुए दिख जाते हैं. यानी ऐसा कुछ तो है इन लड़कों के दिमाग में जो इनसे कहता है, 'इट्स ओके'.
पब्लिक में पुरुषों का पेशाब करते देखा जाना तो आम बात है. आप कह सकते हैं कि टॉयलेट नहीं हैं, क्या करें. पर ये किसी दूर-दराज की गांव की बात नहीं कर रही हूं मैं. शहरों की बात कर रही हूं, जहां कुछ दूरी पर टॉयलेट मिल जाते हैं. कानपुर जैसे शहरों में पब्लिक टॉयलेट से 10 मीटर दूर ही खुल्ले में मूतते दिख जाते हैं लोग. जैसे खुले में मूतने से एक तरह का पौरुष जुड़ा हो. कॉलेज के समय कुछ लड़के दोस्त थे. एक दिन बोले, 'हमने न बियर पी रखी थी. पेशाब आई. हॉस्टल से निकले और कॉलेज की बिल्डिंग तक गए. और साला फैकल्टी की दीवार पर मूत के आए.' लड़कियां भी बियर पीती थीं. कभी किसी के मुंह से नहीं सुना कि कॉलेज के नियमों से खुन्नस निकालने के लिए वहां के मैदान या दीवार पर पेशाब करने गई हों.
3 इडियट्स फिल्म में भी एक सीन था. रैगिंग करने के लिए दरवाजे पर पेशाब करने का. और प्रोफ़ेसर के दरवाजे पर भी मूतकर आने का. वीडियो क्वॉलिटी जरा खराब है, पर देखकर सीन याद आ जाएगा.  https://www.youtube.com/watch?v=BvowhS-dKZg जैसे पब्लिक में तन कर खड़े होकर, अपना लिंग निकालकर, शरीर की गंदगी निकालना एक 'मर्दाना' काम हो. वहीं औरतों का अपना अंडरवियर उतारना एक शर्म की बात है. उन्हें पेशाब के लिए बैठना होता है. झुकना होता है, समाज के सामने. इसलिए वो गांवों में भोर या शाम के अंधेरे में निकलती हैं. झुंड बनाकर. हनी सिंह के शुरूआती विवादित 'रेप रैप्स' में भी एक लाइन थी. '*** के बाद तुझे जूते मारूं, मूत मारूं.' लड़की का रेप कर, उसे पीटकर, उसके ऊपर पेशाब कर देने के पुरुष की मर्दानगी पर वो मुहर लग लग रही थी, जो 'मात्र' रेप से नहीं लग पा रही थी.  
जाने आपका पाला किसी ऐसे अंकल से पड़ा या नहीं. पर मुझे एक ऐसे जनाब के दर्शन हो चुके हैं जो ट्रेन में पैंट उतारकर अपने बॉक्सर्स में सो गए. उतारने के लिए बाथरूम तक जाने की जहमत नहीं उठाई. मुझे नहीं मालूम और महिलाओं को कितना अजीब लगा. पर मुझे ज़रूर लगा. शायद इसलिए कि समाज की बनावट ही ऐसी है. कि लड़कियां कुर्तों के ऊपर पहने हुए पुलोवर उतारने तक के लिए बाथरुम चली जाती हैं. उन्हें लगता है पीछे से कुर्ता या टीशर्ट उठ न जाए. और अंकल जी पूरे गर्व के साथ बनियान से झांकते अपने बालों का प्रदर्शन करने में दो बार नहीं सोचते. और गोवा की बीच पर चले जाइए. झुंड बनाकर लड़के बिकिनी तो छोड़ो, शॉर्ट्स पहनी हुई लड़कियों को ऐसे घूर रहे होते हैं मानो बड़ी सी स्क्रीन पर 3-डी पॉर्न चल रहा हो. या तो समाज से शर्म इतनी खत्म हो जाए कि किसी का पेट और टांगें दिखना बड़ी बात न हो. या फिर पब्लिक में होने का लिहाज सभी करें, ऐसा मेरा मानना है. किसी भी सरकारी, या फिर गैर सरकारी बिल्डिंग में ही चले जाइए. सीढ़ियों के कॉर्नर पर पान या गुटखे के छीटे मिल जाते हैं. इस बात की संभावना बहुत कम होती है कि वहां किसी औरत ने थूका हो. मैंने नियमित रूप से गुटखा खाने वाली औरतें भी देखी हैं. लेकिन उन्हें दीवारों या कार के टायरों पर थूकते नहीं देखा. क्योंकि थूकने से भी शर्म जुड़ी है. खखार कर कुल्ला करने से शर्म जुड़ी है. नाक छिड़क उसे जमीन पर गिरा देने से शर्म जुड़ी है. जो औरतें कम ही करती हुई दिखेंगी, खासकर शहरों में. पुरुषों का पुरुष होना ही उन्हें गंदगी फैलाने का लाइसेंस सा दे देता है. 'हम तो मर्द हैं, हमें किस बात की शर्म.' औरतों और मर्दों के 'सोशल बिहेवियर' के नियम बिल्कुल उल्टे हैं. और हमने इन्हें बड़े ही सहज रूप से नॉर्मल मान लिया है. कहने का अर्थ ये नहीं है कि औरतें भी खुले में पेशाब या मास्टरबेट करना शुरू कर दें और पुरुषों के बराबर बन जाएं. कहने का अर्थ ये भी नहीं कि अपने गुप्तांगों से अपनी सारी अस्मिता, इज्जत जोड़कर उन्हें किसी डरावनी या अछूत चीज सा ट्रीट करें. कहने का अर्थ ये है कि जहां आप रहे हैं, जहां घूमते-फिरते हैं, वो एक पब्लिक प्लेस है. उसमें पेशाब कर आप उसे गंदा करते हैं. जब आप किसी लड़की को देख मास्टरबेट करते हैं, आप उसका हैरेसमेंट करते हैं. क्योंकि आप उसे उसकी मर्जी के बिना देख रहे होते हैं. घूर रहे होते हैं. उसके सामने अपना लिंग निकाल उसे एक ऐसी चीज दिखाना चाह रहे होते हैं, जो वो नहीं देखना चाहती. फिर चाहे हो आपका लिंग हो, या आपकी जीभ. पिछले दिनों ग्रेजुएशन कर रही एक दोस्त ने अपने मकानमालिक से कहा, एक लड़का गेट पर आकर मास्टरबेट करता है. मकानमालिक ने जवाब दिया, 'आप तो अच्छे घर से हो. आप मत देखो.' अंकल को कौन बताए, लड़कियां देखना नहीं चाहतीं. उन्हें आनंद नहीं आता है. लेकिन पब्लिक में होने वाली ऐसी हरकत से उन्हें असहज महसूस होता है. बल्कि 'असहज' एक हल्का शब्द है. उन्हें 'हैरेस्ड' महसूस होता है. और कई बार तो ऐसी खबरें आती हैं कि चलती टैक्सी में ड्राइवर ने लड़की को देख मास्टरबेट किया. ये सच है कि उसने कोई शारीरिक हिंसा नहीं की. लेकिन क्या सिर्फ शारीरिक हिंसा करना भर ही गलत होता है? क्या उस लड़की के मकानमालिक किसी लड़की का रेप होने पर ये कहते कि उसे नहीं करवाना चाहिए था? शायद यही कहते. शायद ये भी कहते कि उसे बाहर ही नहीं निकलना चाहिए था. क्योंकि जिम्मेदारी लड़की की है. लड़कों के लिए तो, 'इट्स ओके.' लड़के ये जानें, कि पेशाब, मास्टरबेशन हो या थूक देना. ये आपको पर्सनल हरकतें लग सकती हैं. पर असल में ये उस समाज को खराब करती हैं जिसमें आपको रहना है. कभी ये आपके सामने खड़ी या आपके पीछे बैठी, या किसी भी सड़क चल रही लड़की को 'वायलेट' कर सकते हैं. ये उसके लिए मानसिक हिंसा है. खुले में थूक कर, पेशाब कर आपकी मर्दानगी बढ़ती नहीं. बल्कि एक इंसान के तौर पर आप छोटे हो जाते हैं. क्योंकि, 'इट्स नॉट ओके.' जाते-जाते एक वीडियो जरूर देख लीजिए. :-) https://www.youtube.com/watch?v=EI_IlSvJECc

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement