आप सोच रहे होंगे कि हम आपको साल भर पुरानी फिल्म की कहानी क्यों बता रहे हैं? क्या इसका हिंदी रीमेक बनने वाला है? जवाब है नहीं. ये कहानी हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि इस फिल्म की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. फोटो में बोमन ईरानी आर्मी की वर्दी में दिखते हैं. और यही इस फोटो के वायरल होने का कारण भी है. जिसमें उनकी ड्रेस में इतनी गड़बड़ियां दिख रहीं हैं, जिन्हें गिनते-गिनते इंसान थक जाए.

फोटो देखकर आर्मी के अफसर भी कन्फ्यूज हो जाएं कि सामने वाली की रैंक क्या है?
क्या है फोटो में?
बोमन ईरानी के कॉलर पर एक लाल रंग की टैब लगी हुई है. जिस पर 4 सितारे जड़े हुए हैं. यह टैब आर्मी में सर्वोच्च रैंकिंग वाले ऑफिसर के पास होती है. यानी कि सेनाध्यक्ष. आर्मी की भाषा में इसे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कहा जाता है. तो कायदे से ये कॉलर टैब बोमन की शर्ट पर नहीं होना चाहिए था. क्योंकि वे फिल्म में कर्नल की भूमिका में थे. झोल इतना ही नहीं है. नेमप्लेट पर LT Sanjay Srivastav लिखा गया है. मतलब लेफ्टिनेंट संजय श्रीवास्तव. लेफ्टिनेंट आर्मी का सबसे जूनियर रैंक होता है. और कॉलर टैब सबसे सीनियर चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का लगा है.
इसके अलावा हाथ पर एक बैज भी है. जो कि यूपी पुलिस का सिंबल है. अब आर्मी के ड्रेस में किसी स्टेट पुलिस के सिंबल का क्या काम है, ये समझ से परे हैं. उनके ड्रेस पर 5 जनरल सर्विस मेडल 1947 लगा है. जो ये दिखाता है कि अगस्त 1947 में वे 5 अलग-अलग रेजीमेंट्स में एक साथ काम कर रहे थे. कैसे? भगवान जाने. साथ ही 1999 में हुए ऑपरेशन विजय का स्टार भी लगा है. अब आप कल्पना ही कर सकते हैं कि सेना में उन्होंने कितने लंबे समय तक सर्विस दी.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है आर्मी बेस्ड फिल्मों में अक्सर ऐसा होता रहता है. इतना बड़ा झोल तो नहीं होता, लेकिन लगभग हर आर्मी बेस्ड मूवी में आर्मी ड्रेस को हूबहू नहीं दिखाया जाता. 'लक्ष्य', 'बॉर्डर' और 'एलओसी' जैसी कुछ फिल्मों में आर्मी यूनिफार्म को असल वर्दी से काफी क्लोज दिखाया गया है. लेकिन इन फिल्मों में आर्मी एसोसिएट थी. अगर फिल्म से आर्मी के लोग जुड़े होते हैं तो वे चीजों का चयन काफी बारीकी से करते हैं. और इस चीज को निश्चित करते हैं कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं?
'ना पेरु सूर्या, ना इल्लू इंडिया' कॉमर्शियल फिल्म है. इसमें स्टोरी एंगल जरूर सोल्जर का है, लेकिन इसका स्टोरी से कोई बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है. उन्होंने बस ये दिखा दिया कि ढेर सारे मेडल हैं, चमकदार वर्दी है, इतने मेडल्स लगे हैं, बैज लगे हैं तो बड़ा अफसर है. इससे पहले 'रुस्तम' की वर्दी पर भी विवाद हो चुका है. इसमें 3 गलतियां हम आपको बता रहे हैं. जिसको संदीप उन्नीथन ने ट्वीट किया था-

रुस्तम में अक्षय कुमार एक नेवी ऑफिसर की भूमिका में थे.
1. इसमें अक्षय वर्दी पर नाम पट्टी पहने हुए दिखते हैं. ये नेम टैग 1970 में ही शुरू हुए थे जबकि कहानी 1959 की है. 2. रुस्तम का किरदार मूछें रखे हुए है जबकि बिना दाढ़ी के सिर्फ मूछें रखने की इजाजत सैन्यकर्मियों को 1971 के बाद ही दी गई. 3. रुस्तम का किरदार कारगिल स्टार 1999 और ओम पराक्रम 2001-02 के मेडल पहने हुए दिखता है लेकिन कोई 40 साल पहले इस किरदार ने ये युद्ध कैसे लड़ लिए?
सैम पर भी उठे सवाल
और अभी हाल में आई फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बायोपिक की तस्वीर पर भी सवाल उठे हैं. बायोपिक की प्रमोशनल फोटो पर ट्वीट करते हुए रिटायर्ड जनरल सैयद अता हसनैन ने वर्दी में कई बड़ी गलतियां निकाली हैं. जनरल हसनैन ने लिखा,
‘राय ली होती तो अच्छा लगता. लेफ्टिनेंट जनरल दीपिंदर सिंह, उनके एमए सब जानकारी देने के लिए सदा तैयार हैं. विक्की कौशल ने गलत रंग के रैंक बैज पहने हुए हैं. सैम एक गोरखा थे, उन्होंने कभी पीतल नहीं पहना. वो हमेशा काला बैज पहनते थे. मुझे गर्व है कि मैं गढ़वाली भुल्ला होने के बावजूद वही पहनता हूं.’

नियम क्या है? कोई सिविलियन अगर किसी जालसाजी या धोखाधड़ी के इरादे से आर्मी की ड्रेस पहनता है तो आईपीसी की धारा 171 के तहत 3 महीने की सजा या 200 रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकता है. लेकिन फिल्मों में आर्मी यूनिफार्म यूज करना जालसाजी या धोखाधड़ी तो नहीं ही है. इसके अलावा आर्मी से रैंक, बैज, टैब और मेडल्स के यूज की परमिशन भी ली जा सकती है. आर्मी पर बेस्ड फिल्में या सैनिकों पर बेस्ड किरदार अकसर दिखाई देते हैं लेकिन बार बार उनकी ड्रेस में बहुत ही आम गड़बड़ियां दिखती हैं. उसे दूर करने के लिए फिल्ममेकर्स को अपनी तरफ से सावधानी रखनी चाहिए या फिर सैन्य विशेषज्ञों से राय लेनी चाहिए. उससे फिल्म का प्रमोशन भी अच्छा हो सकता है और गलतियां होने के चांसेज भी कम हो जाते हैं.