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गुजरात कोर्ट से राहत न मिलने के बाद कहां जाएंगे राहुल गांधी?

> पहली ख़बर है गुजरात हाई कोर्ट से. अदालत ने मानहानि मामले में राहुल गांधी की याचिका ख़ारिज कर दी है. यानी उनकी सदस्यता रद्द ही रहेगी. > दूसरी ख़बर कर्नाटक हाई कोर्ट से है. प्रदेश के एक स्कूल में हुए नाटक के दौरान कहा गया था, 'प्रधानमंत्री को जूतों से मारना चाहिए.' स्कूल के ख़िलाफ़ राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्कूल प्रशासन पर से राजद्रोह का केस रद्द कर दिया और कहा: प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अपशब्द इस्तेमाल करना अपमानजनक है, लेकिन राजद्रोह नहीं.

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राहुल गांधी (फोटो: आजतक)

आज आपको दो हाई कोर्ट्स के दो फ़ैसले सुनाते हैं. देश की दो बड़ी राजनीतिक हस्तियों से जुड़े फ़ैसले. एक सत्ता, दूसरा विपक्ष. कोर्ट ने विपक्ष वाले के विपक्ष में फ़ैसला सुनाया है. सत्ता वाले के लिए मामला ओके-ओके है, मगर कोर्ट ने लोकतंत्र को लेकर बड़ी टिप्पणी की है.

आपने अभी तक गेस कर ही लिया होगा कि मामला किनसे जुड़ा हुआ है.
> पहली ख़बर है गुजरात हाई कोर्ट से. अदालत ने मानहानि मामले में राहुल गांधी की याचिका ख़ारिज कर दी है. यानी उनकी सदस्यता रद्द ही रहेगी.

> दूसरी ख़बर कर्नाटक हाई कोर्ट से है. प्रदेश के एक स्कूल में हुए नाटक के दौरान कहा गया था, 'प्रधानमंत्री को जूतों से मारना चाहिए.' स्कूल के ख़िलाफ़ राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्कूल प्रशासन पर से राजद्रोह का केस रद्द कर दिया और कहा: प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अपशब्द इस्तेमाल करना अपमानजनक है, लेकिन राजद्रोह नहीं.

आज दिन की बड़ी ख़बर में इन्हीं दोनों फ़ैसलों की बात करेंगे. इनका आगा-पीछा टटोलेंगे. और, राहुल गांधी वाले केस में एक ज़रूरी बात - जो इस पूरी बहस से छूट रही है 

#क्या है राहुल गांधी वाला मामला?

राहुल गांधी का केस समझने के लिए पूरा मसला जान लीजिए.
ये पूरा मामला 2019 लोकसभा चुनाव के समय का है. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे. 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा, 

“नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी...अभी ढूंढ़ेंगे तो और मोदी निकलेंगे. एक छोटा सा सवाल है कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?”

राहुल गांधाी के इस बयान के ख़िलाफ़ बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने सूरत में आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया. धारा 499, 500 के तहत. अपनी शिकायत में पूर्णेश मोदी ने कहा कि राहुल ने पूरे मोदी समुदाय को यह कहकर बदनाम किया कि सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?

4 साल बाद. 23 मार्च 2023 को इस मामले में सूरत की एक लोवर कोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने राहुल को दोषी पाया और 2 साल की सज़ा सुनाई. ये आपराधिक मानहानि के मामले में मिलने वाली अधिकतम सज़ा है. maximum punishment, जो इस तरह के मामलों में रेयर ही सुनाई जाती है.

Germany's remarks on Rahul Gandhi: BJP leaders accuse Congress of seeking  'foreign interference' - India Today
राहुल गांधी (फोटो: आजतक)

राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए चुने गए थे. 23 मार्च 2023 को फैसला आया. अगले दिन 24 मार्च को लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता ख़त्म कर दी. क्योंकि जन प्रतिनिधित्व कानून में प्रावधान है कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी मामले में 2 साल या उससे ज़्यादा की सज़ा होती है, तो सदस्या खत्म हो जाएगी. इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद अगले 6 साल तक दोषी व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकता.  

माने राहुल गांधी को सजा तो हुई ही साथ ही सांसदी भी चली गई. और, अगले 6 साल चुनाव लड़ने पर भी बैन लग गया. इस फ़ैसले के बाद 3 अप्रैल को राहुल ने सूरत की सेशंस कोर्ट में अपील की. उन्होंने दो अर्जी दी. पहली अर्जी दो साल की सजा के ख़िलाफ़ और दूसरी, अपने कन्विक्शन मतलब दोषी ठहराए जाने के ख़िलाफ़.
राहुल ने कोर्ट में कहा कि ऐसा लगता है कि उन्हें इस मामले में अधिकतम सजा दी गई. ताकि उनकी लोकसभा सदस्यता ख़त्म की जा सके. 20 अप्रैल को सेशन कोर्ट का फ़ैसला आया. दोनों अर्जियां ख़ारिज हो गईं. कोर्ट ने कहा कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष और सांसद होने के नाते राहुल को और सावधान रहना चाहिए था.

#हाई कोर्ट में क्या हुआ?

सेशन कोर्ट के फैसले के बाद राहुल ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. आज हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है. क्या कहा हाईकोर्ट ने?

जस्टिस हेमंत पृच्छक की बेंच ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि राहुल गांधी बिल्कुल अस्तित्वहीन आधार पर राहत पाने की कोशिश कर रहे हैं. सेशन कोर्ट का फैसला न्यायसंगत और क़ानूनी था. अगर राहुल के कन्विक्शन पर रोक नहीं लगाया जाता है, तो यह राहुल के साथ कोई अन्याय नहीं होगा.

कोर्ट ने ये भी कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगभग 10 आपराधिक मामले हैं. इस मामले के बाद भी एक शिकायत आई है जो विनायक दामोदर सावरकर के पोते ने दर्ज कराई है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राजनीति में शुद्धता पर जोर दिया. कोर्ट ने कहा, 

"राहुल गांधी ने खुद स्वीकार किया है कि चुनावी भाषण में तो ये सब होता रहता है.  ये तर्क नैतिक कमी को स्पष्ट करता है. जो गलत और झूठे तथ्यों के आधार पर चुनावी नतीजों को अपने पक्ष में करने का हथकंडा है. अगर राहुल के पॉलिटिकल स्पीच के दावे को स्वीकार भी कर लिया जाए तो राहुल ने चुनाव नतीजे प्रभावित करने के लिए ग़लत बयान देकर नैतिक भ्रष्टाचार किया है."

हाईकोर्ट ने अपील ख़ारिज कर दी. दोषसिद्धि पर रोक लग जाती, तो राहुल की सांसदी बहाल होने का रास्ता खुल जाता. अब इसके बाद कुछ सवाल सामने आए. जैसे कि अब आगे राहुल गांधी के पास क्या ऑप्शन है? क्या राहुल गांधी की सदस्यता बहाल होने का कोई चांस है और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ पाएंगे?

हमने नोटिस किया है कि इस पूरी बहस से एक सवाल ग़ायब है. जब राहुल गांधी को इस मामले में दोषी पाया गया था, तब उन्हें दो साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी. हालांकि, इसके साथ ही ये भी ख़बर आ गई कि राहुल को बेल मिल गई है. और फिलहाल वो ज़मानत पर हैं. लेकिन ये बेल किस शर्त पर है? क्या जब तक केस चलेगा, तब तक बेल रहेगी या कोई ऐसी भी संभावना है कि राहुल गांधी जेल जाएंगे?

ये तो हो गया मामले का कानूनी पहलू. लेकिन मामला राजनीति से जुड़ा हुआ है तो प्रतिक्रियाएं आना लाज़मी है. बीजेपी ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि आलोचना की स्वतंत्रता है गाली देने की नहीं. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने कहा कि न्याय नहीं हुआ है. वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के आगे वो क्या करेंगे.  

#कर्नाटक में PM के खिलाफ किस मामले में सुनवाई हुई? 

अब आ जाते हैं दूसरे मसले पर. कर्नाटक हाई कोर्ट. एक स्कूल मैनेजमेंट के ख़िलाफ़ राजद्रोह के मामले को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा है कि प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए गए अपशब्द, अपमानजनक और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हो सकते हैं. लेकिन राजद्रोह का कोई केस नहीं बनता.

फ़ैसला 14 जून का है, लेकिन पब्लिक डोमेन में बीते दिन ही आया है. पहले मामला बता देते हैं, फिर अदालती बहस पर आएंगे. जिस स्कूल की बात यहां आ रही है वो बीदर शहर का स्कूल है: शाहीन स्कूल. साल 2020 में इस स्कूल में CAA और NRC को लेकर चौथी क्लास के बच्चों ने एक नाटक प्रेज़ेंट किया था. कथित तौर पर नाटक के दौरान कहा गया था, 'प्रधानमंत्री को जूतों से मारना चाहिए.' स्कूल में हुए इस नाटक के बाद स्कूल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए. कहा गया कि शाहीन स्कूल नकारात्मक बातें फैला रहा है. देश के ख़िलाफ़ काम कर रहा है.

नीलेश राकेश्याला नाम के एक लोकल ऐक्टिविस्ट ने स्कूल प्रशासन के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करवाई. आरोप लगाए गए कि इस नाटक को रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया, ताकि धार्मिक अदावत पैदा हो. FIR के मुताबिक़, मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ नारे लगे थे. ऐसे आरोप नीलेश ने लगाए और कहा कि ये काम राष्ट्र-विरोधी है. इसके बाद राजद्रोह और उकसावे से संबंधित IPC धाराओं के तहत FIR दर्ज की गई. कौन-कौन सी धाराएं थीं?

- 504: शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना,

- 505 (2): समुदायों के बीच घृणा या द्वेष पैदा करने वाले बयान देना,

- 124 (ए): राजद्रोह,

- और 153 (ए): धर्म, नस्ल, जन्म स्थान के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना.

विरोध के बाद शाहीन ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन ने इन आरोपों को ख़ारिज किया और कहा था, पुलिस हर रोज़ स्कूल आती है और बच्चों के साथ "देशद्रोहियों" की तरह व्यवहार करती है. चौथी क्लास के बच्चे, सनद रहे. इसके बाद FIR को रद्द करने के लिए स्कूल प्रशासन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.

स्कूल के वकील ने तर्क दिया कि नीतियों और पदाधिकारियों की आलोचना देशद्रोह का अपराध नहीं हो सकती. क्योंकि हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के इरादे के कोई सबूत नहीं हैं. ये भी कहा कि ऐसे कोई विशेष आरोप भी नहीं हैं, जो अलग-अलग समूहों के बीच अदावत को बढ़ावा देते हों. और इसलिए, FIR बिना तर्क और तथ्य के दर्ज की गई है. दूसरी ओर, सरकारी वकील ने कहा कि FIR में अपराधों का खुलासा हुआ है. इसमें हस्तक्षेप की ज़रूरत है क्योंकि आरोपों की जांच की जानी है.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फ़ैसलों के हवाले से कहा कि IPC की धारा 124-ए के तहत मुक़दमे के लिए, ऐसे प्रयास के सबूत होने चाहिए जिसमें लोगों को हिंसा का सहारा लेने और पब्लिक ऑर्डर में ख़लल पैदा करने के लिए उकसया गया हो. भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा, अवमानना ​​या असंतोष पैदा करने के सबूत होने चाहिए.
जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने स्कूल मैनेजमेंट के अलाउद्दीन,
अब्दुल ख़ालिक़,
मोहम्मद बिलाल इनामदार और
मोहम्मद महताब के
ख़िलाफ़ न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई FIR को रद्द करने के लिए कहा.

साथ ही जस्टिस हेमंत ने ये भी कहा, 

“नाटक के दौरान दिया गया बयान - यहां इसका संबंध प्रधानमंत्री को जूते से मारने वाले बयान से है - ये न केवल अपमानजनक था, बल्कि ग़ैर-ज़िम्मेदाराना भी है. फिर भी धारा 124-ए नहीं लगाई जा सकती है.”

अदालत ने साफ़ कहा कि नागरिक को सरकार और उसके पदाधिकारियों की तरफ़ से उठाए गए कदमों की आलोचना या टिप्पणी करने का अधिकार है, बस वो सरकार या सार्वजनिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ लोगों को हिंसा के लिए उकसा न रही हो. FIR रद्द करने के साथ अदालत ने ये हिदायत भी दी कि स्कूल का काम है कि बच्चों को समाज की भलाई और कल्याण करने के लिए प्रेरित करे. न कि सरकार की नीतियों की आलोचना करने और उनका अपमान करने के लिए.