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इस साल का 'वर्ड ऑफ द इयर' हम सबके लिए शर्म की बात है

ये इस वक्त की सबसे बड़ी दिक्कतों में से एक है. हम और आप, सब इसके शिकार हैं.

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अंदाजा लगाइए, तो हमारे पास सोशल मीडिया के रास्ते खबरों की शक्ल में जितने वीडियो, तस्वीरें और न्यूज पहुंचते हैं, उनमें से कम से कम आधी चीजें फर्जी और झूठी होती हैं.
फेक न्यूज. ये 2017 का 'वर्ड ऑफ द इयर' है. मतलब, साल का सबसे वजनी शब्द. जिसका असर किसी भी और शब्द के मुकाबले सबसे ज्यादा रहा. 2014-15 वो साल था, जब हम इस शब्द को सुनने के आदी होने लगे. फिर फर्जी खबरें थोक के भाव में आने लगीं. इन खबरों में एक खास अजेंडा होता है. कुछ खास तरह के लोगों को लपेटे में लेने के लिए इन्हें गढ़ा जाता है. कुछ खास तरह के लोगों का यकीन हासिल करने की कोशिश होती है. कुछ खास तरह के लोगों को निशाना बनाया जाता है. ये सिलसिला और आगे बढ़ निकला है. फेक न्यूज एक विशाल बरगद बन गया है. विराट. बहुत दूर तक फैल गया है.
कॉलिन्स इंग्लिश डिक्शनरी ऑनलाइन और प्रिंटेड, दोनों तरह की आती है. हर साल ये एक शब्द को 'वर्ड ऑफ द ईयर' चुनता है.
कॉलिन्स इंग्लिश डिक्शनरी ऑनलाइन और प्रिंटेड, दोनों तरह की आती है. हर साल ये एक शब्द को 'वर्ड ऑफ द इयर' चुनता है.

अब तो कुछ भी पढ़ते समय शक करना पड़ता है ऐसा पहले नहीं होता था. कोई खबर दिखती थी, तो खबर ही लगती थी. अब वो भरोसा नहीं रहा. कोई खबर देखो-पढ़ो, तो दस बार सोचना पड़ता है. दिमाग घंटी बजाता है. कहीं 'फेक न्यूज' तो नहीं! बहुत मेहनत करनी पड़ती है अब. खबर की सच्चाई पता करने को. एक से ज्यादा जगहों पर देखकर पक्का किया जाता है. क्रॉसचेक किया जाता है. वजह? सोशल मीडिया पर सही खबरों से ज्यादा फर्जी खबरें तैर रही हैं. खबर झूठी. घटना झूठी. तस्वीरें झूठी. जगहों के नाम झूठे. लोगों के नाम झूठे. उत्तरी अफ्रीका की खबर छत्तीसगढ़ की बनाकर शेयर हो जाती है. इराक में कुछ होता है, लोग मुजफ्फरनगर का कहकर चला देते हैं. पाकिस्तान का वीडियो जयपुर का बना दिया जाता है. कश्मीर की घटना उत्तराखंड की बताकर बेच दी जाती है. 'फेक न्यूज' सिर के ऊपर का नीला आसमान हो गया है. अनंत. हर जगह मौजूद है. इसीलिए कॉलिन्स डिक्शनरी ने 'फेक न्यूज' को साल का सबसे बड़ा शब्द चुना है. 2017 के कण-कण में था ये शब्द. हर कहीं. हर जगह.
जैसे-जैसे सोशल मीडिया हमारी जिंदगी में घुसता जा रहा है, वैसे-वैसे इसके अलग-अलग इस्तेमाल सामने आ रहे हैं. फर्जी खबर बनाकर अपना अजेंडा पूरा करना भी सोशल मीडिया का एक जरूरी चरित्र बन गया है.
जैसे-जैसे सोशल मीडिया हमारी जिंदगी में घुसता जा रहा है, वैसे-वैसे इसके अलग-अलग इस्तेमाल सामने आ रहे हैं. फर्जी खबर बनाकर अपना अजेंडा पूरा करना भी सोशल मीडिया का एक जरूरी चरित्र बन गया है.

बहुत बड़ा है 'फेक न्यूज' का कारखाना कॉलिन्स डिक्शनरी के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले इस 'फेक न्यूज' शब्द का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है. करीब 365 फीसदी. अमेरिका में. भारत में. डॉनल्ड ट्रंप तो राष्ट्रपति बनने के पहले से ही इस शब्द का खूब इस्तेमाल करते आए हैं. उनके ट्विटर हैंडल पर जाकर देखिए. कितने सारे ट्वीट्स में ये शब्द मिलेगा. मुझे नहीं लगता कि आप में से कोई ऐसा होगा, जिसने फेक न्यूज का जिक्र न सुना हो. फिर भी, इसका मतलब बता रही हूं. फेक न्यूज वो फर्जी जानकारियां होती हैं, जिन्हें न्यूज की शक्ल में चलाया जाता है. होती हैं सनसनीखेज. झूठी. मगर पेश ऐसे किया जाता है, मानो एकदम सच्ची हो. पुख्ता हों. ये जान-बूझकर बनाई जाती हैं. चलाई जाती हैं. बहुत सारे लोग दिन-रात फर्जी खबरें बनाने और फैलाने में जुटे हैं. जितनी बड़ी मीडिया इंडस्ट्री है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा कारखाना इस 'फेक न्यूज' का है. ये यूं ही नहीं है कि पिछले 2-3 सालों में 'वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी' हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गया है. पहले लगता था, लोगों से बात करने का प्लेटफॉर्म है. अब बस फॉरवर्ड की गई फर्जी खबरें ठेलने का अड्डा बन गया है. सोशल मीडिया पर जो चीजें हमारी आंखों के आगे से गुजरती हैं, उनमें आधी से ज्यादा शायद फर्जी होती हैं.
फेक न्यूज की सप्लाई इतनी ज्यादा है कि हम न चाहते हुए भी आए दिन इसके शिकार बनते हैं. खबरें, तस्वीरें, वीडियो... ये फेक न्यूज हर रूप में हम तक पहुंच जाता है.
फेक न्यूज की सप्लाई इतनी ज्यादा है कि हम न चाहते हुए भी आए दिन इसके शिकार बनते हैं. खबरें, तस्वीरें, वीडियो... ये फेक न्यूज हर रूप में हम तक पहुंच जाता है.

'फेक न्यूज' को 'वर्ड ऑफ द इयर' चुना जाना शर्मिंदगी की बात है फेक न्यूज को 'वर्ड ऑफ द इयर' चुना जाना हमारे लिए शर्म की बात है. इससे ये तो पता चलता है कि सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल हो रहा है. सोशल मीडिया अजेंडा पूरा करने में खपाया जा रहा है. इसके अलावा एक और बात है. जो शर्मिंदगी की है. फेक न्यूज के बढ़ते चलन से खुद मीडिया की हस्ती खतरे में है. लोगों का भरोसा उठता जा रहा है. शायद इसीलिए कई अखबार, वेबसाइट और चैनल 'फेक न्यूज' पर ध्यान दे रहे हैं. उनकी पोल खोल रहे हैं. लोगों को बता रहे हैं कि फलां खबर जो खूब वायरल हो रही है, गलत है. ये पूरी कवायद इसलिए, ताकि पढ़ने वाले सही और गलत में फर्क करना सीखें.
वॉट्सऐप और फेसबुक पर आने वाले वो मैजेस, जिनमें लिखा होता है कि इस खबर को आग की तरह फैला दो. फॉरवर्ड करने वाले बिना इस बात की पुष्टि किए कि बात सही है या गलत, उसे आगे बढ़ा देते हैं. और इस तरह फेक न्यूज अपने पांव पसारता जाता है.
फेक न्यूज मैसेज की शक्ल में भी होते हैं, जिनमें लिखा होता है कि इस खबर को आग की तरह फैला दो. फॉरवर्ड करने वाले बिना सही-गलत का पता लगाए, उसे आगे बढ़ा देते हैं. और इस तरह फेक न्यूज अपने पांव पसारता जाता है.

कई लोग अपनी बेवकूफी को और पुख्ता करने के लिए 'फेक न्यूज' पढ़ते हैं बहुत सारे लोग हैं, जिन्हें ये फेक न्यूज का झूठ बहुत रास आ रहा है. वो शॉर्ट कट पसंद कर रहे हैं. किताबें पढ़ने की आदत घट गई है. न इतिहास जानने में दिलचस्पी होती है, न विज्ञान. जैसा सोचते हैं, वैसा ही पढ़ना पसंद कर रहे हैं. माने, अगर मेरी सोच कट्टर है तो मैं एक खास तरह की चीजें पढूंगी. अगर मैं किसी खास विचारधारा की विरोधी हूं, तो उसके खिलाफ लिखी चीजें ही पढूंगी. जान-बूझकर फेक न्यूज का शिकार होने वालों की कोई मदद नहीं की जा सकती. मगर, गलती से इसके झांसे में आने वालों को बचाने की कोशिश हो सकती है. अगर आपको भी कहीं कोई फर्जी खबर दिखती है, ऐसी कोई खबर जिसपर आपको शुबहा हो, तो हमसे साझा कीजिए. हम बताएंगे आपको उसका सच.


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