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जब मशीन है ही, तो RBI ढेर सारे नए नोट क्यों नहीं छाप देता?

क्यों नहीं इतने नोट छप जाते कि सबके पास ख़ूब पैसा हो.

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सरकार चाहती है कि RBI ताबड़तोड़ नए नोट छाप दे. इससे ज़ाहिर तौर पर सरकार का फ़ायदा होगा. लेकिन रिज़र्व बैंकक जानता है कि इससे दिक्कत बढ़ेगी.

छुटपन की बात है. तब गांव में लोग परेशान दिखते थे. अखबार दुखों के डाकिए बन गए थे. हर दिन मंदी और महंगाई की ख़बरें. इतना समझ में आता था कि ‘घर में रुपया चाहिए’. काग़ज़ के नोट. हर मुश्किल का हल. फिर एक दिन दोस्त ने हाथ में 5 रुपए का अंगूरी रंग वाला नोट थामे एक बात कही, ‘सोचो अगर हम कॉपी के पन्ने फाड़कर उस पर ऐसी ही पेंटिंग कर सकें तो?’

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सवाल जायज़ था. उम्र के हिसाब से. लगता था जब रुपया ही सबको चाहिए, तो क्यों नहीं इतने नोट छप जाते कि सबके पास ख़ूब पैसा हो.

‘नोट क्यों नहीं छापती सरकार?’ ये सवाल बहुतों के मन में आता होगा. एक पत्रकार के मन में भी आया. उसने यही सवाल RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास से सवाल पूछ लिया. वजह थी सरकार का राजकोषीय घाटा. मतलब सरकार के खजाने में नुकसान. अब सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक नोट छाप दे. RBI ने मना कर दिया, क्योंकि इससे जनता का नुकसान होगा. अब सवाल ये उठता है कि नए नोट छापने से जनता को नुकसान कैसे होगा?

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बताते हैं आपको रुपए का सारा गुणा-गणित. लेकिन इसके लिए शुरू से समझना होगा. जो करेंसी आप अपने बटुए में रखते हैं, वो क्यों है? क्या है? कब तक है? तमाम सवाल हैं. तो सबसे पहले समझिए कि जिस नोट को RBI ने छापने से मना कर दिया, उसकी ज़रूरत क्या है?


रिज़र्व बैंक जब-तब सरकार से अपनी राय अलग रखता रहा है. इस बार गवर्नर शक्तिकांत दास ने नए नोट ही छापने से मना कर दिया (तस्वीर ANI)
रिज़र्व बैंक जब-तब सरकार से अपनी राय अलग रखता रहा है. इस बार गवर्नर शक्तिकांत दास ने नए नोट ही छापने से मना कर दिया (तस्वीर ANI)

# रुपया क्या है, कैसे काम करता है?

एक काल्पनिक देश है– ‘X’. उस देश में बाकी सब कुछ वैसा ही है, जैसा हमारे देश में. बस वहां रुपये-पैसे के बारे में कोई नहीं जानता. तो इस देश में रहने वाले राजू के खेत में जमकर आलू उगे. उसे उन आलुओं को तोड़ने और इकट्ठा करने के लिए पड़ोस के सोनू से हेल्प लेनी पड़ी. सोनू का धन्यवाद देने के लिए राजू ने एक कागज़ में थैंक्स लिखा और राजू को पकड़ा दिया.

अब सोनू के पेट में एक दिन दर्द हुआ, तो वो डॉक्टर के पास गया. डॉक्टर ने उसका इलाज कर दिया. इसके एवज़ में सोनू ने राजू से लिया थैंक्यू नोट डॉक्टर को पकड़ा दिया.

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अंततः जब डॉक्टर को भूख लगी, तो वो राजू के पास गया, जिसके खेत में अबकी खूब ढेर सारे आलू उगे थे. राजू ने कुछ आलू डॉक्टर को दे दिए और इस एहसान के एवज़ में उसको जो थैंक्स वाला नोट मिला था, वो उसी का दिया हुआ था. उसने वो नोट फाड़कर फेंक दिया और अब राजू, सोनू और डॉक्टर में से कोई भी किसी के एहसान तले नहीं दबा था.

लेकिन राजू, सोनू और डॉक्टर तो ईमानदार थे. क्या होता कि सोनू बेईमान होता और आलू की खेती में हेल्प किए बिना ही एक थैंक्यू का नोट बना लेता और अपना इलाज करवा लेता? क्योंकि वो भी थैंक्स नोट बनाने के लिए उतना ही फ्री था, जितना राजू. और डॉक्टर भी थैंक्स नोट बनाने के लिए उतना ही आज़ाद है जितना राजू और सोनू. इनमें से कोई भी अपना काम किए बगैर ही औरों से काम निकलवा सकता था.

तो इसलिए अब थैंक्स नोट में एक मुहर लगना शुरू हुई, जो तीनों की देखरेख और सहमति से लगती थी. यूं गिनती भर के थैंक्स नोट छाप के सबमें बांट दिए गए. इसको उस देश में रुपया कहा जाने लगा.


ये है अपने देश का थैंक्यू नोट. करेंसी वाला थैंक्यू, जो आपका ऑफ़िस आपको महीने की पहली तारीख़ को कहता है (तस्वीर ANI)
ये है अपने देश का थैंक्यू नोट. करेंसी वाला थैंक्यू, जो आपका ऑफ़िस आपको महीने की पहली तारीख़ को कहता है (तस्वीर ANI)

# रुपया 

रुपया एहसान चुकाने का एक ऑफिशियल ज़रिया है. मतलब अगर आप ऑफिस में काम करते हैं, तो आपकी कंपनी आपको एक ऐसा ऑफिशियल थैंक्स देती है, जो हर जगह वैलिड है. यानी वो थैंक्स आप किसी और को देकर उससे अपना काम निकलवा सकते हैं और आप पर ‘मैं आपका एहसान कैसे चुकाऊंगा’ का भार नहीं पड़ता. वो दूसरा, तीसरी जगह दे सकता है ये वैलिड थैंक्स. यूं पैसा घूमता रहता है और एहसान चुकता रहता है. यानी आपके पास जितना ज़्यादा रुपया है, आप उतना ज़्यादा काम करवा सकते हैं, बिना किसी का एहसान लिए.


# नोट की गारंटी क्या है?

अब पुरानी कहानी पर चलिए. राजू, सोनू और डॉक्टर. अब मान लीजिए कि डॉक्टर को आलू नहीं खाना. तो राजू का दिया हुआ थैंक्यू नोट डॉक्टर लेने से मना कर देगा. अब सोनू तो फंस गया न? उसने अपने हिस्से का काम भी किया और उसे डॉक्टर से इलाज भी नहीं मिला. इसलिए आपके नोट पर एक गारंटी छपी होती है. दस रुपए के नोट पर लिखा होता है, ‘मैं धारक को दस रुपए अदा करने का वचन देता हूं’.


आपके नोट पर भी गारंटी छपी होगी. हालांकि ये ऐसे काम नहीं करती कि कोई भी जब मन चाहे मना कर दे कि हमें ये नोट नहीं चाहिए(तस्वीर ANI)
आपके नोट पर भी गारंटी छपी होगी. हालांकि ये ऐसे काम नहीं करती कि कोई भी जब मन चाहे मना कर दे कि हमें ये नोट नहीं चाहिए(तस्वीर ANI)

गारंटी कौन देता है. रिज़र्व बैंक के गवर्नर. उन्हीं के साइन होते हैं नोट पर. यानी अगर आपने अपना थैंक्यू नोट लेने से मना कर दिया तो? रिज़र्व बैंक आपको उतने मूल्य का सोना देगा. हालांकि इसका प्रोसेस बहुत लंबा है. और ये तभी होगा, जब सरकार फेल हो जाए, जो लगभग असंभव है. तो आपको जो नोट मिला है, उसके बदले में गारंटी RBI के पास जमा है.

अब ये कहा जा रहा है कि सरकार का खज़ाना कमज़ोर हुआ है, इसलिए नए नोट छापने की ज़रूरत पड़ी. तो अब सवाल उठता है कि रुपया कमज़ोर कैसे हुआ? डॉलर या और किसी भी करेंसी के मुक़ाबले. इसे ऐसे समझिए.

आप कोई क्विज़ खेल रहे हैं. उस क्विज़ में हर सही सवाल में आपको एक पॉइंट मिलता है. अब आप दूसरी जगह कोई क्विज़ खेल रहे हैं, वहां पर हर सही सवाल में आपको टेन पॉइंट्स मिलते हैं. आप तीसरी जगह क्विज़ खेलते हैं, वहां पर हर सही सवाल में आपको हंड्रेड पॉइंट्स मिलते हैं. तो यदि आपके पहले क्विज़ में 4 पॉइंट्स है, दूसरे क्विज में 40 और तीसरे क्विज़ में 400 तो आप जानते हैं कि आपका परफोर्मेंस इक्वल रहा है और हर जगह आपने 4 सही जवाब दिए हैं.

वैसे ही यदि आपको ये बताया जाए कि एक डॉलर बराबर 1000 येन, 100 रुपये और 1 यूरो है, तो इसका मतलब ये नहीं कि येन कमज़ोर है और यूरो सबसे मज़बूत. फर्क इससे नहीं पड़ता कि किसी विशेष समय में किसी मुद्रा की क्या वैल्यू है. फ़र्क इससे पड़ता है कि दिए हुए टाइम-फ्रेम में मुद्रा में कितना परिवर्तन हुआ.

यानी देश की तरह ही कोई भी मुद्रा कमज़ोर या मज़बूत नहीं होती, उसे मज़बूत बनाना पड़ता है.

क्योंकि यदि जापान में किसी चीज़ की कीमत भारत के मुकाबले दस गुनी हुई, लेकिन वहां की सैलरी भारत के मुकाबले बीस गुनी हुई, तो वहां के लोग ज़्यादा अमीर हैं.

यानी ये कथन हमेशा ग़लत होगा कि अमुक करेंसी एक मज़बूत करेंसी है. सही ये होगा कि अमुक करेंसी ‘पिछले पांच सालों’ में ‘डॉलर के मुकाबले’ मज़बूत हुई है.


सरकार आपको एक सर्वमान्य करेंसी देती है लेकिन इसके मज़बूत होने या कमज़ोर होने में दुनिया भर की करेंसी का हाथ होता है (PTI)
सरकार आपको एक सर्वमान्य करेंसी देती है लेकिन इसके मज़बूत होने या कमज़ोर होने में दुनिया भर की करेंसी का हाथ होता है (PTI)

# चुटकी में डॉलर की बराबरी

एक डॉलर बराबर एक रुपया करना है, तो वो भी पॉसिबल है. रुपये छापना कम कर दो. उन्हें फाड़ने लग जाओ. जितने पैसे मार्केट में कम होंगे, धीरे-धीरे उनकी वेल्यू उतनी ही बढ़ जाएगी. एक दिन एक डॉलर एक रुपये के बराबर हो जाएगा. मगर याद रखिए, इसका कोई फायदा नहीं, क्योंकि हर चीज़ उसी मात्रा में घटने बढ़ने लगेंगी.

लोग कहते हैं कि सबको अमीर करना है, तो सरकार को ढेरों पैसे छापने चाहिए. लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती, क्योंकि जितने पैसे छपेंगे, चीज़ों के रेट उनके महंगे हो जाएंगे. यानी आज जो चीज़ एक रुपये की है वो, अगर दस गुने नोट छप गए और यदि बाकी परिस्थितियां सेम रहें तो, दस रुपये की हो जाएगी.

ठीक ऐसे ही आज जो चीज़ एक रुपये की है, वो दस पैसे की हो जाएगी, अगर मार्केट में अभी के केवल 1/10 नोट रह गए.

लेकिन उसी हिसाब से सैलरी मिलेगी, उसी हिसाब से बाकी खर्चे, इसलिए ही सरकार न एक निश्चित सीमा से ज़्यादा पैसे छापती है न कम.


# तो अब?

सरकार चाहे, तो आप अपने नोट घर में छापिए. लेकिन उससे फ़ायदा क्या होगा. फुटबॉल के खेल में अगर हर खिलाड़ी को उसकी अपनी फुटबॉल मिल जाए तो? खेल ही ख़त्म हो जाएगा ना?

इसी तरह से अगर ज़रूरत से ज़्यादा नोट बाज़ार में आए, तो महंगाई बढ़ेगी और रुपए का मूल्य कम होता जाएगा. ईरान जैसे देश में चाय का बिल हज़ारों में होता है. वजह? बाज़ार में नोट बहुत ज़्यादा हैं, इसलिए छोटे नोट बंद हो गए. यही वजह है कि RBI नए नोट अभी बाज़ार में लाना नहीं चाहता. बाज़ार पहले से मंदा है. महंगाई पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.




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