नए इनकम टैक्स बिल का ड्राफ्ट (New Income Tax Bill Draft) जारी हो गया है. 622 पन्नों वाले इस बिल को 13 फरवरी को संसद में पेश किया जा सकता है. इस बिल का उद्देश्य है टैक्स से जुड़ी भाषा को आसान बनाना, टैक्स रिपोर्टिंग के मामले में ‘टैक्स ईयर’ और ‘फाइनेंशियल ईयर’ जैसे शब्दों में बदलाव और ‘वर्चुअल डिजिटल संपत्तियों’ के लिए टैक्स से जुड़े कड़े नियम बनाना.
नए इनकम टैक्स बिल का ड्राफ्ट आया, ITR भरने वालों को जानना जरूरी
Income Tax Bill, 2025 में टैक्स से जुड़ी भाषा को आसान बनाने का प्रयास किया गया है. टैक्स रिपोर्टिंग के मामले में ‘टैक्स ईयर’ और ‘फाइनेंशियल ईयर’ जैसे शब्दों में बदलाव और ‘वर्चुअल डिजिटल संपत्तियों’ के लिए टैक्स से जुड़े कड़े नियम बनाए गए हैं.

नए प्रावधान के अनुसार, ‘टैक्स ईयर’ की एक नई परिभाषा दी गई है. अब 12 महीनों के असेसमेंट ईयर को ‘टैक्स ईयर’ कहा जाएगा. हालांकि इसकी आधिकारिक शुरुआत 1 अप्रैल से ही होगी. लेकिन किसी नए बिजनेस या नए पेशे के लिए उसके ‘टैक्स ईयर’ की शुरुआत, उसी दिन से होगी जब वो बिजनेस या पेशा शुरू होगा. और उसी फाइनेंशियल ईयर के साथ खत्म होगा. और एक ‘टैक्स ईयर’ में जितनी आर्थिक गतिविधि और कमाई हुई है उसी पर इनकम टैक्स लगाया जाएगा.
वहीं मौजूदा व्यवस्था में असेसमेंट ईयर का कॉन्सेप्ट है. इसके अनुसार, आयकर का आकलन पिछले वित्तीय वर्ष की आय के आधार पर किया जाता है. उदाहरण के लिए 1 अप्रैल, 2024 से लेकर 31 मार्च, 2025 तक अर्जित की गई आय का आकलन 1 अप्रैल, 2025 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2025-26 में किया जाता है.
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इंडियन एक्सप्रेस ने एक्सपर्ट के हवाले से लिखा है कि शब्दों के इन बदलावों से टैक्स रिपोर्ट करने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में 823 पन्ने थे. इनको घटाकर 622 कर दिया गया है. चैप्टर्स की संख्या पहले जैसी ही (23) है. जबकि धाराओं की संख्या 298 से बढ़कर 536 हो गई है. अनुसूचियों की संख्या भी 14 से बढ़कर 16 हो गई है.
क्रिप्टो करेंसी, NFTs और डिजिटल बॉन्ड्स आदि को ‘वर्चुअल डिजिटल संपत्ति’ कहते हैं. नए प्रावधान के तहत इनको भी तलाशी के अधीन लाया गया है. ताकि पैसा, सोना और आभूषण की तरह इनको भी 'अघोषित आय' के हिस्से के रूप में गिना जा सके. टैक्स पर मिलने वाली छूट की जानकारी नए बिल के अलग-अलग सेक्शन्स में दी गई है.
नए बिल को कैबिनेट से 7 फरवरी को मंजूरी मिल गई थी. अब इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा. इसके बाद बिल को पार्लियामेंट कमेटी के पास भेजा जाएगा. कमेटी अपनी सिफारिशें देगी. इसके बाद ये सरकार के पास वापस आएगा. कैबिनेट के माध्यम से ये तय किया जाएगा कि इसमें किस तरह के बदलाव किए जाएंगे या कौन-सी नई चीजें जोड़ी जाएंगी. इसके बाद ये वापस संसद में आएगा और फिर सरकार इसके लागू होने की तारीख की घोषणा करेगी.
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