The Lallantop
Advertisement

मैनपुरी से ग्राउंड रिपोर्ट 2: किशनी और करहल विधानसभाओं का हाल

UP चुनाव: मुलायम के गढ़ में क्या है माहौल?

Advertisement
Img The Lallantop
font-size
Small
Medium
Large
5 दिसंबर 2016 (Updated: 10 जनवरी 2017, 16:21 IST)
Updated: 10 जनवरी 2017 16:21 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
~ राजन पांडे


मैनपुरी से ग्राउंड रिपोर्ट की पहली कड़ी
 में आप जिले की दो विधानसभाओं का हाल पढ़ चुके हैं. दूसरी कड़ी में पढ़िए, बाकी दो विधानसभा सीटों किशनी और करहल से रिपोर्ट. 
विधानसभा सीट 3: किशनी (सुरक्षित) बेवर से ही कुसमरा होते हुए किशनी जाने की सड़क पकड़ लेता हूं. अब तक कोहरा छंटने लगा है. कुसमरा कसबे के पास ही एक खुली सी जगह कई भैंसें बंधी हुई हैं और कुछेक लोग खड़े हुए हैं. ईंटों के चूल्हे पर बाहर ही खाना पक रहा है. पूछने पर पता चलता है कुनढ़ी गांव के पशु मेला की जगह है. मेला कल है मगर भैंसें अभी से आने लगी हैं. तक़रीबन सभी मौजूद लोग यादव हैं और भैंस-दूध के कारोबार से जुड़े हैं. दो लोग- जनार्दन और अजय यादव, बनारस के शिवपुर से भैंसे लेकर आए हैं. नोटबंदी का ही असर है कि दो हफ्ते में एक भी भैंस नहीं बिकी. मैं पास खड़े स्थानीय लोगों से पूछता हूं तो बेखटके बोल देते हैं, ‘हम तौ अहीर हैं भैया, आगी पै बैठि कैऊ काऊ ओरै बोट दियें तौ मानिये नांय, ताके मारे कहैं दे रहे की सपा बारे हैं.’ फिर सरकार और विधायक के काम से तो संतुष्ट होंगे? अवनीश यादव जी जवाब देते हैं- ‘सरकार के काम सै तौ संतुष्ट हैं, बहुत बिकास को काम कराओ है अखिलेश नै, पर ब्रजेश कठेरिया सै बिलकुल नांय, जाए तो बदल देनो चाहियें. ’ किसको बनाना चाहिए उम्मीदवार? जवाब आता है, ‘आशु दिवाकर कौं दै देउ, काऊ औरें दै देउ पर ब्रजेश कठेरिया कौ नांय.’
किशनी सुरक्षित सीट सपा की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है. 1992 में अपनी स्थापना के बाद से ही सपा ये सीट जीतती आई है. 2012 के चुनाव में दो बार सपा के ही टिकट पर यहां की विधायक रहीं संध्या कठेरिया ने बग़ावत करके बसपा का दामन थम लिया था और सपा ने इंजीनियर ब्रजेश कठेरिया पर दांव खेला था. चुनाव में ब्रजेश ने संध्या कठेरिया को लगभग 35 हज़ार वोटों से हराया था. कुछ दिन नाराज़गी दिखाने के बाद संध्या वापस सपा में चली गईं. भाजपा इस सीट पर तीसरे स्थान पर थी. उसके उम्मीदवार सुनील कुमार और ब्रजेश कठेरिया के बीच लगभग 50 हज़ार वोटों का फर्क था. लेकिन सपा के अंदरूनी हलकों में ही ब्रजेश कठेरिया का काफी विरोध है. ऐसे में कई और उम्मीदवार यहां सपा के टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं. सबसे आगे हैं मैनपुरी के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष डॉ. प्रियरंजन आशु, जो आशु दिवाकर भी कहे जाते हैं और सैफई परिवार के करीबी माने जाते हैं. पूर्व सपा विधायक रामेश्वर दयाल वाल्मीकि के बेटे गौरव वाल्मीकि भी टिकट की जोड़ तोड़ में हैं. भाजपा इस उम्मीद में है की अगर ब्रजेश कठेरिया का टिकट कटा तो वो उनको अपने पाले से उतारने का प्रयास करेगी. नहीं तो अटकल ये भी है की आशु दिवाकर यदि सपा का टिकेट नहीं पा सके तो भाजपा उन पर दांव लगाएगी. ऐसे भाजपा टिकट के लिए डॉ. विपिन कठेरिया, बलवीर धनगर और राकेश वाल्मीकि भी उठापटक कर रहे हैं.
किशनी सीट पर दलित मतदाताओं में सबसे ज्यादा संख्या कठेरिया वोटरों की है, जिसके बाद जाटव और दिवाकर समाज के लोग आते हैं. यादवों का वोट यहां पर भी अच्छी संख्या में है, जबकि पतारा क्षेत्र में ठाकुरों का वोट भी कम नहीं है. शाक्य वोटर भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. बसपा ने इस सीट पर कमलेश कुमारी को उम्मीदवार बनाया है. जुझारू छवि वाली कमलेश कुमारी स्वयं जाटव समाज से आती हैं.
दांडी भट्ट गांव के पास कमलेश कुमारी का स्टीकर लगी टाटा सफारी खड़ी दिखती है. पूछने पर पता चला कि विधानसभा अध्यक्ष रामवीर सिंह शाक्य प्रचार के सिलसिले में घूम रहे हैं. बसपा के ही पुराने कार्यकर्ता विद्याराम मुनीम के घर बैठकर बातें होती हैं. मुनीम जी कट्टर बसपाई हैं. कहते हैं, ‘वोट देने का अधिकार तो हमको बाबासाहब और बहनजी ने दिलाया है, फिर हम किसी और को वोट कैसे दे सकते हैं. ’ मैनपुरी में बसपा के कमजोर चुनावी परफॉरमेंस पर उनका कहना है, ’हम लोगों को नेता बनाते हैं, फिर वो अन्य पार्टियों में भाग जाते हैं. राहुल राठौर भाग गए. संध्या कठेरिया भी आईं और भाग गईं. ऊपर से प्रशासन सपा वालों की मदद करता है. पर हम लोग अपना काम करते रहते हैं. ’
विदा लेकर आगे बढ़ता हूं. विधानसभा सीट 4: करहल किशनी विधानसभा क्षेत्र से करहल जाते हुए हर सामान कटरा के पास एक पक्षी विहार है जो गुगराल बत्तख का बड़ा संरक्षण केंद्र है. करहल पहुंचने से पहले ही आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पड़ता है जिस पर जोर शोर से काम जारी है.
IMG_20161204_141237556
लंबे समय से मैनपुरी के लोग मैनपुरी-इटावा के बीच रेल लाइन की मांग कर रहे थे और सपा के लोग ही इस मांग को गंभीरता से अलग अलग मंचों पर उठाते रहे हैं. लाइन बनकर तैयार हो चुकी है पर कुछ अन्य काम बाकी हैं. करहल शहर में घुसने से पहले नवनिर्मित करहल रेलवे स्टेशन भी दिखाई पड़ता है.
करहल स्टेशन करहल स्टेशन

करहल विधानसभा सैफई से कुछेक किलोमीटर की दूरी पर ही है, इसलिए मुलायम परिवार का दखल यहां काफी रहता है. मौजूद सपा विधायक सोबरन यादव पूर्व भाजपा नेता दर्शन सिंह यादव के भाई हैं, जो अभी राज्यसभा में हैं. सीधी साधी छवि वाले सोबरन के सिर पर पर मुलायम का हाथ बताया जाता है. पिछले चुनाव में कभी यहां से सपा की विधायक रहीं, मुलायम सिंह की समधन उर्मिला यादव बागी होकर कांग्रेस से चुनाव लड़ गई थीं. बसपा ने पूर्व मंत्री जयवीर सिंह को घिरोर सीट ख़त्म होने पर यहां से उम्मीदवार बनाया था. वहीं भाजपा ने यहां यादव वोट में सेंध मारने के लिए अनिल कुमार यादव को उम्मीदवार बनाया था. कुल जमा तीन यादव उम्मीदवार पिछले चुनाव में मुख्य दलों की और से उम्मीदवार थे. उसके बावजूद सपा की लहर में अन्य प्रत्याशी नहीं टिक पाए और सोबरन सिंह 92536 वोटों के साथ लगभग 31 हज़ार वोटों से चुनाव जीते.
इस बार भी सपा का टिकट निवर्तमान विधायक को ही मिलने की ज्यादा संभावना बताई जा रही है. हालांकि शिवपाल यादव के करहल सीट पर आने की चर्चाएं भी चल रहीं हैं. बसपा ने पाल बघेल वोटों को ध्यान में रखते हुए दलवीर पाल को प्रत्याशी बनाया है. भाजपा को हाल ही में एक बड़ी सफलता मिली जब करहल नगर पंचायत के अध्यक्ष संजीव यादव उर्फ़ गुड्डू ने भाजपा की सदस्यता ले ली. अभी करहल से भाजपा के टिकट का प्रबलतम दावेदार उन्हें ही माना जा रहा है.
करहल के ही घिरोर कस्बे की लहसुन मंडी प्रदेश की सबसे बड़ी मंडी है. मंडी समिति के अध्यक्ष संतोष कुमार गुप्ता बताते हैं- ‘सालाना यहां 10 से 11 लाख बोरी लहसुन का कारोबार होता है. यहां राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी माल आता है और यहां का माल बंगाल बिहार आसाम तक जाता है.’ नोटबंदी का असर पूछने पर बताते हैं, ‘असर बहुत बुरा है. पल्लेदार और किसान को पैसा नहीं दे पा रहे हैं. नतीजतन कारोबार ठप है. दाम और धंधा, दोनों आधे पर आ गए हैं. ’
IMG_20161204_150545551
कई किसान और पल्लेदार भी शिकायत करते हैं की काम काज ठप हो गया है और माल या तो आने पौने दाम पर बिक रहा है या उधर में, जिससे अगली फसल का खाद, बीज और कीटनाशक का पैसा जुटानें मुश्किल हो रहा है.
मंदी का असर दूसरी मंडियों पर भी पड़ा है. मैनपुरी सदर की गल्ला मंडी कई बार बंद होने के बाद अब सूनी पड़ी है. आढ़तिये का काम करने वाले अरविंद पाल बताते हैं- "किसान को भुगतान न कर पाने के चलते आये दिन खट-पट होती रहती थी. इसीलिए पहले आढ़तियों ने दो चार दिन काम बंद किया, और अब समझिये की मंडी बंद ही है."

काम कराया है अखिलेश ने

चारों सीटों पर घूमने के बाद जो एक बात लगभग हर जगह सपा समर्थकों या आम लोगों से सुनने में आई की वो ये थी कि अखिलेश ने कम से कम मैनपुरी में तो विकास करवाया ही है. जिले में सड़कें तो सच में बहुत बढ़िया हैं. कुरावली से मैनपुरी की सड़क भी फोर लेन कर दी गई है. लेकिन सड़कों और बिजली के अलावा क्या बड़ी विकास परियोजनाएं शुरू हुई हैं जिले में, पूछने पर IIMC दिल्ली के छात्र रहे और शहर में पत्रकारिता कर रहे हृदेश सिंह बताते हैं, ‘अखिलेश सरकार के रहते ही मैनपुरी को एक नया राजकीय पॉलीटेक्नीक और इंजीनियरिंग कॉलेज मिला, जिसका निर्माण लगभग पूरा हो गया है. साथ ही साथ पावर ग्रिड कोऑपरेशन का एक सब स्टेशन भी मायावती के शासन काल में स्वीकार हुआ था, जो जगह न मिलने के कारण शिफ्ट होने वाला था. उसको भी जमीन दिलाकर काम इसी सरकार ने शुरू करवाया. उत्तर प्रदेश का दूसरा सैनिक स्कूल भी मैनपुरी में ही बन रहा है. साथ ही साथ आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे भी जिले के करहल क्षेत्र से होकर निकलता है. इसके अलावा करहल के मोहब्बतपुर में फल, सब्जी, मछली, अनाज आदि सभी जिंसों की एक विशाल, बहु उद्श्यीय कृषि मंडी बनाने की घोषणा और उद्घाटन मुख्यमंत्री कर चुके हैं. सपा वाले मैनपुरी-इटावा रेल लाइन को लेकर भी सक्रिय रहते आए हैं और IMG_20161204_160142995
आखिरकार रेल लाइन बनकर तैयार हो चुकी है जिसका श्रेय जनता उन्हें ही देगी. कुल मिलाकर पिछले 5 सालों में मैनपुरी में काम तो हुआ है.’

भाजपा ही कर रही प्रचार

एक दूसरी बात जो लगभग सभी लोगों ने बताई वो ये थी की नोटबंदी के बाद सिर्फ भाजपा के ही राजनैतिक कार्यक्रम चल रहे हैं, जबकि बाकी दलों का प्रचार लगभग ठप है. 8 नवंबर के बाद से दो दिन भाजपा की परिवर्तन यात्रा जिले से होकर गुजरी जिसमें ठाकुर वोटों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय मंत्री वीके सिंह को मुख्य अतिथि बनाया गया. फिर दिसंबर में प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य एक युवा सम्मलेन को संबोधित करने मैनपुरी आए. जगह जगह दिखने वाली होर्डिंग्स में सबसे ज्यादा संख्या भाजपाइयों की है. निश्चित तौर पर प्रचार की दौड़ में तो भाजपा को नोटबंदी का फायदा हुआ है, लेकिन लोगों की दिक्कतें यूं ही जारी रहीं तो फैसला उल्टा भी पड़ सकता है.

दावे और प्रतिदावे

मैनपुरी शहर के मेघदूत होटल के पास वरिष्ठ भाजपाई और मैनपुरी लोकसभा के पालक शिव ओमकार नाथ पचौरी से मुलाक़ात हो जाती है. पचौरी जी जिले की कम से कम दो सीटों पर भाजपा की जीत के प्रति निश्चित है. कारण पूछने पर बोलते हैं, ‘भोगांव और मैनपुरी, दोनों ही सीटों पर 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार मुलायम सिंह से आगे था. इसका मतलब इन दो जगहों पर हमारा आधार सपा से ज्यादा है.’ सपा समर्थक इस तर्क को यूं ही ख़ारिज कर देते हैं. उनका कहना है कि ऐसा कई बार हुआ है कि मुलायम लोकसभा चुनाव में किसी सीट से कम वोट लाए हों, पर उसी सीट पर विधानसभा चुनाव में सपा जीती है, खास तौर पर भोगांव और मैनपुरी में. विधानसभा चुनाव के समीकरण लोकसभा से अलग होते हैं.
वहीं बसपाई इस चुनाव में मैनपुरी में ख़राब प्रदर्शन का अपना दाग धो लेना चाहते हैं. कांग्रेस की हालत यूं तो बहुत अच्छी नहीं है पर चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के प्रति वे भी कम आशान्वित नहीं हैं. कम से कम चुनाव तक तो कोई हार मानने को तैयार नहीं.


 
ये भी पढ़ें
मैनपुरी से ग्राउंड रिपोर्ट: पहली कड़ी

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement