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नौतनवा ग्राउंड रिपोर्ट: मां-पापा और भाई जेल में, तो बहन लंदन से आई चुनाव प्रचार के लिए

पेश है बाहुबलियों की सीट का हाल.

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जेल में बंद भाई अमनमणि के लिए प्रचार कर रहीं उनकी बहनें तनुश्री और अलंकृता
3 मार्च 2017 (Updated: 10 मार्च 2017, 02:43 IST)
Updated: 10 मार्च 2017 02:43 IST
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नेपाल बॉर्डर से लगा सिंधौली गांव. यहां सत्तर के दशक में एक छावनी हुआ करती थी. सीमा सशस्त्र बल की नहीं, गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी की. इस छावनी का नौतनवा निवासी सरदार महेंद्र सिंह के मुताबिक आतंक था. सामने खेत थे और छावनी में कर्मचारी. जो लोगों को परेशान करते. एक बार छावनी पर हुआ एक झगड़ा. नौतनवा के ट्रांसपोर्टर अजीत सिंह के साथ. फिर अजीत गायब हो गए. कुछ दिनों बाद उनकी लाश मिली. नेपाल के जंगलों में. उसके बाद पूरा नौतनवा सड़कों पर उतर आया. दस दिन तक आंदोलन हुए.


गोरखपुर के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी
गोरखपुर के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी

प्रदेश के एक छोटे से कस्बे की इस हलचल पर नजर थी देश के एक बड़े नेता की. चंद्रशेखर. उन्होंने गोरखपुर में छात्र राजनीति से उभरे और दबंगई में हरिशंकर तिवारी के सामने खड़े हो रहे वीरेंद्र साही को यहां भेजा. उन्हें नौतनवा के अखिलेश सिंह का खूब सहयोग मिला. उधर तिवारी खेमा कुछ दिनों के लिए इलाका छोड़ गया. एक टॉकीज का निर्माण चालू था. पब्लिक ने उसे भी ध्वस्त कर दिया.

और फिर आए चुनाव. 1980 के. साही खड़े हुए निर्दलीय. जिला महाराजगंज के नौतनवा इलाके वाली लक्ष्मीपुर विधानसभा से. चुनाव निशान था दहाड़ता हुआ शेर. उनके सामने आए हरिशंकर तिवारी का इलाके में काम देखने वाले अमरमणि त्रिपाठी. जिनका चुनाव निशान था नाव.


अमरमणि त्रिपाठी
अमरमणि त्रिपाठी

हमें लगा कि अमर भी निर्दलीय लड़े होंगे. मगर उनके सबसे बड़े भाई अजीतमणि ने बताया, 'उस दौर में कांग्रेस का श्रीपद अमृत डांगे वाली कम्युनिस्ट पार्टी से गठबंधन था. और उनका निशान था नाव. अमर के चाचा श्यामनारायण पांडे भी कम्युनिस्ट नेता थे और यहां से कई बार विधायक मंत्री रहे थे. उसी असर में अमर को टिकट मिला.'

चुनाव में साही जीते. 1985 में भी यही हुआ. उधर उनके विरोधी हरिशंकर ने भी राजनीति की राह पकड़ ली. वह गोरखपुर के पास की चिल्लूपार सीट से विधायक बन गए. अब दोनों विधानसभा में आमने-सामने थे. मगर हरिशंकर को ये नागवार गुजर रहा था. वह लगातार अमरमणि को मजबूत करने में लगे थे. नतीजा पांच साल बाद दिखा. जब 1989 में कांग्रेस ढलान पर थी, तब अमरमणि लक्ष्मीपुर से विधायकी जीत गए. मगर अगले ही चुनाव में उन्होंने जीत अखिलेश सिंह के हाथों गंवा दी.


"attachment_61708" align="alignnone" width="600"अमनमणि त्रिपाठी की रैली में आई भीड़, जिसे संबोधित कर रहे हैं भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल
अमनमणि त्रिपाठी की रैली में आई भीड़, जिसे संबोधित कर रहे हैं भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल

और जनता की कोर्ट में हैं उनके बेटे अमनमणि. अमन 2012 का विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. सपा के टिकट पर. मगर पापा के चिर प्रतिद्वंदी मुन्ना सिंह से हार गए. ये कैसे हुआ? बकौल मुन्ना सिंह, ये मुमकिन हुआ उनके असर वाले बगल की फरैंदा तहसील के 19 गांव जुड़ने से. इतने जुड़े, तो अमरमणि के असर वाले इतने ही गांव दूसरी विधानसभा में चले गए. अमनमणि की बहनें भी हार की ये एक वजह गिनाती हैं.


अमनमणि त्रिपाठी के लिए चुनाव प्रचार के दौरान उनकी बहनें अलंकृता (बाएं) और तनुश्री (दाएं)
अमनमणि त्रिपाठी के लिए चुनाव प्रचार के दौरान उनकी बहनें अलंकृता (बाएं) और तनुश्री (दाएं)

बहनों को भाई का राजनीतिक बचाव क्यों करना पड़ रहा है. क्योंकि भाई जेल में है. अपनी पत्नी सारा सिंह के कत्ल के इल्जाम में. मामले की जांच सीबीआई को दी गई है. सारा की मां सीमा सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से गुहार लगाई. अमनमणि को आपका संरक्षण क्यों? लोगों को मधुमिता शुक्ला हत्याकांड याद आ गया. अखिलेश ने अमनमणि का टिकट काट दिया. हालांकि, अमन की बहन तनुश्री के मुताबिक भैया का टिकट इसलिए कटा, क्योंकि वो शिवपाल यादव के करीबी थे.

https://www.youtube.com/watch?v=tlfVtAGxJPA

टिकट कटने के बाद अमनमणि ने पैरोल पर बाहर आ निर्दलीय पर्चा भरा. चुनाव निशान मिला टैंपो. उनकी सवारी वापस जेल पहुंची. और अब उनकी दोनों छोटी बहनें तनुश्री और अलंकृता चुनाव प्रचार की कमान संभाल रही हैं. तनुश्री ने लंदन से इंटरनेशनल रिलेशंस में मास्टर की डिग्री हासिल की है. पढ़ाई के बाद वह नौकरी भी वहीं कर रही थीं. फिर माता-पिता को सजा के बाद वह गोरखपुर लौट आईं. अब वहीं एक स्कूल चलाती हैं.


अमनमणि की रैली में उनके पोस्टर के साथ एक युवक
अमनमणि की रैली में उनके पोस्टर के साथ एक युवक

छोटी बेटी अलंकृता भी दिल्ली में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर चुकी हैं. ये दोनों बहने क्षेत्र में घूम रही हैं. और उनके साथ घूम रहे हैं स्टार प्रचारक. ये प्रचारक कोई नेता नहीं, सिंगर हैं. भोजपुरी के सुपर स्टार. एक का नाम है खेसारी लाल, दूसरे का निरहुआ. अमनमणि के समर्थन में दोनों रैली में जाते हैं. अपने कुछ गानों की चार-चार लाइनें सुनाते हैं. जनता को आई लव यू बोलते हैं. फिर बताते हैं कि मेरे अमनमणि से दोस्ताना ताल्लुक हैं. फिर दोनों बहनों को स्टेज पर बुलाकर भावुक अपील करते हैं कि रक्षाबंधन पर ये किसे राखी बांधें. योजना ये है कि एक सिंपैथी वेव पैदा हो.


अमनमणि के समर्थन में रैली करते खेसारी लाल
अमनमणि के समर्थन में रैली करते खेसारी लाल

उधर बीजेपी, जो यहां से कभी चुनाव नहीं जीती, काउंटर करने के लिए अपने घरेलू भोजपुरी स्टार को लाती है. मनोज तिवारी की रैली में भी अच्छा-खासा हुजूम जुटता है. मगर एक लिमिट है. मनोज एक-दो सभाएं ही कर सकते हैं, जबकि खेसारी लाल और निरहुआ ने पूरे दिन में आठ दस सभाएं कीं. मनोज के अलावा बीजेपी के और भी कुछ नेता यहां पर आए हैं, मगर उनका प्रचार उठा हुआ नहीं दिखता.

लोग दिन में मोबाइल का फ्लैश जलाकर खेसारी की फोटो खींचते हैं
लोग दिन में मोबाइल का फ्लैश जलाकर खेसारी की फोटो खींचते हैं

इसकी खोज में हम पहुंचते हैं बीजेपी दफ्तर. यहां मिलते हैं बीजेपी के जिला पंचायत सदस्य नृसिंह पांडे. नृसिंह योगी आदित्य नाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष भी हैं. उनके मुताबिक 'अमरमणि की बेटियां रोने का नाटक करती हैं. इसके लिए आंख में बाम लगाती हैं, ताकि सहानुभूति पैदा हो. मगर जब हम लोगों को जाकर मधमिता और सारा की हत्या के बारे में बताते हैं, तो लोगों को समझ आ जाती है उनके आंसुओं की असलियत.'


रैली में तनुश्री और अलंकृता
रैली में तनुश्री और अलंकृता

इसके बाद नृसिंह अमरमणि के साम्राज्य निर्माण की कई कहानियां सुनाते हैं. मसलन, समुंद्रा देवी नाम की एक थारू जनजाति को मरा दिखाकर उनकी जमीन पर कब्जा. इलाके की पुरानी दुर्गा ऑयल मिल पर कब्जे की कोशिश. और ऐसी ही कई कहानियां. तनुश्री और अलंकृता इन सब मामलों में अपने पिता की संलिप्तता से सिरे से इनकार करती हैं. उनके मुताबिक वह लोगों का भला करते हैं, इसलिए विरोधी उन्हें फंसा देते हैं.

उधर नृसिंह कहते हैं कि सरकार के दम पर गुंडई अमरमणि करते थे. 'मैंने विरोध किया तो मुझे मारपीट के केस में फंसा दिया.' नृसिंह का दावा है कि इस बार बीजेपी के समीर त्रिपाठी नौतनवा को अमरमणि के परिवार और मुन्ना सिंह दोनों के वर्चस्व से मुक्त कर देंगे. उन्हें बीजेपी को मोदी के नाम पर मिल रहे पिछड़ी जातियों के सपोर्ट और ब्राह्मणों का भरोसा है.


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