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इंडियन पार्टियों के चुनावी नारों की कथा, इससे बेस्ट आज कुछ नहीं पढ़ेंगे

किस-किस ने कब क्या नारे गढ़े और क्यों गढ़े. जानकर सबकी पॉलिटिक्स समझ आ जाएगी.

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25 जनवरी 2017 (Updated: 26 जनवरी 2017, 06:56 IST)
Updated: 26 जनवरी 2017 06:56 IST
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देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. नेता लोग जोर लगाए हुए हैं. घूम-घूमकर सबसे बात तो नहीं कर सकते, तो नारे गढ़ लेते हैं. ये नारे बड़े दिलचस्प होते हैं. कम शब्दों में पूरी बात कह जाते हैं. कई नारे तो ये तक बता देते हैं कि पार्टी के घोषणापत्र से अलग असली बात क्या है.
नारे हमेशा पार्टी ही जारी नहीं करती. कई बार छुटभैये नेता अपने गली-मुहल्लों में नारे गढ़ लेते हैं और वो उतने ही प्रभावी निकलते हैं. कई बार ये नारे बेहद संवेदनाहीन और जातिवादी होते हैं, पर जनता की जबान पर चढ़े रहते हैं. अनऑफिशियली प्रचार होता रहता है.
अखिलेश यादव के जवान समर्थक अभी नारा लगा रहे हैं - ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भैया तेरे नाम.कई जगह ये नारे भी लग रहे हैं - हमारा सैंया कैसा हो, अखिलेश यादव जैसा हो.
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ये नारे एकदम मूड बना देते हैं. भाजपा पार्टी हमेशा कहती थी कि कांग्रेस को इतने साल दे दिए, एक बार हमें भी मौका दो. इसके लिए भी नारा था - सबको परखा बार-बार, हमको परखो एक बार.
तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को मौका मिला भी था. पर 2004 में अटल को काउंटर करने के लिए नारा निकला - तुमको देखा एक ही बार, तुम निकले सबसे मक्कार. ये बड़ा डैमेजिंग था. इसी मुकाबले में कांग्रेस ने नारा दिया - कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ. ये इफेक्टिव रहा. पर 2014 के चुनाव में अबकी बार मोदी सरकार सब पर भारी रहा. ‘अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी आने वाले हैं’ भी था. तुरंत कनेक्ट कर लेता था ये नारा.
नारों की ये जर्नी शुरू से जानते हैंः
#1.
आजादी के बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी देश में. विपक्ष में बैठे कम्युनिस्टों ने एक नारा दिया था – देश की जनता भूखी है यह आजादी झूठी है.
उनका एक और नारा बहुत लोकप्रिय था– लाल किले पर लाल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान.
60 के दशक में ही जनसंघ ने नारा दिया था - जली झोंपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल
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इसका करारा जवाब हुए कांग्रेस ने नारा दिया था - इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
'दो बैल' कांग्रेस का चुनाव चिह्न हुआ करता था और 'दीपक' जनसंघ का. जनसंघ ने एक और नारा दिया था गोरक्षा को लेकर - गाय हमारी माता है, देश धर्म का नाता है. एक और नारा था इनका- हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर घर में दीपक, जनसंघ की निशानी.
- जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो. - बीड़ी में तंबाकू है, कांग्रेस वाला डाकू है.
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#2.
इन सारी बातों के बाद इंदिरा गांधी राजनीति में आ गईं. इसके बाद तो माहौल ही बदल गया. नारे भी अग्रेसिव हो गए. इंदिरा किसी को कुछ समझती नहीं थीं, पर जनता वोट उनको दे देती थी. तो इंदिरा को काउंटर करने के लिए भी खूब नारे गढ़े गए - ये देखो इंदिरा का खेल, खा गई शक्कर पी गई तेल.
ये हुआ था चीनी, केरोसिन और पेट्रोल के क्राइसिस को लेकर. पर इंदिरा ने जवाब में नारों की झड़ी लगा दी थी - आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा जी को लाएंगे. इसके बाद 1971 के चुनावों में इंदिरा गरीबी ह‍टाओ का नारा देकर बाजी मार ले गईं.
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फिर इंदिरा ने इमरजेंसी लगा दी. पर देश में पॉलिटिकल समझ का भा क्राइसिस था. लोगों को समझाना था कि क्या हुआ है. तो इसके लिए नारे गढ़े गए - सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है. ये जेपी ने दिया था.
कविताओं का भी इस्तेमाल किया गया - ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है. दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो/ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
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- जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में. द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में.- जगजीवन राम की आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी- आकाश से कहें नेहरू पुकार, मत कर बेटी अत्याचार- संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी- बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है- अटल बोला इंदिरा का शासन डोला
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- स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जहियो हार
कांग्रेस नेता देव कांत बरुआ ने आपातकाल के दौरान नारा दिया था -  इंदिरा भारत हैं और भारत इंदिरा है.
पर श्रीकांत वर्मा ने जब नारा दिया, जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर..  तो फिर इंदिरा की बात बन गई. फिर 1980 के चुनावों से पहले चिकमंगलूर के उपचुनाव में जब इंदिरा जीत गईं तो नारा बना- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर. इसके बाद जनता पार्टी की अस्थिरता को लेकर इंदिरा ने नारा दिया-  मजबूत सरकार.
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#3.
इंदिरा गांधी की हत्या हो गई तो इसके बाद नारे लगे-
‘इंदिरा तेरी यह कुर्बानी याद करेगा हिंदुस्तानी.’- ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा’- इंदिरा तेरा यह बलिदान याद करेगा हिन्दुस्तान
फिर राजीव गांधी के लिए नारे लगे-
पानी में और आंधी में, विश्वास है राजीव गांधी में. उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं
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पर जब वी पी सिंह राजीव के खिलाफ खड़े हुए तो नये नारे गढ़े गए -
राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है
इसके जवाब में कांग्रेस ने नया नारा बना लिया-
फकीर नहीं राजा है, सीआईए का बाजा है.
#4.
इसके बाद 80 और 90 के दशक में देश में राजन्मभूमि विवाद ने तूल पकड़ लिया. हर बात में हिंदुत्व खींच लाया जाता. इसमें कुछ ऑफिशियल और कुछ अनऑफिशियल पर प्रचलित नारे गढ़े गए -
संघ प्रमुख मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत

‘आपका वोट राम के नाम’, 'सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे’ ‘कल्याण सिंह कल्याण करो मंदिर का निर्माण करो’ ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ ‘ये तो केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’
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और उसी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को देश का सबसे बड़ा नेता साबित करने की जुगत में ये नारा दिया गया, जो कि सफल भी हुआ-
- अबकी बारी अटल बिहारी. - सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी
#5.
इसके बाद जब सत्ता में वापस लौटना हुआ तो भाजपा ने नया नारा दिया-
- कहो दिल से, अटल फिर से - इंडिया शाइनिंग
पर ये नारे चले नहीं. क्योंकि कांग्रेस ने नई चीज खोज ली थी. महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को ये चीजें लुभा गईं -
- कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ - आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद - कांग्रेस को लाना है देश को बचाना है - उठे हजारों हाथ सोनिया जी के साथ - सोनिया नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है - आम आदमी को क्या मिला?
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ये नारे कांग्रेस ने 2014 के चुनाव में भी इस्तेमाल किए, पर चले नहीं -
- कट्टर सोच नहीं, युवा जोश - हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्‍की - जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से
जवाब में ये नारे भी बनाये गये थे -
- सोनिया जिसकी मम्मी है वो सरकार निकम्मी है - देखो देखो कौन आया, हिंदुस्तान का शेर आया
#6.
यूपी में नारे और गमगीन करने वाले लगे.
2007 में अमिताभ बच्चन ने सपा का प्रचार करते हुए कहा था -
यूपी में है दम, क्योंकि जुर्म यहां है कम.
_Amitabh_Bachchan_

पर जवाब में कांग्रेस ने कहा - यूपी में था दम, लेकिन कहां पहुंच गये हम. 
सपा के कुछ प्रमुख नारे यूं रहे -
बड़ी बड़ी हवा चली, बदला बदला मौसम, कायम रहे उत्तर प्रदेश, कायम रहें मुलायम’ बोल मुलायम हल्ला बोल, हल्ला बोल.
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जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है.
#7.
बसपा कांशीराम के आंदोलन से खड़ी हुई पार्टी है.
तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार से शुरू होकर इस पार्टी के नारे बढ़ते ही गए -
- पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा - चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल - यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है - बाबा साहेब मिशन तेरा, कांशीराम करेगा पूरा - बीएसपी की क्या पहचान, नीला झंडा हाथी निशान - पत्थर रख लो छाती पर, बटन दबा दो हाथी पर
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मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गये जय श्री राम

- ठाकुर बाभन बनिया चोर, बाकी सारे डीएस फोर - बनिया माफ, ठाकुर हाफ और ब्राह्मण साफ - जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी - हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है - पत्थर रख लो छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर
जाति के आधार पर हिस्सेदारी को लेकर 60 के दशक में ये नारे लगे थे - सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावैं सौ में साठ.
'जातिगत समरसता बनाने हेतु' आरएसएस ने ये नारा दिया था - एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान. पर अभी तक बहुत काम नहीं आया है. ऊना वगैरह की घटनाएं तो इस बात को नकार ही देती हैं.
#8.
इसी दौरान नारों को लेकर वाद-प्रतिवाद भी हुए. 2007 में मायावती तो जीत गई थीं. उस साल नारे लगे थे - चढ़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगा दो हाथी पर.
मायावती-पार्टी की अकेली आवाज़. पिक्चर: Reuters
पर 2012 में जब सपा जीत गई तो ये नारे लगे - गुंडा चढ़ गया हाथी पर, गोली मारा छाती पर.
भाजपा ने ये नारा इस्तेमाल किया था -
चलो यूपी से मुलायम को हटाया जाय अबके कीचड़ में कमल खिलाया जाय
#9.
2015 के बिहार चुनाव में तो नारों की झड़ी ही लग गई थी. डीएनए टेस्ट कर प्रधानमंत्री मोदी ने खुला मैदान दे दिया था नारों के लिए-
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- झांसे में ना आएंगे, नीतीश को जिताएंगे - आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार. - बिहार में बहार हो, फिर से नीतीशे कुमार हो. - बहुत हुआ जुमलों का वार, एक बार नीतिश कुमार.
बहुत पहले लालू प्रसाद यादव ने ये नारे दिये थे-
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- जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू
- भूरा बाल साफ़ करो
#10.
पंजाब कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर जुआ खेलती है. पर ये लोग ये नहीं समझ पाते कि कैप्टन कांग्रेस के लिए जितने महत्वपूर्ण हैं, शायद पंजाब के लोगों के लिए नहीं हैं -
- हर घर तों इक कप्तान - कैप्टन ने सौ चक्की और हर घर इक नौकरी पक्की.
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क्या करेगा यार कोई हर घर में एक कप्तान रखकर? पंजाब में एक ही काफी नहीं है क्या.


ममता बनर्जी ने 2011 में नारा दिया था, मां माटी और मानुस. जीत भी गईं. दुबारा भी जीतीं. वहां पर ये नारा कनेक्ट कर गया था.
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#11.
यूपी में ही 2007 के चुनाव में किसी महिला नेता के खास साथियों के द्वारा ऐन चुनाव के पहले पार्टी छोड़ जाने की खिल्ली उड़ाते हुये नारा लगाया गया-
धोबी के साथ गदहे भी चल दिये मटककर धोबन बेचारी रोती पत्थर पर सर पटककर.
ये नारे सेक्सिस्ट एप्रोच दिखाते हैं. पर बोलने में लोग हिचकते नहीं. हालांकि धर लिए जाने पर कह देंगे कि मैंने कहां कहा था. मैंने तो वॉट्सएप पर पढ़ा था.
दो नारे ऐसे हैं जो हर जगह फिट बैठते हैं. हमेशा समकालीन ही रहते हैं-
एक दो तीन चार, फुरसतियाजी बारम्बार. गली गली में शोर है, फुरसतियाजी भावविभोर हैं.
फुरसतिया की जगह आप किसी को भी रख सकते हैं.
एक नारा ब्रह्मास्त्र है. आप इसमें कोई भी नाम इस्तेमाल कर सकते हैं जरूरत के मुताबिक-
गली गली में शोर है, (...) चोर है.
पर यूपी में एक नारा है जो अभी भी गेम पलट सकता है. ऐसा कांग्रेस के लोग मानते हैं. गांधी परिवार में अगाध भरोसे के चलते वो प्रियंका के आगे किसी को कुछ नहीं समझते. ऐसा मानते हैं कि प्रियंका तो लड़ ही नहीं रही हैं. लड़तीं तो सबको सिखा देतीं. जैसा इंजीनियरिंग के स्टूडेंट करते हैं. कि तेरे भाई ने तो पढ़ाई ही नहीं की. तब 100 में 35 लाया, पढ़ा होता तो सबकी लंका लगा देता. यहां भी ये नहीं बताएगा कि कितने नंबर लाता. जोर सबकी पर ही रहता है. प्रियंका को लेकर कांग्रेस को यही गफलत है. ये नहीं सोचते कि प्रियंका कांग्रेस को कैसे उबार सकती हैं. कैसे नए रास्ते पर ला सकती हैं. बात ये करते हैं कि बाकी सबको सिखा देंगी. ये नारा है -
अमेठी का डंका, बेटी प्रियंका
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